सुरेश वाडकर

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Tuesday, July 19, 2016

भारत के बारे में ये 50 रोचक और ज्ञानवर्धक तथ्‍य जानकर आपको अपने देश पर गर्व होगा

भारत के बारे में ये 50 रोचक और ज्ञानवर्धक तथ्‍य जानकर आपको अपने देश पर गर्व होगा

Source : http://www.sewerhistory.org/
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भारत ने अपने आखिरी 100000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।
जब कई संस्कृतियों में 5000 साल पहले घुमंतू वनवासी थे, तब भारतीयों ने सिंधु घाटी (सिंधु घाटी सभ्यता) में हड़प्पा संस्कृति की स्थापना की।
भारत विश्‍व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्‍व का सातवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्‍यताओं में से एक है।
सांप सीढ़ी का खेल तेरहवीं शताब्‍दी में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्‍व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्‍तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्‍छे काम लोगों को स्‍वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकि बुरे काम दोबारा जन्‍म के चक्र में डाल देते हैं।
Source : indiatvnews.com
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विश्‍व का सबसे प्रथम विश्‍वविद्यालय 700 बी सी में तक्षशिला में स्‍थापित किया गया था। इसमें 60 से अधिक विषयों में 10,500 से अधिक छात्र दुनियाभर से आकर अध्‍ययन करते थे। नालंदा विश्‍वविद्यालय चौथी शताब्‍दी में स्‍थापित किया गया था जो शिक्षा के क्षेत्र में प्राचीन भारत की महानतम उपलब्धियों में से एक है।
नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। दुनिया का सबसे पहला नौवहन संस्‍कृ‍त शब्‍द नव गति से उत्‍पन्‍न हुआ है। शब्‍द नौ सेना भी संस्‍कृत शब्‍द नोउ से हुआ।
निश्‍चेतक का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्‍सा विज्ञान में भली भांति ज्ञात था। शारीरिकी, भ्रूण विज्ञान, पाचन, चयापचय, शरीर क्रिया विज्ञान, इटियोलॉजी, आनुवांशिकी और प्रतिरक्षा विज्ञान आदि विषय भी प्राचीन भारतीय ग्रंथों में पाए जाते हैं।
भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर का निर्यात किया जाता है।
ज्‍यू और ईसाई व्‍यक्ति भारत में क्रमश: 200 बी सी और 52 ए डी से निवास करते हैं।
Source : http://www.interessantes.at/
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विश्‍व में सबसे बड़ा धार्मिक भवन अंगकोरवाट, हिन्‍दु मंदिर है जो कम्‍बोडिया में 11वीं शताब्‍दी के दौरान बनाया गया था।
सिक्‍ख धर्म का उद्भव पंजाब के पवित्र शहर अमृतसर में हुआ था। यहां प्रसिद्ध स्‍वर्ण मंदिर की स्‍थापना 1577 में गई थी।
भारत द्वारा श्रीलंका, तिब्‍बत, भूटान, अफगानिस्‍तान और बांग्‍लादेश के 3,00,000 से अधिक शरणार्थियों को सुरक्षा दी जाती है, जो धार्मिक और राजनैतिक अभियोजन के फलस्‍वरूप वहां से निकल गए हैं।
माननीय दलाई लामा तिब्‍बती बौद्ध धर्म के निर्वासित धार्मिक नेता है, जो उत्तरी भारत के धर्मशाला में अपने निर्वासन में रह रहे हैं।
युद्ध कलाओं का विकास सबसे पहले भारत में किया गया और ये बौद्ध धर्म प्रचारकों द्वारा पूरे एशिया में फैलाई गई।
योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है।
दिल्ली और कोलकाता के बीच के समय में 1 घंटे का फर्क है, हालांकि पूरे भारत का समय क्षेत्र एक ही माना जाता है। अतंर्राष्ट्रीय मानक समय के अनुसार भारत का समय ग्रीनविच मध्याहन समय (GMT) से साढे पाँच घण्टे आगे है।
Source : .sulekhalive.com
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शतरंज जैसे प्रसिद्ध खेल का आविष्कार भी भारत में ही हुआ “शतरंज” शब्द मूल संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है चतुरंग “एक सेना के चार सदस्यों का समूह” जिसमें ज्यादातर हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सैनिकों होते हैं।
भारतीय गणितज्ञ श्रीधराचार्य ने 11 वीं शताब्दी में द्विघात समीकरण दिये। प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने ही विश्व में अंकों के बङे रूप को ‘घात’ के रूप में लिखने के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। भारत में ही दशमलव और उसका उपयुक्त स्थान पर प्रयोग करने का तरीका भी 100वीं ई.पू. में विकसित हुआ था। भारतीय गणितज्ञों ने ही दस की घात तिरपन तक की गणना प्राचीन काल में ही कर ली थी जबकि आधुनिक वैज्ञानिक युग के वैज्ञानिक अभी तक दस की घात बारह से अधिक अंक की गणना नहीं कर पाए हैं।
भारत के बुधायन ने पहली बार गणना करके “पाई” का सही मान छठवीं शताब्दी में ही निकाला और इसके सिद्धांत को समझाया, जिसे आज हम पाईथॉगोरस प्रमेय के नाम से जानते हैं जो कि यूरोपीय गणितज्ञों ने काफी बाद में सीखा।
भारत के ही खगोलशास्त्री भास्कराचार्य ने शुद्ध गणना करके विश्व को बता दिया था कि पृथ्वी अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य का एक चक्कर 365.258756484 दिनों में पूरा करती है।
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भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक सुश्रुत को ‘शल्य चिकित्सा का जनक’ माना जाता है। इन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 2600 साल पहले मोतियाबिंद, कृत्रिम अंगों, शल्य चिकित्सा से बच्चा पैदा करना, मूत्राशय की पथरी, प्लास्टिक सर्जरी और मस्तिष्क की शल्य चिकित्सा जैसे जटिल ऑपरेशन किये। माना जाता है कि भारतीय चिकित्सक प्राचीन काल से ही निश्चेतकों से भली भाँति परिचित थे इसके अलावा प्राचीन भारतीय ग्रंथों में शरीर
रचना विज्ञान, भ्रूण विज्ञान, पाचन, उपापचय, शरीर विज्ञान, आनुवांशिक रोगों और प्रतिरक्षा की विस्तृत जानकारी भी पायी जाती है।
समुद्र यात्रा एवम् समुद्र यात्रा की कला की उत्पत्ति 6000 वर्ष पहले सिंध नदी क्षेत्र से हुई। ‘नेविगेशन’ शब्द की उत्पत्ति भी संस्कृत के मूल शब्द ‘नवगति’ से हुई जबकि ‘नेवी’ शब्द की उत्पत्ति भी संस्कृत के शब्द ‘नाव’ से हुई।
धर्म क्षेत्र – दुनिया में भारत सभी धर्मों का समान रूप से पालन करने वाला देश है। विश्व स्तर पर भारत ने हर बङे धर्म का प्रतिनिधित्व किया है। यहाँ पर हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिक्ख धर्म का उदय भी यहीं हुआ है। भारत में जन्में चार धर्मों में हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवम् सिक्ख धर्म के अनुयायियों की मात्रा संसार की कुल आबादी का 25 प्रतिशत भाग है जबकि इस्लाम भारत और दुनिया का दूसरा सबसे बङा धर्म है।
यहाँ पर तीन लाख से अधिक ऐसी मस्जिदें हैं जिनमें हर रोज़ नमाज़ अदा होती है। जिनकी संख्या विश्व में किसी भी मुस्लिम देश के मुकाबले अधिक है।
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भारत में राजा चोल के शासनकाल के दौरान (1004 ई. और 1009 ई. के बीच) दुनिया का सबसे पहला ग्रेनाईट मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित प्रसिद्ध बृहदेश्वर मंदिर के रूप में जाना जाता है। इस भव्य मंदिर का शिखर ग्रेनाइट के एक 80 टन के टुकड़े से बना है। इस मंदिर के निर्माण में पांच साल का समय लगा था।
10वीं सदी में बना तमिलनाडु का तिरुपति मंदिर दुनिया का सबसे बङा धार्मिक स्थल माना जाता है जहाँ पर प्रतिदिन 30 हजार से भी अधिक लोग इस मंदिर परिसर में दर्शन के लिए आते हैं तथा प्रतिदिन दिन भर में लगभग रू.3 करोङ का दान एकत्र हो जाता है। इस प्रकार भगवान विष्णु को समर्पित भारत का यह मंदिर रोम व मक्का के धार्मिक स्थलों से भी बङा है।
महाकुंभ मेंला – यह हिन्दुओं का सबसे बङा धार्मिक समारोह है जो कि प्रत्येक 12 वर्ष के बाद आता है। इस अवसर पर धर्म लाभ उठाने के लिए कई लाख लोग समारोह स्थल पर एकत्र होते हैं तथा पवित्र नदी में स्नान करते हैं।
कमल का फूल हिन्दुओं और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र है। दिल्ली में सफेद संगमरमर से बना 27 पंखुडियों वाला विशाल कमल मंदिर है जिसका निर्माण बहाई समुदाय के लोगों द्वारा करवाया गया है। भारत में गेंदें का फूल अच्छे भाग्य और सुख का प्रतीक माना जाता है। इसका प्रयोग हिन्दू परिवारों में विवाह के समय सजावट के लिए किया जाता है।
बरगद और अंजीर के पेङ को भारत में अमरता का सूचक माना जाता है। कई भारतीय मिथकों और किंवदंतियों में कहा गया है कि भारत के कुछ पेड़ है जो जीवनदायनी हैं और इन्हें उगाने की आवश्यकता कम ही होती है क्योंकि ये स्वतः ही उग जाते हैं।
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नृत्य भारत की सबसे उच्च विकसित कला रही है यह आदि काल से मंदिरों के भीतर पूजा का अभिन्न हिस्सा था। यह अपने अर्थपूर्ण भाव-भंगिमाओं के लिए उल्लेखनीय है।
भारत में दुध की स्थिति काफी अच्छी है। यहाँ के ग्रामीण समुदाय काफी हद तक दुग्ध उत्पादन एवं उसके विपणन पर निर्भर हो कर अपनी आजीविका चला रहे हैं। इस समय भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है।
भारत 17वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासन काल तक दुनिया का सबसे अमीर देश था। भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर एक समुद्री नाविक क्रिस्टोफर कोलम्बस ने भारत आने का समुद्री मार्ग खोजा, तो गलती से उसने अमेरिका की भी खोज कर डाली।
भारत में बना बेलीपुल विश्व का सबसे ऊंचा पुल है। यह द्रास और हिमालय पर्वतों में सुरु नदियों के बीच लद्दाख घाटी में स्थित है। जिसे भारतीय सेना द्वारा अगस्त 1982 में बनाया गया था। हिमालय मूल रूप से संस्कृत भाषा के ‘हिम’ तथा ‘आलय’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है बर्फ का घर। भारत के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत श्रृंखला 1500 मील में फैली हुई है तथा वैज्ञानिको का मानना है कि यह पर्वत श्रृखला धीरे धीरे लम्बे समय से लगभग एक इंच (2.5 सेमी) प्रत्येक वर्ष बढ़ रही है। हिमालय क्षेत्र में कई प्राचीन भारतीय मठ पाए जाते हैं जो इन पहाड़ों की भव्यता में बसे हैं।
भारत विश्व में राजमा और छोले के रूप में सूखे बीजों व मेवों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यही नहीं केले के निर्यात में भी भारत दुनिया के अग्रणी देशों में है
बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग-अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।
source : tumblr.com
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भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (598-668) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।
भारत के बंगलुरु नगर में 2,500 से अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों में 26,000 से अधिक कंप्यूटर इंजीनियर काम करते हैं।
भारत में बंदरों की गिनती 5 करोड़ है.
भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की 30% चाय उतपादित होती है जिसमें से 25% यही उपयोग की जाती है।
दुसरे देशों में रहने वाले भारतीय 1 लाख करोड़ अमरीकी डालर हर साल कमाते हैं जिसमें से 30 हजार करोड़ बचाकर वे भारत भेज देते हैं।
भारत विश्व में सबसे अधिक डाकघरों वाला देश है। इतने डाकघर संसार के किसी भी ओर देश में नहीं हैं।
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वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।
कुंग फू के जनक तत्मोह या बोधिधर्म नामक एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो 500 ईस्वी के आसपास भारत से चीन गए।
जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वारा 1724 में बनाई गई जंतर मंतर संसार की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।
जैसलमेर संसार का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है जिसमें शहर की लगभग 25 प्रतीशत आबादी ने अपना घर बना लिया है।
भारत, पाकिस्तान, फीजी, मारिशस, सूरीनाम और अरब देशों तक फैली हिंदी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
विश्व में 22 हजार टन पुदीने के तेल का उत्पादन होता है, इसमें से 19 हजार टन तेल अकेले भारत में निकाला जाता है।
1896 तक भारत हीरों का एक मात्र स्त्रोत था और आधुनिक समय में हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।
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श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।
आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे ,आरंभिक चिकित्सा शाखा है। इस शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।
पेंटियम चिप का आविष्कार ‘विनोद धाम’ ने किया था। (आज दुनिया के 90% कम्प्युटर इसी से चलते हैं)
सबीर भाटिया ने हॉटमेल बनाई. (हॉटमेल दुनिया का न.1 ईमेल प्रोग्राम है)
अमेरिका में 38% डॉक्टर भारतीय हैं.
अमेरिका में 12% वैज्ञानिक भारतीय हैं और नासा में 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं.
माइक्रोसॉफ़्ट के 34% कर्मचारी, आईबीएम के 28% और इंटेल के 17% कर्मचारी भारतीय हैं.
आधुनिक संख्या प्रणाली की खोज भारत द्वारा की गयी है. आर्यभट्ट ने अंक शून्य का आविष्कार किया था. विश्व में उपयोग की जाने वाली आधुनिक संख्या प्रणाली को भारतीय अंको का अंतरराष्ट्री रूप कहा जाता है.
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन इतना प्रसाद बँटता है कि 500 रसोइए और 300 सहयोगी रोज़ काम करते हैं।
भारत की फिल्म इंडस्ट्री विश्व की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है।
भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोग करोड़पति हैं।

