सुरेश वाडकर

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Thursday, August 27, 2015

दलितों के सच्चे मसीहा थे ललई सिंह यादव and ललई सिंह यादव जीवन परिचय

दलितों के सच्चे मसीहा थे ललई सिंह यादव

सच अक्सर कड़वा लगता है। इसी लिए सच बोलने वाले भी अप्रिय लगते हैं। सच बोलने वालों को इतिहास के पन्नों में दबाने का प्रयास किया जाता है, पर सच बोलने का सबसे बड़ा लाभ यही है कि वह खुद पहचान कराता है और घोर अंधेरे में भी चमकते तारे की तरह दमका देता है। सच बोलने वाले से लोग भले ही घृणा करें, पर उसके तेज के सामने झुकना ही पड़ता है। इतिहास के पन्नों पर जमी धूल के नीचेे ऐसे ही एक तेजस्वी तारे ललई सिंह यादव का नाम दबा है।
ललई सिंह यादव ऐसे योद्धा का नाम है, जिसने शोषण के विरुद्ध आवाज बुलंद की और उपेक्षितों को उनका हक दिलाने के लिए जीवन समर्पित कर दिया। जिला कानपुर के गांव कठारा रेलवे स्टेशन झींझग के रहने बाले गज्जू सिंह यादव और मूला देवी के घर 1 सिंतबर 1911 ई. को जन्मे ललई सिंह यादव पर अपने पिता का पूरा प्रभाव था। आर्य समाजी पिता गज्जू सिंह गलत बात बर्दास्त नहीं करते थे। सही बात के पक्ष में किसी का भी विरोध करने लगते थे। उस दौर में उस गांव में परंपरा थी कि दलित के घर बेटा होने पर ढोलक नहीं बजाने दी जाती थी। इस पुरानी परंपरा को गज्जू सिंह ने ही तुड़वाया। ऐसे पिता के बेटे ललई सिंह यादव ने सन 1926 में हिंदी व सन 1928 में उर्दू भाषा से मिडिल तक पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद 1929 में वह वन विभाग में गार्ड की नौकरी करने लगे। गलत बात का तत्काल विरोध कर देते थे। जिससे समकक्ष सहकर्मियों में तो लोकप्रिय हो गये पर सजा के तौर पर कई बार निलंबित होना पड़ा। इस बीच 1931 में कानपुर के गांव जौला का पुरवा रूरा निवासी सरदार सिंह यादव की पुत्री दुलारी देवी से उनका विवाह हो गया। विवाह के बाद उन्होंने 1933 में सशस्त्र पुलिस बल की नौकरी के लिए आवेदन किया तो चुन लिये गये। सिपाहियों की हालत उनसे नहीं देखी गयी और यहां भी उन्होंने पुलिस के रहन-सहन को लेकर आवाज बुलंद करनी शुरु कर दी। विद्रोह के चलते 1935 में ललई सिंह यादव को बर्खास्त कर दिया गया। बाद में अपील पर सुनवाई हुई और एचजी वाटर फील्ड डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ने बहाल कर दिये। 1936 में चीफ प्रोसीक्यूटिव इंस्पेक्टर पुलिस हाईकोर्ट एंड अपील डिपार्टमेंट में उनका तबादला कर दिया गया। एक वर्ष बाद वह हेड कांस्टेबिल के पद पर प्रोन्नत कर दिये गये। उपेक्षित व शोषित लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए कई साल बीत गये। 1942 में कांग्रेस का करो या मरो आंदोलन जोर पकड़ रहा था। उसी दौरान 1946 में मध्य प्रदेश में कांग्रेसी नेता भीखम चंद की अध्यक्षता में बैठक हुई। जिसमें नान गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एवं आर्मी संघ की स्थापना की गयी और ललई सिंह यादव सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुन लिये गये। वह पुलिस व आर्मी के जवानों को सुविधायें देने की लड़ाई लडऩे लगे तभी उन्हें साथियों के साथ जेल भेज दिया गया। पर ललई सिंह यादव ने जेल में भी आंदोलन छेड़ दिया और कैदियों की दशा को लेकर जंग शुरु कर दी। इस बीच 1925 में उनकी माता मूला देवी, 1939 में पत्नी दुलारी देवी, 1946 में बहिन शकुंतला और 1953 में पिता गज्जू सिंह का निधन हो गया। जिससे ललई सिंह यादव टूट गये और उनके अंदर सन्यासी जैसे भाव पैदा हो गये। सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक एवं धार्मिक कार्याे में वह बढ़-चढ़ कर रुचि लेने लगे। ललई सिंह यादव ने सामाजिक व धार्मिक असमानता को लेकर जंग शुुरु कर दी। स्पष्टवादी, निर्भीक और कडक़ती आवाज से प्रभावित होकर आरपीआई के नेता कन्नौजी लाल ने उन्हें पार्टी में आने का निमंत्रण दिया तो उन्होंने पार्टी की सदस्यता ले ली। वह बौद्ध धर्म में जाने के इच्छुक थे पर उनका प्रण था कि जिस गुरु से बाबा साहब अंबेडकर ने दीक्षा ली है उसी गुरु से वह दीक्षा लेंगे। उनके इस प्रण के चलते ही दीक्षा कार्यक्रम काफी दिनों तक टलता रहा। 21 जुलाई 1967 को उन्होंने कुशीनगर जाकर भदन्त चन्द्रमणि महास्थिविर से दीक्षा लेकर  बौद्ध धर्म भी स्वीकार कर लिया। 1964-65 में आरपीआई विखरने लगी तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी पर वह उपेक्षित वर्ग की आवाज बुलंद करने में जुटे रहे। इसी दौर में ब्राहमणवाद के घोर विद्रोही के रूप में रामास्वामी पेरियार ने दक्षिण भारत से आवाज बुलंद कर रखी थी। उनके द्वारा लिखित द रामायन-ए ट्रू रीडिंग की बहुत चर्चा हो रही थी। ललई सिंह यादव रामास्वामी पेरियार के सपंर्क में आये और उनकी रामायण का हिंदी अनुवाद करने का आग्रह किया। अनुमति मिलते ही उन्होंने सच्ची रामायण नाम से हिंदी संस्करण निकाल दिया। इस रामायण के छपते ही हिंदू समुदाय, खास कर ब्राहमणों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की तो प्रदेश सरकार ने इस रामायण पर प्रतिबंध लगाते हुए रामायण की प्रतियां जब्त करा लीं। ललई सिंह यायव ने अदालत की शरण ली। हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट से ललई सिंह यादव की ही जीत हुई। उनकी सच्ची रामायण को प्रतिंबध मुक्त कर दिया गया। इस रामायण में भगवान श्रीराम को लेकर आपत्तिजनक बातें कही गयी हैं। उन्हें शूद्रों का द्रोही करार देते हुए दक्षिण भारतीयों का भी दुश्मन बताया गया है। इसी तरह उनकी किताब सच्ची रामायण की चाभी को भी प्रतिबंधित कर दिया गया पर अदालत से ललई सिंह यादव ही जीते। उन्होंने शोषितों पर धार्मिक डकैती, शोषितों पर राजनीतिक डकैती, अंगुलिमाल नाटक, संत माया बलिदान नाटक, शम्बूक बध नाटक, एकलव्य नाटक, नाग यज्ञ नाटक व सामाजिक विषमता कैसे समाप्त हो जैसी क्रांतिकारी किताबों की रचना की। 24 दिसंबर 1983 ई. को रामास्वामी पेरियार का निधन हो गया। ललई सिंह यादव शोक सभा में पहुंचे तो चर्चा के बाद विचार हुआ कि हमारा अगला पेरियार कौन?... भीड़ से आवाज आयी ललई सिंह यादव, तो ललई सिंह यादव पूरी तरह पेरियार के कार्य को ही आगे बढ़ाने लगे। ललई सिंह यादव हिंदू धर्म को उधार का धर्म और बौद्ध धर्म को नकद का धर्म बताते थे। उन्होंने बौद्ध धर्म को नकद का धर्म बता कर काफी चर्चित किया। तर्क देते हुए कहते थे कि विश्व के सभी देशों का कानून बौद्ध धर्म पर आधारित हैं। इस लिए सच्चा धर्म बौद्ध धर्म ही है। वे कहते थे कि आज अच्छे कार्य करो तो अगले जन्म में बेहतर परिणाम मिलेंगे पर बौद्ध धर्म में अच्छे काम करो और तत्काल अच्छे परिणाम भी ले लो। उनकी भाषा में जा हाथ देब और वा हाथ लेब। ललई सिंह यादव सिर्फ उपदेश ही नहीं देते थे। वह वैरागी भाव में निर्भीक और निडरता के साथ अपने शुभचिंतकों पर भी कटाक्ष करते थे। आगरा में एक सम्मेलन के दौरान उन्होंने आयोजकों और सम्मेलन में आये लोगों को ही डांटना शुरु कर दिया। बोले-मेरे पास जो लोग मंच पर बैठे हैं एवं जो लोग सामने बैठे हैं वह सब सहायताइष्ट, वजीफाइष्ट और रिजर्वेशनाइष्ट हैं, आप में से कोई भी बौद्धिष्ट व अम्बेडकराइष्ट नहीं है। बौद्ध धर्म के विद्धानों ने विरोध किया तो बोले-जब तक आप बौद्धों में रोटी-बेटी का सम्बंध नहीं बनायेंगे और हिंदू रीति-रिवाजों और त्योहारों को मनाना नहीं छोड़ेंगे तब तक तक आपका बौद्ध होना सिर्फ ढोंग ही है। 1987 में अपनी समस्त संपत्ति कानपुर के अशोका पुस्तकालय को दान दे दी। सामाजिक परिवर्तन का यह साहसी योद्धा 7 फरवरी 1993 को शरीर छोड़ गया।
ललई सिंह यादव के उक्त संक्षिप्त जीवन परिचय पर ही अगर गंभीरता और ईमानदारी से गौर किया जाये तो अहसास होगा कि ललई सिंह यादव सामान्य नहीं बल्कि असामान्य व्यक्ति या महापुरुष थे। उन्होंने अपना जीवन, धन-संपत्ति या यूं कहें कि सब कुछ समाज सेवा में ही लगा दिया। पूरा जीवन शोषितों और उपेक्षितों के उत्थान में लगा दिया। ऐसे ललई सिंह यादव के साथ आज उपेक्षा ही की जा रही है। ललई सिंह यादव के नाम में ही यादव जातिसूचक शब्द लगा है जिससे जाति बताने की जरूरत नहीं है। पर अपरोक्ष रूप से यादवों एवं परोक्ष रूप से पिछड़ों की राजनीति करने बाले सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव या भाजपा से विद्रोह करने के बाद खुद को कभी हिंदुओं का तो कभी पिछड़ों का नेता बताने बाले कल्याण सिंह के मुंह से शायद ही किसी ने ललई सिंह यादव का नाम सुना होगा। इनके शासनकाल में भी ललई सिंह यादव को विशेष सम्मान नहीं दिया गया। दलितों की हितैषी होने का दावा करने बाली कांग्रेस पार्टी और उसके नेता कभी ललई सिंह यादव का नाम नहीं लेते। इसी तरह जातियों की जगह सिर्फ हिंदुत्व की बात करने बाली भाजपा ने भी ललई सिंह यादव को कभी महापुरुष नहीं माना। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में उपेक्षित, शोषित और दलित वर्ग की हिमायती कही जाने बाली बहुजन समाज पार्टी की मायावती के नेतृत्व में सरकार है पर ललई सिंह यादव का नाम आज भी अपने स्थान को तरस रहा है हालांकि ललई सिंह यादव जैसे योद्धा के लिए किसी स्थान या सम्मान की जरूरत नहीं है क्यों कि ललई सिंह यादव तो खुद एक सम्मान का नाम है।
यादव जाति में जन्म होने के कारण ललई सिंह यादव को दलित वर्ग ज्यादा पसंद नहीं करता। भले ही यादव या पिछड़ों में पैदा हुए पर ललई सिंह यादव ने उपेक्षित, शोषित और दलितों के न्याय व सम्मान की आवाज उठायी, इस लिए पिछड़े वर्ग के नेता पसंद नहीं करते। सवर्ण तो न पहले पसंद करते थे और न आज करेंगे। पर किसी के पसंद करने या न करने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्यों कि ललई सिंह यादव के कार्यों ने उन्हें जाति-धर्म से ऊपर उठा दिया है। इस लिए वह हमेशा याद रखे जायेंगे। 





