सुरेश वाडकर

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Wednesday, December 28, 2016

72 करोड़ ओबीसी और 32 करोड़ एस.सी/एस.टी जागो* **

72 करोड़ ओबीसी और 32 करोड़ एस.सी/एस.टी जागो* **
*जो बोलते है आरक्षण की वजह से जॉब नही मिल रही वो अवश्य जानले कि तुम्हारी जॉब कोन हडप रहा है..*
** *जानो और जागो* **
*"आरक्षण --- जिसकी जितनी संख्या भारी,*
*उसकी उतनी हिस्सेदारी"*
** *देश का SC/ST/OBC समाज जिनकी संख्या (87.5%) है वो अब जाग गया है.***
** *भारत में लोकतंत्र लागू है पर इन 66 वर्ष में सरकारों ने यहां ब्राह्मणतंत्र स्थापित कर लिया है, ये रहे सबूत
*(1) राष्ट्रपति - प्रणव मुखर्जी - ब्राह्मण*
*(2) प्रधानमंत्री - नरेंद्र मोदी - बनिया*
*(3) ग्रहमंत्री - राजनाथ सिंह - ठाकुर*
*(4) विदेशमंत्री - सुषमा स्वराज - ब्राह्मण*
*(5) वित्तमंत्री - अरूण जेटली - ब्राह्मण*
*(6) रक्षामंत्री - मनोहर पारीकर - ब्राह्मण*
*(7) सड़क एवं परिवाहन मंत्री - नितिन गडकरी - ब्राह्मण*
*(8) महिला एवं बालविकास मंत्री - मेनका गांधी - वैश्य*
*(9) लोकसभा स्पीकर - सुमित्रा महाजन - ब्राह्मण*
*(10) प्रधानमंत्री के मुख्यसचिव - न्रपेंद्र मिश्रा - ब्राह्मण*
*(11) राष्ट्रपति कार्यालय में कुल 49 अधिकारी काम करते है. जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 45, जबकि है केवल 0.सामान्य के होने थे 5, जबकि है 49.*
*(12) प्रधानमंत्री कार्यालय में कुल 53 अधिकारी काम करते है, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 47, जबकि हैं केवल 0. सामान्य के होने थे 6, जबकि है 53.*
*(13) विदेशी दूतावास में कुल 140 अधिकारी काम करते हैं, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 91, जबकि है केवल 0, सामान्य के होने थे 21 , जबकि है 140.*
*(14) भारत सरकार में कुल 84 सचिव हैं, जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 75, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 8 , जबकि है 84.*
*(15) भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कुल 27 मंत्री हैं. जिनमें SC/ST/OBC के होने थे 24 , जबकि है केवल 1, सामान्य के होने थे 3, जबकि है 20.*
*टाप 10 मंत्रीयों में सो एक भी ओबीसी नहीं.*
*(16) भारत में कुल 4657 आई.ए.एस. हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 3027, जबकि हैं केवल 655. सामान्य के होने थे 699, जबकि है 2993.*
*(17) देश के 18 राज्यों के हाईकोर्ट में कुल 481 जज हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 313, जबकि हैं केवल 36. सामान्य जाति को होने थे 72, जबकि है 426.*
*(18) मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट में कुल 30 जज हैं. जिनमें से SC/ST/OBC के होने थे 20, जबकि है केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 5 , जबकि है 30.*
*(19) भारत के सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 जज हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 15, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होना थे 3, जबकि हैं 23.*
*(20) भारत के 46 विश्वविद्यालयों में कुल 108 कुलपति हैं . जिनमें ओबीसी के होने थे 70, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 16, जबकि है 108*
*(21) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU ) में कुल 670 प्रोफेसर हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 435, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 100, जबकि हैं 670.*
*(22) दिल्ली विश्वविद्यालय ( DU) में कुल 249 प्रोफेसर हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 162, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 37, जबकि हैं 249.*
*(23) जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में कुल 470 प्रोफेसर हैं. जिनमें से ओबीसी के होने थे 305, जबकि हैं केवल 2. सामान्य जाति के होने थे 70, जबकि हैं 426.*
*(24) आई.आई.एम. लखनऊ में कुल 40 प्रोफेसर हैं, जिनमें से ओबीसी के होने थे 26, जबकि हैं केवल 1. सामान्य जाति के होने थे 6, जबकि है 30.*
*(25) भारत सरकार के कार्मिक मंञालय की रिपोर्ट 13 फरवरी 2012 के अनुसार दिनांक 01/12/10 तक विभिन्न वर्गों की नौकरी में संख्या और प्रतिनिधित्व निम्न है.*
प्रथम श्रेणी में :-
वर्ग. संख्या आरक्षण अस्तित्व मे
*Open (12.5%) - 0% 75.5%,*
*OBC (65%) - 27% 8.4%*
*SC/ST(22.5%)22.5% 16.1%*
द्वितीय श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0% 82.2%,
OBC (65%) - 27% 6.1%
SC/ST(22.5%)22.5% 11.7%
तीसरी श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0% 71.9%
OBC (65%) - 27% 14.8%
SC/ST(22.5%)22.5% 13.3%
चतुर्थ श्रेणी में :- आरक्षण अस्तित्व
Open (12.5%) - 0% 69%
OBC (65%) - 27% 15.2%
SC/ST(22.5%) 22.5% 15.8%
(26) देश के उद्योग जगत की विभिन्न कंपनियों के बोर्ड मेम्बरों की स्थिति निम्न हैं.
*Gen -12.5% - है -92.6%*
*Sc/St-22.5%- है -3.5%*
*OBC- 65% - है-3.8%*
(29) देश में आरक्षण की स्थिति :-
वर्ग. संख्या आरक्षण
*Sc - 15% - 15%*
*St - 7.5% - 7.5%*
*Obc- 65% - 27%*
(30) मध्यप्रदेश में वर्तमान में आरक्षण की स्थिति :-
वर्ग. संख्या आरक्षण
*एससी - 16% - 16%*
*एसटी - 20% - 20%*
*ओबीसी- 65% - 14%*
*जबकि ओबीसी को केरल में 40%, बिहार में 34%, कर्नाटका में 32% और महाराष्ट्रा में 32% आरक्षण है.*
*(31) सवर्णों का नौकरी में 79% हिस्सा होने के बाद भी हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने संविधान के विरूद्ध जाकर उन्हे 14% आरक्षण दिया है.*
*(33) संविधान द्वारा गठित मंडल कमीशन ने SC/ST/OBC के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिया, परन्तु सुप्रीमकोर्ट ने 16 नबम्वर 1992 को फैसला देकर उस पर रोक लगा कर धोका किया है.*
*(33) हाल ही में गुजरात, राजस्थान और उ.प्र. हाईकोर्ट ने तथा सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण के संबंध में संविधान के विरूद्ध फैसले दिये हैं. इससे लगता है कि लोकतंत्र , संविधान और आरक्षण बड़े खतरे में है.*
*(34) 100 दिन के लिये मुझे सत्ता दे दो. यदि काला धन वापस नहीं ला पाया तो मुझे फांसी दे देना -- नरेंद्र मोदी -- 3 फरवरी 2013*
*(35) 3% ब्राह्मण, जो ग्राम पंचायत का चुनाव भी नहीं जीत सकता है वो देश की पंचायत ( संसद) पर कब्जा जमायें बैढ़ा है..*
*(36) सरकारी विद्यालयों का निजीकरण नहीं बल्कि निजी विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिये.*
*(37) पाकिस्तान में पेट्रोल 26 रू. लीटर है तो भारत में 78 रू. लीटर क्यों ?*
*(38) संस्क्रत से पी.एच.डी. किया हुआ एक ओबीसी को मंदिर में पूजा करवाने का अधिकार नहीं है, लेकिन एक पांचवी फेल ब्राह्मण को सभी अधिकार है , क्यों ? 5000 सालो से चला से चला आ रहा ये कैसा आरक्षण है ?*
*(39) देश के 4 बड़े मंदिरों में प्रतिदिन 8 करोंड़ रू.की चढौत्री आती है. इस पर 100% अधिकार ब्राह्मणों का ही क्यों ? मंदिरों की संपत्ति देशवासियों में बाट दी जाये तो सभी करोड़पति हो जायें.*
*(40) म.प्र. सरकार पर 125 हजार करोड़ का कर्ज है. प्रत्येक व्यक्ति पर 12000 रू.है.*
*(41) अमेरिका देखा, पेरिस देखा, और देखा जापान .कनाडा देखा, चाईना देखा, सब देखा मेरी जान..*
*मगर न देखी उजड़ी खेती, और मरता किसान ......*
*(42) किसान प्रेम प्रसंग के कारण आत्महत्या कर रहें - राधामोहन सिंह - केंद्रीय क्रषिमंत्री*
*(43) म.प्र. में किसानों की फसल का 2136 करोड़ का बीमा हुआ. 141 करोड़ रू. की प्रीमियम कंपनी को दी गई. जब किसानों को मुआबजा देने की बारी आई तो केवल 1.65 करोड़ रू ही क्यों दिये गये ??*
*(44) केंद्र की पिछली सरकार में क्रषि बजट 20,208 करोड़ रू. था, मोदी सरकार ने 13,523 करोड़ रू. कर दिया. कटौती - 7685 करोड़ रू. की.*
*(45) भारत में एक दिन में 46 किसान आत्महत्या करते है.1995 से 2013 के बीच 2,96,438 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.*
*(46) भारत सरकार के स्वास्थ बजट में पिछली सरकार में 35,163 करोड़ रू. का प्रावधान था. इस बार मोदी सरकार ने 29,653 करोड. रू. का प्रावधान किया है. कटौती - 5510 करोड़ रू.की.*
*(47) पुलिस सुधार फंड में 1500 करोड़ की कटौती.*
*(48) इस सरकार नें एससी/एसटी के बजट में 32000 करोड़ की कटौती की है.*
*(49) करदाताओं के पैसे पर मौज कर रहे है उद्योगपति- रघुराज रंजन - गवर्नर भारतीय रिजर्व बैंक.*
*(50) देश में प्रतिवर्ष 35 लाख युवा ग्रेजुएट होते है, तथा 65 लाख युवा 12 वीं पास करते हैं. परन्तु सरकार ने 30 लाख जॉव की छटनी की है.*
*(53) अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार :- देश में 29 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं, 83 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे हैं.*
*लेख की साम्रगी - विभिन्न समाचार पत्रों, मंडल आयोग की रिपोर्ट, लोकसभा में लगाये प्रश्न, आर.टी.आई.,विभिन्न कमीशनों की रिपोर्ट और विभिन्न लेखकों की पुस्तकों पर आधारित है.*
*जागरूकता के लिए शेयर करे।जागृति बढ़ाए।


