सुरेश वाडकर

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Sunday, June 7, 2015

कर्ज माफी घोटाला: कहां गया 52,000 करोड़, किसान बेच रहे हैं किडनी

कर्ज माफी घोटाला: कहां गया


 52,000 करोड़, किसान बेच रहे हैं किडनी







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जो ऐग्रिकल्चल लोन नहीं था उसे ऐग्रिकल्चर लोन में तब्दील कर दिया गया।
नई दिल्ली।। करीब पांच साल पहले यूपीए सरकार ने 52,000 करोड़ रुपए की रकम बदहाल किसानों के कर्ज माफी के लिए आवंटित की थी। इसका असर यह है कि आंध्र प्रदेश में कर्ज तले दबे किसान कर्ज मुक्ति के लिए किडनी बेच रहे हैं। कहा जाता है कि यूपीए सरकार को दोबरा सत्ता पर काबिज कराने में इस योजना का बड़ा हाथ रहा था। दूसरी तरफ कैग ने इस योजना में हुई घोर अनियमितता पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

52,000 करोड़ की रकम में से आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को करीब 57 फीसदी रकम मिली थी। इसमें आंध्र प्रदेश के हिस्से 11000 करोड की रकम आई। करीब 77 लाख किसानों के बीच यह रकम बांटी गई थी। लेकिन कैग ने खुलासा किया है कि बड़ी संख्या में वैसे किसानों को फायदा पहुंचाया गया जो इस योजना के लिए योग्य नहीं थे। छोटे और गरीब किसानों को इसका फायदा नहीं मिला और वह कर्ज के दुष्चक्र में फंसे रहे। इसका नतीजा इतना भयावह है कि वह अपनी किडनी बेच रहे हैं। माजरा यह है कि जो ऐग्रिकल्चर लोन नहीं था उसे ऐग्रिकल्चर लोन में तब्दील कर फायदा पहुंचाया गया।

कैग ने अनियमितता के कई सैंपल पेश किए हैं। आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक ने कम से कम 17 कर्जदारों की लोन कैटिगरी ही बदल दी। जो बड़े किसान थे उन्हें सीमांत किसान बनाकर पूरा लोन माफ कर दिया गया। यह केवल आंध्र प्रदेश की ही कहानी नहीं है बल्कि देश के कई राज्यों में ऐसा किया गया। कैग ने 25 राज्यों के 92 जिलों से 715 बैंक ब्रांचों की गड़बड़ियां पेश की हैं। आंध्र प्रदेश में 32,00 लोन अकाउंट्स की जांच की गई तो करीब 132 मामले ऐसे आए जिनमें गलत लोगों को इस स्कीम का फायदा पहुंचाया गया।

पैसा मिलता तो क्यों बेचते किडनी?
बरम वेंकट रेड्डी 29 साल की उम्र में ही अधेड़ की तरह लगने लगे हैं। आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले के मैकवरम गांव के रहने वाले वेंकट के लिए सारी उम्मीदों की हत्या हो गई है। इन्होंने कर्ज से मुक्ति के लिए जीवन में जो कुछ भी था उसे बेच दिया। आधा एकड़ जमीन, पत्नी के हिस्से का 80 ग्राम सोने का गहना के साथ अपनी किडनी भी।

पिछले साल वेंकट को मिर्च की खेती से 5 लाख का नुकसान हुआ। वेंकट को गांव के श्रीनिवास ने सलाह दी कि वह अपनी किडनी बेच देगा तो काफी पैसे मिल जाएंगे और कर्ज से मुक्ति भी मिल जाएगी। इन्होंने फरवरी 2004 में सिकंदराबाद के एक हॉस्पिटल में सर्जरी करवाकर लेफ्ट किडनी एक 30 साल के युवक में ट्रांसप्लांट करवा दी। वेंकट ने कहा, 'मुझे खुशी है कि मैंने किसी की जिंदगी बचा दी। लेकिन मुझे नहीं पता है कि मेरा क्या होगा। मैंने यह मानवता के आधार पर किया है।' उन्होंने किडनी के बदले पैसे लेने का खुलासा नहीं किया लेकिन इतना जरूर कहा कि मुझे उतने पैसे नहीं मिले जितनी कर्ज की रकम थी।

ठीक ऐसी ही कहानी एक 30 साल के कर्जदार किसान माराबोयना अप्पा राव की है। वह कर्ज चुकाने में नाकाम रहे तो किडनी बेचने का मन बना लिया। दो दलालों ने मजबूरी का फायदा उठाने के लिए उनसे संपर्क साधा। दोनों ने राव को किडनी के बदले 4.5 लाख रुपए देने वादा किया था। अप्पा ने बताया कि किडनी निकालने के बाद केवल 1.75 लाख रुपए मिले। यह रकम अप्पा को कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। अप्पा फिलहाल कंस्ट्रक्शन लेबर हैं। ऐसी कहानी कई किसानों की है। अंग्रेजी अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक 1998 से 2000 के बीच किडनी सेल रैकेट इस क्षेत्र में पूरी तरह से पसर गया था। किडनी का धंधा करने वाले दलालों को पता था कि बेबस किसानों से इसका फायदा उठाया जा सकता है।

भारत के घोटालों की सूची (वर्ष के अनुसार) http://hi.wikipedia.org/s/12lp

भारत के घोटालों की सूची (वर्ष के अनुसार)

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
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आजादी से अब तक देश में काफी बड़े घोटालों का इतिहास रहा है। नीचे भारत में हुए बड़े घोटालों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है-
जीप खरीदी (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से २००० जीपों को सौदा किया। सौदा ८० लाख रुपये का था। लेकिन केवल १५५ जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई। लेकिन १९५५ में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
साइकिल आयात (१९५१)
तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।
मुंध्रा मैस (१९५८)
हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के १.२ करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।
तेजा ऋण
१९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।
पटनायक मामला
१९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।
मारुति घोटाला
मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।
कुओ ऑयल डील
१९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।
अंतुले ट्रस्ट
१९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।
एचडीडब्लू दलाली (१९८७)
जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।
बोफोर्स घोटाला 
१९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय १५५ मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।
सिक्योरिटी स्कैम (हर्षद मेहता कांड)
१९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब ५००० करोड़ रुपये का घाटा हुआ।
इंडियन बैंक
१९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।
चारा घोटाला 
१९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।
तहलका
इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डीलभी इसमें से एक है।
स्टॉक मार्केट
स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।
स्टांप पेपर स्कैम
यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।
सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।
मनी लांडरिंग
२००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।