ललई सिंह यादव जीवन परिचय
महाप्राण कर्मवीर पैरियार ललई सिंह यादव का जन्म एक सितम्बर 1911 को ग्राम कठारा रेलवे स्टेशन-झींझक, जिला कानपुर देहात के एक समाज सुधारक सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। पिता चै. गुज्जू सिंह यादव एक कर्मठ आर्य समाजी थे। इनकी माता श्रीमती मूलादेवी, उस क्षेत्र के जनप्रिय नेता चै. साधौ सिंह यादव निवासी ग्रा. मकर दादुर रेलवे स्टेशन रूरा, जिला कानपुर की साध्वी पुत्री थी। इनके मामा चै. नारायण सिंह यादव धार्मिक और समाज सेवी कृषक थे। पुराने धार्मिक होने पर भी यह परिवार अंधविश्वास रूढि़यों के पीछे दौड़ने वाला नहीं था।
ललईसिंह यादव ने सन् 1928 में हिन्दी के साथ उर्दू लेकर मिडिल पास किया। सन् 1929 से 1931 तक फाॅरेस्ट गार्ड रहे। 1931 में ही इनका विवाह श्रीमती दुलारी देवी पुत्री चै. सरदार सिंह यादव ग्रा. जरैला निकट रेलवे स्टेशन रूरा जिला कानपुर के साथ हुआ। 1933 में शशस्त्र पुलिस कम्पनी जिला मुरैना (म.प्र.) में कान्स्टेबिल पद पर भर्ती हुए। नौकरी से समय बचा कर विभिन्न शिक्षायें प्राप्त की।
सन् 1946 ईस्वी में नान गजेटेड मुलाजिमान पुलिस एण्ड आर्मी संघ ग्वालियर कायम कर के उसके अध्यक्ष चुने गए। ‘सोल्जर आॅफ दी वार’ ढंग पर हिन्दी में ‘‘सिपाही की तबाही’ किताब लिखी, जिसने कर्मचारियों को क्रांति के पथ पर विशेष अग्रसर किया। इन्होंने आजाद हिन्द फौज की तरह ग्वालियर राज्य की आजादी के लिए जनता तथा सरकारी मुलाजिमान को संगठित करके पुलिस और फौज में हड़ताल कराई जवानों से कहा कि
बलिदान न सिंह का होते सुना,
बकरे बलि बेदी पर लाए गये।
विषधारी को दूध पिलाया गया,
केंचुए कटिया में फंसाए गये।
न काटे टेढ़े पादप गये,
सीधों पर आरे चलाए गये।
बलवान का बाल न बांका भया
बलहीन सदा तड़पाये गये।
हमें रोटी कपड़ा मकान चाहिए,

दिनांक 29.03.47 ईस्वी को ग्वालियर स्टेट्स स्वतंत्रता संग्राम के सिलसिले में पुलिस व आर्मी में हड़ताल कराने के आरोप धारा 131 भारतीय दण्ड विधान (सैनिक विद्रोह) के अंतर्गत साथियों सहित राज-बन्दी बने। दिनांक 06.11.1947 ईस्वी को स्पेशल क्रिमिनल सेशन जज ग्वालियर ने 5 वर्ष स-श्रम कारावास तथा पाँच रूपये अर्थ दण्ड का सर्वाधिक दण्ड अध्यक्ष हाई कमाण्डर ग्वालियर नेशनल आर्मी होने के कारण दी। दिनांक 12.01.1948 ईस्वी को सिविल साथियों सहित बंधन मुक्त हुये।
उसी समय यह स्वाध्याय में जुटे गये। एक के बाद एक इन्होंने श्रृति स्मृति, पुराण और विविध रामायणें भी पढ़ी। हिन्दू शास्त्रों में व्याप्त घोर अंधविश्वास, विश्वासघात और पाखण्ड से वह तिलमिला उठे। स्थान-स्थान पर ब्राह्मण महिमा का बखान तथा दबे पिछड़े शोषित समाज की मानसिक दासता के षड़यन्त्र से वह व्यथित हो उठे। ऐसी स्थिति में इन्होंने यह धर्म छोड़ने का मन भी बना लिया। अब वह इस निष्कर्ष पर पहुंच गये थे कि समाज के ठेकेदारों द्वारा जानबूझ कर सोची समझी चाल और षड़यन्त्र से शूद्रों के दो वर्ग बना दिये गये है। एक सछूत-शूद्र, दूसरा अछूत-शूद्र, शूद्र तो शूद्र ही है। चाहे कितना सम्पन्न ही क्यों न हो।
उनका कहना था कि सामाजिक विषमता का मूल, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, श्रृति, स्मृति और पुराणों से ही पोषित है। सामाजिक विषमता का विनाश सामाजिक सुधार से नहीं अपितु इस व्यवस्था से अलगाव में ही समाहित है। अब तक इन्हें यह स्पष्ट हो गया था कि विचारों के प्रचार प्रसार का सबसे सबल माध्यम लघु साहित्य ही है। इन्होंने यह कार्य अपने हांथों में लिया सन् 1925 में इनकी माताश्री, 1939 में पत्नी, 1946 में पुत्री शकुन्तला (11 वर्ष) और सन् 1953 में पिता श्री चार महाभूतों ने विलीन हो गये। अपने पिता जी के इकलौते पुत्र थे। पहली स्त्री के मरने के बाद दूसरा विवाह कर सकते थे। किन्तु क्रान्तिकारी विचारधारा होने के कारण इन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया और कहा कि अगली शादी स्वतन्त्रता की लड़ाई में बाधक होगी।