रोज पढ़े दैनिक मूलनिवासी नायक (हिन्दी पेपर)

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Wednesday, December 14, 2016

दुनिया में सबसे कम पढ़े-लिखे हैं हिंदू : प्यू रिसर्च

दुनिया में सबसे कम पढ़े-लिखे हैं हिंदू : प्यू रिसर्च:

via http://www.sanjeevnitoday.com/

'
रामायण का सच
Posted on * by Sureshbadkar
25 Votes

इस बार आप सभी सोच रहे होंगे कि आखिर इस बार दशहरे पर भीम संघ ने कोई पोस्ट क्यों नहीं डाली। तो दोस्तों बात यह है कि हम देखना चाहते थे कि मूलनिवासी इस बार दशहरे पर क्या क्या करते है? आखिर मूलनिवासी समाज दशहरे या रामायण के बारे क्या विचार रखता है। पिछले दिनों हमने देखा लाखों मूलनिवासी रावण के अनुयायी बन गए है और कई दिनों से जय रावण जय रावण चिला रहे है। अपनी मनगढंत कहानियां बना बना कर रावण को महान और महात्मा साबित करने की पूरी कोशिश हो रही है। रावण एक महात्मा था, अपनी बहन का रक्षक था, मूलनिवासी राजा था, राम पापी था और ना जाने क्या क्या। एक ऐसी काल्पनिक घटना को सच साबित करने की कोशिश हो रही है जो ना कभी घटी और ना जिसके कोई प्रमाण मौजूद है। आखिर आप लोग बाबा साहब के बताये रास्ते पर कब चलाना शुरू करोगे? बुद्धि और तर्क का रास्ता, सचे ज्ञान और अन्धविश्वास से दूर ले जाने वाला रास्ता, हमने देखा मूलनिवासी भी आज पूरी तरह ब्राह्मणवादी होते जा रहे है। कोई भी बाबा साहब के दिखाए रास्ते पर चलने के बजाये खुद के ब्राह्मणवादी प्रभाव से बनाये रास्ते बना कर उन पर चल रहे है। आज मूलनिवासी समाज भी पूरी तरह से ब्राह्मणवाद से ग्रसित हो चूका है। सबसे बड़े ब्राह्मणवादी तो वो लोग है जो रामायण जैसी काल्पनिक कहानी को सच मान कर जय रावण जय रावण चिला रहे है। दोस्तों एक मिनट के लिए रुको अपने दिमाग को सोचने का मौका दो और सोचो, क्या आप भी रामायण के रावण को महात्मा बता कर, लोगों को उसका अनुयायी बना कर, एक तरह से ब्राह्मणवादी काल्पनिक कहानियों को सच साबित करने में ब्राह्मणों का सहयोग नहीं कर रहे हो? जो किसी भी तरह से मूलनिवासी समाज के लिए उचित नहीं है। आप लोग कहोगे कि आपके पास क्या प्रमाण है कि रामायण एक काल्पनिक कहानी है? तो दोस्तों हम आपके लिए कुछ प्रमाण भी देंगे कृपया उन प्रमाणों पर गौर करे और सही बात को समझे। ब्राह्मणवाद आप चाहे किसी भी तरह से अपना लो, उसके खलनायकों का सहयोग करो या विरोध करो दोनों प्रकार से मूलनिवासी समाज के लिए जहर के समान है जिससे मूलनिवासी समाज की मृत्यु निश्चित है।

ramayaआइये आपको बताते है कि आखिर रामायण क्या है। रामायण पुष्यमित्र शुंग के राजकबि वाल्मीकि की कल्पना से लिखी गई एक मनगढंत कहानी है। जो पुष्यमित्र शुंग को भगवान का अवतार स्थापित करने के उद्देश्य से लिखी गई थी। जिसका उद्देश्य मूलनिवासी समाज के लोगों के मन में एक बार फिर देवातावाद या अवतारवाद का डर बैठाना था। ब्राह्मणों के विष्णु भगवान और ब्राह्मणवाद का अस्तित्व भारत में बौद्ध धर्म के उदय के बाद पूरी तरह समाप्त हो चूका था। लोगों ने विष्णु को भगवान और ब्राह्मणों के अवतारवाद को मानना बंद कर दिया था। गौतम बुद्ध ने जो क्रांति की मशाल जलाई थी उसके प्रकाश के आगे ब्राह्मणवाद हर प्रकार से मूलनिवासियों को दबाने में असफल हो चूका था। लोग काल्पनिक कहानियों को मानना छोड़ कर सच, समता, न्याय और बंधुत्व के मार्ग पर चलने लगे थे। उस समय वाल्मीकि नाम के एक ब्राह्मण ने फिर से ब्राह्मणवाद को स्थापित करने और मूलनिवासियों के मन में अवतारवाद का भय बिठाने के लिए रामायण जैसी ब्राह्मणवादी और काल्पनिक कहानी को लिखा। रामायण लेखन पुष्यमित्र शुंग की एक चाल थी जिससे मूलनिवासी धर्म के नाम से डरे और ब्राह्मणवादी सामाजिक प्रणाली वर्ण व्यवस्था को अपना ले। ब्राह्मण वाल्मीकि के रामायण लिखने का प्रभाव यह हुआ कि भारत के सभी लोगों ने पुष्यमित्र शुंग को राम समझ कर भगवान मानना शुरू कर दिया और बृहदत्त जो भारत के महान मूलनिवासी बौद्ध राजा अशोक का पोता था उसको रावण समझ कर समाज पर कलंक और बुरा समझना शुरू कर दिया। पुष्यमित्र शुंग के समय से ही ब्राह्मणों ने चतुराई पूर्ण ढंग से, धर्म के नाम पर पाखंड करके और आडम्बर को बढ़ावा देकर रामायण को हमेशा सच साबित करने की कोशिश जारी रखी, मूलनिवासी समाज के अनपढ़ और भोले भाले लोग ब्राह्मणों की चतुराई को समझ नहीं सके और आज भी किसी ना किसी तरह से रामायण को सच मानते है और रामायण जैसी काल्पनिक कहानी का सही तरीके से विरोध ना करके ब्राह्मणों के दिखाए रस्ते पर चल कर किसी ना किसी तरह से रामायण को सच साबित करने में लगे हुए है।