ये पढो अंग्रेजी का झूठा इतिहास..

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इसे पूरा पढ़ने का सब्र रखें, और अपने आने वाली पीढ़ी को सच्चाई से रूबरू कराएं
हमे जो झूठ विरासत में मिला, वो झूठ से आने वाली पीढ़ी को आज़ाद कराएं
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हारा हुआ मनुष्य अपशिष्ट भी खाने को विवश होता है …विजयी के सामने अपने घुटने टेक उसकी हर अपमानजनक धौंस को पीने को विवश होता है… उसके हर झूठ हर गन्दगी को सर पर ओढ़ने को मजबूर होता है, प्राण को बचाने कीकीमत पर वो अपना सब कुछ दांव पर रख देता है I तलवार सच तो काटकर दफ़न कर देती है !!
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आजतक भारतीयो को इतिहास में पढ़ाया गया है और आज भी पढ़ाया जा रहा है कि ग्रीक हमलावर सिकंदर या अलक्षेन्द्र ने भारतीय सीमान्त राजा पुरु या पोरस को हरा दिया और फिर उससे पूछ कि बोलो तुम्हारे साथ क्या सलूक किया जाये, तो पोरस ने जवाब दिया कि “वही जो एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है”!!
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बड़े कमाल की बात है, मैसेडोनिया का यह अत्यंत महत्वाकांक्षी शासक जिसने अपने पिता फिलिप्स द्वितीय तक को, जिसने अपनी पांचवी रानी ओलम्पिया के पुत्र के लिए समूचे विश्व का सपना देखा था, भरी सभा में (पौसैनियस द्वारा) मरवा डाला था,…
उस पिता को जिसने आठ रानियों के कई पुत्रो में मात्र अलक्षेन्द्र के लिए महास्वप्न देखा.. वो पुत्र जो विश्वप्रसिद्ध शिक्षकों अरस्तू, प्लेटो, इत्यादि द्वारा शिक्षित हुआ था, जिसने 16 वर्ष कि उम्र में ही युवराज बन, थ्रेस में खून कि नदियां बहा अपना साम्राज्य मजबूत बनाया,
जिसने ग्रीस की प्राचीन महान सभ्यता और यूनानी नस्ल को विध्वंस करने में जरा भी शिकन नहीं दिखायी I वो जिसने परसिया या पारशीय राष्ट्र या फारस को वीभत्स रूप में विध्वंस किया, जिसने एशिया माइनर और मिश्र में अपने झंडे गाड़े और जो तात्कालिक विश्व के महानतम व सर्वाधिक ऐश्वर्यवान साम्राज्यों के समूह महा-राष्ट्र यानि राष्ट्रो के महाराष्ट्र —
भारत वर्ष को पूरी लालसा से लीलने के लिए ही अपनी राजधानी पेल्ला, मैसेडोन से सिंधु की तरफ चला था .. उसने बैक्ट्रिया की ईंट से ईंट बजा दी .. बस सामने सिन्दुस्थान या भारतवर्ष ही था उसके विजय के लिए …
फिर क्या हुआ ऐसा? वो सिकंदर, जिसने पारसियों की दस लाख की पैदल सेना को कुछ हजार सैनिक खोकर और यूनानियों की 20000 की सेना को 120 सैनिक खोकर ही प्राप्त कर लिया था ..वो, जिसके जैसा रक्त पिपासु कम से कम उसके देश के आसपास तो नहीं ही था, अपनी यूनानियों, मिस्रियों, बाल्कन (वाह्लीक), इलियरिन लडाको से भरी विशाल सेना से लैस यह अतिअकांक्षी आक्रांता, कैसे सिंधु नदी पार कर भारतवर्ष की भूमि पर उतरते ही अचानक बदल गया ?
यदि ऐसी सेना जिसने मैसेडोन यानि आज का इटली से लेकर सिंधु नदी या आज के पाकिस्तान तक अपनी सल्तनत बिछायी तो फिर अचानक ही कैसे भारत के एक छोटे से राजा पर मेहरबान हो दयालुता से अभिभूत हो अपने देश वापस चला गया ? वो महान आक्रान्ता, जिसने आँख और हाथ खोलते ही 16 साल के उम्र से मानवी सिरो को धड़ से अलग करने का ही काम किया,
अचानक कैसे 26 वर्ष की उम्र में साधू बन अपने देश को चला गया? क्यों नहीं आज पूरा भारत यूनानी भाषा बोलता है और कच्छा पहनता है? वो सिकंदर जिसकी घुड़सवार सेना विश्व की सबसे खूंख्वार सेना थी, जिसने भारत वर्ष के सीमावर्ती प्रदेशो में अभिसार को तटस्थ बना अम्भी को पूर्व राज्य का लालच दे एकमात्र भारतीय शूरवीर राजा पुरु को हराकर भारतभूमि पर कब्ज़ा करने का सपना संजोया था, ऐसा ह्रदय परिवर्तन कैसे हुआ उसका?
क्या गंगा किनारे शीर्षासन मुद्रस्थ हिन्दू साधू की संसार की मोहमाया त्यागने की घटना ने उसको बदल दिया? आखिर क्यों राजा पुरु को हराने के बाद उस महान सिकंदर का मन पुरु की बात “मेरे साथ वो व्यव्हार करो जो एक राजा दुसरे राजा के साथ करता है” मानने को कर गया?
हमारी हर इतिहास की पुस्तक इसी प्रकार की कहानियां हमें सिखाती रहती हैं .. हम भी सिकंदर को सिकंदर महान कहते हैं ..क्यों?!
मालूम नहीं … हम पूछते भी नहीं. …
1300 वर्षों के मुगलई और अंग्रेजी शासन ने हमारी बुद्धि भी कुंद कर दी …
यूनान या यवनदेश, जिससे उत्पन्न हुआ आजका पश्चिमी समाज और खासकर अंग्रेजो का खड़ा किया गया झूठा वैश्विक साम्राज्य अपने को मानता है, वास्तव में मेडिटेरेनियन या “मध्य-धरातल” सागर के किनारे बसा ये छोटा सा जनसमुदाय भारतवर्ष से बाह्य सीमा पर स्थित म्लेच्छ राज्यों(भारतीय प्राचीन साहित्य में) में आता था ..
वास्तव में इन स्थानो और आसपास के स्थानो को भारतीय आसुरी राज्य कहते थेI अलक्षेंद्र, मैसेडोन के सक्षम शासक का अत्यंत महत्वकांक्षी पुत्र था ..वह निस्संदेह कुशल लडाका था पर ये भी है के उसे पहले से ही एक बड़ा साम्राज्य विरासत में मिला था और खुद सिकंदर अत्यंत दुर्बुद्धि और आत्मकेंद्रित युवा था और इसी के कारन उसका वंश भी अपना राज्य उस सीमा तक बढ़ाया पाया I वह साम्राज्य, जो उनके स्वयं के लिए तो कलपनातीत था पर उन्हें विश्व के अधिकांश तात्कालिक विश्व पर स्थित हिन्दू साम्राज्य कि कोई जानकारी नहीं थीI
हो भी नहीं सकती थी I यवन भौगोलिक इतिहासकार टॉलमी और उसी कि तरह भारत के महान राज्यो के बारे में बस सुनते ही रहते थे , जैसे “पॉलीबोथरा” कि कल्पना गंगा किनारे स्थित महान भारतीय साम्राज्य के शक्ति केंद्र पाटलिपुत्र के रूप में करना ! उसी गलती को मेंस्थानीज एवं फिरसे अट्ठारहवी शतब्दी में विलियम जोन्स इत्यादि ने दुहराया और जिसे सारे अंग्रेज, जिन्होंने एक तथाकथित महान साम्राज्य बनाया, आज तक गा रहे हैं!
भारत से इतर म्लेच्छों के लिए वह साम्राज्य काफी बड़ा हो सकता था पर, भारत के लिए तो वह मामूली ही कहा जायेगा! पर वास्तव में यवन कालातीत के कई दर्जन आक्रमणो (और कुछ वर्षो के शासन) के बाद भी भारत के बारे में कल्पनाएँ ही करते थे !
पर, सन 327 ईसापूर्व में क्या हुआ था?
सिकंदर के बारे में विश्व के कई लोग जानते थे और हैं, पर हम आज तक नहीं जानते उसके हश्र का पता भी कइयों को है !!
सिकंदर कि सेना अपने अश्व सेना के लिए प्रसिद्ध थी और यही सेना और अपनी धूर्तता लेकर भारत को खा जाने के लिए आया था.. उसने सीमावर्ती राज्यों को अपनी तरफ भी मिला लिया और जो नहीं मिला उसको रास्ते से हटाने के लिए अपने क्रूर सेनापतियों जिसमे मेसेडोनियन लड़ाकों के साथ उसके वाह्लीक, मिश्री और पर्शियन सहयोगी भी थेI
भारत की सीमा में पहुँचते ही पहाड़ी सीमाओं पर भारत के अपेक्षाकृत छोटे राज्यों अश्वायन एवं अश्वकायन की वीर सेनाओं ने कुनात, स्वात, बुनेर,पेशावर (आजका) में सिकंदर सेनाओं को भयानक टक्कर दीI मस्सागा ‘मत्स्यगराज’ राज्य में तो महिलाएं तक उसके सामने खड़ी हो गयीं पर धूर्त यवनी ने मत्स्यराज को हत करने के बाद संधि का नाटक करके रात में हमला करके उस राज्य की राजमाता सहित पूरे राज्य को उसने तलवार से काट डाला उसमे कोई नहीं बचा.. एक बच्चा भी नहीं!! यही काम उसने दुसरे समीपी राज्य ओरा में भी किया, इसी लड़ाई में सिकंदर की एड़ी में तीर लगा, जिसको आधार बनाकर अतियुक्त सिकंदर के बड़बोले प्रशस्तिकारो ने अकाइलिस की कथा बनाई!