साहित्य प्रकाशन की ओर भी इनका विशेष ध्यान गया। दक्षिण भारत के महान क्रान्तिकारी पैरियार ई. व्ही. रामस्वामी नायकर के उस समय उत्तर भारत में कई दौरे हुए। वह इनके सम्पर्क में आये। जब पैरियार रामास्वामी नायकर से सम्पर्क हुआ तो इन्होंने उनके द्वारा लिखित ‘‘रामायण ए टू रीडि़ंग’’ (अंग्रेजी में) में विशेष अभिरूचि दिखाई। साथ ही दोनों में इस पुस्तक के प्रचार प्रसार की, सम्पूर्ण भारत विशेषकर उत्तर भारत में लाने पर भी विशेष चर्चा हुई। उत्तर भारत में इस पुस्तक के हिन्दी में प्रकाशन की अनुमति पैरियार रामास्वामी नायकर ने ललईसिंह यादव को सन् 01-07-1968 को दे दी।
इस पुस्तक सच्ची रामायण के हिन्दी में 01-07-1969 को प्रकाशन से सम्पूर्ण उत्तर पूर्व तथा पश्चिम् भारत में एक तहलका सा मच गया। पुस्तक प्रकाशन को अभी एक वर्ष ही बीत पाया था कि उ.प्र. सरकार द्वारा 08-12-69 को पुस्तक जब्ती का आदेश प्रसारित हो गया कि यह पुस्तक भारत के कुछ नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर चोट पहुंचाने तथा उनके धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लक्ष्य से लिखी गयी है। उपरोक्त आज्ञा के विरूद्ध प्रकाशक ललई सिंह यादव ने हाई कोर्ट आफ जुडीकेचर इलाहाबाद में क्रमिनल मिसलेनियस एप्लीकेशन 28-02-70 को प्रस्तुत की। माननीय तीन जजों की स्पेशल फुल बैंच इस केस के सुनने के लिए बनाई। अपीलांट (ललईसिंह यादव) की ओर से निःशुल्क एडवोकेट श्री बनवारी लाल यादव और सरकार की ओर से गवर्नमेन्ट एडवोकेट तथा उनके सहयोगी श्री पी.सी. चतुर्वेदी एडवोकेट व श्री आसिफ अंसारी एडवोकेट की बहस दिनांक 26, 27 व 28 अक्टूबर 1970 को लगातार तीन दिन सुनी। दिनांक 19-01-71 को माननीय जस्टिस श्री ए. के. कीर्ति, जस्टिस के. एन. श्रीवास्तव तथा जस्टिस हरी स्वरूप ने बहुमत का निर्णय दिया कि -
1. गवर्नमेन्ट आॅफ उ.प्र. की पुस्तक ‘सच्ची रामायण’ की जप्ती की आज्ञा निरस्त की जाती है।
2. जप्तशुदा पुस्तकें ‘सच्ची रामायण’ अपीलांट ललईसिंह यादव को वापिस दी जाये।
3. गर्वन्र्मेन्ट आॅफ उ.प्र. की ओर से अपीलांट ललई सिंह यादव को तीन सौ रूपये खर्चे के दिलावें जावें।
ललईसिंह यादव द्वारा प्रकाशित ‘सच्ची रामायण’ का प्रकरण अभी चल ही रहा था कि उ.प्र. सरकारी की 10 मार्च 1970 की स्पेशल आज्ञा द्वारा सम्मान के लिए धर्म परिवर्तन करें नामक पुस्तक जिसमें डाॅ. अम्बेडकर के कुछ भाषण थे तथा जाति भेद का उच्छेद नामक पुस्तक 12 सितम्बर 1970 को चै. चरण सिंह की सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी। इसके लिए भी ललई सिंह यादव ने श्री बनवारी लाल यादव एडवोकेट, के सहयोग से मुकदमें की पैरवी की। मुकदमें की जीत से ही 14 मई 1971 को उ.प्र. सरकार की इन पुस्तकों की जब्ती की कार्यवाही निरस्त कराई गयी और तभी उपरोक्त पुस्तके जनता को भी सुलभ हो सकी। इसी प्रकार ललई सिंह यादव द्वारा लिखित पुस्तक ‘आर्यो का नैतिक पोल प्रकाश’ के विरूद्ध 1973 में मुकदमा चला दिया। यह मुकदमा उनके जीवन पर्यन्त चलता रहा।
हाई कोर्ट में हारने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट दिल्ली में अपील दायर कर दी वहां भी अपीलांट उत्तर प्रदेश सरकार क्रिमिनल मिसलेनियस अपील नम्बर 291/1971 ई. निर्णय सुप्रीम कोर्ट आॅफ इण्डिया, नई दिल्ली दि. 16-9-1976 ई. के अनुसार अपीलांट की हार हुई अर्थात् रिस्पांडेण्ट श्री ललई सिंह यादव की जीत हुई। (सच्ची रामायण की जीत हुई) फुलबैंच में माननीय सर्वश्री जस्टिस पी. एन. भगवती जस्टिस वी. आर. कृष्णा अय्यर तथा जस्टिस मुर्तजा फाजिल अली थे।
चै. ललईसिंह, पैरियार ललई सिंह बन गये
महान क्रान्तिकारी पैरियार ई. व्ही. रामास्वामी नायकर जो गड़रिया (पाल-बघेल) जाति के थे, के संघर्षमय जीवन का लम्बा इतिहास है। 20 दिसम्बर 1973 की सुबह चार महाभूतों में समाहित हो गये। इनके जीवन काल से ही इनका जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाने लगा था इनकी मृत्यु के पश्चात् एक विशाल सभा में चै. ललईसिंह यादव को भी भाषण के लिए बुलाया गया। निर्वाण प्राप्त रामास्वामी नायकर की श्रद्धांजलि सभा में दिये गये इनके भाषण पर दक्षिण भारतीय मुग्ध हो गये। इनके भाषण की समाप्ति पर तीन नारे लगाये गये अब हमारा अगला पैरियार-इसी पर आवाज आई पैरियार ललई सिंह, पैरियार ललई सिंह।
इस घटना के बाद से ही इनके नाम के पूर्व पैरियार शब्द का शुभारम्भ हुआ। दक्षिण भारत में पैरियार शब्द जाति वादी नहीं अपितु स्वच्छ निष्पक्ष-निर्भीक अथवा सागर के अर्थों में प्रयोग किया जाने वाला सम्मान सूचक शब्द है। साहित्य प्रकाशन के लिए उन्होंने एक के बाद एक तीन प्रेस खरीदे। शोषित पिछड़े समाज में स्वाभिमान व सम्मान को जगाने तथा उनमें व्याप्त अज्ञान, अंधविश्वास, जातिवाद तथा ब्राह्मणवादी परम्पराओं को ध्वस्त करने के उद्देश्य से वह लघु साहित्य के प्रकाशन की धुन में अपनी उनसठ बीघे सरसब्ज-जमीन कौडि़यों के भाव बेच प्रकाशन के कार्य में आजीवन जुटे रहे। जातिवाद का अन्तिम संस्कार
unity of obc - जागो ओबीसी जागो

 