बोफर्स घोटाला- ६४ करोड़ रु.
मामला दर्ज हुआ - २२ जनवरी, १९९०
सजा - किसी को नहीं
वसूली - शून्य
एच.डी. डब्ल्यू सबमरीन- ३२ करोड़ रु.
मामला दर्ज हुआ - ५ मार्च, १९९०
(सीबीआई ने अब मामला बंद करने की अनुमति मांगी है।)
सजा - किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(१९८१ में जर्मनी से ४ सबमरीन खरीदने के ४६५ करोड़ रु. इस मामले में १९८७ तक सिर्फ २ सबमरीन आयीं, रक्षा सौदे से जुड़े लोगों द्वारा लगभग ३२ करोड़ रु. की कमीशनखोरी की बात स्पष्ट हुई।)
स्टाक मार्केट घोटाला- ४१०० करोड़ रु.
मामला दर्ज हुआ - १९९२ से १९९७ के बीच ७२
सजा - हर्षद मेहता (सजा के १ साल बाद मौत) सहित कुल ४ को
वसूली - शून्य
(हर्षद मेहता द्वारा किए गए इस घोटाले में लुटे बैंकों और निवेशकों की भरपाई करने के लिए सरकार ने ६६२५ करोड़ रुपए दिए, जिसका बोझ भी करदाताओं पर पड़ा।)
एयरबस घोटाला- १२० करोड़ रु.
मामला दर्ज हुआ - ३ मार्च, १९९०
सजा - अब तक किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(फ्रांस से बोइंग ७५७ की खरीद का सौदा अभी भी अधर में, पैसा वापस नहीं आया)
चारा घोटाला- ९५० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - १९९६ से अब तक कुल ६४
सजा - सिर्फ एक सरकारी कर्मचारी को
वसूली - शून्य
(इस मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हालांकि ६ बार जेल जा चुके हैं)
दूरसंचार घोटाला-१२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - १९९६
सजा - एक को, वह भी उच्च न्यायालय में अपील के कारण लंबित
वसूली - ५.३६ करोड़ रुपए
(तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम द्वारा किए गए इस घोटाले में छापे के दौरान उनके पास से ५.३६ करोड़ रुपए नगद मिले थे, जो जब्त हैं। पर गाजियाबाद में घर (१.२ करोड़ रु.), आभूषण (लगभग १० करोड़ रुपए) बैंकों में जमा (५ लाख रु.) शिमला और मण्डी में घर सहित सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा। सूत्रों के अनुसार सुखराम के पास उनके ज्ञात स्रोतों से ६०० गुना अधिक सम्पत्ति मिली थी।)
यूरिया घोटाला- १३३ करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २६ मई, १९९६
सजा - अब तक किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(प्रधानमंत्री नरसिंहराव के करीबी नेशनल फर्टीलाइजर के प्रबंध निदेशक सी.एस.रामाकृष्णन ने यूरिया आयात के लिए पैसे दिए, जो कभी नहीं आया।)
सी.आर.बी- १०३० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २० मई, १९९७
सजा - किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(चैन रूप भंसाली (सीआरबी) ने १ लाख निवेशकों का लगभग १ हजार ३० करोड़ रु. डुबाया और अब वह न्यायालय में अपील कर स्वयं अपनी पुर्नस्थापना के लिए सरकार से ही पैकेज मांग रहा है।)
केपी- ३२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २००१ में ३ मामले
सजा - अब तक नहीं
वसूली - शून्य
(हर्षद मेहता की तरह केतन पारेख ने बैंकों और स्टाक मार्केट के जरिए निवेशकों को चूना लगाया।)

आजाद भारत के महान घोटाले भी लोकतंत्र का स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है