अब इसके आगे पौरव राज्य था जिसके राजा महाभारत कालीन कुरु वंशी के सम्बन्धी पुरु वंश के राजा पुरु थे जिसे यवन पोरस बोलते थे और सिंधु तट पर उनके विनाश के लिए यवनी सेना करीब 10-12 प्रमुख सेनापतियों के साथ बस तैयार ही थीI
अपने जासूसों और धूर्तता के बल पर सिकंदर के सरदार युद्ध जीतने के प्रति पूर्णतः विश्वस्त थे, पर युद्ध शुरू होते ही उसी दिन यह विदित हो गया की पौरव कौन हैं और क्या हैं? राजा पुरु के शत्रु लालची अम्भी की सेना लेकर सिकंदर ने करीब 37000 की सेना, जिसमे 7000 घुड़सवार थे, राजा पुरु की सेना जिसमे 20000 की सेना के खिलाफ, जिसमे 2000 घुड़सवार थे और कई नागरिक योद्धा थे,
निर्णायक युद्ध के लिए तैयार था और जिसमे जीत के प्रति वो आश्वस्त था I सिकंदर की सेना में कई युद्धो के घुटे योद्धा थे जिसमे कई उसके विजित प्रदेशो के सैनिक भी थे जिन्हे विजित राज्यो को विद्रोह से रोकने के लिए भी सुदूर तक ले जाया गया था, भारतीय सीमावर्ती राज्यों से संघर्ष में ही सिकंदर (के सेनापतियों) को अनुमान हो गया था की आगे क्या हो सकता हैI पर सनकी सिकंदर अपने ही घमंड में इस भारतीय राज्य को नेस्तनाबूद करने को उद्दत था
क्योंकि उसे भारतवर्ष पर राज्य करना था!! अपनी सनक में वो बहुत कुछ नहीं देख पाया जनता तो वो और भी कम था .. राजा पुरु के पास करीब 200 की गजसेना थी ! यहाँ जानने वाली बात है की हाथी मात्र अफ्रीका एवं भारत में ही पाये जाते हैं, यवनो ने हाथी सेना क्या हाथी तक कभी नहीं देखे थे ! यवनी कुशल घुड़सवारी के महारथी थे और अधिकतर युद्ध उन्होंने इसी सेना और अपने युद्धक हथियारो जैसे कैटापल्ट इत्यादि के बल पर ही जीते थे .. वर्षो तक यवनी स्वयं को ही समूचे विश्व के स्वामी समझते रहे थे, और यही सब उन्होंने अपने इतिहास में भी रचा. !
पहले से ही क्षतिप्राप्त यवनी सेना ने अगले दिन जो झेला उसने उनके दिमाग ठीक कर दिए .. राजा पुरु जिसको स्वयं यवनी सात फूट से ऊपर का बताते हैं, अपनी शक्तिशाली गजसेना के साथ यवनी सेना पर टूट पड़े! इसके पहले झेलम नदी पर दोनों सेनाओं के बीच कई दिनों तक सतर्क आशंकित निगाहो का आदानप्रदान होता रहा !
भारतीयों के पास विदेशी को मार भगाने की हर नागरिक के हठ, शक्तिशाली गजसेना के अलावा कुछ अनदेखे हथियार भी थे जैसे सातफूटा भाला जिससे एक ही सैनिक कई कई शत्रु सैनिको और घोड़े सहित घुड़सवार सैनिको भी मार गिरा सकता था ! इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर की सेना को जमकर टक्कर मिलीI यवनी सेना के कई वीर सैनिक हताहत हुए, यवनी सरदारो के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ट अंगरक्षक एवं अन्तः प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया !
कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उनतक कोई खतरा नहीं हो सकता था, राजा की तो बात बहुत दूर है! राजा पुरु के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकिफाइलस (संस्कृत-भवकपाली) को अपने भले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा दिया, ऐसा मैसेदैनियन सेना ने अपने सारे युद्धकाल में कभी होते हुए नहीं देखा था, कोई आजतक सिकंदर, सिकंदर के अश्व क्या उसकी विशिष्ट अन्तः टुकड़ी तक को खरोंच नहीं दे पाया था ! सिकंदर जमीन पर गिरा तो सामने राजा पुरु तलवार लिए सामने खड़ा था, मैसेडोनिअ का महान विश्वविजेता बस पल भर का मेहमान था की तभी राजा पुरु ठिठक गया ! यह डर नहीं था, शायद यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, बहरहाल तभी सिकंदर के अंगरक्षक उसे तेजी से वहाँ से भगा ले गए I
भारत में शत्रुओं के उत्तरपश्चिम से घुसने के दो ही रास्ते रहे हैं जिसमे सिंधु का रास्ता कम खतरनाक माना जाता था! क्यों?
सिकंदर सनक में आगे तक घुस गया जहाँ उसकी पलटन को भरी क्षति उठानी पड़ी, पहले ही भारी क्षति उठाकर यवनी सेनापति अब समझ गए थी की अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं नष्ट कर दिए जायेंगे, यह निर्णय पाकर सिकंदर वापस भागा पर उस रास्ते से नहीं भाग पाया जहाँ से आया था और उसे दुसरे खतरनाक रास्ते से गुजरना पड़ा जिस क्षेत्र में प्राचीन क्षत्रिय निवास करते थे (आज भी करते हैं)
!! इस प्रदेश में पहुँचते ही सिकंदर का सामना क्षत्रिय वीरों से (और पंजाबी वीरों से सांगल क्षेत्र में) हो गया और उसकी अधिकतर पलटन का सफाया क्षत्रियो ने कर दिया, भागते हुए सिकंदर पर एक क्षत्रिय सैनिक ने बरछा फेंका जो उसकी वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया I यह घटना आजके सोनीपत नगर के पास हुआ था (मैं उस वीर की पहचान जानने का प्रयास कर रहा हु) I इस हमले में सिकंदर तुरंत नहीं मरा बल्कि आगे जाकर पश्चिमी सीमा गांधार में जाकर उसके प्राणपखेरू उड़ गए!! (यवनी इतिहासकारों ने लिखा– सिकंदर बेबीलोन (आधुनिक इराक) में बीमारी से मरा!- 326 ई. पू.)
महान यवनराज्य के बड़बोले इतिहासकारों के लिए ये अत्यंत अपमानजनक एवं असहनीय था !! सिकंदर के दरबारियों एवं रक्षकों ने इस अपमान से बचने के लिए वो कथा बनायीं जो सिकंदर की महिमामंडित छवि से मेल खा सके! और उन्होंने पोरस और सिकंदर की अतिश्योक्तिपूर्ण नाटकीय गाथा बनायीं !!
पर हर विदेशी ने पूरा गप्प नहीं लिखा प्लूटार्क ने लिखा — सिकंदर राजा पुरु की 20000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया आगे विश्व की महानतम राजधानी की विशालतम सम्राट धनानंद की सेना 350000 की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी जिसमे 80000 घुड़सवार, 8000 युद्धक रथ एवं 70000 विध्वंसक हाथीसेना थी उसके सैनिक मुर्गी-तीतर जैसे काट दिए जाते ..I
उस महान सिकंदर की महान सेना में किसने वापस लौटे ये तो बस सोचने वाली ही बात है!!
पर, आज हम वो क्यों जानते हैं जो सभी यवनी-ग्रीक अपनी स्वमुग्धता में मानते हैं?
ग्रीको की शिक्षा यूरोपियनों ने ली और अंग्रेजों ने ग्रीक-रोमनों की सभ्यता से प्रेरणा ली और वही इतिहास अपने निवासियों को पढ़ाया !!
व इतिहास अंग्रेजों के साथ भारत में आ गया और अंग्रेजी गुलामी के साथ हम आज भी सिकंदर को महान और प्रथम भारतीय वीरो में से एक राजा पुरु को पराजित एवं लज्जित मानते हैं…. शर्म नाक है, पर उससे भी अधिक शोचनीय है की हम आज भी नहीं जानतेI
हम आज भी अपने नायको को नहीं जानते, क्योंकि गुलामी हमारी मानसिकता में रचबस गयी है, हमारी पहचान मुगलो और अंग्रेजो की गुलामी से अधिक नहीं है आज भी कई, या शायद सभी भारत को विदेशी इतिहास से समझ रहे हैं, ग्रीक और रोमन सभ्यता को महानतम समझ रहे हैं.. और उसी ग्रीको-रोमन साम्राज्य से विशुद्ध अनुचर की तरह अंग्रेजो को वापस इस देश पर शासन करने का आमंत्रण देने के लिए अपने प्रधानमत्री को भेजते हैं!!
कदाचित, हम अभी जिन्दा नहीं हुए हैं !!!

Thursday, July 14, 2016

देश और धन

 
 
 
 
 
 