Saturday, August 22, 2015

भारतीय सेना की चूक : सेना में नेपाली नक्सली की भर्ती -

भारतीय सेना की चूक : सेना में नेपाली नक्सली की भर्ती -

नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. -
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जालसाजी और फर्जीवाड़ा करके नौकरी पाने का देश में सिलसिला चल पड़ा है. व्यापमं घोटाले की कड़ियां केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई अन्य राज्यों से भी जुड़ी हुई हैं. नौकरियों में उत्तर प्रदेश का घोटाला दर घोटाला सुर्खियों में है. यूपी में पुलिस की भर्ती में घोटाला परम्परागत कर्मकांड की तरह हो गया है. घोटालों से अर्धसैनिक बल और भारतीय सेना की नियुक्तियां भी अछूती नहीं हैं. चौथी दुनिया के 06 जुलाई से 12 जुलाई के अंक में आपने पढ़ा कि पिछड़ी जाति के लोग किस तरह अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो रहे हैं. सीआरपीएफ और बीएसएफ में भर्ती हुए तकरीबन चार दर्जन लोगों की आधिकारिक तौर पर शिनाख्त हुई, जो दलित बन कर भर्ती हो गए थे. जिनकी पहचान हुई, उनमें से अधिकांश लोग यादव जाति के पाए गए. इसी तरह फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए नियमित सेना में भी भर्तियां हो रही हैं. जो लोग पकड़े जा रहे हैं, उनकी संख्या नगण्य है. इसका सबसे संवेदनशील पहलू है भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में गोरखाओं के नाम पर नेपाल से भागे हुए माओवादियों की भर्ती. नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में भर्ती कराने में लखनऊ में रह रहे नेपाली दलाल, पूर्व सैनिक और नेपाल के कुछ माओवादी नेता सक्रिय हैं. भारतीय सेना की मध्य कमान का मुख्यालय लखनऊ है. गोरखाओं की भर्ती का सबसे बड़ा कमांड भी यही है. लखनऊ के कुछ स्कूल नेपाल से आने वाले युवकों को अपने यहां से फर्जी सर्टिफिकेट देते हैं और यहीं से उन्हें निवास का प्रमाण पत्र भी मिल जाता है और उन्हें बड़े आराम से सेना की वर्दी मिल जाती है. भर्ती महकमे के अधिकारी यह भी तस्दीक नहीं करते कि अभ्यर्थी ने अपना पता क्या लिखाया है. कुछ भर्तियां तो ऐसी भी सामने आईं, जिसमें अभ्यर्थियों ने कर्नल स्तर के अधिकारी के घर का ही पता दे डाला और उसकी छानबीन भी नहीं हुई. एक ही कर्नल के घर का पता कई अभ्यर्थियों ने लिखवाया और उसे सेना में भर्ती भी कर लिया गया. भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए कई नेपाली माओवादी सत्ता संघर्ष में हथियारबंद कैडर के रूप में सक्रिय थे. उन्होंने बाकायदा नेपाली सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और बाद में वे नेपाली सेना की बैरकों से भाग निकले थे. फर्जी प्रमाण पत्र के जरिए सेना में भर्ती होने के कुछ मामले लगातार पकड़े जा रहे हैं, लेकिन पैसे का इतना बोलबाला है कि सैन्य तंत्र भी नाकाबिल साबित होता जा रहा है.
भारतीय सेना में नेपाल के माओवादियों की भर्ती के बारे में जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई, जबकि कई सिपाहियों के नाम और उनके असली पते तक की पुष्टि हो गई है. गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में माओवादियों की बाकायदा पोस्टिंग भी हो चुकी है. कार्रवाई के नाम पर सेना भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया, लेकिन जो भर्ती हो गए, उन्हें पकड़ने में सेना ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. माओवादियों की लखनऊ, वाराणसी व कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया. यह पाया गया कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने नेपाली माओवादियों को आठवीं पास के फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए थे. नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से फर्जी डोमिसाइल सर्टिफिकेट देकर उन्हें सेना में भर्ती कराया गया. फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती की भनक मिलने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई, लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, वे नियमित सेना में शामिल हो गए और उनका कुछ नहीं बिगड़ा.
नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय रहा है. नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था. उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था. उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इससे नाराज माओवादियों के फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी. फिर नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने नेपाली माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया. रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर में अपना जाल मजबूत किया. उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभावक्षेत्र में लिया, जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें. लखनऊ में खत्री को एक ऐसा आदमी भी मिल गया, जो भर्ती में दलाली करता था और हाईकोर्ट परिसर में टाइपिंग का काम भी करता था. अब वह वकील बन चुका है.
इस गिरोह ने सात-आठ साल तक नेपाली माओवादियों की भारतीय सेना में खूब भर्तियां कराईं. नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे. इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं. ‘चौथी दुनिया’ के पास इन स्कूलों के नाम भी हैं, लेकिन सेना ने छानबीन की कार्रवाई में व्यवधान न पड़े, इसके लिए उन स्कूलों का नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह किया. हालांकि छानबीन में कोई उल्लेनीय प्रगति नहीं हुई है. लखनऊ और लखनऊ से बाहर के ऐसे कई स्कूल हैं, जहां नेपाली युवकों को अपने स्कूल का छात्र बताया गया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया गया. लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी इस देश विरोधी हरकत में शामिल हैं, जिन्होंने नेपालियों को यहां का स्थाई निवास प्रमाण पत्र प्रदान किया और इस आधार पर माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली.
डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी. बलराम गुरुंग नाम के निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु, लखनऊ लिखा दिया. बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर भी चला गया. उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है. जब इस ऐड्रेस की छानबीन की गई तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है. कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं. उनका नाम कर्नल अजित सिंह है. जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, ‘मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का ऐड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी. मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं.’
सनसनीखेज तथ्य यह है कि माओवादी गुरिल्ला कमांडर व यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे उस तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं. रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है. संतोष बहादुर खत्री खखख-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है. रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था. तीन साल तक नेपाली सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था. भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए थे. ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा दिया गया. नेपाली सेना से भागा हुआ वही माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है. माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया. वह भी एक कर्नल साहब के जरिए. वे कर्नल साहब फिलहाल पुणे में तैनात हैं.
माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री नेपाल के बरदिया जिले के तारातल गांव का रहने वाला है. वहां से उसके बारे में खुफिया जानकारियां मंगाई जा सकती हैं, लेकिन सेना की खुफिया इकाई भी भारत की मुख्यधारा में बह रही है. रोम बहादुर खत्री के दोनों बेटों, भतीजों और तमाम माओवादी काडरों की भारतीय सेना में हुई भर्ती का भी सेना अगर चाहे तो पता लगा कर कार्रवाई कर सकती है, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है. माओवादी कमांडर के गांव के ही दो और युवकों के बारे में जानेंगे तो आपको आश्चर्य होगा. दीपक छेत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है. वह खखख-9 गोरखा बटालियन में तैनात है. भर्ती की प्रक्रिया कितनी अंधी है कि दीपक छेत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है, जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है. ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी, यह तो सेना ही बताए. दीपक का भाई रमेश छेत्री भी खत-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है. यहां फिर से फर्जी पोस्टल ऐड्रेस का रोचक प्रसंग आता है, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं. रमेश छेत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है. निश्चित तौर पर इसी ऐड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा. उस ऐड्रेस की भी ‘चौथी दुनिया’ ने छानबीन की. वह भी फर्जी पाया गया. यह पता भी कर्नल अजित सिंह के ही दूसरे घर का है. कर्नल ने कहा, ‘मैं सेना से रिटायर हो चुका हूं. मैं विकलांग हूं, चल-फिर भी नहीं सकता. गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त लोगों को मेरा घर ही सटीक लगता होगा, जहां से उन्हें किसी सक्रिय प्रतिरोध की कोई संभावना नहीं दिखती होगी, लेकिन सेना के अधिकारियों को तो पते की छानबीन करनी चाहिए थी कि सिपाही के लिए भर्ती होने वाला नेपाली गोरखा सेना के किसी आला अफसर के घर का पता क्यों लिखवा रहा है, वह भी माल एवेन्यु जैसे पॉश इलाके का?’ कर्नल ने कहा कि पूरे सिस्टम में ही भ्रष्टाचार की भंग पड़ी हुई हो तो और क्या होगा! दीपक छेत्री और रमेश छेत्री माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल के ही रहने वाले हैं. लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन स्पष्ट हैं.
सेना में फर्जी लोगों की भर्ती का गोरखधंधा बार-बार सामने आने के बावजूद इस पर कोई अंकुश नहीं लग पा रहा है. सेना के सूत्र कहते हैं कि इस धंधे में सेना के अधिकारी ही लिप्त हैं, तो इस पर रोक कैसे लगे. खास तौर पर सेना के मध्य कमान में यह धंधा अधिक तेजी से पसरा है. अभी कुछ ही अर्सा पहले बरेली में सेना में भर्ती के लिए चयनित हो चुके 24 युवक पकड़े गए थे. खुफिया एजेंसी की सूचना अगर ऐन मौके पर नहीं मिलती तो वे भी भर्ती होकर सेना में शामिल हो चुके होते. फर्जी प्रमाण पत्रों पर बाकायदा चुने जा चुके सुखराम सिंह, जुगेंद्र सिंह, रामनिवास, महेश, पवन कुमार, सवेंद्रा सिंह, राजू कुमार, संदीप सिंह, पुरुषोत्तम सिंह, संजीव कुमार, मुकेश, कासिम, हरीश कुमार अंकित, दीपक कुमार, योगेंद्र सिंह, अय्यूब खान, भूपेंद्र, अरुण शर्मा, सचिन कुमार, सत्यपाल सिंह, ओंकार सिंह, रामू यादव और संजीव कुमार के शैक्षणिक और आवासीय प्रमाण पत्र, सभी नकली पाए गए थे.
सेना में घुसपैठ कराने वाले धंधेबाजों का बाकायदा एक सिंडिकेट चल रहा है और उन लोगों ने अपने-अपने जोन बांट रखे हैं. बरेली जोन में आदेश गुर्जर का गैंग यह धंधा चला रहा है. उसके धंधे में कई रिटायर्ड फौजी अफसर शामिल हैं. इसी गैंग के जरिए बरेली, पीलीभीत, बदायूं, संभल, शाहजहांपुर और लखीमपुर खीरी से फर्जी शैक्षणिक प्रमाण पत्र, चरित्र और आवासीय प्रमाण पत्र तैयार कराया जाता है. फर्जी भर्ती प्रकरण में पकड़े गए युवकों में से चार ने सेना को सबूत भी दिए कि कैसे उनसे रुपये लेकर आदेश गुर्जर गिरोह के सदस्य रिटायर मेजर आदित्य चौहान ने उन्हें बरेली में भर्ती कराया था। इन युवकों में विष्णु शर्मा राजस्थान के भरतपुर जिले के इकनहरा गांव का रहने वाला है, लेकिन उसे पीलीभीत बीसलपुर के देवरिया गांव का निवासी दिखाया गया. राहुल कुमार और हरेंद्र सिंह अलीगढ़ में टप्पल थाने के निगुना सुगना गांव के रहने वाले हैं, लेकिन उन्हें पीलीभीत के बीसलपुर स्थित ईंचगांव का निवासी दिखाया गया. जीतू भी राहुल कुमार के ही गांव का रहने वाला है, जिसे राहुल की जगह दौड़ाया गया था. राहुल कानपुर की सेना भर्ती रैली में फेल हो गया था. इसीलिए उसकी जगह जीतू को दौड़ाया गया था. इस प्रकरण के बाद सेना बेफिक्र होकर बैठ गई और पुलिस ने भी हाथ ढीले कर दिए. फर्जी दस्तावेज पर भर्तियां धड़ल्ले से चलती रहीं. ग्यारह लड़के फिर पकड़े गए और सेना भी महज औपचारिकता निभाती रही. सेना के सूत्र बताते हैं कि फर्जी दस्तावेजों पर भर्ती होने के साथ-साथ किसी और के नाम पर किसी और के दौड़ने या लिखित परीक्षा में शामिल होने का धंधा निर्बाध गति से जारी है. बरेली, पीलीभीत, रामपुर, बदायूं, शाहजहांपुर, लखीमपुर खीरी के युवक गाजीपुर, बलिया, देवरिया, हरदोई, अलीगढ़, मैनपुरी, एटा जैसे दूरस्थ जिलों से हाईस्कूल और इंटर पास का सर्टिफिकेट लाकर सेना में भर्ती हो रहे हैं. अभी पिछले ही महीने ऐसे करीब सौ सर्टिफिकेट्स फिर संदेह के दायरे में आए, जिनकी छानबीन की जा रही है. मध्य कमान के फतेहगढ़ सैन्य ठिकाने पर भी भर्ती हो चुके 205 युवकों के फर्जी दस्तावेजों का पता चला तो उनकी ट्रेनिंग रोकी गई. कहा गया कि फतेहगढ़ भर्ती प्रकरण में फर्रुखाबाद के कई लोकवाणी केंद्रों और दलालों की पड़ताल हो रही है. पड़ताल की बात कही जा रही है, पर हो कुछ नहीं रहा है. फतेहगढ़ स्थित राजपूत रेजीमेंटल सेंटर के करियप्पा कॉम्प्लेक्स में बरेली सेना भर्ती बोर्ड की ओर से भर्ती की गई थी. इसमें फर्रुखाबाद के अलावा श्रावस्ती, बहराइच, बरेली, बदायूं, शाहजहांपुर, पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, संभल हरदोई, बलरामपुर और सीतापुर के युवक शामिल हुए थे. शारीरिक परीक्षण में चयनित अभ्यर्थियों में से कुल 640 युवकों ने लिखित परीक्षा पास की थी. उन्हें ट्रेनिंग के लिए विभिन्न सैन्य प्रशिक्षण केंद्रों में भेज भी दिया गया. बाद में खुफिया जानकारी मिलने पर छानबीन की गई तो दो सौ जवानों के प्रमाणपत्र संदिग्ध पाए गए. इनमें अनुराग यादव (कन्नौज), अनुज कुमार (बुलंदशहर), मानवीर सिंह (बुलंदशहर), अनिरुद्ध प्रताप सिंह (मैनपुरी), जयंती (मैनपुरी), गौरव सिंह राठौर (मैनपुरी), आदर्श कुमार (मैनपुरी), अखिलेश कुमार (मैनपुरी), धर्मेंद्र (आगरा), नवीन सिंह (आगरा), धर्मेंद्र सिंह (आगरा), सूरज सिंह (कानपुर देहात), नरेश सिंह (इलाहाबाद), राहुल (मथुरा) और शिवम(दिल्ली) समेत अन्य के नाम शामिल हैं.
फर्जी प्रमाण पत्र पर भर्ती हुए लोग बड़े आराम से पूरी नौकरी करके रिटायर भी हो जा रहे हैं और उसके बाद सरकार पर पेंशन का बोझ भी बढ़ा रहे हैं. जानकारी मिलने के बाद भी ऐसे फर्जी पूर्व सैनिकों की पेंशन और सुविधाएं रोकने की कोई कार्रवाई नहीं होती. सेना मुख्यालय को फैजाबाद के अजित कुमार सिंह के बारे में जानकारी भी दी गई कि फर्जी प्रमाण पत्र पर सेना में भर्ती हुआ वह शख्स रिटायर होकर पेंशन भी लेने लगा, लेकिन सेना ने कोई कार्रवाई नहीं की. इसी तरह मध्य कमान क्षेत्र के अंतर्गत तीसरी बिहार बटालियन के हवलदार देवेंद्र कुमार (नंबर- 4262912 के) पर भी फर्जी दस्तावेज के आधार पर सेना में नौकरी पाने और रियाटरमेंट के बाद पेंशन लेने की शिकायत है, लेकिन सेना मुख्यालय पर इस शिकायत का भी कोई असर नहीं पड़ा.