आजाद भारत के महान घोटाले भी लोकतंत्र का स्वास्थ्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसके तीनों अंगों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संबंध कैसे हैं और इन तीनों में जवाबदेही बची है या नहीं. आज भारत की दुर्दशा भी इन्ही दो कारकों पर आंकी जा सकती है. पिछले साल भारत में भ्रष्टाचार और घोटालों का बोलबाला रहा. ऐसा लगा, जैसे भारत में घोटाले नहीं, घोटालों में भारत है. आम जनता जहां महंगाई से बदहाल हुई जा रही है, वहीं हमारे नेता और सरकारी अफ़सर नियमों को ताक पर रखकर बेशर्मी से जनता का पैसा दबाए जा रहे हैं. देखने में आया कि भारतीय प्रजातंत्र के तीनों अंग आपस में ही लड़ते रहे. लड़ ही नहीं रहे हैं, बल्कि अपने भीतर के ही विरोधाभासों से जंग भी कर रहे हैं. मंत्री प्रधानमंत्री की बात नहीं मानते हैं और सुप्रीमकोर्ट हाईकोर्ट में हो रहे भ्रष्टाचार पर उंगली उठा रहा है. सरकारी अफ़सर घोटालों में लिप्त होने के बावजूद पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं. भारत में आज ये सारी घटनाएं एक साथ ऊपरी सतह पर और जनता के सामने आ गई हैं, इसलिए आश्चर्य होता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि घोटाला और अनियमितता कोई नई बात है. इस देश में घोटालों की पूरी श्रृंखला है और वह भी बहुत लंबी. भारत में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां घोटाले नहीं हुए हैं. पहले ये सारे घोटाले जनता की नज़र से या तो बच जाते थे या दबा दिए जाते थे. बात यह भी है कि आपस में ही फूट पड़ने की वजह से राज्य के तीनों तंत्रों में झगड़ा हो गया है और सब एक-दूसरे का गिरेबान पकड़ने में लग गए हैं. अच्छी बात यह है कि इस वजह से जनता को घोटालों के बारे में पता भी चल गया है. आज के भारत में किसी को भी ईमानदार कहना एक ज़ोखिम की बात बन गई है. कल के जो ईमानदार थे, आज उनकी कलई खुल गई है. आज भी मनमोहन सिंह अपने आप को जितना पाक-साफ़ बताएं, लेकिन जनता ने सबसे बड़े घोटाले तो उन्हीं की नाक के नीचे होते देखे हैं. यही हाल शुरू से रहा है. कोई नई बात नहीं है यह. वी के कृष्णमेनन का मुस्तक़बिल इतना ऊंचा था कि खुद नेहरू जी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था और उन्हें भारत के रचयिताओं में जगह दी. लेकिन भारत का पहला घोटाला भी उन्होंने ही कर डाला था, यह भी सच है. आज़ाद होने के बाद से अब तक हमारे प्रजातंत्र का बुरा हाल हो गया है. जवाबदेही धीरे-धीरे सामाजिक जीवन से ग़ायब होती जा रही है. देशप्रेम की कोई जगह नहीं बची है. देश के नेताओं और सरकारी अफसरों के मूल्य घटते जा रहे हैं और आज स्थिति यह आ गई है कि सभी जनता को ठगने में लगे हुए हैं. आइए, हम आपको बताते हैं कि इस पूरे भ्रष्ट तंत्र की नींव इतिहास में कितनी दूर तक जाती है और भारत के सबसे बड़े घोटालों के इतिहास से आपका परिचय कराते हैं. एक पौधे को वटवृक्ष बनने के लिए भरपूर खाद-पानी की भी ज़रूरत होती है. आज़ादी के ठीक बाद हमारे राजनेताओं ने घोटालों के फलने-फूलने का पूरा इंतजाम कर दिया था. अगर जीप घोटाले के आरोपी वी के कृष्णमेनन को रक्षा मंत्री नहीं बनाया जाता, प्रताप सिंह कैरों को क्लीन चिट नहीं दी जाती और नागरवाला कांड की सच्चाई जनता के बीच आ जाती तथा असली गुनहगारों का पता चल जाता तो शायद फिर कोई प्रभावशाली आदमी घोटाला करने से डरता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नतीजतन, इस देश को जीप से लेकर 2-जी स्पेक्ट्रम तक सैकड़ों घोटाले सहने पड़े. और न जाने कब तक यह सब सहना पड़ेगा. जीप घोटाला आज़ाद हिंदुस्तान का पहला घोटाला था. देश अभी आज़ादी के बाद कश्मीर मसले पर पाकिस्तान से दो-दो हाथ कर चुका था. तब वी के मेनन ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे. पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को क़रीब 4603 जीपों की जरूरत थी. मेनन इस सौदे में कूद पड़े. उनके कहने पर रक्षा मंत्रालय ने उस वक्त 300 पाउंड प्रति जीप के हिसाब से 1500 जीपों का आदेश दे दिया, लेकिन 9 महीने तक जीपें नहीं आईं. 1949 में जाकर महज 155 जीपें मद्रास बंदरगाह पर पहुंचीं. इनमें से ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं. जांच हुई तो मेनन दोषी पाए गए, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. आगे चलकर उन्हें रक्षा मंत्री भी बनाया गया. ज़ाहिर है, जीप घोटाले ने भारत को घोटालों के देश में तब्दील करने के लिए बीजारोपण तो कर ही दिया था, क्योंकि इससे यह साबित हुआ कि आप भले ही घोटाले कर लो, लेकिन सत्ता पक्ष का समर्थन आपके पास है तो आपको कुछ नहीं होगा. इसमें बाद में कुछ भी नहीं हुआ. स़िर्फ 1992 से लेकर अब तक घोटालों की वजह से देश की आम जनता का लगभग एक करोड़ करोड़ रुपये (10000000 रुपये) का नुक़सान हो चुका है या कहें, आम आदमी का एक करोड़ करोड़ रुपया लूटा जा चुका है. अब जीप के बाद बारी थी साइकिल की, जो साइकिल इंपोट्‌र्स घोटाले के रूप में सामने आई. 1951 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव एस ए वेंकटरमण थे. ग़लत तरीक़े से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा जारी करने का आरोप लगा. इसके बदले उन्होंने रिश्वत भी ली. इस मामले में उन्हें जेल भी भेजा गया. लेकिन ऐसा भी नहीं था कि हर मामले में आरोपी को जेल भेजा ही गया. जैसे सिराजुद्दीन की डायरियों का मामला. साइकिल घोटाले के 6 साल बाद यानी 1956 में यह खबर आई कि उड़ीसा के कुछ नेता व्यापारियों के काम कराने के बदले उनसे दलाली ले रहे थे. जब इस संबंध में छापेमारी हुई. पूर्वी भारत के एक बड़े व्यवसायी मुहम्मद सिराजुद्दीन एंड कंपनी के कोलकाता और उड़ीसा स्थित दफ्तरों में भी छापेमारी हुई. पता चला कि सिराजुद्दीन कई खानों का मालिक है और उसके पास से एक ऐसी डायरी मिली, जिससे साबित हो रहा था कि उसके संबंध कई जाने-माने राजनेताओं से थे. लेकिन इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं हुई. कुछ समय बाद जब यह खबर मीडिया के हाथ लगी और छपने लगी, तब तत्कालीन खान और ईंधन मंत्री केशव देव मालवीय ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने उड़ीसा के एक खान मालिक से 10,000 रुपये की दलाली ली थी. बाद में नेहरू के दबाव में मालवीय को इस्ती़फा देना पड़ा. लेकिन इस सबके बीच एक अच्छी बात यह रही कि उस वक्त भी कुछ ऐसे लोग थे, जो भ्रष्टाचार के खिला़फ लिख-बोल सकते थे. उदाहरण के लिए मूंध्रा कांड. 1957 में फिरोज गांधी ने एक सनसनीखेज कांड का खुलासा कर संसद को हिला दिया. उन्होंने बताया कि उद्योगपति हरिदास मूंध्रा की कई कंपनियों को मदद पहुंचाने के लिए उनके शेयर भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा 1.25 करोड़ रुपये में खरीदवाए गए. निगम द्वारा शेयरों की बढ़ी हुई कीमत दी गई. जांच हुई तो उस मामले में वित्त मंत्री टी टी कृष्णामाचारी, वित्त सचिव एच एम पटेल और भारतीय जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष दोषी पाए गए. मूंध्रा पर 160 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप था. 180 अपराधों के मामले थे. दबाव बढ़ा तो वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया. मूंध्रा को 22 साल की सजा मिली. कृष्णामाचारी को तो उनके पद से हटा दिया गया, लेकिन प्रताप सिंह कैरों के मामले में सरकार ने ऐसी तेज़ी नहीं दिखाई. 1963 में पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के खिला़फ कांग्रेसी नेता प्रबोध चंद्र ने आरोपपत्र पेश किया. आरोपपत्र में ये बातें शामिल थीं कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों ने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अनाप-शनाप धन-संपत्ति जमा किया. इसमें उनके परिवारीजन शामिल थे. मसलन, अमृतसर कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज लि., प्रकाश सिनेमा, कैरों ब्रिक सोसायटी, मुकुट हाउस, नेशनल मोटर्स अमृतसर, नीलम सिनेमा चंडीगढ़, कैपिटल सिनेमा जैसी संपत्तियों पर प्रताप सिंह कैरों के रिश्तेदारों का मालिकाना हक़ था. जब जांच हुई तो रिपोर्ट में कहा गया कि कैरों के पुत्र एवं पत्नी ने पैसा कमाया है. लेकिन इस सब के लिए प्रताप सिंह कैरों को सा़फ-सा़फ बरी कर दिया गया. कैरों तो बच गए, लेकिन एक और मुख्यमंत्री बीजू पटनायक अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर यह आरोप लगा कि उन्होंने अपनी ही एक निजी कंपनी कलिंगा ट्यूब्स को एक सरकारी ठेका दिया. इस आरोप के बाद उन्हें इस्ती़फा देने पर मजबूर होना प़डा. इतने सालों में राजनेताओं और घोटालों का मानो एक अनकहा संबंध स्थापित हो गया था और इसमें प्रधानमंत्री तक का नाम सामने आने लगा. जैसे नागरवाला कांड. 1971 की 24 मई को दिल्ली में एसबीआई की संसद मार्ग शाखा के कैशियर के पास एक फोन आया. फोन पर उक्त कैशियर से बांग्लादेश के एक गुप्त मिशन के लिए 60 लाख रुपये की मांग की गई और कहा गया कि इसकी रसीद प्रधानमंत्री कार्यालय से ले जाएं. यह खबर आई कि फोन पर सुनी जाने वाली आवाज़ प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पी एन हक्सर की थी. बाद में पता चला कि यह कोई और आदमी था. रुपये लेने वाले और नकली आवाज निकाल कर रुपये की मांग करने वाले व्यक्ति रुस्तम सोहराबनागरवाला को गिरफ्तार कर लिया गया. 