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यदि विश्व में सोने के तख्त पर कोई व्यक्ति बैठता है तो वह एक व्यक्ति भारत का गुरू शंकराचार्य ही है।
 ऐसा नहीं है कि हमारा देश भुखमरों का देश है इसलिए भुखमरी है, गरीबों का देश है इसलिए गरीबी है और लाचारी व बेरोजगारों का देश है इसलिए लाचारी व बेरोजगारी है। इसके विपरीत तथ्य यह है कि हमारे देश में 15 प्रतिशत लोगों के पास इतना धन , इतना सोना, और इतना बैंक जमा है कि विश्व के पचासों देशों की पूरी जनसंख्या के पास होगा। हमारा देश कर्ज में डूबा है परंतु हमारे देश के इन 15 प्रतिशत (सवर्णों) के विदेशी खाते में जमा धन के ब्याज से ही भारत का पूरा कर्जा एक साल में उतर सकता है।
 हमारे देश में 10 लाख मंदिर हैं जो अरबों-खरबों के सोने चांदी और अनेक आभूषणों से भरे पड़े हैं। यदि विश्व में सोने के तख्त पर कोई व्यक्ति बैठता है तो वह एक व्यक्ति भारत का गुरू शंकराचार्य ही है। कुछ समय पूर्व अभी एक शंकराचार्य की मृत्यु हुई थी तो उसका शव भी सोने के तख्त पर लिटाया गया था। भारत में 5 प्रतिशत उच्च जातीय जमींदार हैं जिनमें एक-एक के पास 10-10 हजार एकड़ भूमि के फ़ार्म हैं। इन जमींदारों के पास भी अरबों-खरबों की सम्पत्ति है। इनमें कुछ राज-घराने के लोग हैं जिनके पास अब भी अरबों-खरबों के खजाने हैं, स्वर्ण महल हैं और निजी हवाई जहाज हैं। ये जमींदार और सामन्त अपनी बेटी और बेटे के विवाहों में रत्न जड़ित गलीचों का बिछोना बिछाते हैं।
 भारत का वैश्य वर्ग भी कम नहीं है। वह सुई से लेकर रेल, हवाई जहाज तक का उद्योग चलाता है। सोना-चांदी, हीरे जवाहरात , तस्करी का माल, गाय की चर्बी और जीवित इन्सानी बच्चों तथा स्त्रियों के साथ ही वह आदमी के खून तक की तिजारत करता है। खाद्य-पदार्थों, दवाओं और जहर तक में मिलावट कर धन बटोरता है। आज देश की एक तिहाई पूंजी उसके पास है।
 सच यह है कि हमारा 85 प्रतिशत भारत गरीब है, भूखा है, नंगा है, बेघरबार है और लाचार है पर 15 प्रतिशत सवर्ण लोग धन की उबकाई करते हैं और इनके कुत्ते कारों में सफर करते हैं, पांच सितारा होटलों में पुडिंग और मलाई खाते हैं जिसकी उन्हें बदहजमी हो जाती है। भारत के भूगोल में जहां एक तरफ शहरी कूड़े-करकट के ढेरों के बीच सड़े गले प्लास्टिक और फूंस से ढकी मिट्टी या बांस के खम्बों की खड़ी दलितों की झोंपड़ियां हैं तो दूसरी ओर वहीं हिन्दुओं की बहुमंजिली इमारतें, ऊंचे-ऊंचे रंगमहल और शीशमहल बने हुए हैं। एक तरफ पेट भरने के लिए मेहनत मजदूरी भी पर्याप्त नहीं है तो दूसरी ओर हिन्दुओं के ऊंचे-ऊंचे औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं, दुकानें, कारखाने हैं और भूमि के हजारों-हजारों एकड़ फार्म हैं। एक तरफ जहां दलितों का अपना कोई प्राइमरी स्कूल तक नहीं है वहीं दूसरी ओर हिन्दुओं के अपने डिग्री कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। एक तरफ दलित गरीब के पास चलाने को टूटी साइकिल भी नहीं है तो दूसरी ओर एक-एक हिन्दू, सेठ, साहब और सन्यासी के पास 50-50 काफिलों में चलने वाली विलायती कारें हैं। दलित दरिद्र के मनोंरंजन का साधन मात्र उसकी पत्नी और उसके बच्चे हैं, जबकि हिन्दू महन्त, मठाधीश, ज़मींदार, शरमाएदार और सेठ चोटी से पैर तक अय्यासी में डूबे हुए रहते हैं। एक तरफ दलित मासूम बच्चों को 40-40 रूपये में पेट की खातिर बाजार में बेच देते हैं वहीं इन हिन्दुओं के अपने मसाजघर, मनोरंजन थियेटर, नाचघर, जुआघर और मयखाने हैं जहां जीवित मांस का व्यापार होता है।
 हमारा देश गरीब है यह चीख-पुकार एक नाटक है, लाचारी है, हमारे देश में बेरोजगारी है यह भी एक नाटक है। गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी किसी देश में तब कही जा सकती है जब गरीबी, बेरोजगारी , लाचारी और भुखमरी से सब प्रभावित हों। हमारे देश में ऐसा नहीं है। हमारे यहां करोड़ों गरीब हैं और करोड़ों नंगे भी हैं। सच यह है कि हमारे यहां 15 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो सोना खाते हैं और सोने का ही वमन करते हैं। यहां मूल समस्या समाज में हिस्सेदारी की है। यदि 15 प्रतिशत के पास जमा सोना-चांदी, हीरे-जवाहरात के धन में हिस्सेदारी कर दी जाये तो भारत में एक भी व्यक्ति न भूखा सो सकता है न एक भी व्यक्ति नंगा रह सकता है। तब एक भी व्यक्ति न बेघरबार रह सकता है और न तब एक भी व्यक्ति बेरोजगार रह सकता है। यदि धर्मालयों का धन बाहर निकाल दिया जाय, भूमि का भूमिहीनों में वितरण कर दिया जाय और उद्योगों के लाइसेंस में एक व्यक्ति एक उद्योग कर दिया जाए तो हर तबाही तुरन्त दूर हो सकती है अथवा देवालयों, भूमि और उद्योग-व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाय तो हमारा देश 132 वें स्थान से उठकर आज ही 32 वें स्थान पर आ सकता है।
 देश की इस गर्दिश के लिए कौन उत्तरदायी है यह एक खुली किताब है। यह इन मुठ्ठी भर उच्च हिन्दुओं की स्वार्थ, शोषण दमन और भेदभावपूर्ण नीति का परिणाम है।                      Whatsapp- 8546019188

सरकार जवाब दे यह देश किसका है

सरकार जवाब दे यह देश किसका है
 हाल में देश में हुए बदलावों ने एक आधारभूत सवाल पूछने के लिए मजबूर कर दिया है. सवाल है कि आखिर यह देश किसका है? सरकार द्वारा देश के लिए बनाई गई आर्थिक नीतियां और राजनीतिक वातावरण समाज के किस वर्ग के लोगों के फायदे के लिए होनी चाहिए? लाजिमी जवाब होगा कि सरकार को हर वर्ग का ख्याल रखना चाहिए. आज भी देश के साठ प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं. मुख्य रूप से सरकारी और निजी क्षेत्र में काम कर रहा संगठित मज़दूर वर्ग भी महत्वपूर्ण है. दुर्भाग्यवश 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद सरकार का सारा ध्यान कॉरपोरेट सेक्टर, विदेशी कंपनियों और विदेशी निवेश पर केंद्रित हो गया. कृषि क्षेत्र की लगातार उपेक्षा की गई और अगर ऐसा ही आने वाले 20 सालों तक चलता रहा तो जिस तरह देश की जनसंख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए देश में अनाज की भारी कमी हो जाएगी. हो सकता है कि जनसंख्या वृद्धि की दर कम हो, मगर वह बढ़ेगी ही और उसके लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध नहीं होगा. जब आप अपने लोगों का पेट नहीं भर सकते हैं, तब कोई भी विकास और कितना भी पैसा किसी देश की मदद नहीं कर सकता है.
 
जब जवाहर लाल नेहरू जीवित थे, तब कांग्रेस पार्टी ने तमिलनाडु में मद्रास के निकट अवाडी में एक प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय नीतियां समाजवाद के सिद्धांत को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए. 1991 में मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और तब उन्होंने कहा कि इन नीतियों से देश के लोगों का भला नहीं हुआ और उन्होंने सारी नीतियों को उलट दिया. उनका मुख्य तर्क यह था कि लाइसेंस राज के दौरान कुछ लोगों ने सभी लाइसेंस अपनी मुट्ठी में कर लिए और बाद में उन्हें ऊंचे दामों पर दूसरों को बेच दिया, जो अनुचित था. यदि वह लाइसेंस राज खत्म कर देते तो शायद बहुत सारे लोग कल-कारखाने खोल सकते थे या कुछ और कर सकते थे, जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ती, कीमतों में कमी आती और लोगों को फायदा होता. पिछले 21 सालों में क्या हुआ है? महंगाई बढ़ गई है, कहीं भी प्रतिस्पर्धा नहीं है. इलेक्ट्रॉनिक एवं दूरसंचार जैसे जिन क्षेत्रों में काम हुआ है, तकनीकी विकास के कारण हुआ है, न कि सरकारी नीतियों की वजह से. यदि आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) कंपनियों ने बेहतर प्रदर्शन किया तो उसकी वजह तकनीक और समय में बदलाव था, अमेरिका और भारत में कीमतों का अंतर था. जहां कहीं भी सरकार शामिल थी, वहां कोई वास्तविक प्रगति नहीं हुई.
 
आपने अमेरिका को खुश करने के लिए न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल पास किया, खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति अमेरिका को खुश करने के लिए दी. इस देश के ग़रीबों का क्या हुआ? उदाहरण के तौर पर यहां लाभ पर कोई टैक्स नहीं है. यदि किसी कंपनी का मालिक लाभ की घोषणा करता है और उसे लाभ स्वरूप पैसे मिले हैं तो उसे उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है.
 
1991 के पहले और 1991 के बाद की परिस्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. वहीं दूसरी तऱफ टू जी स्पेक्ट्रम और कोयले के मामले में अब सरकार का कहना है कि उसने स्पेक्ट्रम और कोयले की खदानों का आवंटन किया था. आवंटन लाइसेंस की जगह इस्तेमाल हुआ दूसरा शब्द है और उसने एक नए शब्द का इस्तेमाल किया. अगर दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने टू जी स्पेक्ट्रम अपने पसंदीदा लोगों को आवंटित कर दिए और कोयले की खदानें भी अपने पसंदीदा लोगों को आवंटित कर दीं. आखिर उसने क्या किया? टू जी स्पेक्ट्रम के मामले में एक व्यक्ति ने x रुपये में स्पेक्ट्रम खरीदा और फिर एक महीने या फिर कुछ दिनों बाद दूसरे को उसे 10 x में बेच दिया. लोगों को सेवा प्रदान करने वाला व्यक्ति वह है, जिसने स्पेक्ट्रम 10 x कीमत पर खरीदा है. इस पर कपिल सिब्बल का तर्क था कि यदि सरकार स्पेक्ट्रम को ऊंचे दामों पर बेचती तो उससे दूरसंचार सेवा महंगी हो जाती. यह पूरी तरह झूठा बयान था, क्योंकि जो व्यक्ति लोगों को मोबाइल सेवा दे रहा है, उसने स्पेक्ट्रम 10 x कीमत पर खरीदा है. किसने x और 10 x के बीच पैसा बनाया? बिचौलिए ने. वह व्यक्ति, जिसे आपने स्पेक्ट्रम आवंटित किया था. किसे इस पैसे में से हिस्सा मिला, यह उनकी परेशानी का कारण है. हालांकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा है कि यदि वह इसे 10 x में बेचते तो उन्हें पैसे नहीं मिलते, क्योंकि यहां x और 10 x के बीच बड़ा अंतर है. कपिल सिब्बल और चिदंबरम हर दिन यही बयान देते थे कि सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ है. इसका मतलब क्या है? एक अर्द्ध शिक्षित व्यक्ति भी यह समझ सकता है कि यदि आपने एक चीज को किसी दाम पर बेचा है और यदि उसे ज़्यादा दाम पर बेचा जा सकता था, तो यहां घाटा हुआ है. उच्चतम न्यायालय ने हाल में दिए अपने एक फैसले में कहा है कि नीलामी किसी भी चीज की सही कीमत पाने का एकमात्र तरीका नहीं है.
 