असल इतिहास के मुताबिक़ भारत में 1000 इसवी में भारत पर बौद्ध राजा बृहदत्त शासन था और पाटलिपुत्र बृहदत्त की राजधानी थी। उस समय पुरे भारत अर्थात पाकिस्तान, भारत, बंगलादेश, चीन, भूटान, नेपाल और श्रीलंका में बौद्ध धम्म अपने चरम पर था। मूलनिवासी राजा महाराज अशोक जो गौतम बुद्ध के अनुयायी थे ने गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार शासन करते हुए पुरे भारत को बौद्धमय बना दिया था। लोग जातिवाद और ब्राह्मणवाद के विरोधी हो गए थे। ब्राह्मणों द्वारा बनाई वर्ण व्यवस्था को भारत के निवासियों ने नकार दिया था। सभी भारतवासी समता, समानता, न्याय और बंधुत्व के आधार पर स्थापित बौद्ध धम्म को मानने लगे थे। ब्राह्मणों के बुरे दिन शुरू हो चुके थे भारत के निवासियों ने मंदिरों में जाना बंद कर दिया था। दान, कर्मकांडों और पूजा पाठ आदि की व्यवस्था भारत से लुप्त होती जा रही थी। जिसके कारण ब्राह्मणों के भूखे मरने और मेहनत करने के दिन आने लगे थे। अर्थात ब्राह्मणों के सभी प्रकार के मुफ्त में धन और सम्मान हासिल करने की प्रथा के बंद होने के कारण ब्राह्मणों को भी मेहनत करनी पड़ रही थी। भारत के निवासी ब्राह्मणों के धर्म गर्न्थों, प्रथाओं और परम्पराओं के विरोधी हो गए थे और ब्राह्मण धर्म पूरी तरह खतरे में पड़ गया था। उस समय ब्राह्मणों ने पुरे भारत से ब्राह्मणों को बुला कर एक सभा का आयोजन किया। सभा में मूलनिवासी महाराजा बृहदत्त को मारने और भारत में फिर से ब्राह्मण धर्म को स्थपित करने की साजिश रची गई। षड्यंत्र के मुताबिक़ मूलनिवासी बौद्ध राजा बृहदत्त को मारने का कार्य पुष्यमित्र शुंग नाम के एक सैनिक को सौंपा गया जोकि महाराज बृहदत्त की सेना में एक सिपाही था। पुष्यमित्र शुंग ने योजना के मुताबिक एक दिन बृहदत्त को भरे राज दरबार में तलवार से पेट पर वार करके मार डाला और पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा करके खुद को देश का राजा घोषित कर दिया। पाटलिपुत्र का नाम बदलकर अयोध्या रख दिया गया। जिसके प्रमाण इतिहास में आसानी से मिल जाते है, इतिहास के मुताबिक़ पाटलिपुत्र वही पर था जिसको आज अयोध्या कहा जाता है। अयोध्या का शाब्दिक अर्थ भी “बिना युद्ध के जीती गई राजधानी” ही होता है। अयोध्या को जीतने के लिए पुष्यमित्र शुंग ने कोई युद्ध नहीं किया था बल्कि षड्यंत्र से हासिल किया था। बृहदत्त की मृत्यु के बाद पुष्यमित्र शुंग ने सम्पूर्ण भारत से बौद्ध धर्म को समाप्त करने की योजना बना कर बौद्ध भिक्षुओं पर तरह तरह के अत्याचार करने शुरू कर दिए। बौद्ध भिक्षुओं के घर, मठ और रहने के स्थान जला दिए गए, बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा स्थापित विद्यालयों को भी आग के हवाले कर दिया गया जिससे बुध भिक्षुओ द्वारा लिखी गई लाखों किताबे आग में जल कर स्वाह हो गई। लाखों बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया गया और देश में फिर से वर्ण व्यवस्था को स्थापित किया गया। जिन मूलनिवासी लोगों ने सीधे बिना किसी विरोध के ब्राह्मणों की गुलामी और वर्ण व्यवस्था को मानना शुरू कर दिया वो लोग आज के भारत में ओबीसी के नाम से जाने जाते है। कुछ लोगों ने पुष्यमित्र का विरोध किया और नगरों से भाग कर दूर जा बसे। उन लोगों में से कुछ लोग भूख, प्यास और बदहाली की जिंदगी से परेशान होकर पुष्यमित्र शुंग की शरण में जा पहुंचे। उन्होंने भी ब्राह्मण धर्म और वर्ण व्यवस्था को स्वीकार किया जिनको आज के भारत में एसटी के नाम से जाना जाता है। लेकिन जो मूलनिवासियों का समूह ब्राह्मण धर्म और वर्ण व्यवस्था के खिलाफ नगरों से दूर रहता था उस समूह ने पुष्यमित्र शुंग के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। लेकिन ओबीसी और एसटी नाम के आधे मूलनिवासी पहले ही पुष्यमित्र शुंग के साथ होने से मूलनिवासियों के उन योद्धाओं के समूह को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। युद्ध में हारे हुए उन योद्धाओं को आज के भारत में एससी के नाम से जाना जाता है। उसके बाद पुष्यमित्र शुंग ने अपने राजकवि वाल्मीकि को एक ऐसी कहानी लिखने का आदेश दिया जिससे पुष्यमित्र शुंग सदा के लिए इतिहास में अमर हो जाये। मूलनिवासियों के मन में सदा के लिए ब्राह्मणवाद और अवतारवाद का डर बैठ जाये, भारत में हमेशा के लिए वर्ण व्यवस्था स्थापित हो जाये। पुष्यमित्र शुंग के आदेश पर वाल्मीकि ने रामायण नामक एक काल्पनिक कहानी की रचना की और पुष्यमित्र शुंग ने ब्राह्मणों को आदेश देकर इस काल्पनिक कहानी को भारत के कोने कोने में पहुंचा कर सच साबित करने में लगा दिया। ना तो कभी रावण हुआ, ना कभी राम हुआ और ना ही रामायण जैसी कोई घटना घटी लेकिन पुष्यमित्र शुंग के षड्यंत्र में फंसे लोग आज भी रामायण को सच मानते है।

रामायण 1000 इसवी के बाद लिखी गई इस के बहुत से प्रमाण मौजूद है। उदाहरण के लिए यहाँ एक प्रमाण दिया जा रहा है जो भाषा के विकास से सम्बंधित है। विज्ञान के मुताबिक किसी भी भाषा के लिपि तक के विकास में कम से कम 800 से 1000 सालों का समय लगता है और अगले 1000 सालों में वह भाषा समाप्त भी हो जाती है। अर्थात एक भाषा की उम्र 2000 साल होती है। यह भी सर्व मान्य है कि आज से 2000 साल पहले किसी भी भाषा की कोई लिपि नहीं थी और यह बात विज्ञान ने भी प्रमाणित की है। अर्थात संस्कृत की 800 इसवी तक कोई लिपि नहीं थी। जिस भाषा की कोई लिपि ही ना हो उस में किसी भी प्रकार के साहित्य की रचना असंभव है। 800 इसवी में संस्कृत भाषा की बुनियादी लिपि बनी और उसके विकास में भी कम से कम 200 से 300 सालों का समय लगा। तो रामायण की रचना भी 1000 इसवी के बाद ही की गई है।

यहाँ एक बात और जिसको यहाँ कहना बहुत जरुरी है अगर आप रामायण, महाभारत, गीता, वेद, पुराणों आदि काल्पनिक धर्म शास्त्रों में विश्वास करते है। उन पर बहस करते है तो आप भी एक ब्राह्मणवादी हो जो काल्पनिक कहानियों के चक्कर में फंस कर किसी ना किसी प्रकार से ब्राह्मणवाद को बढावा दे रहे हो। जय रावण बोलकर हमारे समाज का उद्दार नहीं हो सकता। क्योकि इसका सीधा अर्थ है आप वाल्मीकि की काल्पनिक कहानी को सच मानते हो। अगर रामायण को सच मानते हो तो आपको उसमें दी गई शिक्षाओं और वर्ण व्यवस्था को भी सच मानना पड़ेगा। और आप एक ब्राह्मणवादी साबित हो जाओगे। हमराप सभी को सची रामायण नाम की किताब को पढ़ना चाहिए जो हाई कोर्ट द्वारा प्रमाणित किताब है। जिस से आपको रामायण की असलियत समझने में आसानी होगी। रामायण असल में एक कथा है एक कहानी है जिसके नाम पर पाखंड और आडम्बर करके ब्राह्मणों ने मूलनिवासी लोगों को गुलाम बना रखा है।

“जय भीम। जय। मूलनिवासी।।”

