सुरेश वाडकर

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Friday, December 7, 2018

परिवर्तन चुनाव से नहीं! जन-आन्दोलन से ही सम्भव -

परिवर्तन चुनाव से नहीं! जन-आन्दोलन से ही सम्भव -

2019 का लोकसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे कुकुरमुत्तों की तरह राजनीतिक पार्टियॉं और उसके नेता बिल से बाहर निकल रहे हैं. यह चुनाव प्रक्रिया कोई एक-दो साल से नहीं बल्कि 70 सालों से चली आ रही है. चुनाव आता है नेता चुनाव जीतते हैं, घुस खिलाकर, शराब पिलाकर, ईवीएम मशीन में गड़बड़ी करवाकर. मगर चुनाव जितते जरूर हैं. तो 70 सालों में कौन सा विकास या कौन सा परिवर्तन हमारे समाज और देश का हुआ जो 2019 के चुनाव के बाद हो जायेगा. यह दलाल राजनैतिक पार्टियों का राजनैतिक रोटियॉं सेंकने के लिए चुनाव होता है, ना कि देश और समाज के हित के लिए.
भारत में सबसे बड़ी राजनीतिक दल कांग्रेस व बीजेपी इन्होंने 70 सालों से बहुजनों के उद्धार का एक भी कार्य नहीं किया. ये सबूत है हमारे सामने तो 2019 के चुनाव में हमारे हित का कार्य करेंगे इसकी क्या गारन्टी है? क्योंकि कांग्रेस जाती है तो बीजेपी आती है, बीजेपी जाती है तो कांग्रेस आती है, इसलिए नेता में परिवर्तन नहीं होता है तो नीति में परिवर्तन नहीं होता है, नीति में परिवर्तन नहीं होता है तो नेता में परिवर्तन नहीं होता है. इसलिए हमारे देश का और बहुजनों का सत्यानाश हो रहा है.
डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर कहते हैं कि ‘भारत में कोई भी राजनैतिक पार्टी हमारे उद्धार के लिए साथ-सहयोग करने वाली नहीं है.’
ये सबूत है कि 70 साल एक बड़ा समय गुजर गया है मगर बहुजनों के हित का एक भी काम नहीं हुआ. और नहीं तो हमारी गुलामी और मजबूत करने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने लिबरलाईजेशन, प्राईवेटाईजेशन और ग्लोबलाईजेशन (एलपीजी) और इस तरह से तमाम षड्यंत्रकारी योजनाएं लाकर हमारे सत्यानाश करवा रही हैं. इसलिए राजनैतिक पार्टियों और उसके नेताओं पर हमारा बिल्कुल भरोसा नहीं है.
दूसरी बात, हमें जितने भी अधिकार मिले हैं वो हमारे पुरखों ने आन्दोलन करके हासिल किया हुआ है. जीवन के हर क्षेत्र के सुख-सुविधा, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्पत्ति आदि आज हमारे पास हर मौलिक अधिकार है तो वो सिफ हमारे पुरखों के आन्दोलन की बदौलत. इसलिए हमें इस पर विचार करना चाहिए कि बहुत बड़ा तो नहीं एतएव छोटा ही सही आन्दोलन किया और हमें जीवन के हर क्षेत्र में साधन-संसाधन उपलब्ध हुए. अगर हम इस आन्दोलन बढ़ाते हुए जन-आन्दोलन तक ले जाएं तो इस बात गारन्टी है कि हमें इस देश का शासक करती जमात बनाने से कोई रोक नहीं सकता. और यही हमारे महान पुरखा डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर चाहते हैं कि बहुजनों को शासक करती जमात बनना होगा.
केवल एक व्यक्ति मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने से हमारे समाज के दयनीय स्थिति बदलने वाली नहीं है. बहुत सारे लोगों को ये भ्रांति हो गई है कि हमारे समाज का एक प्रधानमंत्री बन जायेगा तो हम शासक जमाति बन जायेंगे, गलत है. ब्राह्मणों ने एक ओबीसी के आदमी को प्रधानमंत्री बनाया तो क्या हमारे समाज में उपजे जाति व्यवस्था, वण व्यवस्था, अस्पृश्यता, छुआछूत, भेदभाव आदि इसलिए के किसी भी रवैवे में कोई फर्क बड़ा नहीं एतएव और बढ़ गया.