उच्चतम न्यायालय ने यह नहीं कहा कि आप कोयले की खदान और स्पेक्ट्रम अपने भतीजे को दे दें, अपने भांजे को दे दें या किसी ऐसे शख्स को दे दें, जिसका सरनेम (उपनाम) आपसे मिलता हो या फिर कोई ऐसा शख्स, जो आपका बहुत प्रिय हो. नहीं नहीं… बिल्कुल नहीं. उसने बस इतना कहा कि एक सही और पारदर्शी तरीका होना चाहिए, जिसमें नीलामी भी एक तरीका हो सकता है, दूसरे और तरीके भी हो सकते हैं. इसका यह मतलब नहीं है कि उच्चतम न्यायालय ने आपके किए को सही ठहराया है. अब सरकार ने सीएजी पर हमला करना शुरू कर दिया है, क्योंकि सीएजी ने यह निष्कर्ष निकाला है कि इन कोयला खदानों के आवंटन में हमें बहुत घाटा हुआ है. चिदंबरम ने यह कहा है कि सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ है, क्योंकि कोयला अभी भी ज़मीन के अंदर ही है. यह सही है कि अभी घाटा नहीं हुआ है, लेकिन आपने निजी लोगों को फायदा पाने के अधिकार दे दिए हैं. जब भी कोयला बाहर निकाला जाएगा तो फायदा निजी कंपनियों को होगा, न कि सरकार को. यह अशोका होटल को 1000 करोड़ रुपये की बजाय 10 करोड़ रुपये में बेचने जैसा है और फिर आप कहते हैं कि सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ है. आप कहते हैं कि होटल में रहने कोई नहीं आया. सरकार के लोग ही वहां नहीं ठहरेंगे तो दूसरे लोगों की बात छोड़िए. आपने संपत्ति को पहले ही बेच दिया है और जब कभी कोई होटल में ठहरता है तो वह पैसा कमाएगा, न कि सरकार.
 
यह समझना बहुत ज़रूरी है कि कब सीएजी घाटे की बात करता है. इसका मतलब है, जो फायदा हमें हो सकता था, उतना नहीं हो पाया. यह फायदे का नुकसान है. यह अनुमानित घाटा नहीं है, बल्कि यह वास्तविक घाटा है, क्योंकि हमने टू जी स्पेक्ट्रम के मामले में देखा कि एक कंपनी ने दूसरी कंपनी को अधिकार दस गुना दामों पर हफ्ते भर में बेच दिए. हमने कोयला खदान आवंटन के मामले में देखा कि जिन्होंने कोयले की खदानें ली हैं, उन्होंने बैंक से पैसे उधार ले लिए हैं और वे शेयर बाज़ार में अपने शेयर भी ला चुके हैं. वह भी इस आधार पर कि उन्होंने जगह खरीदी है. जबकि उन्होंने यह सब कुछ सरकार और बैंक के पैसे से लिया है. हर कोई खुश हो रहा है. यह समय कांग्रेस के अवाडी रिजॉल्यूशन पर लौटने का है, जिसमें कहा गया है कि हमें समाजवाद के सिद्धांतों पर आधारित समाज का निर्माण करना है, ग़रीबों का ख्याल रखा जाए. किसी ने यह नहीं कहा, अवाडी रिजॉल्यूशन में भी नहीं कहा कि कॉरपोरेट सेक्टर को बंद कर देना चाहिए या निजी क्षेत्र को कोई अधिकार नहीं होने चाहिए. सभी ने यह कहा है कि ग़रीबों का ख्याल रखा जाना चाहिए, पब्लिक सेक्टर को सुदृढ़ करना चाहिए. यहां निजी क्षेत्र के लिए बहुत से रास्ते खुले हैं, जहां वह अपना पराक्रम दिखा सकता है और अपना काम कर सकता है. सरकार द्वारा मनरेगा को लागू करना एक महत्वपूर्ण क़दम था. ग़रीबों के लिए 100 दिनों के रोजगार की व्यवस्था की गई थी. यह अलग बात है कि योजना को किस तरह क्रियान्वित किया गया और इसमें कितना भ्रष्टाचार फैला हुआ है, लेकिन यह क़दम सही था. मनरेगा में हर साल कितना पैसा खर्च किया जाता है, मान लीजिए 40 हज़ार करोड़, लेकिन यह पैसा कॉरपोरेट सेक्टर से आना चाहिए. धनवान लोगों को ग़रीबों के लिए भुगतान करना चाहिए. सरकार को कॉरपोरेट टैक्स 5 प्रतिशत बढ़ा देना चाहिए. अमीरों से पैसे लो और ग़रीबों में बांट दो, लेकिन यह सरकार ऐसा कभी नहीं कर सकती, क्योंकि उसे लगता है कि इससे शेयर बाज़ार में गिरावट आएगी. अमेरिका कहेगा कि तुम कॉरपोरेट सेक्टर को क्यों बर्बाद कर रहे हो.
 
अब क्या पहले देश के ग़रीबों एवं किसानों के हितों का ख्याल रखा जाएगा या फिर अमेरिकी अधिकारियों की खुशी का ख्याल रखा जाएगा? यह विषय आज हमारे सामने है. आपने अमेरिका को खुश करने के लिए न्यूक्लियर लायबिलिटी बिल पास किया, खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति अमेरिका को खुश करने के लिए दी. इस देश के ग़रीबों का क्या हुआ? उदाहरण के तौर पर यहां लाभ पर कोई टैक्स नहीं है. यदि किसी कंपनी का मालिक लाभ की घोषणा करता है और उसे लाभ स्वरूप पैसे मिले हैं तो उसे उस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है. कौन टैक्स देता है? कंपनी टैक्स देती है. एक बराबरी पर लाने के लिए कम से कम यह किया जाना चाहिए कि कंपनी में काम करने वालों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए. कर्मचारियों का टैक्स जो कुछ भी हो, उसका भुगतान कंपनी को करना चाहिए. यदि कंपनी अपने मालिक के टैक्स का भुगतान कर सकती है तो वह कर्मचारियों के टैक्स का भुगतान भी कर सकती है. यदि ग़रीब कर्मचारी टैक्स का भुगतान कर रहे हैं, जिनकी एक नियत आमदनी है, महंगाई बढ़ रही है, उन्हें यह नहीं मालूम है कि इसका समाधान क्या होगा, मालिक को बिना किसी टैक्स का भुगतान किए लाभांश मिल रहा है, तो क्या हम एक सा़फ-सुथरे और न्यायपूर्ण समाज में रह रहे हैं? यह आधारभूत सवाल पूछने की ज़रूरत आ पड़ी है. अगले चुनाव इस विषय पर होंगे कि यह देश किसका है? क्या यह देश मुट्ठी भर व्यवसायिक घरानों का है या फिर करोड़ों किसानों एवं मज़दूरों का है, जो खेतों और फैक्ट्रियों में काम कर रहे हैं. यह आज के समय का सबसे बड़ा मुद्दा है. बात एक लाख अस्सी हज़ार करोड़ या एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ की नहीं है, बात शासन की ईमानदारी की है, काम करने के सही तरीके की है, पारदर्शिता की है. सरकार ग़रीबों के वोटों से चुनी जाती है, लेकिन वह केवल धनी लोगों की सेवा करती है. इस तरह का लोकतंत्र कितने दिनों तक चलेगा. हमारा लोकतंत्र कुछ देशों की तरह हो गया है, जिनके नाम मैं नहीं लेना चाहता हूं, जहां मतदान तो होता है, लेकिन लोगों को आज़ादी नहीं है. भारत में भी हम लोग उस स्तर पर पहुंच गए हैं, जहां हमारी सारी आज़ादी समाप्त हो गई है.
 
हमें बताइए कि आम आदमी कोयला आवंटन में हुई लूट या फिर टू जी घोटाले या चारों तऱफ फैल रहे भ्रष्टाचार को देखकर क्या सोचता होगा? अन्ना हजारे जैसे लोगों का आंदोलन उनके कारण लोकप्रिय नहीं हुआ, बल्कि इन्हीं कारणों से हुआ है और अन्ना हजारे को अचानक गांधी बना दिया गया. उनका आंदोलन इतना बड़ा इसलिए हो गया, क्योंकि उन्होंने जनता की दुखती रगों पर हाथ रख दिया. लोग पहले से इन बातों का अनुभव कर रहे थे, उसी समय आंदोलन हुआ, इसलिए लोग उनके आसपास खड़े होने लगे, क्योंकि लोगों का मानना था कि अन्ना हजारे सही कह रहे हैं. जब तक सरकार यह नहीं दिखाएगी कि वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कुछ कर रही है, भ्रष्टाचारियों को दंड दे रही है, गलत कामों को रोक रही है, तब तक लोगों को उस पर भरोसा नहीं होगा. लाभ कमाना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन लाभ का नाटक करके कुछ लोगों को लाभ देना सही नहीं है. कोयला आवंटन या फिर टू जी स्पेक्ट्रम में सरकार को लाभ नहीं हुआ, बल्कि कुछ लोगों को लाभ दिया गया, जो शर्मनाक है.
 
मैं वैश्विक समाजवाद को जानता हूं. 1991 में मनमोहन सिंह ने समाजवाद का मजाक उड़ाया, जैसे कि जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी को देश के हितों का ख्याल ही नहीं था. हम लोग यह कभी नहीं भूल सकते हैं कि टाटा, बिड़ला एवं अंबानी जैसे उद्योगपति उसी समाजवादी काल की उपज हैं. 1991 के बाद क्या हुआ, यह सभी लोग जानते हैं. इस पूंजीवादी और प्रतिस्पर्धा वाली व्यवस्था में सरकार ने क्या पैदा किया है. मुझे लगता है कि कुछ भी नहीं. आप एक और बात समझ सकते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर को नीति बनाने के लिए किसी और लोगों की ज़रूरत नहीं है, वे स्वयं ही नीति बना लेते हैं. जो भी नियम-क़ानून हों, वे अपना रास्ता खुद बना लेंगे और अपनी जीविका चला लेंगे. इसलिए सरकार को उन लोगों की जीविका के लिए किसी तरह के क़ानून बनाने की ज़रूरत नहीं है. बनिया समाज या फिर कॉरपोरेट क्षेत्र अपने लिए रास्ते बना ही लेते हैं. कोई भी क़ानून पूरे देश के फायदे के लिए बनाया जाना चाहिए. इस तरह के क़ानून बनाए जाने चाहिए, जिनसे देश के अधिकांश लोगों को फायदा हो, न कि किसी वर्ग विशेष को. वे लोग धन कमा लेंगे, हालांकि वे जिस तरह से धन कमाना चाहते हैं या जितना धन कमाना चाहते हैं, उतना नहीं कमाएंगे, लेकिन उनका धन सफेद धन होगा. इतने से उन्हें संतुष्ट होना चाहिए, हमें संतुष्ट होना चाहिए. इसके बाद सरकार को भी अपनी ज़िम्मेदारी निभानी पड़ेगी. उसे जनता को जवाब देना होगा.
 
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अवाडी अधिवेशन
 
वर्ष 1955 का अवाडी अधिवेशन कांग्रेस के लिए सबसे ऐतिहासिक माना जाता है. इसमें कांग्रेस ने राष्ट्र के समाजवादी स्वरूप की योजना बनाई थी. इसे जवाहर लाल नेहरू और मौलाना आज़ाद ने रचा था. अवाडी प्रस्ताव में कहा गया था कि कांग्रेस का लक्ष्य अब संविधान की उद्देशिका और राज्य के नीति निदेशक तत्वों का पालन करना होगा. योजनाएं समाजवादी स्वरूप के आधार पर बनाई जानी चाहिए, जिनमें उत्पादन के साधनों पर समाज का अधिकार हो, उत्पादन को बढ़ाया जाए और देश की संपत्ति के वितरण में समानता हो. देश के संसाधनों का उपयोग सभी लोगों के हित में किया जाएगा, न कि किसी वर्ग विशेष के फायदे के लिए इसका उपयोग किया जाएगा. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1955 में अवाडी प्रस्ताव पारित किया था. इसमें यह तय किया गया था कि भारत में किस तरह का समाज होगा और और इसके लिए क्या किया जाना है. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में हुए इस अधिवेशन में कांग्रेस ने समाज के समाजवादी स्वरूप के आदर्श को स्वीकार किया था. जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि समाजवाद पूरे मानव समाज की समस्याओं का समाधान कर सकता है. केवल समाजवाद के माध्यम से ही ग़रीबी एवं बेरोजगारी को दूर किया जा सकेगा. समाजवाद ही देश के राजनीतिक और सामाजिक स्वरूप को बदल सकता है. यू एन ढेबर, पंडित जी बी पंत, मोरारजी देसाई, खंडूभाई देसाई, एस एन अग्रवाल, देवकी नंदन नारायण, बलवंतरी मेहता, डॉ. सैयद महमूद, हरे कृष्ण महताब, डॉ. के एन काटजू, गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री आदि ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया था.

