सुरेश वाडकर

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Friday, September 25, 2015

माओवादियों-आईएसआई के निशाने पर राजघराने की अकूत दौलत : नेपाल के पूर्व नरेश की जान खतरे में

माओवादियों-आईएसआई के निशाने पर राजघराने की अकूत दौलत : नेपाल के पूर्व नरेश की जान खतरे में


भारत का पड़ोसी देश नेपाल अपने शासन-तंत्र की अराजकता के कारण दो भागों में बंटता हुआ सा़फ-सा़फ दिख रहा है. इसे आप पहाड़ बनाम तराई का नाम दें, गोरखा बनाम मधेशिया नाम दें या माओवादी बनाम अन्य का नाम दें. इन दो स्पष्ट विभाजनों में नेपाल की पूर्व राजशाही उत्प्रेरक तत्व (कैटेलिटिक एजेंट) के बतौर काम कर रही है. हथियार से क्रांति के सिद्धांत पर अब भी भरोसा कर रहे नेपाली माओवादी अर्थ और शस्त्र के मामले में फिर से ताकतवर होने की कोशिश कर रहे हैं. 
nepal-nareshमाओवादी नेपाल राजवंश के अकेले वारिस पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह की यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरी पड़ी अथाह संपत्ति बटोरने की फिराक में हैं. पहाड़ बनाम तराई का संघर्ष अराजकता फैलाकर हित साधने वाले तत्वों की भड़काऊ साजिश का परिणाम है. इसमें माओवादी भी खुश हैं और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई भी यही चाहती है. भूकंप में भारतीय दरियादिली और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तमाम भावनात्मक दावे सतह पर खोखले साबित हो रहे हैं. मोदी की नेपाल के प्रति सदाशयता का प्रतिफल यह है कि नेपाल ने भारत से लगने वाली अपनी सारी सीमाएं सील कर रखी हैं. किसी भी सीमा से भारत का एक भी वाहन, चाहे वह स्कूटर और साइकिल ही क्यों न हो, नेपाल सीमा में प्रवेश नहीं कर पा रहा है. पैदल जाने वालों को यह कहकर सीमा में प्रवेश करने दिया जा रहा है कि वे अपने जोखिम (रिस्क) पर नेपाल में प्रवेश कर रहे हैं. भारत के पड़ोस में इस खतरनाक परिदृश्य से भारतीय खुफिया तंत्र अनभिज्ञ नहीं है. जो सूचनाएं हैं, वे काफी चिंताजनक और संवेदनशील हैं. भारतीय खुफिया एजेंसियों की अभी चिंता है, नेपाल में जन-संघर्षीय स्वरूप में फैल रही अराजकता रोकना, पूर्व नरेश की अकूत संपत्ति की आशंकित लूट के प्रयास में लगे माओवादी गुट एवं उनका साथ दे रहे पाकिस्तान पोषित अपराधी गिरोहों को रोकना और सबसे अधिक यह कि पूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र की हत्या की साजिशें नाकाम करना.
आपको याद होगा कि जब नेपाल नरेश वीरेंद्र वीर विक्रम शाह की हत्या हुई थी, तब पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और कुछ अन्य भारत विरोधी तत्वों ने नेपाल नरेश की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) का नाम जोड़ा था. फिर जब नेपाल में माओवादियों का विद्रोह और ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह का तख्ता पलट हुआ, तब भी कहा गया कि इसमें रॉ का हाथ है. लेकिन, इन बेबुनियाद आरोपों के बरअक्स तथ्यात्मक सच्चाई यह है कि भूतपूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह और उनका परिवार रॉ की सुरक्षा-निगरानी में हैं. नेपाल की खुफिया एजेंसी नेशनल इंवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (एनआईडी) को रॉ की तऱफ से सारी अभिसूचनाएं मुहैया कराई जा रही हैं. ये खुफिया सूचनाएं बताती हैं कि पूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह की जान खतरे में है. उन्हें अगवा भी किया जा सकता है. भूकंप प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करते समय पूर्व नेपाल नरेश का अपहरण किए जाने की आशंका थी, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों की अत्यधिक सतर्कता से ऐसा संभव नहीं हो सका. अब पूर्व नरेश के मूवमेंट्स पर काफी नियंत्रण रखा जा रहा है. नेपाल-डेस्क पर तैनात रॉ के एक आला अधिकारी ने कहा कि नेपाल में राजशाही को फिर वापस लाने की मांग और पूर्व नरेश की अथाह संपत्ति उनकी जान के लिए आफत साबित हो रही है. आईएसआई और चीन, दोनों ही नहीं चाहते कि नेपाल में किसी भी क़ीमत पर राजशाही की वापसी हो, लिहाजा उनका रास्ते से हटना इस संभावना के पटाक्षेप के लिए ज़रूरी माना जा रहा है. भूकंप की भारी तबाही में राहत व्यवस्था की घनघोर अराजकता के बीच नेपाली जनता की यह आवाज़ गूंज रही थी कि आज राजा होते, तो राहत व्यवस्था का ऐसा हाल नहीं होता. नेपाल में क़रीब 80 साल बाद इतना भयानक भूकंप आया था. नेपालियों का कहना है कि 601 सांसदों ने 2008 में राजतंत्र खत्म करने का फैसला किया था, लेकिन वे सभी मिलकर भी भूकंप में नेपाली प्रजा की मदद करने में नाकाम रहे. राजनीतिक दलों ने कुछ नहीं किया. अब तो सही यही होगा कि राजा की फिर से वापसी हो जाए.