दूसरा, एक शेड्यूल्ड कास्ट के आदमी को राष्ट्रपति तक बना दिया, तो हमारे समाज का एक भी कल्याण का कार्य हुआ. मैं गारन्टी देता हूँ कि भारत की आधी जनसंख्या हमारे देश के समाज के उस राष्ट्रपति का नाम भी नहीं मालूम होगा. क्यों क्योंकि जब कोई काम करेगा तभी तो उसे लोग जायेंगे. उसे तो केवल मात्र ब्राह्मणों ने एक पुतला माफित खड़ाकर दिया है कि ये तुम्हारे समाज का राष्ट्रपति है. ऐसे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्रियों का हमारे लोगों और हमारे देश के किसी काम के नहीं हैं. इसलिए चुनाव से तो कोई भी परिवर्तन होना सम्भव ही नहीं है.
परिवर्तन का एक भी विकल्प बच जाता है, जन-आन्दोलन! समाज कल्याण करने हेतु, समाज का भला के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षणिक, धार्मिक आदि रूप से परिवर्तन करना चाहते हैं तो
आन्दोलन करना होगा. हमारे जितनी आज दयनीय और बद्तर हालात हैं इससे पहले कभी नहीं थे. किसी भी लड़की का जबरदस्ती बलात्कार किया जाता है और वो भी एक नेता करता है उसके ऊपर नादारत कार्यवाही. किसी एनोसेन्ट व्यक्ति की हत्या कर दी जा रही है, उसके ऊपर नादारत कार्यवाही. किसी भी खांकी वाले कर्मचारी को गोहत्या के नाम हत्या की जाती है, उसके हत्या के ऊपर नादारत कार्यवाही. किसी भी आदिवासी के
बहु-बेटियों के ऊपर बलात्कार करके हत्या करने के बाद उसके नक्सली घोषित करते हैं, उस पर नादारत कार्यवाही. किसी भी किसान की जबरन जमीन छीनकर उसकी हत्या करके उसके हत्या करार देते हैं, ऐसे लोगों के ऊपर नादारत कार्यवाही. ऐसे तमाम समस्याओं से जूझ रहा देश और देशवासियों का उद्धार जन-आन्दोलन के बगैर सम्भव ही नहीं होगा.
क्योंकि आप अकेले लड़ नहीं सकते, लड़ोगे तो मारे जाओगे. एक लकड़ी को तोड़ना आसान होता है मगर लकड़ी के भाड़े को तोड़ना मुश्किल. ये केवल कहावत नहीं है इससे सबक लेना होगा.
हमें हमारे महापुरूषों से सबक लेना होगा, हमें इतिहास से सबक लेना होगा, हमें दुश्मनों से सबक सिखना होगा, हमें इस देश में हो रहे दिन-प्रतिदिन कुकर्मों से सबक सिखना होगा, बढ़ रहे अत्याचारों से सबक सिखना होगा, हमें दुश्मनों को पहचानना होगा. हमें इन ब्राह्मणवादी दुष्टों को पहचानना होगा. इनके झॉंसे और षड्यंत्रों का हिस्सा ना बनते हुए इससे सबक लेकर इनके हजारों सालों के वर्चस्व हो समाप्त करना होगा|
इनके वर्चस्व को समाज किये बगैर, इनकी व्यवस्था असमानता, गैरबराबरी, छुआछूत, भेदभाव, ऊँच-नीच, अस्पृश्यता, महिलाओं के ऊपर गुलामी जबरन थोपना, आदिवासियों को नक्सली के नाम पर गोलियों का बौछार करवाकर हत्या करना ऐसे तमाम अन्याय-अत्याचार वाली व्यवस्था को ध्वस्त किये बगैर हम अपनी व्यवस्था समता, स्वतंत्रता, बन्धुता, छुआछूत को नष्ट करना, भेदभाव को मिटाना, ऊँच-नीच भावना समाप्त करना, महिलाओं के ऊपर थोपी हुई गुलामी को जड़ से खात्मा करना और इन्हें इनकी असली पहचान कि ये देश के मूलनिवासी हैं. ये एहसान कराये बगैर हम एक बेहतर समाज व्यवस्था का निर्माण नहीं कर सकते. ये तमाम प्रकार की समस्याओं से छुटकारा पाना है तो इस देश में भारतवासियों को, अम्बेडकरवादियों को, मूलनिवासियों को एक आत्मनिर्भर, स्वावलम्बी, स्वाभिमानी जन-आन्दोलन को जल्द से जल्द खड़ा करना होगा. अभी हमारे हमारों समस्याओं का खत्मा सम्भव होगा. इस बात की गहराई को समझना जरूरी है वरन आप किसी को भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनाओ इस देश पर काबिज दुराचारियों का बाल भी बाका होने वाला नहीं है.
सुरेश बाडकर (आजमगढ़)
मो.8546019188


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