Saturday, July 9, 2016

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की मदद की थी

आरएसएस/भाजपा के नए ‘देश-भक्त’ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में 6 सच्चाइयां

शम्सुल इस्लाम
RSS/BJP ने फ़िलहाल अपने अव्वल नंबर के देशभक्त ‘वीर’ सावरकर की स्तुति काफ़ी हद तक कम कर दी है। इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इस ‘वीर’ की असली कहानी दुनिया के सामने आ गई है। हिंदुत्व के इस ‘वीर’ ने अंग्रेज़ हुक्मरानों से एक बार नहीं बल्कि पांच बार (1911, 1913, 1914, 1918 और 1 920 में) रिहाई पाने के लिए माफ़ी-नामे लिखे, जिन में अपने क्रांतिकारी इतिहास के लिए माफ़ी मांगी और आगे अंग्रेज़ी राज का वफ़ादार बने रहने का आश्वासन दिया। अंग्रेज़ हकूमत ने इस ‘वीर’ के माफ़ी-नामों को स्वीकारते हुए 50 साल की क़ैद में से 37 साल की कटौती कर दी।
हिंदुत्व टोली के नए ‘देश-भक्त’ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) हैं। वे स्वतंत्रता-पूर्व हिन्दू-महासभा में सावरकर के बाद सब से अहम नेता थे और यह मानते थे कि हिन्दुस्तान केवल हिन्दुओं के लिए है। वे 1944 में हिन्दू-महासभा के मुखिया भी रहे। आज़ादी के बाद वे देश के पहले अंतरिम मंत्री मंडल, जिस के मुखिया जवाहरलाल नेहरू थे, में उद्योग और रसद मंत्री थे। उन्हों ने अप्रैल 1950 में नेहरू से पाकिस्तान से किस तरह के सम्बन्ध हों, पर विरोध होने की वजह से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस्तीफ़े के बाद उन्होंने आरएसएस का हाथ थाम लिया और उस के आदेश पर आरएसएस के एक राजनैतिक अंग, भारतीय जन संघ की स्थापना की और इस के पहले अध्यक्ष भी बने। उनकी मृत्यु 23 जून 1953 को श्रीनगर, जम्मू व कश्मीर के एक जेल में हुई, जहां उन्हें उस क्षेत्र में प्रवेश निषेध आदेश के बावजूद दाख़िल होने के लिए गिरफ़्तार करके रखा गया था।
2015 तक इन की मृत्यु के दिन को ‘धारा 370 समाप्त करो दिवस’ और ‘कश्मीर बचाओ दिवस’.के रूप में मनाया जाता था, लेकिन इस साल (2016 में) इन का दर्जा बढ़ा कर इन्हें देश का ‘एक निस्स्वार्थ देशभक्त’ (A Selfless Patriot of India) घोषित कर दिया गया।
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कितने महान ‘निस्स्वार्थ देशभक्त’ थे इसे परखने के लिए हमें निम्नलिखित सच्चाइयों पर ग़ौर करना होगा।

(1) डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के स्वतंत्रता-संग्राम में हिस्सेदारी का कोई प्रमाण नहीं हैं

अगर देश-भक्त होने का मतलब है कि किसी ने अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लिया हो, दमन सहा हो और किसी भी तरह का त्याग किया हो तो यह जानकर ताजुब्ब नहीं होना चाहिए कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आज़ादी की लड़ाई में कभी भी और किसी भी तरह से भाग नहीं लिया। ना ही तो स्वयं मुखर्जी की लेखनी में ना ही उस समय के सरकारी या ग़ैर-सरकारी दस्तावेज़ों और ना ही हिन्दुत्ववादी संगठनों के समकालीन अभिलेखागार में उन की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सेदारी का कोई ज़िक्र मिलता है। इस के विपरीत आज़ादी की लड़ाई के विरुद्ध किए गए उन के अनगिनित कारनामों का वर्णन ज़रूर मिलता है। आज़ादी से पहले के दस्तावेज़ इस सच्चाई को बार-बार रेखांकित करते हैं कि कैसे इस निस्स्वार्थ देशभक्त’ ने अंग्रेज़ों की सेवा की और सांझी आज़ादी की लड़ाई को धार्मिक आधार पर विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे जीवन भर सावरकर के मुरीद रहे जो मुस्लिम लीग की तरह हिन्दुओं और मुसलमानों को दो अलग राष्ट्र मानते थे।

(2 ) भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में मुखर्जी बंगाल की मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा की मिली-जुली सरकार में उप-मुख्य मंत्री थे।

जब जुलाई 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अगस्त 8 से अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, तब मुखर्जी बंगाल की मुस्लिम लीग के नेतृत्व वाली सरकार, जिस में हिन्दू महासभा भी शामिल थी, के वित्त मंत्री थे और साथ में उप-मुख्य मंत्री भी। इस आंदोलन की घोषणा के साथ ही कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, कांग्रेस के तमाम बड़े नेता जिन में गांधीजी, नेहरू, मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल शामिल थे बन्दी बना लिए गए, पूरा देश एक जेल में बदल गया और हज़ारों लोग इस जुर्म में पुलिस और सेना की गोलिओं से भून दिए गए कि वे तिरंगे झंडे को लहराते हुए सार्वजनिक स्थानों से गुज़रना चाह रहे थे। हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों जैसे कि हिन्दू महासभा व आरएसएस और मुस्लिम राष्ट्रवादी संगठन, मुस्लिम लीग ने कांग्रेस द्वारा छेड़े गए भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध ही नहीं किया बल्कि इस को कुचलने के लिए अंग्रेज़ शासकों को हर प्रकार से मदद करने का फैसला लिया।
जब देश में किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि पर पाबंदी थी उस समय हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग को एक साथ मिलकर बंगाल, सिँध और NWFP में साझा सरकारें चलाने की अनुमति दी गई। अंग्रेज़ों के दमनकारी विदेशी राज को बनाए रखने में सहायता हेतु इस शर्मनाक गठबंधन को महामंडित करते हुए हिन्दू महासभा के अध्यक्ष सावरकर ने 1942 के हिन्दू महासभा के कानपुर अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए बताया:
“व्यावहारिक राजनीति में भी हिन्दू महासभा जानती है कि हमें बुद्धिसम्मत समझौतों के ज़रिये आगे बढ़ना चाहिए। हाल ही में सिंध की सच्चाई को देखें, यहां सिंध हिन्दू महासभा ने निमंत्रण के बाद मुस्लिम लीग के साथ मिली-जुली सरकार चलाने की जिम्मेदारी ली। बंगाल का उदाहरण भी सब को पता है। उद्दंड लीगी (अर्थात् मुस्लिम लीग) जिन्हें कांग्रेस अपनी तमाम आत्मसमर्पणशीलता के बावजूद रख सकी, हिन्दू महासभा के साथ संपर्क में आने पर तर्क संगत समझौतों और सामाजिक सम्बन्धों के लिए तैयार हो गए और वहां की मिली-जुली सरकार मिस्टर फजलुल हक़ के प्रधानमंत्रित्व और महासभा के क़ाबिल और मान्य नेता श्यामाप्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में दोनों समुदायों के फ़ायदे के लिए एक साल तक सफलतापूर्वक चली।”

(3) बंगाल के उप-मुख्यमंत्री रहते हुए मुखर्जी ने अंग्रेज़ गवर्नर को चिट्ठी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया

मुखर्जी ने एक शर्मनाक काम करते हुए बंगाल केअंग्रेज़ गवर्नर को जुलाई 26, 1 942 में एक सरकारी पत्र के द्वारा इस देश भर में चल रहे आंदोलन को शुरू होने से पहले ही कुचलने का आह्वान करते हुए लिखा :
“अब मुझे उस स्थिति के बारे में बात करनी है जो कांग्रेस द्वारा छेड़े गए व्यापक आंदोलन के मद्देनज़र पैदा होगी। युद्ध [दूसरा विश्व युद्ध] के दिनों में जो भी आम लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश करेगा, जिस से बड़े पैमाने पर दंगे या असुरक्षा फैले उसका हर हाल में सत्ताधारी सरकार द्वारा प्रतिरोध करना ही होगा।”
(4) मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के कुचलने को सही ठहराया और अंग्रेज़ शासकों को देश का मुक्तिदाता बताया ।
DR SYAMA PRASAD MOOKERJEEमुखर्जी ने बंगाल की मुस्लिम लीग-हिन्दू महासभा साझी सरकार की ओर से बंगाल के अंग्रेज़ गवर्नर को लिखी चिट्ठी में अंग्रेज़ हकूमत को प्रांत का मुक्तिदाता बताते हुए उसे भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए कई क़दम भी सुझाए:
“प्रश्न यह है कि बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन से कैसे निपटा जाए? राज्य का शासन इस तरह चलाया जाए कि कोंग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद यह आंदोलन बंगाल में क़दम जमाने में कामयाब न हो सके। हमारे लिए विशेषकर उत्तरदायी मंत्रियों के लिए जनता को यह समझाना संभव होना चाहिए कि आज़ादी, जिस के लिए कांग्रेस ने आंदोलन शुरू किया है, वह पहले से ही जन-प्रतिनिधियों को प्राप्त है। कुछ मामलों में आपातकालीन हालात की वजह से यह सीमित हो सकती है। भारतीयों को अंग्रेज़ों पर भरोसा करना चाहिए, ब्रिटेन के वास्ते नहीं, इस लिए नहीं कि इस से ब्रिटेन को कुछ फायदा होग, बल्कि प्रांत की आज़ादी और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए।”
(5) हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता के तौर पर मुखर्जी ने उस समय अंग्रेज़ी सेना के लिए देश भर में भर्ती कैंप’ लगाए जब सुभाष चन्द्र बोस ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ द्वारा देश को आज़ाद कराना चाहते थे।
एक और शर्मनाक घटनाक्रम में ‘वीर’ सावरकर और मुखर्जी के नेतृत्व वाली हिन्दू महासभा ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज़ सरकार को पूर्ण समर्थन देने का फ़ैसला किया। याद रहे कि कांग्रेस ने इस युद्ध को साम्राज्यवादी युद्ध की संज्ञा दी थी और यही समय था जब नेताजी ‘आज़ाद हिंद फौज़’ खड़ी करके एक सैनिक अभियान द्वारा देश को अंग्रेज़ी चुंगल से मुक्त कराना चाहते थे। हिन्दू महासभा लुटेरे अंग्रेज़ शासकों की किस हद तक मदद करना चाहती थी इस का अंदाज़ा ‘वीर’ सावरकर के निम्नलिखित आदेश से लगाया जा सकता है जो उन्होंने देश के हिन्दुओं के लिए जारी किया था:
“जहां भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिन्दू समाज को भारत सरकार [अंग्रेज़ सरकार] के युद्ध सम्बन्धी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिन्दू हित के फायदे में हो। हिन्दुओं को बड़ी संखिया में थल सेना, नौ सेना और वायु सेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद और जंग का सामान बनाने वाले कारखानों वग़ैरा में प्रवेश करना चाहिए…ग़ौरतलब है कि युद्ध में जापान के कूदने के कारण हम ब्रिटेन के शत्रुओं के सीधे निशाने पर आ गये हैं। इस लिए हम चाहें या ना चाहें, हमें युद्ध के क़हर से अपने परिवार और घर को बचाना है, और यह भारत की सुरक्षा के सरकारी युद्ध प्रयासों को ताक़त पहुंचाकर ही किया जा सकता है। इस लिए हिन्दू महासभाओं को खास कर बंगाल और असम के प्रांतों में, जितना असरदार तरीक़े से संभव हो, हिन्दुओं को अविलम्ब सेनाओं में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए।” 
(6) मुखर्जी ने जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जे की वकालत की थी
हिंदुत्व टोली के दावों के बरक्स मुखर्जी ने जम्मू और कश्मीर की विशेष हैसियत को स्वीकारा था। इस सिलसिले में प्रधान मंत्री नेहरू और उनके बीच चिट्ठी-पत्री का एक लम्बा दौर चला था। उन्हों ने नेहरू को 17 फ़रवरी 1953 के दिन लिखे ख़त में निम्नलिखित मांग की थी:
“दोनों पक्ष इस पर सहमत हों कि राज्य की एकता बनी रहेगी और’स्वायत्तता का सिद्धांत जम्मू-लद्दाख़ और कश्मीर पर लागू होगा।”
जानिये किस किस कम्पनी ने लगाया है चुना देश को देशभक्ति के नाम पर : आर टी आई से खुलासा :: राज आदिवाल
26 Apr 2016
आप एक विजय माल्या की बात करते हैं.. मैं आपको बता दूँ अभी हाल में एक आरटीआई आवेदन के ज़रिये इस बात का खुलासा हुआ कि 2013 से 2015 के बीच देश के सरकारी बैंकों ने एक लाख 14 हज़ार करोड़ रुपये के कर्जे माफ़ कर दिये। इनमें से 95 प्रतिशत कर्जे बड़े और मझोले उद्योगों के करोड़पति मालिकों को दिये गये थे।