यह मांग अब सार्वजनिक हो रही है. हिंसक संघर्ष से सत्ता तक पहुंचे माओवादी नेपाल के तंत्र पर हावी चीनी ताकतों की शह पर नेपाल के पूर्व शाह की अकूत संपत्ति पर नज़र गड़ाए हुए हैं. पूर्व नरेश की जिन अचल संपत्तियों का सरकार क़ानूनन अधिग्रहण नहीं कर सकती, माओवादी गुट उन पर अपना कब्जा चाहते हैं. पूर्व नरेश की चल-संपत्तियों का पता लगाने और उन्हें हथियाने के लिए माओवादी नेपाल ट्रस्ट ऑफिस (एनटीओ) के सूत्रों का इस्तेमाल कर रहे हैं. नेपाल के अतिवादी-माओवादी फिर से ताकतवर होने की कवायद में लगे हैं और इस प्रयास में वे चीनी-पाकिस्तानी एजेंसियों का मोहरा बन रहे हैं. नेपाल में शासनिक-प्रशासनिक अराजकता जितनी ही गहराएगी, आईएसआई को अपनी जड़ें जमाने का उतना ही मा़ैका मिलेगा. नेपाल में माओवादियों द्वारा तख्ता पलट के बाद नई बनी सरकार ने राजघराने के क़रीब आधा दर्जन से अधिक महलों का अधिग्रहण कर लिया था, जिनमें काठमांडू स्थित मशहूर नारायणहिति, रानी कोमल का महल, नेपाल नरेश का ग्रीष्मकालीन नार्गाजुन महल, गोकर्ण महल, दियालुबंगला महल और पोखरा स्थित दो महल शामिल हैं. नेपाल नरेश के क़रीब आधा दर्जन वन्य-भूमि क्षेत्र को भी राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर दिया गया, लेकिन कई वन्य क्षेत्रों पर माओवादी गुटों का धीरे-धीरे कब्जा हो रहा है. इन वन्य क्षेत्रों से राजघराने को भारी राजस्व की कमाई होती रही है, जो अब माओवादी वसूल रहे हैं.
नेपाल के माओवादी गुट राजघराने की अथाह संपत्ति की थाह पाने की जद्दोजहद में लगे हैं. ज्ञानेंद्र राजघराने के अकेले ऐसे वारिस हैं, जो नेपाल में रह रहे हैं. उनके पुत्र पारस अपने परिवार से अलग होकर थाईलैंड में रह रहे हैं. नेपाल का राजघराना दुनिया का सर्वाधिक धनी राजघराना माना जाता था. उसका पैसा दुनिया भर की कंपनियों, होटल्स, रिजॉर्ट्स और अन्य कारोबार में लगा है. काठमांडू के सॉल्टी क्राउन प्लाजा होटल के 40 फीसद शेयर ज्ञानेंद्र के हैं, जिन्हें उनकी बेटी प्रेरणा देखती हैं. पारस शाह थाईलैंड में रहते हुए मालदीव से लेकर अफ्रीका तक फैले तेल के कारोबार का संचालन करते हैं. पारस मालदीव के एक द्वीप के मालिक भी हैं. चाय की बड़ी कंपनी हिमालयन-गुडरिक के 54 फीसद शेयर ज्ञानेंद्र के हैं. सूर्या नेपाल टोबैको कंपनी, नेपाल बिस्किट कंपनी, ज्योति स्पिनिंग मिल वीरगंज, नारायण घाट ब्रेवरीज़, हिमालय इंटरनेशनल पॉवर कॉरपोरेशन, व्यापारिक जहाज कंपनी मर्स्क-नेपाल, मेरो मोबाइल कंपनी एंड मैन पावर कंसल्टेंसी जैसे बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों में नेपाल राजघराने का भारी धन लगा हुआ है, जिसकी डोर पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र के हाथ में है. टाटा और टोयोटा जैसी नामी ऑटो मोबाइल कंपनियों की डीलरशिप ज्ञानेंद्र के पास है. कारोबार में ज्ञानेंद्र के दामाद राज बहादुर सिंह भी हाथ बंटाते हैं.