1972 में संदेहास्पद हालात में नागरवाला की मृत्यु हो गई. उसकी मौत के साथ ही मामले की असलियत भी जनता के सामने नहीं आ सकी. इस मामले को रफा-दफा कर दिया गया. घोटालों को दबाने का यह काम अब ज़ोर पकड़ने लगा था. आपातकाल के दौरान कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवराज अर्स और उनके मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के क़रीब 25 आरोप लगे. उन पर 20 एकड़ जमीन अपने दामाद को आवंटित करने, अपने परिवार को बेंगलुरू की पॉश कालोनी में चार कीमती भूखंड आवंटित करने, अपने भाई को राज्य फिल्मोद्योग का प्रभारी बनाने आदि सगे-संबंधियों को अवैध तरीकों से फायदा पहुंचाने के कई आरोप लगे, लेकिन मामला सामने आने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ. 1980 का दशक भी घोटालों के लिहाज़ से 2010 की टक्कर ले रहा था. कुओ तेल कांड. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 3 लाख टन शोधित तेल और 5 लाख टन हाई स्पीड डीजल की खरीद के लिए टेंडर निकाला. यह टेंडर हरीश जैन को मिला. जैन की पहुंच राजनैतिक गलियारों तक थी. इस सौदे में 9 करोड़ रुपये से ज़्यादा की हेराफेरी का आरोप लगा. जांच भी हुई. लेकिन कहा जाता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय से ही इस मामले से जुड़ी फाइलें गुम हो गईं. तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री पी सी सेठी को इस्ती़फा देना पड़ा. बाद में उन्हें फिर से मंत्री बना दिया गया. 1982 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया. उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा इकट्ठा किया था. जो लोग, खासकर बड़े व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून में ढील दे दी जाती थी. ऐसे लोगों के लिए नियम-क़ानून का कोई मतलब नहीं होता था. इस मामले में मुख्यमंत्री पद से ए आर अंतुले को हटना पड़ा. इसके बाद इस दशक के सबसे हाई प्रोफाइल घोटाले से लोगों का परिचय हुआ. बोफोर्स. 1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया. कहा गया कि इस सौदे को पाने के लिए 64 करोड़ रुपये की दलाली दी गई थी. ओटावियो क्वात्रोची और राजीव गांधी का नाम इसमें सामने आया. सीबीआई को जांच भी सौंपी गई, लेकिन अंतिम परिणाम अब तक सामने नहीं आ सका है. उल्टे सीबीआई ने कोर्ट में अर्जी लगाकर इस मामले को बंद करने की गुहार भी लगाई. हालांकि इसमें रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह को इस्ती़फा देना पड़ा. यह दशक इसलिए भी चर्चा में रहा कि घोटाला पैदा करने के लिए भी घोटाला किया गया. मसलन, सेंट किट्‌स धोखाधड़ी. इस मामले में वी पी सिंह की साफ छवि को धूमिल करने के लिए नरसिम्हाराव ने एक षड्‌यंत्र रचा. उस वक्त नरसिम्हाराव विदेश मंत्री थे. उन्होंने वी पी सिंह पर अवैध पैसा लेने का आरोप लगवाया. बाद में पता चला कि जिन दस्तावेजों के सहारे वी पी सिंह को फंसाने की कोशिश की गई थी, उन पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर थे, जबकि सच्चाई यह थी कि वी पी सिंह किसी भी सरकारी दस्तावेज पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं करते थे. नतीजतन, वी पी सिंह इस मामले में निर्दोष साबित हुए. नब्बे के दशक तक आते-आते घोटालों का स्वरूप भी बदलने लगा. घोटालेबाज़ चारे जैसी चीज से भी पैसा पैदा करने लगे. जैसे बिहार का चारा घोटाला. लालू प्रसाद यादव जब मुख्यमंत्री थे तो यह घोटाला सामने आया. पहली बार लोगों को लगा कि पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे में भी घोटाला करके सैकड़ों करोड़ कमाए जा सकते हैं. करीब एक हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में राज्य के दो मुख्यमंत्रियों की संलिप्तता की बात सामने आई. उस समय के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और 1980 में मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र दोनों के नाम इस घोटाले से प्रमुख रूप से जुड़े. सीबीआई को इस घोटाले की जांच करने का ज़िम्मा दिया गया. 20 साल से ज़्यादा हो गए, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है. नब्बे के दशक में अर्थव्यवस्था तो मुक्त हो गई, लेकिन मुक्त अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए कोई क़ानून नहीं बन सका. नतीजतन, हमें प्रतिभूति जैसे क्षेत्र यानी शेयर मार्केट में भी घोटाला देखने को मिला. यह घोटाला बैंक अफसरों, नेताओं और शेयर दलालों की मिलीभगत का नतीजा था. शातिराना ढंग से ये सारे लोग मिलकर सरकारी नियम-क़ायदों को तोड़कर करोड़ों रुपये की हेराफेरी करते रहे. यह घोटाला 10 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का था. इस मामले में सबसे चर्चित नाम रहा शेयर दलाल हर्षद मेहता का. हर्षद ने इस मामले में नरसिम्हाराव पर भी आरोप लगाया था, लेकिन अंत तक असली अपराधियों का नाम सामने नहीं आ सका. हर्षद मेहता की मृत्यु जेल में रहने के दौरान ही हो गई. शीर्ष राजनेताओं की संलिप्तता का एक और नमूना था लक्खू भाई पाठक केस. अचार व्यापारी लक्खू भाई पाठक ने नरसिम्हाराव और चंद्रा स्वामी पर 10 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया. लक्खू भाई पाठक इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय व्यापारी थे. उन्होंने यह आरोप लगाया कि 100 हजार पाउंड उन्हें बेवक़ूफ बनाकर इन दोनों ने ठग लिए थे. लक्खू भाई पाठक की मृत्यु हो गई और राव एवं चंद्रा स्वामी 2003 में सबूतों के अभाव में बरी हो गए. एक-एक करके मंत्री और नेता घोटाले पर घोटाले करते गए. सुखराम जो कि दूरसंचार मंत्री थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने हैदराबाद की एक निजी कंपनी को टेंडर दिलाने में मदद की, जिसकी वजह से सरकार को 1.6 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. 2002 में उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा. फिर यूरिया घोटाला हुआ. नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सी एस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रुपये का चूना लगा दिया. यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई. इस मामले में अब तक कुछ भी नहीं हुआ. नित नए तरीके खोजे जाने लगे. इसी क्रम में हवाला भी सामने आया. देश से बाहर धन भेजने की इस कला से आम हिंदुस्तानियों का परिचय इसी घोटाले की वजह से हुआ. 1991 में सीबीआई ने कई हवाला ऑपरेटरों के ठिकानों पर छापे मारे. इस छापे में एस के जैन की डायरी बरामद हुई. इस तरह यह घोटाला 1996 में सामने आया. इस घोटाले में 18 मिलियन डॉलर घूस के रूप में देने का मामला सामने आया, जो कि बड़े-बड़े राजनेताओं को दी गई थी. आरोपियों में से एक लालकृष्ण आडवाणी भी थे, जो उस समय नेता विपक्ष थे. इस घोटाले से पहली बार यह बात सामने आई कि सत्ताशीन ही नहीं, बल्कि विपक्ष के नेता भी चारों ओर से पैसा लूटने में लगे हैं. दिलचस्प बात यह थी कि यह पैसा कश्मीरी आतंकवादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन को गया था. कई नामों के खुलासे हुए, लेकिन सीबीआई किसी के भी खिला़फ सबूत नहीं जुटा सकी. नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने यह खुलासा किया कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रुपये दिए गए, ताकि नरसिम्हाराव की सरकार को समर्थन देकर बचाया जा सके. यह घटना 1993 की है. इस मामले में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा. 