दिलदारी पड़ सकती है भारी
नेपाल के रास्ते पाकिस्तानी आतंकवाद भारत पहुंच रहा है और नेपाल को भी अपने चंगुल में लेता जा रहा है. भारत और नेपाल की सेनाएं प्रशिक्षण में साझेदारी तो कर रही हैं, लेकिन भारतीय सेना में भर्ती के जरिए माओवादियों की जो भारी घुसपैठ हुई है, उससे निपटने की सेना के पास कोई रणनीति नहीं है.
भारत में तकरीबन 50 हजार गोरखा सैनिक हैं और गोरखा रेजीमेंट की 39 बटालियनें भारत में सक्रिय हैं. नेपाल के माओवादियों की भारतीय सेना में हुई भर्तियां भविष्य में समस्याएं खड़ी कर सकती हैं. नेपाल से लगने वाली सीमा भी आफत का कारण बनने वाली है. बिहार और नेपाल की सीमा पर नक्सलियों द्वारा आपत्तिजनक पोस्टर बांटे जा रहे हैं. इन पोस्टरों से भारत विरोधी भावनाएं भड़काने का काम हो रहा है. ऐसे कुछ पोस्टर हम आपको दिखा रहे हैं. नेपाली माओवादी भारत-नेपाल सीमा की शिनाख्त कराने वाले पुराने सीमा स्तम्भ हटा रहे हैं, जिससे सीमा की पहचान समाप्त हो जाए. माओवादियों ने ऐसे करीब साढ़े पांच सौ स्तम्भ गायब कर दिए हैं. भारत नेपाल की करीब 18 सौ किलोमीटर सीमा पर साढ़े तीन हजार से अधिक स्तम्भ लगाए गए थे, लेकिन इनमें से अधिकांश का कोई अता-पता नहीं है. उत्तराखंड के नैनीताल, चम्पावत, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पीलीभीत के जंगलों में माओवादी अपनी जड़ें जमा रहे हैं. भारत नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी इन्हें काबू करने में नाकाम है. उत्तराखंड से लगी नेपाल की सीमा पर ‘नो मैन्स लैंड’ पर माओवादियों ने अपने घर बना लिए हैं. वहां रह रहे नेपाली नागरिक यंग कम्युनिस्ट लीग के झंडे फहराते हैं. कुछ अर्सा पहले उत्तराखंड के जगलों में माओवादियों को हथियारों की ट्रेनिंग देने वाला कमांडर पकड़ा गया था. उसका नाम प्रशांत राही है. उत्तराखंड के जंगलों में माओवादियों को प्रशिक्षण दे रहे ऐसे भारतीय कमांडरों की कोई कमी नहीं है. भारतीय सेना में नेपाली गोरखा समुदाय के जो 50 हजार से अधिक लोग भर्ती हैं, वे हर साल सात-आठ सौ करोड़ रुपए अपने परिवारों के लिए नेपाल भेजते हैं. एक लाख से अधिक गोरखा भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद नेपाल में रहते हैं. इन्हें भी 500 करोड़ से अधिक की राशि सालाना पेंशन के रूप में मिलती है. यह तादाद अगर माओवादियों के सक्रिय हितचिंतकों में तब्दील हो गई तो क्या होगा? यह अहम सवाल सामने है.

सेना में नशीली दवाएं पहुंचा रहे हैं माओवादी
नक्सलवाद से प्रभावित बिहार-झारखंड में सैन्य इकाइयों के अंदर माओवादियों की पैठ की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है. अभी कुछ ही दिनों पहले 12 जून 2015 को बिहार के गया जिले के बाराचट्टी थाना क्षेत्र में सेना के जवान कृष्णा राम, सेना से रिटायर्ड जवान गोपी लाल और माओवादी कमांडर इंदल भोक्ता के साथी लेखा सिंह भोक्ता को सात किलो अफीम के साथ पकड़ा गया था (चौथी दुनिया में प्रकाशित). इस वाकये से साबित हुआ कि माओवादियों की सैन्य इकाइयों तक सीधी पहुंच है. सूत्रों का कहना है कि अफीम पकड़े जाने का मामला तो एक है, जबकि इस इलाके में सेना को माओवादियों से नशीली दवाओं की खेपें लगातार मिलती रही हैं, जिसमें केवल अफीम ही नहीं, बल्कि हेरोइन और अन्य नशीले पदार्थ शामिल हैं. सेना के जवानों को नशा देकर माओवादी उनसे क्या-क्या जानकारियां हासिल कर रहे हैं, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. बिहार-झारखंड भी सेना की मध्य कमान के अंतर्गत आता है.

सेना में भर्ती हो गए ये माओवादी
संतोष थापा- 14 गोरखा रेजिमेंट
सरजू रिमाल- गोरखा रेजिमेंट
रमाकांत शर्मा- गोरखा रेजिमेंट
रमेश राणा- गोरखा रेजिमेंट नंबर-एलयूजीडी-1088
सूर्य बहादुर थापा- गोरखा रेजिमेंट
वीरेंद्र थापा- गोरखा रेजिमेंट
इंद्र बहादुर तमांग- 11 गोरखा रेजिमेंट
बलराम गुरुंग- गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री- खत-9 गोरखा रेजिमेंट
रमेश छेत्री (2)- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
सुरेश खत्री- नॉन कॉम्बैटेंट दस्ते में भर्ती
संतोष बहादुर खत्री- खखख-9 गोरखा रेजिमेंट
भोजराज बहादुर खत्री- 17 जैक राइफल्स

फर्जी दलित बन कर भी नौकरी पा रहे हैं नेपाली
फर्जी प्रमाण पत्र लेकर नेपाली लोग केवल सेना में ही भर्ती नहीं हो रहे हैं, बल्कि अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र लेकर वे अन्य सरकारी नौकरियों में भी घुस रहे हैं. उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में भी ऐसे दो मामले पकड़े गए. दो भाई अमित सिंह और अरुण कुमार नेपाल के खलंगा (पोस्ट ः ढूलेपानी, गांव ः प्यूठन) से यहां आकर अनुसूचित जाति के कोटे से सिंचाई विभाग में सरकारी नौकरी पा गए. शिकायत होने पर मामले की छानबीन की गई तो अरुण कुमार को बर्खास्त कर दिया गया, लेकिन उसी फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी पाये उसके भाई अमित सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. सिंचाई विभाग में अनुसूचित जाति के फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे अमित सिंह का आवासीय प्रमाण पत्र भी फर्जी है, क्योंकि उसमें सिंचाई विभाग की कॉलोनी का ही पता दर्ज है. सिंचाई विभाग में फर्जी नियुक्ति का यह मामला उठाने वाले व्हिसिल ब्लोअर हरपाल सिंह के उत्पीड़न का जो दौर चला, वह उनके रिटायर होने के बाद भी जारी है.
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Saturday, August 1, 2015