जून 2001 में वीरेंद्र वीर विक्रम शाह और उनके परिवार की हत्या के बाद नेपाल नरेश की गद्दी पर बैठते ही ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह ने काठमांडू स्थित स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में तत्कालीन शाही महल के नाम पर बड़ी धनराशि जमा की थी. दो साल बाद ही मार्च 2003 में ज्ञानेंद्र ने उसमें से एक बड़ा हिस्सा निकाल कर ब्रिटेन के एक बैंक में ट्रांसफर कर दिया. 15 महीने के शासन में नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र और उनके बेटे पारस ने केवल विदेश यात्राओं पर 172 करोड़ रुपये खर्च किए थे. राजशाही खत्म होने के बावजूद ज्ञानेंद्र की नेपाल में अरबों की संपत्ति है और विभिन्न व्यवसायों में अरबों का निवेश है. इससे अधिक धन विदेशी बैंकों में जमा है. खुफिया एजेंसियों के मुताबिक, नेपाल राजघराने का विदेशी बैंकों में जमा धन क़रीब 95 बिलियन डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में 63 खरब 32 अरब 69 करोड़ 52 लाख 50 हज़ार रुपये है. माओवादी इस धन को हथिया कर समानांतर राष्ट्र गठन का सपना देख रहे हैं.

उस समय ज्ञानेंद्र की आय दुनिया में सबसे अधिक थी
एक आकलन है कि ज्ञानेंद्र जब नेपाल के राजा थे, तब वह विश्व के सबसे अधिक वेतन-सुविधाएं पाने वाले राष्ट्राध्यक्ष थे. ज्ञानेंद्र की आय चीनी राष्ट्रपति की आय से 2,426 गुना, भारतीय राष्ट्रपति से 318 गुना, पाकिस्तानी राष्ट्रपति से 301 गुना, रूसी राष्ट्रपति से 173 गुना, फ्रांसीसी राष्ट्रपति से 57 गुना, ब्रिटेन की महारानी से 15 गुना और अमेरिकी राष्ट्रपति से 10 गुना अधिक थी.

पहाड़ बनाम मैदान नहीं, भारत विरोधी बनाम भारत समर्थक संघर्ष
सा़फ है कि नेपाल की राजनीतिक-सामाजिक-प्रशासनिक अराजकता के पीछे किस तरह की ताकतें सक्रिय हैं. ये वही ताकतें हैं, जिन्हें भारत का नेपाल से ऐतिहासिक रिश्ता नहीं सुहाता. रणनीतिकारों का कहना है कि सामरिक दृष्टि से भी तराई में हो रही उथल-पुथल भारत के लिए ़खतरनाक है. रणनीतिकार कहते हैं कि मधेशियों के आंदोलन को गोरखा बनाम तराई का नाम दिया जा रहा है, लेकिन असलियत में यह भारत विरोधी और भारत समर्थकों का संघर्ष है, जो अब सड़क पर आ गया है. इसे रणनीति पूर्वक रोकने और समाधान का रास्ता निकाले जाने की ज़रूरत है. भीषण भूकंप की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहे नेपाल में गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गई है. इसके पीछे चीनी और पाकिस्तानी जासूस सक्रिय हैं. ये दोनों ताकतें मिलकर भारत-नेपाल का शाश्वत रिश्ता ़खत्म करने की साजिश में लगी हैं. साजिशन पहले संपर्क भाषा हिंदी पर आपत्ति की गई, फिर नागरिकता का मसला खड़ा किया गया और अब मधेशी इलाके को पहाड़ी इलाके के साथ विलय कराने की अदूरदर्शी कोशिश की जा रही है. नेपाल में तक़रीबन 60 लाख लोगों की नागरिकता लंबित है. नेपाली नागरिकता मिलने पर भी मधेशियों को मुख्य धारा में शामिल नहीं किया