सुरेश वाडकर

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Sunday, June 7, 2015

कर्ज माफी घोटाला: कहां गया 52,000 करोड़, किसान बेच रहे हैं किडनी

कर्ज माफी घोटाला: कहां गया


 52,000 करोड़, किसान बेच रहे हैं किडनी







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जो ऐग्रिकल्चल लोन नहीं था उसे ऐग्रिकल्चर लोन में तब्दील कर दिया गया।
नई दिल्ली।। करीब पांच साल पहले यूपीए सरकार ने 52,000 करोड़ रुपए की रकम बदहाल किसानों के कर्ज माफी के लिए आवंटित की थी। इसका असर यह है कि आंध्र प्रदेश में कर्ज तले दबे किसान कर्ज मुक्ति के लिए किडनी बेच रहे हैं। कहा जाता है कि यूपीए सरकार को दोबरा सत्ता पर काबिज कराने में इस योजना का बड़ा हाथ रहा था। दूसरी तरफ कैग ने इस योजना में हुई घोर अनियमितता पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

52,000 करोड़ की रकम में से आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र को करीब 57 फीसदी रकम मिली थी। इसमें आंध्र प्रदेश के हिस्से 11000 करोड की रकम आई। करीब 77 लाख किसानों के बीच यह रकम बांटी गई थी। लेकिन कैग ने खुलासा किया है कि बड़ी संख्या में वैसे किसानों को फायदा पहुंचाया गया जो इस योजना के लिए योग्य नहीं थे। छोटे और गरीब किसानों को इसका फायदा नहीं मिला और वह कर्ज के दुष्चक्र में फंसे रहे। इसका नतीजा इतना भयावह है कि वह अपनी किडनी बेच रहे हैं। माजरा यह है कि जो ऐग्रिकल्चर लोन नहीं था उसे ऐग्रिकल्चर लोन में तब्दील कर फायदा पहुंचाया गया।

कैग ने अनियमितता के कई सैंपल पेश किए हैं। आंध्र प्रदेश ग्रामीण बैंक ने कम से कम 17 कर्जदारों की लोन कैटिगरी ही बदल दी। जो बड़े किसान थे उन्हें सीमांत किसान बनाकर पूरा लोन माफ कर दिया गया। यह केवल आंध्र प्रदेश की ही कहानी नहीं है बल्कि देश के कई राज्यों में ऐसा किया गया। कैग ने 25 राज्यों के 92 जिलों से 715 बैंक ब्रांचों की गड़बड़ियां पेश की हैं। आंध्र प्रदेश में 32,00 लोन अकाउंट्स की जांच की गई तो करीब 132 मामले ऐसे आए जिनमें गलत लोगों को इस स्कीम का फायदा पहुंचाया गया।

पैसा मिलता तो क्यों बेचते किडनी?
बरम वेंकट रेड्डी 29 साल की उम्र में ही अधेड़ की तरह लगने लगे हैं। आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले के मैकवरम गांव के रहने वाले वेंकट के लिए सारी उम्मीदों की हत्या हो गई है। इन्होंने कर्ज से मुक्ति के लिए जीवन में जो कुछ भी था उसे बेच दिया। आधा एकड़ जमीन, पत्नी के हिस्से का 80 ग्राम सोने का गहना के साथ अपनी किडनी भी।

पिछले साल वेंकट को मिर्च की खेती से 5 लाख का नुकसान हुआ। वेंकट को गांव के श्रीनिवास ने सलाह दी कि वह अपनी किडनी बेच देगा तो काफी पैसे मिल जाएंगे और कर्ज से मुक्ति भी मिल जाएगी। इन्होंने फरवरी 2004 में सिकंदराबाद के एक हॉस्पिटल में सर्जरी करवाकर लेफ्ट किडनी एक 30 साल के युवक में ट्रांसप्लांट करवा दी। वेंकट ने कहा, 'मुझे खुशी है कि मैंने किसी की जिंदगी बचा दी। लेकिन मुझे नहीं पता है कि मेरा क्या होगा। मैंने यह मानवता के आधार पर किया है।' उन्होंने किडनी के बदले पैसे लेने का खुलासा नहीं किया लेकिन इतना जरूर कहा कि मुझे उतने पैसे नहीं मिले जितनी कर्ज की रकम थी।

ठीक ऐसी ही कहानी एक 30 साल के कर्जदार किसान माराबोयना अप्पा राव की है। वह कर्ज चुकाने में नाकाम रहे तो किडनी बेचने का मन बना लिया। दो दलालों ने मजबूरी का फायदा उठाने के लिए उनसे संपर्क साधा। दोनों ने राव को किडनी के बदले 4.5 लाख रुपए देने वादा किया था। अप्पा ने बताया कि किडनी निकालने के बाद केवल 1.75 लाख रुपए मिले। यह रकम अप्पा को कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। अप्पा फिलहाल कंस्ट्रक्शन लेबर हैं। ऐसी कहानी कई किसानों की है। अंग्रेजी अखबार 'डेली मेल' के मुताबिक 1998 से 2000 के बीच किडनी सेल रैकेट इस क्षेत्र में पूरी तरह से पसर गया था। किडनी का धंधा करने वाले दलालों को पता था कि बेबस किसानों से इसका फायदा उठाया जा सकता है।

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