महिलाओं के अधिकार और क़ानून

महिलाओं के अधिकार और क़ानून


हर व्यक्ति जन्म से ही कुछ अधिकार लेकर आता है, चाहे वह जीने का अधिकार हो या विकास के लिए अवसर प्राप्त करने का. मगर इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के साथ लैंगिक आधार पर किए जा रहे भेदभाव की वजह से महिलाएं इन अधिकारों से वंचित रह जाती हैं. इसी वजह से महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु हमारे संविधान में अलग से क़ानून बनाए गए हैं और महिलाओं को अपनी ज़िंदगी जीने में ये क़ानून भरपूर मदद कर सकें, इसके लिए समय-समय पर इनमें संशोधन भी किए गए हैं.
सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता एवं शर्मीलेपन का प्रतिरूप बताया गया है. इसके भार से दबी महिलाएं चाहते हुए भी इन क़ानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं. बहुत सारे मामलों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ जो घटनाएं हो रही हैं, उससे बचाव का कोई क़ानून भी है. आमतौर पर शारीरिक प्रताड़ना यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है. लेकिन महिलाओं और लड़कियों को यह नहीं पता कि मनपसंद कपड़े न पहनने देना, मनपसंद नौकरी या काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग़ व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके न जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढ़ने न देना, काम छोड़ने का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि भी हिंसा है, मानसिक प्रताड़ना है.
यहां तक कि घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में भी महिलाएं अनभिज्ञ हैं. घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर, 2006 से इसे लागू किया गया. यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है. यह क़ानून ऐसी महिलाओं के लिए है, जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी क़िस्म की हिंसा से पी़डित हैं. इसमें अपशब्द कहने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मारपीट करना आदि शामिल हैं. इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी एवं किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है. घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताडित महिला किसी भी व्यस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंतर्गत मारपीट से लेकर क़ैद में रखना, खाना न देना एवं दहेज के लिए प्रताड़ित करना आदि आता है. घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सज़ा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताड़ना की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताड़ना के मामले ज़्यादा होते हैं. यहां हम कुछ ऐसे अपराध और क़ानूनी धाराओं का ज़िक्र कर रहे हैं, जिनकी जानकारी रहने पर महिलाएं अपने खिला़फ होने वाले अत्याचारों के खिला़फ आवाज़ उठा सकती हैं.
अपहरण, भगाना या महिला को शादी के लिए मजबूर करने जैसे अपराध के लिए अभियुक्त के खिला़फ धारा-366 लगाई जाती है, जिसमें 10 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है. पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना धारा-494 के तहत जघन्य जुर्म है और अभियुक्त को 7 वर्ष की सज़ा मिल सकती है. पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता बरतने पर धारा-498 के तहत 3 साल की सज़ा दी जा सकती है. अगर कोई व्यक्ति या रिश्तेदार किसी महिला का अपमान करता है और उस पर झूठे आरोप लगाता है तो उसे धारा-499 के तहत दो साल की सज़ा का भागी बनना पड़ सकता है. दहेज मांगना और उसके लिए प्रताड़ित करना बेहद जघन्य है, जिसके लिए भारतीय क़ानून में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है, जो धारा-304 के तहत सुनाई जाती है. दहेज मृत्य के लिए भी अभियुक्त पर धारा-304 ही लगाई जाती है. किसी लड़की या महिला पर आत्महत्या के लिए दबाव बनाना भी संगीन अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए धारा-306 के तहत 10 वर्ष की सज़ा मिलती है. सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य एवं अश्लील गीत गाने के लिए धारा-294 और 3 माह क़ैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से की गई अश्लील हरकत के लिए धारा-354 और 2 वर्ष की सज़ा, महिला के साथ अश्लील हरकत करना या अपशब्द कहने पर धारा-509 और 1 वर्ष की सज़ा, बलात्कार के लिए धारा-376 लगाई जाती है और 10 वर्ष तक की सज़ा या उम्रक़ैद मिलती है. महिला की सहमति के बग़ैर गर्भपात कराना भी उतना ही बड़ा अपराध है, जिसके लिए अभियुक्त को धारा-313 के तहत आजीवन कारावास या 10 वर्ष क़ैद और जुर्माने की कड़ी सज़ा का प्रावधान है.
सरकार ने महिलाओं को पुरुषों के अत्याचार, हिंसा और अन्याय से बचाने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन तो किया, पर वह अपने मक़सद में ज़्यादा सफल नहीं हो पा रहा है. यह ठीक है कि आयोग में शिकायत दर्ज कराने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, लेकिन यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि आयोग में शिकायत लेकर पहुंचने वाली महिलाओं में अधिकांश संख्या उनकी है, जो न केवल पढ़ी-लिखी हैं, बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ अपने अधिकारों को पहचानती भी हैं. लेकिन गांवों की अनपढ़, कम पढ़ी-लिखी और दबी-कुचली महिलाओं की आवाज़ इस आयोग में नहीं सुनी जाती.
राष्ट्रीय महिला आयोग यह कहकर उनकी आवाज़ अनसुनी कर देता है कि उनके लिए राज्यों में आयोग है, पर राज्यों के आयोग किस भरोसे चल रहे हैं और इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग क्या क़दम उठा रहा है, इस सवाल पर आयोग पल्ला झाड़ लेता है. किसी घटना के होने पर महिला आयोग तुरंत प्रतिक्रिया तो देता है, लेकिन वास्तव में वह उस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता है. आरुषि हत्याकांड मामला हमारे सामने है. इस मामले में तो आयोग की कार्यशैली पर ही सवाल उठ गए. आयोग में शिकायतों का ढेर लगा है, लेकिन निपटाने वाला कोई नहीं है. इसलिए सरकार के सामने इस मसले पर बेशुमार चुनौतियां हैं और इन क़ानूनों के अलावा भी कुछ बातें बेहद ज़रूरी हैं, ताकि महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में कमी आ सके. मसलन सरकार द्वारा महिलाओं के संरक्षण का क़ानून पारित होना चाहिए. सरकार महिलाओं से संबंधित इन प्रकरणों के बेशुमार मामलों के निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन करे. सबसे खास और अहम बात कि खुद महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों.

काटजू का विवादित बयान

महिला अधिकारों के हनन और उससे जुड़े क़ानूनों को लेकर न स़िर्फ हमारा पुरुषवादी समाज, बल्कि हमारी न्यायपालिका में सर्वोच्च पदों पर बैठे न्यायाधीशों तक का नज़रिया हैरान कर देने वाला है. आमतौर पर यह धारणा है कि इस देश की अदालतें वीमेन फ्रेंडली हैं, लेकिन हक़ीक़त में ऐसा है नहीं. इस बात का एक बड़ा ज्वलंत प्रमाण भी मौजूद है. हम आपको एक वाक़िया बताते हैं. लिव इन रिलेशनशिप के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट में 21 अक्टूबर, 2010 को सुनवाई चल रही थी. सुनवाई के बाद जस्टिस मार्कंडेय काटजू और टीएस ठाकुर ने अपनी राय दी कि अगर एक मर्द अपनी यौन भूख मिटाने के लिए कोई रखैल या नौकरानी रखता है और इसके बदले उसकी आर्थिक क़ीमत चुकाता है, तो हमारी राय में इस रिश्ते में विवाह की प्रकृति का कोई संबंध नहीं है और एक रात गुज़ारने या सप्ताहांत बिताने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा क़ानून-2005 के तहत कोई भी सुरक्षा पाने का हक़ नहीं है. अगर वे इस क़ानून के तहत मिलने वाले फायदे उठाना चाहती हैं तो उन्हें हमारे द्वारा उल्लेख की गईं शर्तों के हिसाब से सबूतों के साथ साबित करना होगा. जस्टिस काटजू ने अपना फैसला तो सुना दिया, पर उन्होंने बात यहीं खत्म नहीं की. अगले ही दिन किसी और मामले की सुनवाई के दौरान महिलाओं के खिला़फ घरेलू हिंसा क़ानून को ज़मीन पर उतारने में मुख्य भूमिका निभाने वाली उप महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह जब अदालत में ख़डी हुईं, तब जस्टिस काटजू ने बड़े ही व्यंग्यात्मक लहजे में उनसे कहा कि कहिए, घरेलू हिंसा क़ानून की सर्जक, क्या कहना है. जस्टिस काटजू का यह कटाक्ष उप महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को अंदर तक भेद गया. वह एक न्यायाधीश के इस तरीक़े के संबोधन से अचंभित तो हुईं, लेकिन चुप नहीं रहीं. इंदिरा जयसिंह ने रखैल या एक रात गुज़ारने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने वाले दोनों जजों को यह कहते हुए आड़े हाथों लिया कि किसी भी मामले में ऐसे जजों की बेंच के सामने कोई बात कहने की बजाय मैं बाहर जाना पसंद करूंगी.
देश में महिला अधिकारों के हनन की खौ़फनाक तस्वीर पेश करने के लिए यह एक उदाहरण का़फी है. जब न्यायपालिका में बेहद उच्च पदस्थ और रुतबे वाली जागरूक और जुझारू उप महाधिवक्ता इंदिरा जयसिंह को भरी अदालत में माननीय जजों से कटाक्ष का सामना करना प़ड सकता है, तो फिर एक आम महिला की बिसात ही क्या. इसलिए सबसे ज़रूरी यही है कि महिलाएं खुद अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों. अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिला़फ आवाज़ उठाएं. क़ानून की जानकारी हासिल करें और उनका वाजिब इस्तेमाल करें.
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फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर सीआरपीएफ, बीएसएफ में भर्तियां : हेकड़ी में यादव, नौकरी में दलित

फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर सीआरपीएफ, बीएसएफ में भर्तियां : हेकड़ी में यादव, नौकरी में दलित