जाता. उन्हें न सरकारी नौकरी मिलती है और न संपत्ति का स्वामित्व. विचित्र तथ्य यह है कि नेपाल में पहाड़ की चार-पांच हज़ार की आबादी पर एक सांसद है, लेकिन तराई में सत्तर हज़ार से एक लाख की आबादी पर एक सांसद. मधेशी इसी भेदभाव के ़िखला़फ आंदोलन कर रहे हैं. अब तो नेपाली सांसद भी कहने लगे हैं कि चीन और पाकिस्तान के इशारे पर मधेशियों को भारत खदेड़ भगाने की साजिश चल रही है. संविधान सभा के सदस्य एवं सांसद अभिषेक प्रताप शाह ने कहा कि मधेशियों का आंदोलन नेपाल की 51 ़फीसद मधेशी आबादी के लिए स्वाभिमान का सवाल बन गया है. मधेशियों का रिश्ता भारत के दार्जिलिंग से लेकर बिहार होते हुए उत्तराखंड तक के लोगों से है, इसीलिए उनकी राष्ट्रीय पहचान पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. मधेशियों एवं थारुओं का दमन भारत-नेपाल मैत्री संधि तोड़ने और पहाड़ पर प्रभाव रखने वाले चीन-पाकिस्तान का संपूर्ण नेपाल पर वर्चस्व कायम करने के इरादे से हो रहा है. मधेशियों की संख्या नेपाल के तराई इलाकों में ज़्यादा है. उनकी मांग है कि मधेशी बाहुल्य इलाकों को स्वायत्तता दी जाए. वे संविधान में मधेशियों के समावेशी अधिकार, सेना व पुलिस समेत लोकसेवा आयोग की भर्ती में बराबरी का हक़, भारतीय लड़की से शादी के बाद उसे तुरंत नागरिकता एवं समान अधिकार और ऐसी शादी से होने वाली संतान को वंशज मानते हुए नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, नेपाल में 51 फीसद आबादी मधेशियों की है, जिसमें नेपाल के मूल और भारत से गए लोग शामिल हैं. मधेशियों की भाषा मैथिली, भोजपुरी, बज्जिका एवं नेपाली है. दो करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले नेपाल में कुल पांच राज्य और 75 ज़िले हैं. आंदोलनकारी थारू और मधेशियों के लिए अलग-अलग राज्य बनाए जाने की मांग हो रही है. नेपाल के 22 ज़िले मधेशी आंदोलन से प्रभावित हैं. मधेशी नेताओं का आरोप है कि नेपाल के नए संविधान में अलग मधेशी राज्य को मान्यता न देने और भारतीय युवतियों एवं उनसे जन्मे बच्चों को दोयम दर्जे की नागरिकता का प्रस्ताव रखा गया है. नए संविधान के मसौदे में सात राज्यों का प्रस्ताव है, लेकिन विडंबना यह है कि उसमें मधेशी और थारू शामिल नहीं हैं. संविधान के नए मसौदे में मधेशी बाहुल्य ज़िलों को अलग-अलग राज्यों के साथ मिलाया जा रहा है. नेपाली सांसद बृजेश गुप्त कहते हैं कि मधेशी समुदाय अहिंसक आंदोलन कर रहा है, लेकिन शासक वर्ग के गुर्गे आंदोलनकारियों में घुसकर हिंसा फैला रहे हैं. सांसद गुप्त के मुताबिक, मधेशी आंदोलन में अब तक 52 लोग शहीद हो चुके हैं, लेकिन नेपाल सरकार शांति और समाधान के लिए कोई पहल नहीं कर रही. उल्टे भारत से लगने वाली सारी सीमाएं सील कर दी गई हैं और भारत से संपर्क काट दिया गया है. भारतीय सीमा क्षेत्र से वाहनों के आवागमन पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है और सीमा पर बैरियर लगाकर पैदल आवागमन भी बाधित किया जा रहा है.