यह रकम कितनी बड़ी है इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर ये सारे कर्ज़दार अपना कर्ज़ा लौटा देते तो 2015 में देश में रक्षा, शिक्षा, हाईवे और स्वास्थ्य पर खर्च हुई पूरी राशि का खर्च इसी से निकल आता।
इसमें हैरानी की कोई बात नहीं। पूँजीपतियों के मीडिया में हल्ला मचा-मचाकर लोगों को यह विश्वास दिला दिया जाता है कि अर्थव्यवस्था में घाटे के लिए आम लोग ज़िम्मेदार हैं क्योंकि वे अपने पूरे टैक्स नहीं चुकाते, बिल नहीं भरते, या शिक्षा, अस्पताल, खेती आदि में सरकारी सब्सिडी बहुत अधिक है, आदि-आदि। ये सब बकवास है। देश की ग़रीब जनता कुल टैक्सों का तीन-चौथाई से भी ज़्यादा परोक्ष करों के रूप में चुकाती है। मगर इसका भारी हिस्सा नेताशाही और अफ़सरशाही की ऐयाशियों पर और धन्नासेठों को तमाम तरह की छूटें और रियायतें देने पर खर्च हो जाता है। इतने से भी उनका पेट नहीं भरता तो वे बैंकों से भारी कर्जे लेकर उसे डकार जाते हैं।

ग़रीबों के कर्जे वसूल करने के लिए उनकी झोपड़ी तक नीलाम करवा देने वाली सरकार अपने इन माई-बापों से एक पैसा नहीं वसूल पाती और फिर कई साल बाद उन्हें माफ़ कर दिया जाता है। दरअसल इस सारी रकम पर जनता का हक़ होता है। करोड़ों लोगों की छोटी-छोटी बचतों से बैंकों को जो भारी कमाई होती है, उसी में से वे ये दरियादिली दिखाते हैं।
आइये अब ज़रा देखते हैं कि इन चोरों में से 10 सबसे बड़े चोर कौन हैं।

1. टॉप टेन में सबसे ऊपर हैं, अनिल अम्बानी का रिलायंस ग्रुप जो 1.25 लाख करोड़ रुपये का कर्ज़ दबाये बैठा है।
2. दूसरे नंबर पर है अपने कारखानों के लिए हज़ारों आदिवासियों को उजाड़ने वाला वेदान्ताल ग्रुप जिस पर 1.03 लाख करोड़ कर्ज़ है।
3. एस्सार ग्रुप पर 1.01 लाख करोड़ कर्ज़ है।
4. मोदी के खास अडानी ग्रुप ने बैंकों के 96,031 करोड़ रुपये नहीं लौटाये हैं। इसके बाद भी उसे 6600 करोड़ रुपये के नये कर्ज़ की मंजूरी दे दी गयी थी लेकिन शोर मच जाने के कारण रद्द हो गयी।
5. जेपी ग्रुप पर 75,163 करोड़ का ऋण है।
6. सज्जन जिन्दल (जो मोदी की पाकिस्तान यात्रा के समय वहाँ पहुँचे हुए थे) के जे.एस.डब्ल्यू. ग्रुप पर 58,171 करोड़ का कर्ज़ है।
7. जी.एम.आर. ग्रुप पर 47,975 करोड़ का ऋण है।
8. लैंको ग्रुप पर 47,102 करोड़ का ऋण है।
9. सांसद वेणुगोपाल धूत की कंपनी वीडियोकॉन पर बैंकों का 45,405 करोड़ का ऋण है।
10. जीवीके ग्रुप कुल 33,933 करोड़ दबाये बैठा है जो 2015 में मनरेगा के लिए सरकारी बजट (34000 करोड़) से भी ज़्यादा है।

डियर जनता आप अभी व्यस्त रहिये अपनी धर्म और जाति पात की गूढ़ ज्ञान गंगा में और अपने अपने नेताओं की जिंदाबाद मुर्दाबाद में लड़ते मरते रहिये आपस में.. देश और देश की संपत्ति का क्या है वो तो आपके यही महान नेता, धर्म गुरु और पूंजीपति मिल बाँट कर जल्द ही चट कर लेंग।.
बस आप अपनी देशभक्ति भारत माता की जय तक सिमित रखिये

Thursday, July 7, 2016

जाकिर नाईक असल में आर एस एस का एजेंट है
07 Jul 2016
जन उदय :- आर एस एस के राष्ट्रवादी लोगो ने जिस तरह से दहशत फैलाई हुई है उससे बच पाना इतना आसान नहीं है , इनके राष्ट्रवादी लोगो ने कभी गोमांस के नाम पर कभी वन्दे मातरम् के नाम पर

आर एस एस अपने इस राष्ट्रवाद के लिए एक बात चाहता है वह यह की हिन्दुवाद के नाम पर देश के सारे वोट एक तरफ हो जाए और मुस्लिम वोट एक तरफ ऐसा हो जाए तो आर एस एस का काम बन जाएगा और इस तरह ये लोग देश पर ब्राह्मण राज लाने में कामयाब हो जाएंगे

आर एस ने इस काम के लिए अपने तरह तरह के बौधिक , सांस्कृतिक , राजनैतिक , धार्मिक , दल और सन्घठन बनाए हुए है जो घूम फिर के आर एस एस की विचारधारा को सपोर्ट करते है

इसमें श्री श्री रवि शंकर , जो अपने तरह से काम करता है , लेकिन अंत में लोगो को संघ की तरफ ले जाता जय उसी तरह रामदेव जिसने आयुर्वेद और योगा के लिए काम किया लेकिन वो भी लोगो को संघ की तरफ ले जता है , ब्रह्मकुमारी , , बजरंग दल ,आदि इसके अलावा दंगे , और इनके राजनातिक हथकंडे सदीव इनके काम आते है .
लेकिन इन कामो से ये सब काम पूरा नहीं हो रहा था सो संघ ने सबसे पहले जाकिर नाईक को सामने लाये जिसके जरिये संघ ने भारत ही नहीं पूरी दनिया के सामने ये साबित किया की जाकिर नाइक से बड़ा आलिम यानी माहजब का जानकार दुनिया में कोई नहीं , इसके जरिये ये इस्लाम के और दुसरे धर्म की विवेचानाये की गई मकसद था जाकिर नाइक को ऐसा व्यक्ति साबित करना की वो जो कहे सारे मुसलमान वही करे , लेकिन शायद ऐसा नहीं हो पाया और मुस्लिम समाज ने उसे सिर्फ एक इस्लामिक स्कोलर के रूप में ही देखा

आर एस एस इस बात में भी कामयाब नहीं हो पाया की जाकिर नाइक किसी तरह से पाकिस्तानी आतंकी संघटन से जुडा हुआ है

सो इस मकसद को हांसिल करने के लिए आतंक की सरजमीं बदली गई यानी यानी आतंकी वारदातों को पाकिस्तान की जगह बंगलादेश से करवाया गया यानी शुरआत की गई और इसमें जाकिर नाइक के सम्बन्ध दरसाए गए .
जाकिर का सम्बन्ध आतंकवादियो से साबित करने का मतलब होगा को भारत के मुसलमानों की एक बहुत बड़ी जमात को आतंकी साबित करना , अब अंत क्या होगा पता नहीं लेकिन आर एस एस ने यह संदेश दे दिया है की मुस्लिम आतंकी होते है और आने वाले समय में अगर हिन्दुओ ने हिम्मत नहीं दिखाई तो मुस्लिम स्मारज्य भारत पर हो जाएगा

इस बात को भी समझ लेना जरूरी है की ओवेशी की तरह जाकिर नाइक आर एस एस का ही गुर्गा है और रामदेव , की तरह एक एजेंट है 
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों की मदद की थी : शम्सुल इस्लाम
06 Jul 2016
RSS/BJP ने फ़िलहाल अपने अव्वल नंबर के देशभक्त ‘वीर’ सावरकर की स्तुति काफ़ी हद तक कम कर दी है। इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इस ‘वीर’ की असली कहानी दुनिया के सामने आ गई है। हिंदुत्व के इस ‘वीर’ ने अंग्रेज़ हुक्मरानों से एक बार नहीं बल्कि पांच बार (1911, 1913, 1914, 1918 और 1 920 में) रिहाई पाने के लिए माफ़ी-नामे लिखे, जिन में अपने क्रांतिकारी इतिहास के लिए माफ़ी मांगी और आगे अंग्रेज़ी राज का वफ़ादार बने रहने का आश्वासन दिया। अंग्रेज़ हकूमत ने इस ‘वीर’ के माफ़ी-नामों को स्वीकारते हुए 50 साल की क़ैद में से 37 साल की कटौती कर दी।