ग़ैर दलित जाति के लोग खुद को दलित बताकर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बलों और अन्य सरकारी महकमों में भर्ती हो रहे हैं. अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा कर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे लोगों में अधिकांश यादव जाति के हैं. उत्तर प्रदेश में एक तऱफ दलित-हित के नाम पर सियासी भाषणबाजी और दुकानदारी चल रही है, तो वहीं दूसरी तऱफ दलितों का हक़ छीनने का गोरखधंधा चल रहा है. सरकारी महकमों में अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रमाण-पत्र पर भर्ती का गोरखधंधा अंधाधुंध जारी है.
hekdi-m-yadavदिल्ली सरकार का एक मंत्री फर्जी डिग्री के मामले में जेल में है, लेकिन उत्तर प्रदेश में फर्जी प्रमाण-पत्र पर बीएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएनएल और राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में धड़ल्ले से भर्तियां हो रही हैं, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है. जिन्हें ध्यान देना है, वे सब धंधेबाजी में लिप्त हैं. ग़ैर दलित जाति के लोग खुद को दलित बताकर बीएसएफ एवं
सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बलों और अन्य सरकारी महकमों में भर्ती हो रहे हैं. अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र बनवा कर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे लोगों में अधिकांश यादव जाति के हैं. उत्तर प्रदेश में एक तऱफ दलित-हित के नाम पर सियासी भाषणबाजी और दुकानदारी चल रही है, तो वहीं दूसरी तऱफ दलितों का हक़ छीनने का गोरखधंधा चल रहा है. सरकारी महकमों में अनुसूचित जाति-जनजाति के प्रमाण-पत्र पर भर्ती का गोरखधंधा अंधाधुंध जारी है. सीआरपीएफ ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि उत्तर प्रदेश के 25 युवकों ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी हासिल की है. इनमें से 12 युवकों को नौकरी से निकाले जाने की आधिकारिक पुष्टि की गई है, लेकिन अन्य 13 लोगों का कोई पता ही नहीं चल रहा है कि वे सीआरपीएफ की किस इकाई में और किस स्थान पर तैनात हैं. इस तरह के सैकड़ों युवक हैं, जो बीएसएफ एवं सीआरपीएफ समेत अन्य केंद्रीय सरकारी विभागों में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे हैं, लेकिन बीएसएफ, बीएसएनएल और अन्य विभाग इस मसले पर कन्नी काट रहे हैं, जबकि आधिकारिक तौर पर इस फर्जीवाड़े की पुष्टि हो चुकी है. बीएसएफ ने ऐसा केवल एक मामला पकड़ने का दावा किया है, जबकि सीआरपीएफ ने पारदर्शिता का प्रदर्शन करते हुए जिन 12 युवकों को बर्खास्त किए जाने की आधिकारिक पुष्टि की है, उनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश के एटा व अलीगंज के रहने वाले हैं और ज़्यादातर यादव एवं अहीर जाति के हैं, जो दलित बनकर नौकरी कर रहे थे. बीएसएफ ने फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर भर्ती हुए अशोक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया है, जबकि सीआरपीएफ ने अमर सिंह को न केवल नौकरी से निकाला, बल्कि जालसाजी के आरोप में उसे गिरफ्तार भी किया.
सीआरपीएफ से बर्खास्त किए गए युवकों में सतीश चंद (फोर्स नंबर: 980460027), मुकेश चंद (फोर्स नंबर: 961400529), अशोक कुमार (फोर्स नंबर: 971400177), रवींद्र सिंह (फोर्स नंबर: 041727822), अशोक कुमार (फोर्स नंबर: 045268359), यशपाल सिंह (फोर्स नंबरः 971180712), ब्रजेश कुमार (फोर्स नंबर: 045181689), यदुवीर सिंह (फोर्स नंबर: 031310963), वीरपाल सिंह (फोर्स नंबर: 980030814), नीरज कुमार (फोर्स नंबर: 005263491), अमर सिंह (फोर्स नंबर: 951360181) और यतेंद्र सिंह (फोर्स नंबर: 991150431) शामिल हैं. यह
सीआरपीएफ की आधिकारिक (ऑफिशियल) सूचना है. बीएसएफ एवं सीआरपीएफ जैसे महत्वपूर्ण अर्द्धसैनिक बलों और बीएसएनएल जैसे केंद्र सरकार के प्रतिष्ठान में अनुसूचित जाति के कोटे पर पिछड़ी जाति के लोगों की भर्ती के जो आंकड़े उजागर हो पाए हैं या जिनके बारे में आधिकारिक पुष्टि हुई है, वे तो महज कुछ उदाहरण हैं. वह भी उत्तर प्रदेश के दो-तीन ज़िलों का ही फर्जीवाड़ा अभी आधिकारिक तौर पर पकड़ में आया है. एक सरकारी मुलाजिम ने ही बताया कि अकेले एटा से छह सौ से भी अधिक फर्जी जाति प्रमाण-पत्र जारी हुए. यह धंधा प्रदेश भर में चल रहा है. असलियत यह है कि पिछड़ी जातियों के लोग अनुसूचित जाति एवं जनजाति का फर्जी प्रमाण-पत्र हासिल कर हज़ारों की तादाद में बीएसएफ, सीआरपीएफ, बीएसएनएल और अन्य सरकारी विभागों में भर्ती हो रहे हैं.
इस गोरखधंधे में प्रदेश सरकार से लेकर अर्द्धसैनिक बल और केंद्रीय सरकारी विभागों के अधिकारियों तक की मिलीभगत है. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रशासनिक अधिकारी इसे सख्ती से ऊपर इसलिए नहीं बढ़ाते, क्योंकि इसमें प्रशासन के ही अधिकारी फंस जाएंगे. ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें संबंधित ज़िला प्रशासन ने छानबीन की, फर्जी प्रमाण-पत्रों पर की गईं नियुक्तियां पकड़ीं, उनके बारे में संबंधित विभागों को सूचित भी किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. प्रशासन कहता है कि सीआरपीएफ एवं बीएसएफ के महानिदेशकों को इस बारे में लिख दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद फर्जी लोग बाकायदा नौकरी कर रहे हैं. सवाल यह भी उठा कि जब ज़िला प्रशासन की छानबीन में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया और उत्तर प्रदेश सरकार को इसकी आधिकारिक सूचना मिल गई, तो फिर केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालयों को इस बारे में सूचित क्यों नहीं किया गया? सैकड़ों ऐसे लोगों के नाम मिले हैं, जो अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र लेकर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में भर्ती हो गए हैं. 34 लोगों के बारे में संबंधित ज़िला प्रशासन द्वारा की गई छानबीन की रिपोर्ट चौथी दुनिया के पास है. इनमें से 31 के बारे में आधिकारिक पुष्टि हो गई है. इनमें 19 लोग यादव या अहीर जाति के हैं और अनुसूचित जाति के नाम पर बीएसएफ एवं सीआरपीएफ में नौकरी कर रहे हैं. बाकी 12 लोग भी पिछड़ा वर्ग या अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं. इनमें से दो लोग बीएसएनएल में हैं. यानी प्रशासन की जांच में आधिकारिक तौर पर यह पुष्टि हुई कि पिछड़ा वर्ग से आने वाले इन 31 लोगों ने तहसील से अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण-पत्र प्राप्त किया और उसके आधार पर अर्द्धसैनिक बलों में नौकरी हासिल कर ली. सरकारी जांच में पाया गया कि अलीगंज और एटा की तहसील से फर्जी प्रमाण-पत्र जारी हुए थे, लेकिन फर्जी प्रमाण-पत्र जारी करने वाले सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. ज़िला प्रशासन कहता है कि बीएसएफ एवं सीआरपीएफ के महानिदेशकों को इस बारे में इत्तिला कर दी गई है. बीएसएनएल में हुई नियुक्तियों के बारे में तो कोई कुछ बोल भी नहीं रहा.
सीआरपीएफ ने जिस अशोक कुमार पुत्र चंद्रपाल सिंह को बर्खास्त किए जाने की बात कही है, उसका नाम ज़िला प्रशासन की तऱफ से कन्फर्म की गई सूची में नहीं है. इसी तरह बर्खास्तगी वाली सूची में शामिल रवींद्र सिंह एवं यदुवीर सिंह, दोनों के पिता का नाम सूची में नहीं है. ब्रजेश कुमार पुत्र रछपाल सिंह का नाम सीआरपीएफ की सूची में है, लेकिन ज़िला प्रशासन की सूची में नहीं है. सीआरपीएफ महानिदेशालय की तऱफ से ऑल इंडिया एससी-एसटी इम्प्लॉइज वेलफेयर एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव हरपाल सिंह को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि सीआरपीएफ एवं बीएसएफ में फर्जी जाति प्रमाण-पत्र के आधार पर भर्ती हुए लोगों में उत्तर प्रदेश के 34 लोगों के नाम आए हैं. इनके बारे में औपचारिक जांच-पड़ताल करके संबंधित ज़िला प्रशासन ने सूची जारी की है, लेकिन इनमें से सीआरपीएफ में भर्ती 12 लोगों का ही पता चल पाया है, जिन्हें बर्खास्त कर दिया गया है. सीआरपीएफ की 62वीं बटालियन में तैनात प्रवेश कुमार पुत्र बलराम के जाति प्रमाण-पत्र की जांच की जा रही है. इसके लिए एटा के ज़िलाधिकारी से भी अनुरोध किया गया है. लिहाजा, यह मामला अभी लंबित है.
सीआरपीएफ महानिदेशालय ने कहा है कि उसकी विभिन्न बटालियनों में भर्ती शिवनंदन पुत्र कश्मीर सिंह (कठिंगरा), महेश पाल पुत्र रघुनाथ सिंह (फगनौल), पुष्पेंद्र कुमार पुत्र पंत सिंह (शेखपुरा), नरेंद्र सिंह पुत्र राम निवास (जैथरा), राम करण पुत्र राम अवतार (सुहागपुर), वीरेंद्र सिंह पुत्र मैकू लाल (पहाड़पुर), सतीश चंद पुत्र राम लड़ैत (फगनौल), गिरीश चंद पुत्र राम लड़ैत (फगनौल), उमेश चंद पुत्र राम औतार (फगनौल), मिट्ठू लाल पुत्र मधुरी लाल (गणपतिपुर, बड़ापुर), देवेंद्र प्रताप सिंह पुत्र राम लछपाल सिंह (रामनगर हलवानपुर), देशराज पुत्र हाकिम सिंह (भलोल) और राम बख्श पुत्र राजवीर सिंह यादव (एटा) के बारे में कुछ पता नहीं चल पा रहा है. सीआरपीएफ ने उत्तर प्रदेश शासन से इस सिलसिले में विस्तृत छानबीन करने को कहा है.
सीआरपीएफ में ही भर्ती ब्रजेश कुमार पुत्र रछपाल (बलदेव, फगनौल) का भी अता-पता नहीं चल पा रहा है. एसोसिएशन से भी इस सिलसिले में मदद मांगी गई है.