Tuesday, December 13, 2016

"राम" एक काल्प्निक पात्र थे , पुरातत्व विभाग द्वारा कई वर्षो के शोध के बाद 2008 मे ये सिद्ध हुआ के रामसेतू 18 लाख वर्ष पूर्व "tectonic plates" के घर्षण द्वारा उत्पन्न हुआ, जो समुद्र तल तक गड़ा हुआ है | जबकि मानव जाति के जन्मे हुए अभी 1लाख वर्ष भी नही हुए, करोङो वर्षो पूर्व के डायनासौर्स (Dianasaurs) के अवशेष भी मिलगये मगर वानर सेना का कोई अता पता नही | इस प्रकार के सेतू जापान-कोरिया के बीच मे भी है, और इससे कई गुना बड़ा सेतु तुर्की द्वीप मे भी है |
***रामसेतु का सच ****
राम सेतु (Adams bridge) इसे अधिक पुराना होने के कारन आदम पुल भी कहाँ जाता है । राम सेतु (Adams bridge) पर नासा ने रिसर्च कर बताया कि यह पुल प्रकृति निर्मित है, मानव निर्मित नही । यह समुद्र में पाये जाने वाले मूँगा (CORAL) में पाये जाने वाले केल्शियम कार्बोनेट के छोड़े जाने से निर्मित श्रंखला है । जिसकी लंबाई 30Km. है । नासा ने इसके सैम्पल लेकर रेडियो कार्बन परिक्षण से बताया कि यहसेतु 17.5 लाख वर्ष पुराना है । मूंगा (Coral) समुद्र के कम गहरे पानी में जमा होकर श्रंखला बनाते है । विश्व में मूँगा से निर्मित ऐसी 10 श्रृंखलाएँ है इनमे से सबसे बड़ी ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर है । इसकी लंबाई रामसेतु से भी कई गुणा अधिक 2500 Km है । विश्व की इन सभी दश मूँगा श्रंखलाओ को सेटेलाईट के द्वारा देखा जा चूका है । नासा के रिसर्च अनुसार रामसेतु जब 17.5 लाख वर्ष पुराना है, तो इसे राम निर्मित कैसे कहाँ जा सकता है । जबकि मानव ने खेती करना/कपडे पहनना 8000 हजार वर्ष ईसा पूर्व सीखा है । मानव ने लोहा (Iron) की खोज 1500 ईसा पूर्व की है । मानव ने लिखना 1300 ईसा पूर्व सीखा है । फिर **राम ** नाम लिखकर दुनियाँ के पहले पशु सिविल इंजनियर भालू नल-नील ने इसे कैसे बना डाला? मान्यता के अनुसार महाभारत नामक काल्प्निक युद्ध आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्व हुआ जबकि वेदव्यास ने महाभारत-गीता आज से 2300 वर्ष पूर्व लिखा, क्या घटना के 3700 वर्ष पश्चात उसका वर्णन स्वीकार्य है? यदि उस युग मे कोई चेतन भगत, स्पाइडरमैन, सुपरमैन भी लिख देता तो आज वो धार्मिक सत्य कथा मानी जाती और उनके जन्म स्थान पर मंदिर बनाने का आहवान होता और राजनीति होती ये सारा पाखन्ड विदेशी बी कंपनी द्वारा यहाँ के लोगों का शोषण करने के उद्देश्य से किया गया | इसी सन्दर्भ मे "मनुस्मृति" जैसी ग्रंथ को रच कर पाखन्ड का तान्डव किया गया, जबसे ये सत्य उजागर हुआ तबसे आसाराम, योगी, चिन्मिय्नन्द, नारायण साई, पंडित/ बाबा संत का धर्म से मोह्भंग हो गया और सब अश्लीलता अय्याशी मे लग गए | मगर जनता को धर्म मे उल्झाए रख कर लूटने के लिये और राजनीति को बचाए रखने के लिये राम को सच साबित करने के लिए youtube website पर फर्जी विडिओ और सामग्री डाल दिया जाता है | अब जब ये रहस्य से पर्दा उठने लगा है तबसे, हमारे देश के कुछ नेता अनाप शनाप बक रहे हैं, कोई कह रहा है के हमारे देश मे प्राचीन काल मे ही गणेश जैसे मानव की गर्दन काट कर उसमे हाथी का सर प्रत्यरोपित करके इस कृत्रिम surgery को अंजाम दिया, कोई फर्जी फ़ोटो वीडियो मे खोखले पत्थर नुमा आकार को राम लिख कर बालटी मे तैरा कर अफ़वाह फैला रहा है के रामसेतू का पत्थर तैरता है मगर जब कुछ विद्वान शातिर लोगो ने स्वयं जाकर देखा तो ऐसा कुछ था ही नही . . . . तो कोई कह रहा है के भारत मे देवता लोगो ने प्राचीन युग मे ही ATOM BOMB विकसित कर लिया था तो कोई कह रहा है के हमारे देश मे प्राचीन काल मे ही AIRPLANE, MISSILES, JET, विकसित कर लिया था, . . . .क्योकि ये राजनीतिज्ञ जानते हैं के अगर इस काल्प्निक धर्म की पोल खुल गई तो जनता को मूर्ख बनाना बंद हो जाएगा, और इनकी रोज़ी रोटी बंद हो जायेगी तथा ईमानदारी से समाजो की सेवा करनी पड़ेगी ।
...अमरनाथ मे एक गुफा है जिसके उपर सुराख से पानी टप टप टप टप गिरता रहता है जो सर्दी के मौसम मे जम कर लिंग का आकार ले लेता है तो उसे भगवान का लिंग कहा जाता है | मगर विदेशो में जैसे Switzerland मे ऐसे हज़ारो आकार बनते हैं, Antarctica मे ऐसे लाखो आकार बनते हैं, और आपके मेरे घर के Refrigerator मे ऐसे छोटे छोटे लिंग के आकार बनते हैं | आखिर ये सब किसके किसके लिंग हैं ????? और ये सारे लिंग गर्मियो मे क्यो पिघल जाते हैं???? आखिर पिछले जन्म की याद केवल भारत मे ही क्यो आती है लोगो को??? ब्राह्मण भगवान के सर से पैदा हुआ, क्षत्रिय छाती से, वेश्य पेट से, शुद्र तलवे से तो Jews Muslim Christian किधर से पैदा हुए??? यदि गंगा नदी शिवजी की जटाओ से निकलती है तो यमुना नील अमेज़न तिग्रिस झेलम नदियां किसकी जटाओ से निकलती हैं???? काल्प्निक देवी देवता लोग clean shave कैसे रहते हैं? Gillete का इस्तेमाल करते हैं क्या , मगर ब्राह्म्मा की दाढीमूछ कैसे??? देवी देवता के खूबसूरत ब्लाउज़ साडी सूट परिधान का designer कौन?? फिटिंग कोनसा टेलर करता है?? ये देवी देवता की सवारी केवल भारतीय जानवर शेर हाथी चूहा भैंस ही क्यों,, विदेशी जानवर कंगारू ज़ेब्रा डायनाआसोर क्यो नही??? ये देवी देवता के हथियार चाकू तलवार गदा त्रिशूल ही क्यों? अब तो जमाना बंदूक मशीनगन का है, क्या आपको नही लगता के ये प्राचीन पाखन्ड़ लोगों की दिमाग की उपज थी???? क्योंकि वो भारत मे रहकर विदेशों के जानवर, नदी, परिधान से अंजान थे ।....धर्म का आविष्कार केवल शोषण के उद्देश्य से हुआ, हमारे देश मे लक्ष्मी कुबेर की पूजा होती है मगर हम फिर भी गरीब है, जबकि अमरीका अरब अमीर देश है । हमारे देश मे इन्द्र्देव की पूजा होती है फिर भी हर साल बाढ़ सूखा, भूस्खलन आपदा, जबकि यूरोप इंग्लैंड खुशहाल, हमारे देश मे अन्न की देवी अन्नपूर्णा की पूजा होती है मगर फिर भी लाखों किसान भूखमरी से आत्महत्या करते हैं, ब्राज़ील, रूस का किसान खुशहाल है । विद्या की देवी सरस्वती की पूजा हमारे देश मे होती है फिर भी हम अशिक्षा से ग्रस्त, जबकि अमरीका, इंग्लैंड अतिशिक्षित देश है । हमारे देश मे पूजा पाठ जैसे ढोंग के लिये उत्तराखन्ड़ गये तो लाखों भक्तों बच्चों बूढो महिलाओं को मार डाला, कभी भक्तों की बस खाई मे गिर जाती है कभी हादसा हो जाता है क्या आपको नही लगता के आपके द्वारा धर्म वर्ण का पालन सीधे तौरपे राजनेता एवं धर्म के ठेकेदारों को लाभ पहुंचाता है, यदि पूजा अर्चना करने से आपको मन्न की शांति मिलती है तो मुल्लाओं को मज़ार दर्गाह, ईसाई को चर्च मे भी तो मन की शांति मिलती है, क्या आपको नही लगता के ये मात्र आपके मस्तिष्क का भ्रम है???? आखिर धर्म ने हमे दिया ही क्या है आज तक????, सुख शांति संपत्ति तो दुनिया के करोड़ नास्तिकों के पास भी है । कृपया इस मुद्दे पर दिमाग से चिन्तन करें, दिल से नही......
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प्लीज!.................................जय मूलनिवासी!!
शर्मा जी और गुप्ता जी गंगा नहाने गए । अचानक नहाते नहाते शर्मा जी की नजर गंगा के दूसरे छोर पर बुई पलेज पर पड़ी । शर्मा जी बोले गुप्ता जी देखो दूसरी तरफ कितने अच्छे तरबूज, खरबूज और ककड़ी लगे हुए हैं । चलो उधर चलकर खाते हैं कुछ खरबूज तरबूज । गुप्ता जी बोले - लेकिन मुझको तो तैरना भी नही आता । शर्मा जी : मुझको ही कौन सा तैरना आता है । गुप्ता जी : फिर उधर जायेंगे कैसे ? शर्मा जी : पत्थर पर बैठकर । गुप्ता जी : पत्थर तो खुद पानी में डूब जाता है । वो हमको क्या पार करवाएगा । शर्मा जी : अरे तुमने रामायण नही देखी ? पत्थर पर राम नाम लिखने से पत्थर पानी पर तैर जाते हैं । गुप्ता जी : बात तो तुम्हारी सही है लेकिन वो भगवान थे । शर्मा जी : रहे तो निरे बुद्धू ही । राम ही तो भगवान थे लेकिन पत्थर पर राम राम लिखने वाले तो सही से इंसान भी नही थे । बन्दर भालू थे । हम तो फिर भी इंसान हैं । गुप्ता जी : चलो ठीक है पत्थर पर राम राम लिखो और गंगा में फेंककर देखो । अगर डूबेगा तो कोई बात नही है। अगर नही डूबा तो फिर उस पर बैठकर दूसरी तरफ चलेंगे । शर्मा जी : अरे अगर हम पत्थर पर राम राम लिखकर उसको पानी में डाल देंगे तो वो तैरकर आगे नही चला जायेगा ? गुप्ता जी : हाँ ये तो है । शर्मा जी : चलो तो इस पत्थर पर राम राम लिख दिया है । अब तुम इस पर बैठ जाओ । मैं धक्का देकर तुमको दूसरी तरफ पहुंचा दूंगा । गुप्ता जी : ठीक मैं बैठ जाता हूँ । तुम धक्का दे दो । शर्मा जी : पहले सीट बेल्ट बांध लो । गुप्ता जी : अरे ये कोई बस या कार थोड़े ही है जिस पर सीट बेल्ट बांधी जाये । शर्मा जी : अरे बांध लो एक रस्सी क्या पता तुम पत्थर से गिर जाओ । गुप्ता जी रस्सी बांध लेते हैं और शर्मा धक्का दे देते हैं । गुप्ता जी डूबते हुए चिल्लाते हैं - शर्मा जी बचाओ मैं डूब रहा हूँ । तुम तो कह रहे थे पत्थर तैरेगा । शर्मा जी : चुप कर बे । तुझ जैसे बेवकूफों को रास्ते से हटाने के लिए ही तो धर्म और भगवान का सहारा लिया जाता है । चल अब डूब मूर्ख । पत्त्थर भी कहीं तैरते हैं ........................... अरे भाईयों मेरा एक सवाल है कि ये बन्दर-भालुओं ने कौनसे कान्वेन्ट में पढ़े थे......सोचो?