1994 में खाद्य आपूर्ति मंत्री कल्पनाथ राय ने बा़जार भाव से भी महंगी दर पर चीनी आयात का फैसला लिया. यानी चीनी घोटाला. इस कारण सरकार को 650 करोड़ रुपये का चूना लगा. अंतत: उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा. बहरहाल, नब्बे के दशक में घोटाले भी अजीबोग़रीब शक्ल लेने लगे. जैसे जूता घोटाला. सोहिन दया नामक एक व्यापारी ने मेट्रो शूज के रफीक तेजानी और मिलानो शूज के किशोर सिगनापुरकर के साथ मिलकर कई सारी फर्जी चमड़ा कोऑपरेटिव सोसाइटियां बनाईं और सरकारी धन लूटा. 1995 में इसका खुलासा हुआ और बहुत सारे सरकारी अफसर, महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन के अफसर, सिटी बैंक, बैंक ऑफ ओमान, देना बैंक आदि भी इस मामले में लिप्त पाए गए. इन सबके खिला़फ आरोपपत्र दाखिल किया गया, लेकिन कोई नतीजा सामने नहीं आ सका. तब तक देश 21वीं सदी में पहुंच चुका था. अब घोटाले कैमरे पर भी होने लगे और सीधे दुनिया ने इसे होते हुए देखा. इसका एक उदाहरण तहलका कांड है. एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा समझौते में गड़बड़ी करते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए लोगों ने टेलीविजन और अ़खबारों में देखा. इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया. इस मामले में अटल बिहारी वाजपेयी ने जॉर्ज फर्नांडीज का इस्ती़फा मंजूर करने से इंकार कर दिया. हालांकि बाद में जॉर्ज ने इस्ती़फा दे दिया. इन घोटालों से खेल जगत भी नहीं बच सका. साल 2000 का मैच फिक्सिंग याद कीजिए. जेंटलमैन स्पोट्‌र्स यानी क्रिकेट में मैच फिक्सिंग का धब्बा पहली बार भारतीय खिलाड़ियों पर लगा. इसमें प्रमुख रूप से अज़हरुद्दीन और अजय जडेजा का नाम सामने आया. अजय शर्मा और अजहर पर आजीवन प्रतिबंध लगा तो जडेजा और मनोज प्रभाकर पर पांच साल का प्रतिबंध. बराक मिसाइल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला. इसे इज़रायल से खरीदा जाना था, जिसकी क़ीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी. इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी. फिर भी यह सौदा हुआ. इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई. एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आर के जैन की गिरफ्तारी भी हुई. जॉर्ज फर्नांडीस, जया जेटली और नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सुरेश नंदा के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज हुई. सुरेश नंदा पूर्व नौसेना प्रमुख एस एम नंदा के बेटे हैं. जांच जारी है. अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. शेयर मार्केट से निकल कर ये घोटाले बैंकिंग सेक्टर में भी घुस गए. यूटीआई घोटाला. 48 हजार करोड़ रुपये का यह घोटाला पूर्व यूटीआई चेयरमैन पी एस सुब्रमण्यम और दो निदेशकों एम एम कपूर और एस के बासु ने मिलकर किया. ये सभी गिरफ्तार हुए, लेकिन सज़ा किसी को नहीं मिली. स्टांप पेपर घोटाला जब सामने आया था, तब इसे सबसे बड़े घोटाले का ताज मिला था. इसके पीछे अब्दुल करीम तेलगी को मास्टर माइंड बताया गया. इस मामले में उच्च पुलिस अधिकारी से लेकर राजनेता तक शामिल थे. तेलगी की गिरफ्तारी तो ज़रूर हुई, लेकिन इस घोटाले के कुछ और अहम खिलाड़ी साफ बच निकलने में अब तक कामयाब हैं. तेल के बदले अनाज. वोल्कर रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने बेटे को तेल का ठेका दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया. उन्हें इस्ती़फा देना पड़ा, हालांकि सरकार ने उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाए रखा. एक के बाद एक नेता घोटालों के सरताज बनते जा रहे थे. इसी कड़ी में एक और घोटाला सामने आया. ताज कॉरिडोर. 175 करोड़ रुपये के इस घोटाले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर लगातार तलवार लटकी रही और अब भी लटकी हुई है. सीबीआई के पास यह मामला है, लेकिन राजनीतिक वजहों से कभी जांच की गति तेज हो जाती है तो कभी मंद. कुल मिलाकर इस घोटाले के आरोपी अपने अंजाम तक पहुंचेंगे या नहीं, कहना मुश्किल है. अब भला कार्पोरेट जगत इस बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे क्यों रहता. अब सामने आया सत्यम घोटाला. कार्पोरेट जगत का शायद सबसे बड़ा घोटाला. 14 हज़ार करोड़ रुपये के इस घोटाले में सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के मालिक राम लिंग राजू का नाम आया. राजू ने इस्ती़फा दिया और वह अभी भी जेल में हैं. मुकदमा चल रहा है. राजनैतिक घोटालों की कभी न खत्म होने वाली श्रृंखला में एक और नाम शामिल हुआ. मधु कोड़ा का. मुख्यमंत्री रहते हुए कोई अरबों की कमाई कर सकता है, यह साबित किया झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने. 4 हज़ार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई की कोड़ा ने. बाद में इन पैसों को विदेश भेजकर जमा किया और विदेशों में निवेश किया. इस मामले में केस दर्ज हुआ. कोड़ा फिलहाल जेल में हैं. जांच चल रही है. अब बात ऐसे घोटालों की भी, जहां महज़ सौ-दो सौ करोड़ का नहीं, बल्कि हज़ारों करोड़ का खेल होता है. जैसे राष्ट्रमंडल खेल घोटाला. हजारों करोड़ रुपये का घोटाला, जिसमें अधिकारी से लेकर नेता तक शामिल थे. सीवीसी ने अपनी जांच में कहा कि अनियमितताएं हुईं. फिलहाल सुरेश कलमाडी को राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. सीबीआई जांच कर रही है. कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है. और अब बात एक ऐसे घोटाले की, जिसका नाम ही आदर्श है. यानी आदर्श घोटाला. मतलब अब घोटाले भी आदर्श होने लगे. आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी (लि.) ने ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया. यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्‌स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए. इस कारनामे में सेना के शीर्ष अधिकारी तक शामिल थे. सेना के दोषी अधिकारियों के खिला़फ कार्रवाई होनी बाकी है. मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से इस्ती़फा ले लिया गया. बहरहाल, घोटालों की यह सूची अभी और लंबी है. जिसकी बात फिर कभी, लेकिन इन घोटालों को देखने-पढ़ने के बाद यह सवाल भी उठता है कि आ़िखर इस कैंसर को खत्म करने के लिए क्या कोई क़दम भी उठाया गया. भारत में समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए नियम और संस्थाएं बनती आई हैं. इसी वजह से सीबीआई और सीवीसी का गठन हुआ, लेकिन ये दोनों ही अपने मक़सद में नाकाम हैं. अलग-अलग कारणों से. आज तक के इतिहास में सीबीआई को अलग-अलग राजनैतिक पार्टियों ने बस इधर-उधर अपने विरोधियों के पीछे ही दौड़ाया है. ऐसा आरोप शुरू से सीबीआई पर विपक्षी लगाते रहे हैं. और सीवीसी को कोई अधिकार ही नहीं है. स्थिति यह हो गई है कि देश के प्रधानमंत्री इतने मजबूर और कमज़ोर हो गए हैं कि वह अपने ही मंत्रिमंडल के लोगों पर नकेल नहीं कस पा रहे. सरकार बचाना साख बचाने से ऊपर हो गया है. प्रधानमंत्री संसद से लेकर मीडिया तक कठघरे में खड़े किए गए, लेकिन फिर भी सरकार को सुध नहीं आई. सीवीसी पी जे थॉमस ने तो हद कर दी, लेकिन सरकार फिर भी कुछ नहीं कर पाई. आ़खिर क्यों? कहां गए लाल बहादुर शास्त्री और वी पी सिंह जैसे नेता, जो जनता के हित में अपनी कुर्सी तक छोड़ देते थे? कहां गए वे दिन, जब राजनीति घोटालेबाज़ों का गढ़ न होकर सम्मानित लोगों के लिए जनता की सेवा करने का एक ज़रिया था? - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2011/02/aajad-bharat-ke-mahan-ghotale.html#sthash.ZGw8gFIh.dpuf ये थे ब़डे घोटाले… 1948 जीप घोटाला, आज़ाद भारत का पहला घोटाला 1951 साइकिल घोटाला, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव फंसे 1956 बीएचयू फंड घोटाला, आज़ाद भारत का पहला शैक्षणिक घोटाला 1958 मूंध्रा घोटाला, फिरोज गांधी ने किया खुलासा, फंसे वित्त मंत्री 1963 आज़ाद भारत में मुख्यमंत्री पद के दुरुपयोग का पहला मामला, आरोप प्रताप सिंह कैरों (पंजाब) पर 1965 उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक पर अपनी ही कंपनी को फायदा पहुंचाने का आरोप 1971 नागरवाला कांड. दिल्ली के पार्लियामेंट स्ट्रीट स्थित स्टेट बैंक शाखा से लाखों रुपये मांगने का मामला, इसमें इंदिरा गांधी का नाम भी उछला 1976 कुओ तेल घोटाला. आईओसी ने हांगकांग की फर्ज़ी कंपनी के साथ डील की, बड़े स्तर पर घूस का लेनदेन 1995 जूता घोटाला. जूता व्यापारियों ने फर्ज़ी सोसाइटी बनाकर सरकार को चूना लगाया - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2011/02/aajad-bharat-ke-mahan-ghotale.html#sthash.ZGw8gFIh.dpuf