दलित बनकर नौकरी कर रहे पिछड़ों की आधिकारिक सूची
1. शिवनंदन पुत्र कश्मीर सिंह-कठिंगरा-अहीर-सीआरपीएफ
2. मुकेश चंद पुत्र कृपाल सिंह-टिकाथर-यादव-बीएसएफ
3. अशोक कुमार पुत्र बृजराज सिंह-जालिम धुमरी-अहीर-बीएसएफ
4. कृष्णवीर सिंह पुत्र चंद्रपाल सिंह-मुकटीखेड़ा-अहीर-बीएसएफ
5. पुष्पेंद्र कुमार पुत्र पुत्तू सिंह-शेखपुरा-यादव-सीआरपीएफ
6. नरेंद्र सिंह पुत्र राम निवास-जैथरा-अहीर-सीआरपीएफ
7. सुशील कुमार उर्फ ब्रजेश पुत्र बदन सिंह-परौली, सुहागपुर-अहीर-बीएसएफ
8. रवींद्र सिंह पुत्र तारा चंद-परौली, सुहागपुर-अहीर-सीआरपीएफ
9. यदुवीर सिंह पुत्र अच्छे लाल-कठिंगरा-अहीर-सीआरपीएफ
10. जसवीर सिंह पुत्र चंद्रपाल-गढ़िया अहिरान तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
11. अशोक कुमार पुत्र अमर सिंह-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
12. ध्यान सिंह पुत्र राम चंद्र-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
13. अशोक पुत्र अनार सिंह-तरंगवा-अहीर-बीएसएफ
14. सुभाष चंद्र पुत्र सूरज पाल सिंह-भाऊपुर-अहीर-बीएसएफ
15. नीरज कुमार पुत्र हाकिम सिंह-लाडमपुर कटारा-अहीर-सीआरपीएफ
16. देशराज पुत्र हाकिम सिंह-भलौल-अहीर-सीआरपीएफ
17. अमर सिंह पुत्र हर नारायण सिंह-एटा-अहीर-सीआरपीएफ
18. यतेंद्र सिंह पुत्र शेषपाल सिंह-एटा-अहीर-सीआरपीएफ
19. राम वृक्ष यादव पुत्र राजवीर सिंह यादव-एटा-यादव-सीआरपीएफ
20. महेश पाल पुत्र रघुनाथ सिंह-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
21. सतीश चंद्र पुत्र दफेदार-परौली, सुहागपुर-गड़रिया- सीआरपीएफ
22. राम करन पुत्र राम औतार-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
23. यशपाल पुत्र सूरज पाल-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
24. वीरपाल सिंह पुत्र खेतपाल सिंह-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
25. सतीश चंद्र पुत्र राम लड़ैते-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
26. गिरीश चंद्र पुत्र राम लड़ैते-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
27. उमेश चंद्र पुत्र राम औतार-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
28. प्रवेश कुमार पुत्र बलराम-फगनौल-गड़रिया-सीआरपीएफ
29. सुशील कुमार पुत्र धर्मपाल-भदुइया मठ-गड़रिया-बीएसएनएल
30. संग्राम सिंह पुत्र सौदान सिंह-उमेद-शाक्य-बीएसएनएल
31. देवेंद्र प्रताप सिंह पुत्र राम रछपाल सिंह-रामनगर-नाई-सीआरपीएफ

चौकीदार को अफसर बना दिया!
फर्जी तरीके से नौकरी पाने और ऐसे लोगों को विभाग की तऱफ से संरक्षण देने का यह बेजोड़ मामला है. सिंचाई विभाग के लखनऊ खंड शारदा नहर में तैनात राजेंद्र प्रसाद उपाध्याय को 18 साल के बजाय 16 साल में ही नौकरी मिल गई थी. किसी भी अधिकारी ने कभी यह नहीं पूछा कि उन्हें 16 वर्ष, छह महीने, 25 दिन की उम्र में ही नौकरी किस क़ानून के तहत मिल गई? क़ानूनी प्रावधान के मुताबिक, 18 साल से कम उम्र में कोई सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती. बहरहाल, फर्जी तरीके से नियुक्ति भी हो गई और तमाम तरक्कियां भी होती रहीं. आ़िखरकार मामला जब शीर्ष स्तर पर पहुंचा, तो राजेंद्र प्रसाद उपाध्याय को सीधे डिमोट करके चौकीदार बना दिया गया. चौकीदार बनाए जाने के खिला़फ राजेंद्र हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने भी राजेंद्र की याचिका खारिज कर दी. यानी चौकीदार के पद पर पदावनति को अदालत ने भी सही ठहरा दिया. लेकिन, इसके बाद सिंचाई विभाग के आला अधिकारियों की धृष्टता और दुस्साहस देखिए कि विभागीय आदेश और अदालत के फैसले को ताक पर रखते हुए उन्होंने राजेंद्र उपाध्याय को सीधे प्रशासनिक अधिकारी (एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर) के पद पर स्थापित कर दिया. प्रशासनिक अधिकारी का सृजित पद न होते हुए भी दूसरी जगह का पद अटैच कर राजेंद्र को यहां आसीन किया गया्‌ ऐसे ग़ैर-अनुशासनिक और ग़ैर-क़ानूनी कृत्य पर शासन की निगाह नहीं जाती. राजेंद्र उपाध्याय पर वित्तीय अनियमितताओं के भी कई मामले हैं. हाउसिंग समिति के नाम पर वित्तीय गड़बड़ी करने के अलावा उस पर अपने बेटे को विभाग का ठेकेदार बनाकर फायदा पहुंचाने, पराग बूथ के आवंटन में हेराफेरी करने, सरकारी कॉलोनी में ग़ैर-क़ानूनी निर्माण कराने जैसे तमाम आरोप हैं, लेकिन सिंचाई विभाग पर यूपी की अंधेर नगरी का पूरा असर है. उत्तर प्रदेश सरकार के सिंचाई विभाग में 16 साल की उम्र में नौकरी पाने के और भी कई मामले हैं. विभाग के ड्राफ्टमैन विष्णु स्वरूप त्रिवेदी को भी 16 साल, सात महीने, चार दिन की उम्र में नौकरी मिल गई थी. त्रिवेदी की नियुक्ति को लेकर जांच और प्रति-जांच का सिलसिला चलता रहा, वह रिटायर होकर चले गए और अब पेंशन भी खा रहे हैं. जांच आज तक चल रही है. नौकरी पाने के पहले ही उनके लिए छुट्टियां मंजूर कर दिए जाने का मामला भी ऐसे रोचक किस्सों में शामिल है.

पिछड़ी जाति के दलित इंजीनियर!
उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में भी फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नियुक्ति पाने का गोरखधंधा लंबे अर्से से चल रहा है. सिंचाई विभाग खास तौर पर ऐसी नियुक्तियों का केंद्र बना हुआ है. इस विभाग में सामान्य कर्मचारियों से लेकर इंजीनियर तक फर्जी जाति प्रमाण-पत्र पर नौकरी पाए हुए हैं. सिंचाई विभाग में सोनभद्र स्थित रॉबर्ट्सगंज में तैनात सहायक अभियंता अरविंद कुमार मूल रूप से पिछड़ी जाति के हैं, लेकिन अनुसूचित जाति के प्रमाण-पत्र पर नौकरी कर रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इस सहायक अभियंता के कई रिश्तेदार भी अनुसूचित जाति का बनकर सिंचाई विभाग में नौकरी कर रहे हैं. अरविंद कुमार मूल रूप से मल्लाह (पिछड़ी जाति) हैं, लेकिन जाति प्रमाण-पत्र मझवार (अनुसूचित जाति) का बनवा रखा है. अरविंद कुमार की नियुक्ति अनुसूचित जाति प्रमाण-पत्र पर हुई और दलित होने के आधार पर ही उनकी तरक्की भी हो गई, जबकि फर्जी जाति प्रमाण-पत्र की जानकारी विभाग के सारे आला अधिकारियों को हो गई थी. विडंबना यह है कि अरविंद कुमार का फर्जीवाड़ा पकड़े जाने पर उन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी से बाहर किए जाने का आदेश भी जारी हो गया था, लेकिन उस आदेश को दबा दिया गया. फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी के मामले में उन पर क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसी तरह सिंचाई विभाग, देवरिया में तैनात कन्हैया प्रसाद पिछड़ी जाति के हैं, लेकिन अनुसूचित जाति का बनकर नौकरी कर रहे हैं. कन्हैया प्रसाद के तीन नाम हैं, कन्हैया, कन्हैया प्रसाद और कन्हैया प्रसाद गोंड. जहां जैसी सुविधा देखी, वैसा नाम इस्तेमाल कर लिया. कन्हैया प्रसाद मूल रूप से पिछड़े वर्ग की कहार जाति से आते हैं, लेकिन जाति प्रमाण-पत्र में वह अनुसूचित जाति के गोंड बने हुए हैं और नौकरी कर रहे हैं. खूबी यह है कि कन्हैया प्रसाद के सर्विस रिकॉर्ड में भी जाति के कॉलम में कहार लिखकर उसे काटा हुआ है और गोंड लिख दिया गया है. सर्विस रिकॉर्ड में नाम कन्हैया प्रसाद लिखा है, जबकि जाति प्रमाण-पत्र पर कन्हैया प्रसाद गोंड लिखा हुआ है. जाति प्रमाण-पत्र पर पता (एड्रेस) सिंचाई विभाग, गोमती बैराज, लखनऊ लिखा हुआ है. यह प्रमाण-पत्र प्रथम द्रष्टया ही फर्जी साबित होता है, क्योंकि जाति प्रमाण-पत्र पर उस विभाग का पता नहीं दर्ज होता, जहां धारक नौकरी कर रहा है. लेकिन, इस भीषण भूल (ब्लंडर) पर अधिकारियों की निगाह नहीं जाती. इसी तरह सिंचाई विभाग, सीतापुर के नलकूप खंड-2 में फर्जी शैक्षणिक योग्यता प्रमाण-पत्र के आधार पर नौकरी पाए राम आसरे का मामला भी सरकारी पेंच में फंसा हुआ है. इस व्यक्ति पर सिंचाई विभाग के प्लैट पर अवैध रूप से कब्जा करने का भी आरोप है. राम आसरे सरकारी काम करने के बजाय राजनीतिक दल की पार्टी गतिविधियों में सक्रिय रहता है, लेकिन विभाग कोई क़ानूनी कार्रवाई नहीं कर रहा.
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