ब्राम्हणवाद भगाओ, देश को बचाओ........जय मूलनिवासी!!

Monday, November 28, 2016

देश भीषण महंगाई के दौर में प्रवेश कर गया है.

देश भीषण महंगाई के दौर में प्रवेश कर गया है

santosh bhartiyaपुणे के एक एनजीओ की सलाह पर, जो एक इंजीनियर चलाते हैं, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को संभाल रहे नोटों को रद्द करने का फैसला लिया है. हो सकता है यह ख़बर सही हो. इसके लिए मोदी जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने कई कहावतों को एक साथ चरितार्थ कर दिया. मोहम्मद बिन तुग़लक़ का नाम इतिहास में बड़े आदर से लिया जाता है. इसी तरह कालिदास का नाम भी इतिहास में बड़े आदर से लिया जाता है.
मेरी प्रार्थना है कि प्रधानमंत्री मोदी का नाम इतिहास में उस आदर से न लिया जाए, पर कुछ सवाल तो हैं, जो आज प्रधानमंत्री सहित सारी सरकार से पूछना आवश्यक हो गया है. क्या देश के सारे अर्थशास्त्री, देश या विश्‍व की अर्थव्यवस्था को जानने वाले लोग बुद्धिहीन हो गए, जो पुणे के एक एनजीओ, जिसका दावा है कि उसका रिश्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है और देश की अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए जिसने अपने एक इंजीनियर साथी की मदद से देश की अर्थव्यवस्था के संपूर्ण परिदृश्य को बदल दिया.
क्या वो अर्थशास्त्री, जो वित्त मंत्रालय से जुड़े हैं या देश के महान वकील, जो सुप्रीम कोर्ट में अक्सर मुक़दमे जीतते हैं, अरुण जेटली जो आज देश के सबसे बड़े अर्थशास्त्री हैं, वित्त मंत्रालय का भार संभालते हैं, क्या उन्होंने प्रधानमंत्री जी को ये नहीं बताया कि देश का 90 प्रतिशत ब्लैकमनी शेयर्स, सोने के बिजनेस और रीयल इस्टेट के बिजनेस में इन्वॉल्व है. सिर्फ 10 प्रतिशत ब्लैकमनी कैश के रूप में देश में चल रहा है, जिसमें ज्यादातर छोटे और मध्यम दर्जे के व्यापारी और वे सारे लोग, जो इस देश में अपनी सुरक्षा के लिए पचास हज़ार, एक लाख रुपए रखते हैं, ताकि वक्त ज़रूरत में उनके काम आ सके.
मोदी जी के इस क़दम से वो सारे लोग बच गए, जो ब्लैकमनी का संचालन करते हैं, जो समानांतर अर्थव्यवस्था का संचालन करते हैं. अर्थव्यवस्था का संचालन करने वालों का पैसा बेनामी कंपनियों के एकाउंट्स में, बैंक में सुरक्षित है और जो उससे बड़े हैं, उनका सारा पैसा स्विट्जरलैंड, पनामा, मॉरीशस जैसे टैक्स हैवेन और कालेधन के लिए स्वर्ग माने जाने वाले अफ्रीक़ी देशों तथा उन जगहों पर, जो सारी दुनिया के ब्लैकमनीज़ संचालित करने वालों के लिए स्वर्ग है, वहां सुरक्षित है.
देश की ब्लैकमनी या समानांतर अर्थव्यवस्था का संचालन करने वाले डॉलर और पाउंड में डील करते हैं, भारतीय मुद्रा में डील नहीं करते हैं. प्रश्‍न उठता है कि मोदी जी ने इन लोगों के ऊपर हाथ क्यों नहीं डाला? क्या ये पैसा जो देश के कालेधन के 90 प्रतिशत को कंट्रोल करता है, स़िर्फ इसलिए हाथ नहीं डाला कि उसकी मदद आनेवाले चुनाव में कोई एक राजनीतिक दल लेना चाहता है? क्या वित्त मंत्रालय ने इसका अंदाज़ा लगाया है कि दो हज़ार रुपए का नोट, जो अब भारतीय बाज़ार में सरकार द्वारा लाया गया है, वह अगले पांच से दस साल में किस तरह की अर्थव्यवस्था का आधार बनेगा?
क्या हम एक नए इन्फ्लेशन के दौर में प्रवेश कर गए हैं, क्योंकि इन्फ्लेशन का सीधा रिश्ता प्रिंटिंग ऑफ हायर इनोमिनेशन नोट्स और इन्फ्लेशन के बीच है. और हाइपर इन्फ्लेशन बल्कि कहें कि देश इन्फ्लेशन तथा हाइपर इन्फ्लेशन के दौर में प्रवेश कर गया है. अब तक हम जिस विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी से बचते आए हैं, क्या इस ़फैसले ने हमें उस विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी के दौर का अगुआ तो नहीं बना दिया है. एक जानकारी के मुताबिक, अमेरिका हमारी अर्थव्यवस्था को तोड़ने की बहुत दिनों से कोशिश कर रहा था. उसके लिए आश्‍चर्य का विषय था कि कैसे भारत की अर्थव्यवस्था विश्‍वव्यापी आर्थिक मंदी का शिकार होने से बच गई और उसने इस बार हमें समझदारी के साथ तोड़ दिया.
अब तक बचने का एक ही बड़ा कारण था कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को यानी हिन्दुस्तान के लोग अपनी अर्थव्यवस्था को अपनी ताक़त के साथ, अपने सेल्फ गवर्नेंस के तरी़के से संभाल लेते थे. इस फैसले से हम वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ द्वारा निर्देशित अर्थव्यवस्था के एक पिछलग्गू अगुआ बन गए हैं. हमारी अर्थव्यवस्था भी अब विश्‍वव्यापी अर्थव्यवस्था का एक घटिया अंग बन गई है. हम उस मंदी के सबसे सशक्त हिस्सेदार बनकर उभरने वाले हैं. अगर हमने तत्काल करेक्टिव मेजर्स नहीं उठाए या भूल को सुधारने की कोशिश नहीं की, तो हम अमेरिका या यूरोप जैसी आर्थिक मंदी का शिकार होने से बच नहीं पाएंगे.
भारत में काग़ज़ के नोटों पर आधारित जिस ब्लैकमनी की बात या टेरेरिस्ट को जानेवाले पैसे की बात भारत सरकार या प्रधानमंत्री कर रहे हैं, स़िर्फ हम इतना समझना चाहते हैं कि अगर ये पैसा बंद हो जाएगा, तो क्या टेरेरिस्टों के पास बाहर से पैसा आना रुक जाएगा? क्या हमारे यहां हमले रुक जाएंगे? क्या हमारे यहां हथियार बंटने बंद हो जाएंगे? मैं जानता हूं कि इसका उत्तर सरकार हमें नहीं देगी, लेकिन मैं इसका उत्तर देना चाहता हूं कि ऐसा नहीं होगा क्योंकि आतंकवादियों की अर्थव्यवस्था हमारे नोटों से नहीं चलती.
आप जो भी नोट लाएंगे, उनसे हथियार नहीं ख़रीदे जाते. हथियार आते हैं, आप उन हथियारों को रोक नहीं पाते, क्योंकि उन हथियारों को लाने में हमारी ही व्यवस्था के कुछ लोग शामिल हैं. सरकार को जिन चीजों पर चाक-चौबंद होना चाहिए, वहां सरकार निष्क्रिय साबित हो रही है. सरकार स़िर्फ उन सवालों से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है, जो सवाल हिन्दुस्तान के लोगों में विकास और विकास के मॉडल को लेकर हैं, नौकरियों व लोकतांत्रिक व्यवस्था को बदलने की कोशिशों को लेकर हैं, कश्मीर के लोगों को लेकर हैं, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य को लेकर हैं.
जिन वादों के ऊपर मौज़ूदा सरकार आई थी, उनमें से कितने वादे पूरे हुए, इसका कोई लेखा-जोखा न सरकार के पास है और न ही उन अर्थशास्त्रियों के पास, जो सरकार से जुड़े हैं. ढिंढोरची मीडिया के पास इन सवालों के जवाब तो हैं ही नहीं. हम देश में धीरे-धीरे एक अराजकता का माहौल पैदा करने के हिस्सेदार बनते जा रहे हैं.