आजादी के बाद 40 बड़े घोटाले

आजादी के बाद 40 बड़े घोटाले

                

भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की एक अपील ने मानों पूरे देश को नींद से जगा दिया है। घोटालों और भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता का गुस्सा सड़कों पर दिखाई दिया। इसकी बड़ी वजह हाल के वर्षों में कुछ बड़े घोटालों का पर्दाफाश होना भी माना जा रहा है। वैसे, 1947 से 2011 तक 40 से अधिक घोटाले हो चुके हैं और देश को करीब 10 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। देखा जाए तो देश में घोटाले की बीज आजादी के बाद ही बो दी गई थी। इसकी शुरुआत जीप घोटाले से हुई थी। 

1. जीप खरीद घोटाला (1948)
जीप घोटाला देश की आजादी के तुंरत बाद 1948 में सामने आया था। पाकिस्तानी हमले के बाद भारतीय सेना को जीपों की जरूरत थी। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उगााचुक्त वी.के मेनन इस सौदे में कूद पड़े। उस वक्त 300 पाउंड प्रति जीप के हिसाब से 1500 जीपों का आदेश दिए गए थे, लेकिन 9 महीने तक जीपें नहीं आईं। 1949 में जाकर महज 155 जीपें मद्रास बंदरगाह पर पहुंचीं।  इनमें से ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं। जांच हुई तो मेनन दोषी पाए गए, लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं हुआ। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।

2. साइकिल आयात घोटाल (1951)
1951 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सचिव एस.ए.वेंकटरमण थे। गलत तरीके से एक कंपनी को साइकिल आयात करने का कोटा जारी करने का आरोप लगा। इसके बदले उन्होंने रिश्वत भी ली। इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।

3.बीएचयू फंड घोटाला (1956)
यह देश में शैक्षणिक क्षेत्र से जुड़ा पहला घोटाला है। इसके अंतर्गत बीएचयू के कुछ अधिकारियों ने फंड में हेराफेरी कर डाली गई। यह घोटाला 50 लाख रुपये का था।

4.हरिदास मुंध्रा स्कैंडल (1958)
हरिदास मुंध्रा कोलकाता बेस्ड इंडस्ट्रियलिस्ट थे। यह देश का पहला फाइनेंशियल बड़ा स्कैंडल था।  इस मामले का खुलासा फिरोज गांधी ने संसद में किया था। हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के 1.2 करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन भी इस मामले में दोषी पाए गए। दबाव बढ़ने पर वित्त मंत्री को पद से हटा दिया गया। मूंध्रा को 22 साल की सजा मिली। 

5. तेजा लोन स्कैम (1960) 
बिजनेस मैन जयंत धर्मा तेजा ने जयंती शिपिंग कंपनी शुरू करने के लिए 1960 में 22 करोड़ रुपये का लोन लिया था, लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।

6. प्रताप सिंह कैरों स्कैम (1963)
पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों देश के पहले एेसे मुख्यमंत्री थे, जिनके खिलाफ अनाप-शनाप धन-संपत्ति जमा करने का आरोप था। इसके अलावा, परिवार के लोगों को फायदा पहुंचाने का मामला था। 

7. पटनायक 'कलिंग ट्यूब्सÓ मामला (1965)
उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक अपनी निजी कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कॉन्ट्रेक्ट दिलाने में मदद करने का आरोप लगा था। इस मामले में बीजू पटनायक को इस्तीफा देना पड़ा था।

8. मारुति घोटाला (1974) 
मारु ति घोटाला 1974 में हुआ था। इस घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम खूब उछाला गया। मामल में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।

9. कुओ ऑयल डील (1976)
वर्ष 1976 में हुए कुआे आइल डील घोटाले में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन द्वारा 2.2 करोड़ हांगकांग की फर्जी कंपनी से डील की गई। इसमें बड़े स्तर पर घूस लेने का आरोप लगा।

10. अंतुले ट्रस्ट
अंतुले ट्रस्ट प्रकरण की गूंज 1981 में हुई। यह महाराष्ट में हुए सीमेंट घोटाले से संबद्ध था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ए आर अंतुले का नाम एक घोटाले में सामने आया। उन पर आरोप यह था कि उन्होंने इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान, संजय गांधी निराधार योजना, स्वावलंबन योजना आदि ट्रस्ट के लिए पैसा इकट्ठा किया था। जो लोग, खासकर बडे़ व्यापारी या मिल मालिक ट्रस्ट को पैसा देते थे, उन्हें सीमेंट का कोटा दिया जाता था। इस मामले में मुख्यमंत्री पद से ए आर अंतुले को हटना पड़ा।

11. एचडीडब्ल्यू दलाली मामला (1987)
जमर्नी की पनडुब्बी निर्मित करने वाली कंपनी एचडीडब्ल्यू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने 20 करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। आखिरकार वर्ष 2005 में इस केस को बंद करने का फैसला लिया गया। यह फैसला एचडीडब्ल्यू के पक्ष में रहा।

12. बोफोर्स घोटाला (1987)
1986 में स्वीडन की ए बी बोफोर्स कंपनी से 155 तोपें खरीदने का सौदा तय किया गया। कहा गया कि इस सौदे को पाने के लिए 64 करोड़ रु पये की दलाली दी गई थी। आेटावियो क्वात्रोची और राजीव गांधी का नाम इसमें सामने आया।

 13. सेंट किट्स मामला (1989)
इस मामले में वी पी सिंह की साफ छवि को धूमिल करने की कोशिश किया गया था। उस वक्त नरसिम्हाराव विदेश मंत्री थे। वी पी सिंह पर अवैध पैसा लेने का आरोप लगाया गया था। बाद में पता चला कि जिन दस्तावेजों के सहारे वी पी सिंह को फंसाने की कोशिश की गई थी, उन पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर थे, जबकि सच्चाई यह थी कि वी पी सिंह किसी भी सरकारी दस्तावेज पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं करते थे। 

 14. हर्षद मेहता स्कैम (1992)
वर्ष 1992 में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंकों का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

15. इंडियन बैंक (1992)
वर्ष 1992 में ही बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब 13000 करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।

16. चारा घोटाला (1996)
वर्ष 1996 में बिहार में हुआ यह उस समय का सबसे बड़ा घोटाला था। चारा घाटाले ने देश में सनसनी फैला दी थी, क्योंकि यह एेसा घोटाला था, जो एक-दो करोड़ रुपये से शुरू होकर अब 360 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा था। जानकारों की मानें तो अभी भी यह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि घपला कितनी रकम का था। इस घपले के सूत्रधार बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे।