नए संविधान के बहाने संस्कृति मिटाने की कोशिश -शत्रुंजय सिंह रैकवार 
मधेशी और थारू आंदोलनकारियों की मांग है कि तराई क्षेत्र के ज़िले पहाड़ के प्रदेशों से न जोड़े जाएं. इसके अलावा तराई के तीन ज़िलों सुनसरी, मोरड़ एवं झापा को प्रदेश संख्या दो से जोड़ दिया जाए, जिन्हें अभी पहाड़ी प्रदेश-एक से जोड़ा गया है. पश्चिम के तराई ज़िले कंचनपुर एवं कैलाली प्रदेश संख्या पांच में मिलाए जाएं और प्रदेश संख्या दो एवं पांच को मधेशी या थरुहट प्रदेश घोषित किया जाए तथा उन्हें स्वायत्त प्रदेश का दर्जा मिले. संघर्ष समाजवादी फोरम नेपाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र यादव ने कहा कि एक मधेश-एक प्रदेश की मांग जब तक पूरी नहीं होगी, तब तक शांतिपूर्ण एवं अहिंसात्मक आंदोलन जारी रहेगा. आंदोलन दबाने के लिए नेपाल सरकार सेना एवं पुलिस का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा कि सात वर्ष पहले मधेशियों की इसी मांग को लेकर आंदोलन हुआ था. उस समय गिरिजा प्रसाद कोईराला सरकार ने मधेशियों से समझौता किया था, जिसमें एक मधेश-एक प्रदेश की बात मानी गई थी. लेकिन, वर्तमान सरकार उससे इंकार कर रही है. संविधान से मधेशियों को वंचित करने का कुचक्र रचा जा रहा है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सरकार का दोहरा मापदंड नहीं चलेगा. पहाड़ी जब आंदोलन करते हैं, तो उन पर पानी की बौछार फेंकी जाती है और मधेशी आंदोलन करते हैं, तो उन पर गोली की बौछार होती है.
माओवादी संघर्ष के पटाक्षेप के बाद शांति के रास्ते पर लौट रहे नेपाल को अशांति में धकेलने की साजिशें हो रही हैं. नए राज्यों के सीमांकन, नामांकन एवं नागरिकता जैसे मुद्दों को लेकर मधेशी और थारू बाहुल्य 22 ज़िले आंदोलनरत हैं. बेलहिया से शुरू हुआ अहिंसक आंदोलन कैलाली में जाकर खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया. मधेशी नेताओं का कहना है कि प्रदेशों का बंटवारा उत्तर से दक्षिण करना सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पहचान के विरुद्ध है. यह बंटवारा पूर्व से पश्चिम की ओर होना चाहिए. इससे मधेशियों एवं थारुओं के समक्ष पहचान और वजूद का संकट नहीं आएगा. तराई मधेश लोकतांत्रिक पार्टी के प्रवक्ता सर्वेंद्र नाथ शुक्ला कहते हैं कि नेपाल में जब पहला संविधान आयोग बना था, तो 22 ज़िले मिलाकर एक प्रदेश बनाने की बात हुई थी. बाद में प्रदेश संख्या चार को मधेश, मिथिला एवं भोजपुर नाम दिया गया था और प्रदेश संख्या पांच को अवध, थारूवान एवं लुम्बिनी. उन्होंने कहा कि प्रदेश का कोई भी नाम हो, इस पर कोई ऐतराज नहीं, लेकिन नवलपरासी ज़िले को न बांटा जाए. नए प्रारूप में मधेशियों एवं थारूओं का सम्मान हो. इससे कम पर समझौता नहीं होगा.

ये बन रहे हैं नेपाल के सात नए प्रदेश
प्रदेश संख्या-1: ताप्लेजूड़, पांचथर, इलाम, झापा मोरड़, सुनसरी, घनकुटा, भोजपुर, संखुवा सभा, सोलुखंबु, खोटाड, उदयपुर एवं ओखलढ़गा.
प्रदेश संख्या-2: सप्तरी, सिरहा, धनुषा, महोत्तरी, सर्लाही, रोतहट, बारा, पर्सा, ठोरी एवं गाविसा (बाहरी क्षेत्र).
प्रदेश संख्या-3: सिंधुली, रामेछा, दोलखा, सिंधुपाल्चैक, काभ्रे, रसुवा, नुवाकोट, घादिंग, काठमांडू, ललितपुर, भकपुर, मकवानपुर, चितवन पर्सा, ठोरी एवं गाविसा.
प्रदेश संख्या-4: गोरखा तन्हू, स्यांजा, मनाड़, मुस्तांग, म्याग्दी, पर्वत, बांग्लुड, पूर्वी क्षेत्र के नवलपरासी एवं दाउन्ने पूरब.
प्रदेश संख्या-5: नवलपरासी, दाउन्ने पश्चिम, रूपन्देही, कपिलवस्तु, पाल्पा, अर्घाखांची, गुल्मी, बांग्लुग, पश्चिम क्षेत्र, दांग, प्यूठान, रोल्पा, रूकम, रूकमकोटा पूर्व, बांके एवं बर्दिया.
प्रदेश संख्या-6: डोल्पा, जुम्ला, मुगुत्र हुम्ला, कालिकोट, सल्यान, पश्चिम, जाजरकोट, दैलेख एवं सुर्खेत.
प्रदेश संख्या-7: उल्लेथर, दार्चुला, बैतड़ी, बाजुरा, बझांग अछाम, डोटी, कैलाली एवं कंचनपुर.
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