कहीं ऐसा न हो कि इस फैसले से देश में शादी इंडस्ट्री, खाने-पीने का उद्योग, जिसमें किसान का सामान ख़रीदा और बेचा जाता है, जिसमें छोटे स्तर के काम करने वाले, जिनमें सब्जी, रिक्शे वाले, टैक्सी वाले हैं, जितने मंझोले और छोटे व्यापारी हैं, उनका काम दो साल के भीतर ख़त्म हो जाए. मल्टीनेशनल कंपनियां, जिस मॉल कल्चर को सालों से हिन्दुस्तान में लाने की कोशिश कर रही थीं, उसे एक झटके में ले आया गया है. उस मॉल कल्चर के आने से हमारे देश में करोड़ों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे और उसका परिणाम कहीं बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था के रूप में हमें न देखने को मिले.
आज सबसे ज्यादा परेशान वो लोग हैं, जिनका इस ब्लैकमनी के साम्राज्य से कोई लेना- देना नहीं है, जो अपनी मुसीबत के समय दस-बीस-चालीस हज़ार या एक लाख रुपए अपने घर में रखते हैं बड़े नोटों के रूप में क्योंकि छोटे नोट जगह ज्यादा घेरते हैं, उन पर सरकार ने ये प्रहार किया है. 90 प्रतिशत ब्लैकमनी चलाने वाले जो कुछ लोग हैं, उनके ऊपर सरकार का कोई प्रहार नहीं हुआ.
वो सुरक्षित हो गए और इस समय मुस्कुराते हुए इस देश की राजनीति को सौ प्रतिशत अपने कब्जे में लेने की योजना बनाते हुए शराब की पार्टियां कर रहे होंगे. अगर कहीं ईश्‍वर है तो मेरी उससे प्रार्थना है कि मेरी ये सारी शंकाएं निर्मूल साबित हों और ये चेतावनियां कूड़े के ढेर में चली जाएं. पर अफसोस ऐसा नहीं होने वाला और ज्यादा से ज्यादा स़िर्फ कुछ महीने चाहिए और उन दो महीनों के भीतर इन चेतावनियों के सत्य होने की शुरुआत हो जाएगी, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा.

Sunday, November 27, 2016

आज़ादी के 70 साल बाद हम कहां खड़े हैं?

आज़ादी के 70 साल बाद हम कहां खड़े हैं?

r168602_629756एक बार फिर देश ने स्वतंत्रता दिवस मनाया. वास्तव में स्वतंत्रता के मायने क्या हैं, यह हम सभी को, चाहे वे राजनेता हों, औद्योगिक घरानों के मुखिया हों या सिविल सोसाइटी के लोग हों, सभी को इस प्रश्‍न पर फिर से विचार करना चाहिए. क्या हम उसी राह पर चल रहे हैं, जैसा  संविधान में उल्लिखित है या 1952 से लेकर आज तक संविधान के सभी भाग को धीरे-धीरे विकृत कर रहे हैं? कागजों पर तो हम संविधान के मुताबिक चल रहे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है. उदाहरण के लिए, संविधान में इस बात का उल्लेेख है कि सरकार का चुनाव कैसे होता है और उसके कर्तव्य क्या हैं? सरकार की भूमिका क्या हो, यह भी स्पष्ट है. चुनी हुई सरकार नीतियां बनाए, वह चाहे राजनीतिक हो, आर्थिक या सामाजिक, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से होना चाहिए. इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा व दूसरी सेवाओं के अधिकारी हैं, जो एक कठिन प्रक्रिया के बाद चयनित होते हैं. इन सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से कुशल लोगों का चयन होता है. इन नीतियों के क्रियान्वयन के लिए ये अधिकारी सबसे बेहतर साबित हो सकते हैं, लेकिन क्या उनका सही इस्तेमाल हो रहा है?
नहीं, दुर्भाग्य से जो भी राजनीतिक दल चुनकर आए, उन्होंने छोटे-छोटे मुद्दों पर ही अपनी रुचि दिखाई, न कि बड़े व जरूरी विषयों पर. कोई भी राजनीतिक दल उन आधारभूत विसंगतियों को बदलना नहीं चाहता है, जो समूचे देश में व्याप्त हैं. उदाहरण के तौर पर, जब विभाजन हुआ, तो दुर्भाग्य से जिन्ना ने धर्म के आधार पर विभाजन किया. पाकिस्तान का निर्माण भारत में रह रहे मुस्लिमों के लिए हुआ, लेकिन उसी दिन से, जिस दिन से विभाजन हुआ, यह बात स्पष्ट हो गई थी कि भारत में उससे ज्यादा मुस्लिम रह गए, जितने कि विभाजन के बाद पाकिस्तान गए. यह क्या दर्शाता है और जो मुस्लिम भारत में ही रह गए, उन्होंने यहीं पर रहने को क्यों तरजीह दी? क्योंकि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद ने देश की जनता को यह आश्‍वासन दिया था कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र हो सकता है, लेकिन भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहेगा और सरकार देश के नागरिकों के लिए धर्म को कभी आधार नहीं बनाएगी. धर्म एक व्यक्तिगत मसला है. इसका केवल इतना मतलब है कि आप ईश्‍वर को बस किसी और नाम से याद कर रहे हैं. आप कहीं इसे भगवान कह सकते हैं, कहीं अल्लाह, कहीं जीजस क्राइस्ट, तो कहीं वाहे गुरु. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें किस नाम से बुला रहे हैं, लेकिन क्या हम उस भावना के साथ चल रहे हैं? अगर मैं मुसलमान होता (जो कि मैं नहीं हूं) और भारत में रह रहा होता तो निराश होता क्योंकि देश के महान नेताओं ने जो वादा किया था, उसे बाद की सरकारों ने नहीं निभाया.
हां, यह सही है कि हमें सबने केवल वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया. इस देश की कुल आबादी का 15 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिमों का है, लेकिन उनकी सहभागिता क्या है, यह बड़ा सवाल है? भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में दो प्रतिशत, भारतीय पुलिस सेवा में दो प्रतिशत और कॉर्पोरेट जगत में तो बमुश्किल एक या दो प्रतिशत. फिर उन्हें क्या हासिल हुआ? साफ है कि मुसलमानों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया गया. उन्हें बराबर का अवसर नहीं मिला. उन्हें बेहतर शिक्षा नहीं मिली. ज्यादातर मुसलमान आज भी अनपढ़ हैं, अशिक्षित हैं. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, एक समाजवादी और लोकतांत्रिक देश है. अब यह बेहद जरूरी है कि मौजूदा सरकार संविधान में उल्लिखित नीति निर्देशक सिद्धांतों का पालन करे, जिसकी इस समय पूरी अनदेखी की जा रही है. यह मायने नहीं रखता कि सरकार किस दल की है? कोई भी सरकार हो, हमें संविधान में उल्लिखित सिद्धांतों पर चलना ही होगा. सरकार को गरीबों के हित में सोचना होगा. छात्रों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के हितों के बारे में सोचना होगा. कॉर्पोरेट तरीके से चलकर यह हासिल नहीं हो पाएगा.
गरीबी के बारे में जो आंकड़े हैं, वे शर्मनाक हैं. वैसे, आंकड़े महत्वपूर्ण नहीं हैं, लेकिन जरूरी यह है कि हमें गरीबों के लिए कुछ करना चाहिए. मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रम न तो व्यवस्थित हैं और न ही उन्हें सही ढंग से संचालित किया जा रहा है. इन योजनाओं के नाम पर बेशुमार पैसा खर्च हो रहा है. बेशक, ये योजनाएं सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन मनरेगा और खाद्य सुरक्षा विधेयक में जिस तरह से पैसा बहाया जा रहा है, उसके लिए बड़े आर्थिक आधार की जरूरत है और इसके बिना इसे लागू नहीं किया जा सकता. प्रधानमंत्री के लिए यह सबसे जरूरी वक्त है कि वे एक व्यावहारिक नीति बनाएं. यह भी सोचना होगा कि हम किस तरह से सबसे निचले तबके या गरीब तबके को मध्यम वर्ग की श्रेणी में ले आएं. अमीर और अमीर हो रहे हैं, यह कोई समस्या नहीं है, लेकिन गरीब अब भी वहीं है, यह समस्या है. ऐसे समय में संविधान के अनुपालन की बेहद जरूरत है.