हिंदुत्व टोली के नए ‘देश-भक्त’ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी (1901-1953) हैं। वे स्वतंत्रता-पूर्व हिन्दू-महासभा में सावरकर के बाद सब से अहम नेता थे और यह मानते थे कि हिन्दुस्तान केवल हिन्दुओं के लिए है। वे 1944 में हिन्दू-महासभा के मुखिया भी रहे। आज़ादी के बाद वे देश के पहले अंतरिम मंत्री मंडल, जिस के मुखिया जवाहरलाल नेहरू थे, में उद्योग और रसद मंत्री थे। उन्हों ने अप्रैल 1950 में नेहरू से पाकिस्तान से किस तरह के सम्बन्ध हों, पर विरोध होने की वजह से इस्तीफ़ा दे दिया था। इस्तीफ़े के बाद उन्होंने आरएसएस का हाथ थाम लिया और उस के आदेश पर आरएसएस के एक राजनैतिक अंग, भारतीय जन संघ की स्थापना की और इस के पहले अध्यक्ष भी बने। उनकी मृत्यु 23 जून 1953 को श्रीनगर, जम्मू व कश्मीर के एक जेल में हुई, जहां उन्हें उस क्षेत्र में प्रवेश निषेध आदेश के बावजूद दाख़िल होने के लिए गिरफ़्तार करके रखा गया था।

2015 तक इन की मृत्यु के दिन को ‘धारा 370 समाप्त करो दिवस’ और ‘कश्मीर बचाओ दिवस’.के रूप में मनाया जाता था, लेकिन इस साल (2016 में) इन का दर्जा बढ़ा कर इन्हें देश का ‘एक निस्स्वार्थ देशभक्त’ (A Selfless Patriot of India) घोषित कर दिया गया।

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी कितने महान ‘निस्स्वार्थ देशभक्त’ थे इसे परखने के लिए हमें निम्नलिखित सच्चाइयों पर ग़ौर करना होगा।

(1) डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के स्वतंत्रता-संग्राम में हिस्सेदारी का कोई प्रमाण नहीं हैं।

अगर देश-भक्त होने का मतलब है कि किसी ने अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा लिया हो, दमन सहा हो और किसी भी तरह का त्याग किया हो तो यह जानकर ताजुब्ब नहीं होना चाहिए कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आज़ादी की लड़ाई में कभी भी और किसी भी तरह से भाग नहीं लिया। ना ही तो स्वयं मुखर्जी की लेखनी में ना ही उस समय के सरकारी या ग़ैर-सरकारी दस्तावेज़ों और ना ही हिन्दुत्ववादी संगठनों के समकालीन अभिलेखागार में उन की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सेदारी का कोई ज़िक्र मिलता है। इस के विपरीत आज़ादी की लड़ाई के विरुद्ध किए गए उन के अनगिनित कारनामों का वर्णन ज़रूर मिलता है। आज़ादी से पहले के दस्तावेज़ इस सच्चाई को बार-बार रेखांकित करते हैं कि कैसे इस ‘निस्स्वार्थ देशभक्त’ ने अंग्रेज़ों की सेवा की और सांझी आज़ादी की लड़ाई को धार्मिक आधार पर विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वे जीवन भर सावरकर के मुरीद रहे जो मुस्लिम लीग की तरह हिन्दुओं और मुसलमानों को दो अलग राष्ट्र मानते थे।

(2 ) भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में मुखर्जी बंगाल की मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा की मिली-जुली सरकार में उप-मुख्य मंत्री थे।

जब जुलाई 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस ने अगस्त 8 से अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया, तब मुखर्जी बंगाल की मुस्लिम लीग के नेतृत्व वाली सरकार, जिस में हिन्दू महासभा भी शामिल थी, के वित्त मंत्री थे और साथ में उप-मुख्य मंत्री भी। इस आंदोलन की घोषणा के साथ ही कांग्रेस पर प्रतिबंध लगा दिया गया, कांग्रेस के तमाम बड़े नेता जिन में गांधीजी, नेहरू, मौलाना आज़ाद, सरदार पटेल शामिल थे बन्दी बना लिए गए, पूरा देश एक जेल में बदल गया और हज़ारों लोग इस जुर्म में पुलिस और सेना की गोलिओं से भून दिए गए कि वे तिरंगे झंडे को लहराते हुए सार्वजनिक स्थानों से गुज़रना चाह रहे थे। हिन्दू राष्ट्रवादी संगठनों जैसे कि हिन्दू महासभा व आरएसएस और मुस्लिम राष्ट्रवादी संगठन, मुस्लिम लीग ने कांग्रेस द्वारा छेड़े गए भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध ही नहीं किया बल्कि इस को कुचलने के लिए अंग्रेज़ शासकों को हर प्रकार से मदद करने का फैसला लिया।

जब देश में किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि पर पाबंदी थी उस समय हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग को एक साथ मिलकर बंगाल, सिँध और NWFP में साझा सरकारें चलाने की अनुमति दी गई। अंग्रेज़ों के दमनकारी विदेशी राज को बनाए रखने में सहायता हेतु इस शर्मनाक गठबंधन को महामंडित करते हुए हिन्दू महासभा के अध्यक्ष सावरकर ने 1942 के हिन्दू महासभा के कानपुर अधिवेशन को सम्बोधित करते हुए बताया:

“व्यावहारिक राजनीति में भी हिन्दू महासभा जानती है कि हमें बुद्धिसम्मत समझौतों के ज़रिये आगे बढ़ना चाहिए। हाल ही में सिंध की सच्चाई को देखें, यहां सिंध हिन्दू महासभा ने निमंत्रण के बाद मुस्लिम लीग के साथ मिली-जुली सरकार चलाने की जिम्मेदारी ली। बंगाल का उदाहरण भी सब को पता है। उद्दंड लीगी (अर्थात् मुस्लिम लीग) जिन्हें कांग्रेस अपनी तमाम आत्मसमर्पणशीलता के बावजूद रख सकी, हिन्दू महासभा के साथ संपर्क में आने पर तर्क संगत समझौतों और सामाजिक सम्बन्धों के लिए तैयार हो गए और वहां की मिली-जुली सरकार मिस्टर फजलुल हक़ के प्रधानमंत्रित्व और महासभा के क़ाबिल और मान्य नेता श्यामाप्रसाद मुकर्जी के नेतृत्व में दोनों समुदायों के फ़ायदे के लिए एक साल तक सफलतापूर्वक चली।”

(3) बंगाल के उप-मुख्यमंत्री रहते हुए मुखर्जी ने अंग्रेज़ गवर्नर को चिट्ठी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया।

खर्जी ने एक शर्मनाक काम करते हुए बंगाल केअंग्रेज़ गवर्नर को जुलाई 26, 1 942 में एक सरकारी पत्र के द्वारा इस देश भर में चल रहे आंदोलन को शुरू होने से पहले ही कुचलने का आह्वान करते हुए लिखा :

“अब मुझे उस स्थिति के बारे में बात करनी है जो कांग्रेस द्वारा छेड़े गए व्यापक आंदोलन के मद्देनज़र पैदा होगी। युद्ध [दूसरा विश्व युद्ध] के दिनों में जो भी आम लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश करेगा, जिस से बड़े पैमाने पर दंगे या असुरक्षा फैले उसका हर हाल में सत्ताधारी सरकार द्वारा प्रतिरोध करना ही होगा।”

(4) मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के कुचलने को सही ठहराया और अंग्रेज़ शासकों को देश का मुक्तिदाता बताया ।


मुखर्जी ने बंगाल की मुस्लिम लीग-हिन्दू महासभा साझी सरकार की ओर से बंगाल के अंग्रेज़ गवर्नर को लिखी चिट्ठी में अंग्रेज़ हकूमत को प्रांत का मुक्तिदाता बताते हुए उसे भारत छोड़ो आंदोलन को कुचलने के लिए कई क़दम भी सुझाए:

“प्रश्न यह है कि बंगाल में भारत छोड़ो आंदोलन से कैसे निपटा जाए? राज्य का शासन इस तरह चलाया जाए कि कोंग्रेस की तमाम कोशिशों के बावजूद यह आंदोलन बंगाल में क़दम जमाने में कामयाब न हो सके। हमारे लिए विशेषकर उत्तरदायी मंत्रियों के लिए जनता को यह समझाना संभव होना चाहिए कि आज़ादी, जिस के लिए कांग्रेस ने आंदोलन शुरू किया है, वह पहले से ही जन-प्रतिनिधियों को प्राप्त है। कुछ मामलों में आपातकालीन हालात की वजह से यह सीमित हो सकती है। भारतीयों को अंग्रेज़ों पर भरोसा करना चाहिए, ब्रिटेन के वास्ते नहीं, इस लिए नहीं कि इस से ब्रिटेन को कुछ फायदा होग, बल्कि प्रांत की आज़ादी और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए।”

(5) हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता के तौर पर मुखर्जी ने उस समय अंग्रेज़ी सेना के लिए देश भर में ‘भर्ती कैंप’ लगाए जब सुभाष चन्द्र बोस ‘आज़ाद हिंद फ़ौज़’ द्वारा देश को आज़ाद कराना चाहते थे।

एक और शर्मनाक घटनाक्रम में ‘वीर’ सावरकर और मुखर्जी के नेतृत्व वाली हिन्दू महासभा ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेज़ सरकार को पूर्ण समर्थन देने का फ़ैसला किया। याद रहे कि कांग्रेस ने इस युद्ध को साम्राज्यवादी युद्ध की संज्ञा दी थी और यही समय था जब नेताजी ‘आज़ाद हिंद फौज़’ खड़ी करके एक सैनिक अभियान द्वारा देश को अंग्रेज़ी चुंगल से मुक्त कराना चाहते थे। हिन्दू महासभा लुटेरे अंग्रेज़ शासकों की किस हद तक मदद करना चाहती थी इस का अंदाज़ा ‘वीर’ सावरकर के निम्नलिखित आदेश से लगाया जा सकता है जो उन्होंने देश के हिन्दुओं के लिए जारी किया था:
“जहां भारत की सुरक्षा का सवाल है, हिन्दू समाज को भारत सरकार [अंग्रेज़ सरकार] के युद्ध सम्बन्धी प्रयासों में सहानुभूतिपूर्ण सहयोग की भावना से बेहिचक जुड़ जाना चाहिए जब तक यह हिन्दू हित के फायदे में हो। हिन्दुओं को बड़ी संखिया में थल सेना, नौ सेना और वायु सेना में शामिल होना चाहिए और सभी आयुध, गोला-बारूद और जंग का सामान बनाने वाले कारखानों वग़ैरा में प्रवेश करना चाहिए…ग़ौरतलब है कि युद्ध में जापान के कूदने के कारण हम ब्रिटेन के शत्रुओं के सीधे निशाने पर आ गये हैं। इस लिए हम चाहें या ना चाहें, हमें युद्ध के क़हर से अपने परिवार और घर को बचाना है, और यह भारत की सुरक्षा के सरकारी युद्ध प्रयासों को ताक़त पहुंचाकर ही किया जा सकता है। इस लिए हिन्दू महासभाओं को खास कर बंगाल और असम के प्रांतों में, जितना असरदार तरीक़े से संभव हो, हिन्दुओं को अविलम्ब सेनाओं में भर्ती होने के लिए प्रेरित करना चाहिए।”

(6) मुखर्जी ने जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जे की वकालत की थी।

हिंदुत्व टोली के दावों के बरक्स मुखर्जी ने जम्मू और कश्मीर की विशेष हैसियत को स्वीकारा था। इस सिलसिले में प्रधान मंत्री नेहरू और उनके बीच चिट्ठी-पत्री का एक लम्बा दौर चला था। उन्हों ने नेहरू को 17 फ़रवरी 1953 के दिन लिखे ख़त में निम्नलिखित मांग की थी:

“दोनों पक्ष इस पर सहमत हों कि राज्य की एकता बनी रहेगी और’स्वायत्तता का सिद्धांत जम्मू-लद्दाख़ और कश्मीर पर लागू होगा।”