17. लक्खू भाई पाठक स्कैल
अचार व्यापारी लक्खू भाई पाठक ने नरसिम्हाराव और चंद्रा स्वामी पर 10 लाख रु पये रिश्वत लेने का आरोप लगाया। लक्खू भाई पाठक इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय व्यापारी थे। उन्होंने यह आरोप लगाया कि 100 हजार पाउंड उन्हें बेवकूफ बनाकर इन दोनों ने ठग लिए थे। 

18. टेलीकॉम स्कैम
सुखराम जो कि दूरसंचार मंत्री थे, पर आरोप लगा कि उन्होंने हैदराबाद की एक निजी कंपनी को टेंडर दिलाने में मदद की, जिसकी वजह से सरकार को 1.6 करोड़ रु पये का घाटा हुआ। 2002 में उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पड़ा।

19. यूरिया घोटाला 
नेशनल फर्टिलाइजर के एमडी सी एस रामकृष्णन ने कई अन्य व्यापारियों, जो कि नरसिम्हाराव के नजदीकी थे, के साथ मिलकर दो लाख टन यूरिया आयात करने के मामले में सरकार को 133 करोड़ रु पये का चूना लगा दिया। यह यूरिया कभी भारत तक पहुंच ही नहीं पाई। इस मामले में अब तक कुछ भी नहीं हुआ।

20. हवाला घोटाला 
देश से बाहर धन भेजने की इस कला से आम हिंदुस्तानियों का परिचय इसी घोटाले की वजह से हुआ। 1991 में सीबीआई ने कई हवाला ऑपरेटरों के ठिकानों पर छापे मारे। इस छापे में एस के जैन की डायरी बरामद हुई। इस तरह यह घोटाला 1996 में सामने आया। इस घोटाले में 18 मिलियन डॉलर घूस के रूप में देने का मामला सामने आया, जो कि बड़े-बड़े राजनेताआें को दी गई थी। 

21. झारखंड मुक्ति मोर्चा मामला
नरसिम्हाराव के समय झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शैलेंद्र महतो ने यह खुलासा किया कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रु पये दिए गए, ताकि नरसिम्हाराव की सरकार को समर्थन देकर बचाया जा सके। यह घटना 1993 की है। इस मामले में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा।

22. चीनी घोटाला
वर्ष 1994 में खाद्य आपूर्ति मंज्ञी कल्पनाथ राय ने बाजार भाव से भी महंगी दर पर चीनी आयात का फैसला लिया यानी चीनी घोटाला। इस कारण सरकार को 650 करोड़ रु पये का चूना लगा। अंतत: उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा। उन्हें इस मामले में जेल भी जाना पडा।

23. जूता घोटाला
सोहिन दया नामक एक व्यापारी ने मेट्रो शूज के रफीक तेजानी और मिलानो शूज के किशोर सिगनापुरकर के साथ मिलकर कई सारी फर्जी चमड़ा कोऑपरेटिव सोसाइिटयां बनाईं और सरकारी धन लूटा। 1995 में इसका खुलासा हुआ और बहुत सारे सरकारी अफसर, महाराष्ट्र स्टेट फाइनेंस कार्पोरेशन के अफसर, सिटी बैंक, बैंक ऑफ आेमान, देना बैंक आदि भी इस मामले में लिप्त पाए गए।

24. तहलका कांड 
एक मीडिया हाउस तहलका के स्टिंग ऑपरेशन ने यह खुलासा किया कि कैसे कुछ वरिष्ठ नेता रक्षा समझौते में गड़बड़ी करते हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को रिश्वत लेते हुए लोगों ने टेलीविजन और अखबारों में देखा। इस घोटाले में तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज और भारतीय नौसेना के पूर्व प्रमुख एडमिरल सुशील कुमार का नाम भी सामने आया। इस मामले में जॉर्ज ने इस्तीफा दे दिया।

25. मैच फिक्सिंग 
साल 2000 का मैच फिक्सिंग याद कीजिए। जेंटलमैन स्पोर्ट्स यानी क्रि केट में मैच फिक्सिंग का धब्बा पहली बार भारतीय खिलाड़ियों पर लगा। इसमें प्रमुख रूप से अजहरु द्दीन और अजय जडेजा का नाम सामने आया। अजय शर्मा और अजहर पर आजीवन प्रतिबंध लगा तो जडेजा और मनोज प्रभाकर पर पांच साल का प्रतिबंध।

26.बराक मिसाइल रक्षा सौदे
बराक मिसाइल रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार का एक और नमूना बराक मिसाइल की खरीदारी में देखने को मिला। इसे इजरायल से खरीदा जाना था, जिसकी कीमत लगभग 270 मिलियन डॉलर थी। इस सौदे पर डीआरडीपी के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम ने भी आपत्ति दर्ज कराई थी। फिर भी यह सौदा हुआ। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज हुई। एफआईआर में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आर के जैन की गिरफ्तारी भी हुई। 

27. यूटीआई घोटाला
48 हजार करोड़ रु पये का यह घोटाला पूर्व यूटीआई चेयरमैन पी एस सुब्रमण्यम और दो निदेशकों एम एम कपूर और एस के बासु ने मिलकर किया। ये सभी गिरफ्तार हुए, लेकिन सशाा किसी को नहीं मिली।

28. तेल के बदले अनाज
वोल्कर रिपोर्ट के आधार पर यह बात सामने आई कि तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने बेटे को तेल का ठेका दिलाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 

29. ताज कॉरिडोर
175 करोड़ रु पये के इस घोटाले में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती पर लगातार तलवार लटकी रही और अब भी लटकी हुई है। सीबीआई के पास यह मामला है।  

30. मनी लांडरिंग 
मुख्यमंत्री रहते हुए कोई अरबों की कमाई कर सकता है, यह साबित किया झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा ने। 4 हजार करोड़ से भी ज्यादा की काली कमाई की कोड़ा ने। बाद में इन पैसों को विदेश भेजकर जमा किया और विदेशों में निवेश किया। इस मामले में केस दर्ज हुआ। कोड़ा फिलहाल जेल में है।

31. आदर्श घोटाला
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी (लि.) ने गैर कानूनी तरीके से कोलाबा के आवासीय क्षेत्र नेवी नगर और रक्षा प्रतिष्ठान के आसपास इमारत का निर्माण किया। यह योजना कारगिल युद्ध में शहीद हुए लोगों के परिवार वालों के लिए बनाई गई थी, जबकि इसके फ्लैट्स 80 फीसदी असैनिक नागरिकों को आवंटित किए गए। इस कारनामे में सेना के शीर्ष अधिकारी तक शामिल थे। मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण से इस्तीफा ले लिया गया।

32. ताबूत घोटाला
भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध के बाद एक बेहद संगीन मामला सामने आने से देशवासियों की भावनाएं बुरी तरह आहत हुईं। इस तरह की बातें सामने आईं कि युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के शव को सम्मानजनक तरीके से घर पहुंचाने के लिए जिन ताबूतों की खरीद हुई, उसमें भारी घोटाला हुआ। इसी मामले में देश की केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने कुछ वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और अमरीका के एक ठेकेदार के खिलाफ मामला दर्ज किया। आरोपी अधिकारियों ने वर्ष 1999-2000 के दौरान एेसे 500 अल्यूमुनियम ताबूत और 3000 शव थैले खरीदने के लिए अमेरिका की एक कंपनी के साथ सौदा किया था। कारगिल युद्ध के बाद तब विपक्ष में बैठ रही कांग्रेस ने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस पर ताबूत आयात में घोटाले का आरोप लगाया था। विपक्ष ने जॉर्ज से इस्तीफे की भी मांग की थी। बाद में इस मामले में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी।