केजरीवाल ने नोटबंदी को बताया 'बड़ा घोटाला', कहा- बीजेपी ने अपने 'दोस्तों' को पहले ही आगाह कर दिया

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केजरीवाल ने नोटबंदी को बताया 'बड़ा घोटाला', कहा- बीजेपी ने अपने 'दोस्तों' को पहले ही आगाह कर दिया

खास बातें

  1. सीएम केजरीवाल ने नोट बंदी को लेकर पीएम मोदी पर प्रहार किया
  2. उन्होंने सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की
  3. सरकार के इस कदम से कालेधन का पता नहीं चलने वाला : सीएम केजरीवाल
नई दिल्ली: देश में 500 और हजार रुपये के नोट बंद करने के सरकार के फैसले को वापस लेने की मांग करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने अपने दोस्तों को नोटबंदी को लेकर पहले से ही आगाह कर दिया था.

सीएम केजरीवाल ने संवाददाता सम्मेलन में आरोप लगाया कि नोटबंदी के नाम पर देश में 'बड़े घोटाले' को अंजाम दिया गया. सरकार ने कुछ लोगों को पहले ही आगाह कर दिया था. उन्होंने अपने दावे को सही साबित करने के लिए कहा कि बीजेपी की पंजाब शाखा के अध्यक्ष संजीव कम्बोज मोदी की घोषणा से कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर 2,000 रुपये के नए नोटों के साथ दिखे थे.

केजरीवाल ने केंद्र के इस फैसले को 'काला बाजारी करने वाले लोगों' की बजाय आम आदमी की 'छोटी बचत' पर ''सर्जिकल स्ट्राइक' बताया. उन्होंने कहा, 'ये मोदी जी का सर्जिकल स्ट्राइक काले धन के ऊपर नहीं, आम जनता के बरसों से जोड़े हुए सेविंग्स पर स्ट्राइक्स है. ये जो अफरा-तफरी मची है, उससे किसी कालेधन का पता नहीं चलने वाला. इससे काले धन की बस जगह बदल जाएगी.'

आम आदमी पार्टी के प्रमुख केजरीवाल ने कहा, नोट बदलने और एटीएम से पैसे निकालने के लिए कौन लोग लाइन में लगे हैं?.. वो आम जनता है. उन्होंने आरोप लगाया कि जान-बूझकर यह क्राइसिस पैदा की गई, जिससे लोग दौड़े-दौड़े सरकार के दलालों के पास भागें.

इसके साथ ही उन्होंने कहा, 'पिछले तीन महिनों के बैंकों में हजारों करोड़ रुपये जमा कराए गए. बैंक में जमा कराई गई इतनी बड़ी रकम से शक पैदा होता है.'

केजरीवाल ने कहा, पिछली तिमाही से पहले बैंक जमा निगेटिव में था, उसमें कोई बढ़ोतरी नहीं देखी गई. लेकिन फिर यह अचानक से बढ़ गया. ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हुआ. उन्होंने साथ ही एक समाचार चैनल की रिपोर्ट दिखायी जिसमें जुलाई-सितंबर तिमाही में बैंकों में पैसे जमा करने में तेजी आने का दावा किया गया और कहा गया कि उस अवधि से पहले बैंकों में 'काफी कम' पैसे जमा थे. उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी ने जब मंगलवार को 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा की, उससे पहले ही बीजेपी और उसके दोस्तों को बता दिया गया था और उन्होंने अपनी नकदी जमा करा दी.

केजरीवाल ने कहा, 'काले धन के नाम पर देश में एक बड़ा घोटाला हो रहा है. एटीएम में पैसा ना होने के कारण लोग परेशान हैं. सुबह से ही लोगों को बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ रहा है.'

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा, 'प्रधानमंत्री के अनुसार काले धन की क्या परिभाषा है? देश के शीर्ष उद्योगपति - अंबानी, अडाणी, शरद पवार, सुभाष चंद्रा और बादल (परिवार) ने काला धन जमा किया हुआ है या फिर किसानों, रिक्शाचालकों, दुकानदारों और मजदूरों जैसे आम लोगों ने?'

उन्होंने कहा, 'बीजेपी को उन लोगों की सूची का खुलासा करना चाहिए, जिन्हें उसने प्रधानमंत्री की घोषणा से काफी पहले इसकी जानकारी दे दी थी और उन्होंने इस वजह से अपने काले धन को ठिकाने लगा दिया.' केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी को उन दलालों की भी सूची जारी करनी चाहिए जो आम लोगों के अवैध नोट बदलवाने के लिए कमीशन ले रहे हैं, स्थिति का फायदा उठा रहे हैं और वे जो पैसे इकट्ठा कर रहे हैं, वे कहां जा रहे हैं?' 

सरकार वही, दलाल वही स़िर्फ हथियार का नाम बदला है.