33. केतन पारेख स्टॉक मार्केट घोटाला
स्टॉक मार्केट के नाम पर अपने शेयर होल्डरों को करारा झटका देते हुए केतन पारेख ने 1 हजार करोड़ रु पये का घोटाला किया।

34. आईपीएल घोटाला
वित्तीय अनियमतिताआें के चलते आईपीएल-3 के समापन के तत्काल बाद आईपीएल प्रमुख ललित मोदी के पद से निलंबित कर दिया गया। मामले की जांच अभी भी चल रही है। मोदी के खिलाफ ब्लू कॉर्नर नोटिस भी किया गया। किंग्स इलेवन पंजाब और राजस्थान रॉयल्स की मालिकी के हक पर सवाल भी उठा। एेसा माना जाता है कि इस प्रतियोगिता में भारी मात्रा में काले धन लगा है। कोच्चि की टीम से जुड़े केंद्रीय मंत्री शशि थरूर को अपने पद से हाथ धोना पड़ा और उनकी मित्र सुनंदा ने भी इससे खुद को अलग कर लिया। इस संघ का नेतृत्व करने वाली कंपनी रांदेवू स्पोर्ट्स वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड को इस सौदे में 25 प्रतिशत फ्री इक्विटी मिली थी। कहा गया कि इस फ्री इक्विटी में से 17 प्रतिशत कश्मीरी ब्यूटीशियन सुनंदा पुष्कर को मिली। आईपीएल में 1200 से 1500 करोड़ रु पए का घोटाला होने की बात कही जा रही है।

35. सत्यम घोटाला
सत्यम घोटाला कॉरपोरेट जगत में अबतक का सबसे बड़ा घोटाला था। उस समय भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनी सत्यम कम्प्यूटर सर्विस ने रियल स्टे्टस और शेयर मार्केट के जरिए देश को 14 हजार करोड़ रु पये चूना लगाया। कंपनी के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने लोगों को काफी समय तक अंधेरे में रखा और शेयर के सारे पैसे अपने नाम कर लिए।

36. स्टांप घोटाले
भारत में हुए हर घोटालों में कुछ न कुछ नया जरूर था। चाहे वह घोटाले की राशि हो या फिर घोटाले का तरीका। एेसे में एक नए और अदभुत घोटाले के रूप में सामने आया स्टांप घोटाला। स्टांप की हेरा फेरी कर अब्दुल करीम तेलगी ने देश को 20 हजार करोड़ रु पये का लंबा चूना लगाया। इस घोटाले की खास बात यह थी कि तेलगी को सरकार का पूरा सहयोग मिला, जिसके चलते उसने स्टांप की हेरा फेरी को अंजाम दिया।

37. हसन अली टैस्क चोरी मामला 
देश के सबसे बड़े कथित टैक्स चोर हसन अली पर 40 हजार करोड़ रु पए से ज्यादा की टैक्स चोरी का आरोप है। हसन अली और उनके सहायकों पर विदेशों में काला धन रखने के आरोप हैं। हसन अली पर आरोप है कि उसने स्विस बैंकों में 8 अरब डॉलर रखे हैं। उस पर यह भी आरोप है कि उसने अपनी आमदनी छिपाई और 1999 के बाद से आय कर रिटर्न दाखिल नहीं किया है।

भारत के सभी धन मंदिर

भारत के सभी धन मंदिर


 सबसे अमीर भगवान पद्मनाभ स्वामी मंदिर में मिले खजाने से अब ये मंदिर सबसे धनी मंदिर बन गया है। पद्मनाभ मंदिर से लगभग एक लाख करोड़ रुपए से भी कहीं अधिक का खजाना मिला है और अभी एक तहखाना खुलना शेष है। ये मंदिर बेशुमार दौलत का स्वामी है।



दूसरे पायदान पर पहुंचे भारत के धनी मंदिरों की लिस्ट में तिरुपति बालाजी दूसरे नबंर पर हैं। भगवान करे पास इतना खजाना है जितना पूराने जमाने के राजा-महराजाओं के पास भी नहीं था। तिरुपति के खजाने में आठ टन ज्वेलरी है, 650 करोड़ रुपए की वार्षिक आय, अलग-अलग बैंकों में मंदिर का 3000 किलो सोना और 1000 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट हैं।

सोना चढ़ाने का खास महत्व शिरडी स्थित साईं बाबा का मंदिर देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। सरकारी जानकारी के मुताबिक उनके पास 32 करोड़ रुपए के अभूषण हैं और 450 करोड़ रुपए का निवेश है। शिरडी का साई बाबा मंदिर की दैनिक आय 60 लाख रुपए से ऊपर है और सालाना आय 210 करोड़ रुपए की सीमा पार कर चुकी है।

अमीर देवताओं में शुमार मुंबई में स्थित सिद्धिविनायक मंदिर, देश में चौथे नंबर का सबसे अमीर मंदिर है। सिद्धिविनायक मंदिर की सालाना आय 46 करोड़ रुपए है वहीं 125 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा है। इस मंदिर की सालाना कमाई 46 करोड़ रुपए है।

साल भर रहती है भीड़ भारत में सबसे ज्यादा लोग तिरूपति बालाजी मंदिर के बाद वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। तकरीबन 8 लाख लोग सालाना माता के दर् के लिए जाते है। माता वैष्णो देवी मंदिर की सालाना आय 500 करोड़ रुपए है, जबकि प्रतिदिन की आय 40 करोड़ रुपए है।

खजाने का भंडार भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर है गुरुवायूर मंदिर। केरल देवासन बोर्ड के अधीन यह मंदिर दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर की सालाना आय 2.5 करोड़ रुपए है और लगभग 125 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा है।

बेहतरीन कलाकृत्ति कमाई के लिहाज से भले अपनी बड़ी पहचान न रखता हो, लेकिन स्थापत्य की, भव्यता और समृद्धि के चमचमाते आकर्षण के कारण अक्षरधाम मंदिर ने बड़ी तेजी से भारतीयों के बीच पहचान बनाई है। फिर चाहे वह गांधीनगर (गुजरात) का अक्षरधाम हो या दिल्ली का। गांधी नगर स्थित अक्षरधाम मंदिर की सालाना आय 50 लाख से 1 करोड़ रुपए के बीच है।
 आय के मामले में नहीं है पीछे केरल का पद्मनाभ मंदिर जहां लगातार दौलत उगल रहा है वहीं इंदौर के खजराना गणेश मंदिर आय के मामले में पीछे नहीं हैं। हालांकि दक्षिण भारत के मंदिरों की तुलना में यहां चढऩे वाली राशि नगण्य है। चढ़ावे के मामले में खजराना गणेश मंदिर पर भक्तों की श्रद्धा ज्यादा है। गणेश मंदिर के पास नकद के अलावा जमीन भी है। होलकरों द्वारा राजबाड़ा के अंदर स्थापित मल्हारी मरतड मंदिर चढ़ावे में आने वाली राशि के मामले काफी पीछे है।
सिखों का पवित्र स्थल अमृतसर का स्वर्ण मंदिर सिखों के सबसे बड़े गुरुद्वारे के तौर पर प्रसिद्ध है। जहां गर रोज तकरीबन 40 हजार श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है। अमृतसर का स्वर्ण मंदिर और दिल्ली के तीन प्रमुख गुरुद्वारे रकाबगंज, बंगला साहिब और गुरुद्वारा शीशगंज भी चढ़ावे की दृष्टि से बड़े संपन्न गुरुद्वारे हैं।