सरकार वही, दलाल वही स़िर्फ हथियार का नाम बदला है

चौथी दुनिया ने हथियारों की ख़रीदादारी में हथियार माफिया के वर्चस्व का एक और ख़ुलासा 17 अगस्त 2015 के अंक में किया था. हमने ये ख़ुलासा किया था कि इज़राइल से स्पाइक मिसाइल ख़रीदने में हथियार के दलाल किस तरह सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. हमने उन हथियार के दलालों को बेनक़ाब किया था, जो रक्षा मंत्री से ज्यादा ताक़तवर हैं. जिनकी हां के बिना भारत सरकार कोई हथियार नहीं ख़रीद सकती.हमने हथियार के उन दलालों के नाम बताए थे,  उनकी क्रार्य प्रणाली का ख़ुलासा किया था. इस बार की लीड-स्टोरी में प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने एस-400 की ख़रीददारी में हुए घपले का ख़ुलासा किया है, जबकि 17 अगस्त 2015 का ख़ुलासा स्पाइक मिसाइल को लेकर था. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही मामलों के केंद्र में रायनमेटल नामक कंपनी ही है. मतलब, मंत्री वही, सरकार वही, अधिकारी वही, दलाल वही और हेराफेरी भी वही. बदला तो स़िर्फ हथियार का नाम. रायनमेटल का कारनामा समझने के लिए हम यहां 17 अगस्त 2015 की रिपोर्ट का कुछ अंश पेश कर रहे हैं.
pakistanभारत में हथियार लॉबी बहुत सक्रिय और संगठित तरी़के से काम करती है. उसके आगे सरकार की भी नहीं चलती. वह पैसे के दम पर अपने हिसाब से सौदा तय करती है. ऐसा लगता है, मानो रक्षा मंत्रालय भारतीय सेना के लिए सामान ख़रीदने के लिए नहीं, बल्कि हथियार के दलालों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए काम करता है. भारत में हथियार लॉबी बहुत बड़ी नहीं है. पांच से दस लोगों का एक कॉकस है, गैंग है. उसके सबसे बड़े और किंग-पिन का नाम सुधीर चौधरी है, जो इंग्लैंड में रहकर सब कुछ ऑपरेट करता है. बराक मिसाइल की आपूर्ति में हुए घोटाले में भी उसका नाम आया था, लेकिन सीबीआई ने केस बंद कर दिया.
सीबीआई ने कहा कि वह उसके ख़िलाफ़ कोई सुबूत एकत्र नहीं कर सकी. मीडिया भी चौधरी के बारे में नहीं बताता कि उसके पारिवारिक रिश्ते किन-किन पार्टियों के किन-किन नेताओं के साथ हैं. इसके अलावा भी कुछ और नाम हैं, जिनका ख़ुलासा अलग-अलग हथियार सौदों में हुआ है, जिनमें सुरेश नंदा, रवि ॠषि और अभिषेक वर्मा शामिल हैं. उक्त सारे लोग मिल-जुल कर काम करते हैं.
उनके साथ सेना एवं रक्षा मंत्रालय के अधिकारी, विभिन्न पार्टियों के नेता और पत्रकार मिल-जुल कर काम करते हैं. यह एक ऐसा गैंग है, जो हर सौदे पर मुनाफ़ा कमाता है. इससे कोई फ़़र्क नहीं पड़ता कि सरकार किस पार्टी की है और मंत्री कौन है. मज़ेदार बात यह है कि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में इसे सारे लोग बख़ूबी जानते हैं.
अब स्पाइक मिसाइल की बात करते हैं. जर्मनी की एक हथियार कंपनी है, रायनमेटल. इसे ब्लैक-लिस्ट कर दिया गया है. लेकिन, इस कंपनी की देश की हथियार लॉबी के साथ साठगांठ है. यह उन्हें पैसा देती है. भारत के कई रिटायर सैन्य अधिकारी रायनमेटल कंपनी के कंसल्टेंट हैं, उसके एडवाइज़री पैनल में हैं. यह कंपनी भारत में ख़ूब पैसा ख़र्च करती है. सरकार ने जब एंटी-टैंक मिसाइल ख़रीदने का फैसला किया, तो यह कंपनी सीधे तौर पर इस सौदे में हिस्सा नहीं ले सकती थी.
मज़ेदार बात यह है कि जिस यूरोस्पाइक नामक कंपनी के ज़रिये इस मिसाइल की मार्केटिंग की जाती है, उसमें रायनमेटल कंपनी की 40 फ़ीसद हिस्सेदारी है. कहने का मतलब यह कि तकनीकी तौर पर इसे इज़राइल की राफेल कंपनी बनाती है, लेकिन इसे बेचने में रायनमेटल की हिस्सेदारी है. सीधे शब्दों में अगर समझा जाए, तो रायनमेटल ख़ुद इसकी सप्लाई न करके इज़राइल की राफेल के ज़रिये सप्लाई कराएगी.
रायनमेटल एक हथियार कंपनी है, जिसका पैसा दुनिया की विभिन्न कंपनियों में लगा हुआ है. सरकार को पता लगाना चाहिए कि इज़राइल की राफेल कंपनी के साथ रायनमेटल का क्या रिश्ता है? बताया जाता है कि राफेल के 40 फ़ीसद शेयर रायनमेटल के पास हैं. अगर हमें रायनमेटल से ही मिसाइल ख़रीदनी है, तो यह सौदा बैन हटाकर सीधे उसी से किया जा सकता है. इससे पैसे की बचत हो सकती है.
जब भी कोई हथियार या अन्य सामान ख़रीदा जाता है, तो सरकार पहले अपनी इच्छा जताती है और फिर अलग-अलग कंपनियों से प्रस्ताव आते हैं, जो प्रस्ताव सही होता है, उसे मंज़ूर कर लिया जाता है. यह सौदा सरकार मेक इन इंडिया के तहत करना चाहती है. रक्षा मंत्रालय ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि राफेल का रायनमेटल से क्या रिश्ता है? अगर राफेल से रायनमेटल का कोई रिश्ता है और उसी कंपनी से मिसाइल ख़रीदना तय है, तो उसके ब्लैक-लिस्ट होने का कोई मतलब नहीं है.
सवाल यह है कि रक्षा मंत्रालय ने इस तथ्य की तरफ़ ध्यान क्यों नहीं दिया? किस लॉबी के दबाव में यह फैसला लिया गया? इस फैसले में कौन-कौन लोग शामिल हैं? क्या इस सौदे के लिए दलाली के रूप में पैसे दिए गए? इन सारे सवालों का जवाब सरकार के पास होना चाहिए और उसे देश की जनता को इसके बारे में बताना चाहिए. मज़ेदार बात यह है कि उक्त सारे फैसले मोदी सरकार बनने के बाद लिए गए हैं.
इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस सरकार ने यह फैसला लिया था. यह सौदा मेक इन इंडिया के तहत होना है. मतलब यह कि इसे बनाने का काम भारत में किया जाएगा. तो अब सवाल यह है कि इसे कौन बनाएगा? क्या इज़राइल की कंपनी भारत में मिसाइल बनाने की यूनिट लगाएगी या किसी और निजी कंपनी को इसकी इजाज़त दी जाएगी?

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ग़ौर करने वाली बात यह है कि भारत सरकार की अपनी एक कंपनी है, जहां पहले से मिसाइल बनाई जा रही है. इसका नाम है, भारत डायनामिक्स लिमिटेड. वह पिछले कई सालों से मिसाइल बनाने का काम सफलता से कर रही है. अगर भारत में ही स्पाइक मिसाइल बननी है, तो उसे भारत डायनामिक्स के ज़रिये बनाया जा सकता है. उसके पास अनुभवी लोग हैं, टेक्नोलॉजी है, इंफ्रास्ट्रक्चर है.
भारत डायनामिक्स के पास मिसाइल बनाने का पूरा सेटअप है और सबसे बड़ी बात यह कि वह सरकारी है और यहां से निर्मित मिसाइल के किसी दूसरे देश या संगठन को बेचने का ख़तरा भी नहीं है. क्या बन रहा है और कितनी संख्या में बनाया जा रहा है, सब कुछ सरकार के नियंत्रण में रहेगा. यह सस्ता भी पड़ेगा. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि भारत डायनामिक्स के प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय ने ग़ौर भी नहीं किया. उसकी जगह रक्षा मंत्रालय ने बाबा कल्याणी नामक एक छोटी सी कंपनी को हरी झंडी दे दी. इजराइल की राफेल कंपनी अब बाबा कल्याणी के साथ ज्वाइंट वेंचर में भारत में स्पाइक मिसाइल बनाएगी.
फिर वही सवाल कि इस कंपनी पर रक्षा मंत्रालय क्यों मेहरबान हुआ? इस कंपनी का भारत की हथियार लॉबी से क्या रिश्ता है? क्या मोदी सरकार हथियार के दलालों को हथियार निर्माता बनने में मदद कर रही है? यह सवाल इसलिए भी उठाना ज़रूरी है, क्योंकि इस कंपनी के पास मिसाइल बनाने का न तो अनुभव है, न उसके पास लोग हैं, न उसके पास टेक्नोलॉजी है और न भारत में उसका इंफ्रास्ट्रक्चर है.
मतलब यह कि बाबा कल्याणी को सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में तरह-तरह की मदद करेगी. भारत में कंपनी स्थापित करने में जो ख़र्च आएगा, वह भी मिसाइल की क़ीमत में जुड़ेगा. कोई भी कंपनी अपना नुक़सान करके मेक इन इंडिया में क्यों इंवेस्ट करेगी? यही वजह है कि स्पाइक मिसाइल की क़ीमत दोगुनी हो गई और नई-नई शर्तें सामने आ गईं. अगर उसकी बातें मान ली गईं, तो शायद सरकार जवाब देने लायक़ नहीं बचेगी.