शर्मा जी और गुप्ता जी गंगा
नहाने गए । अचानक नहाते नहाते
शर्मा जी की नजर गंगा के दूसरे
छोर पर बुई पलेज पर पड़ी । शर्मा
जी बोले गुप्ता जी देखो दूसरी
तरफ कितने अच्छे तरबूज, खरबूज
और ककड़ी लगे हुए हैं । चलो उधर
चलकर खाते हैं कुछ खरबूज तरबूज ।
गुप्ता जी बोले - लेकिन मुझको
तो तैरना भी नही आता ।
शर्मा जी : मुझको ही कौन सा
तैरना आता है ।
गुप्ता जी : फिर उधर जायेंगे
कैसे ?
शर्मा जी : पत्थर पर बैठकर ।
गुप्ता जी : पत्थर तो खुद पानी
में डूब जाता है । वो हमको क्या
पार करवाएगा ।
शर्मा जी : अरे तुमने रामायण
नही देखी ? पत्थर पर राम नाम
लिखने से पत्थर पानी पर तैर
जाते हैं ।
गुप्ता जी : बात तो तुम्हारी
सही है लेकिन वो भगवान थे ।
शर्मा जी : रहे तो निरे बुद्धू ही
। राम ही तो भगवान थे लेकिन
पत्थर पर राम राम लिखने वाले
तो सही से इंसान भी नही थे ।
बन्दर भालू थे । हम तो फिर भी
इंसान हैं ।
गुप्ता जी : चलो ठीक है पत्थर
पर राम राम लिखो और गंगा में
फेंककर देखो । अगर डूबेगा तो कोई
बात नही है। अगर नही डूबा तो
फिर उस पर बैठकर दूसरी तरफ
चलेंगे ।
शर्मा जी : अरे अगर हम पत्थर पर
राम राम लिखकर उसको पानी
में डाल देंगे तो वो तैरकर आगे नही
चला जायेगा ?
गुप्ता जी : हाँ ये तो है ।
शर्मा जी : चलो तो इस पत्थर पर
राम राम लिख दिया है । अब तुम
इस पर बैठ जाओ । मैं धक्का देकर
तुमको दूसरी तरफ पहुंचा दूंगा ।
गुप्ता जी : ठीक मैं बैठ जाता हूँ ।
तुम धक्का दे दो ।
शर्मा जी : पहले सीट बेल्ट बांध
लो ।
गुप्ता जी : अरे ये कोई बस या
कार थोड़े ही है जिस पर सीट
बेल्ट बांधी जाये ।
शर्मा जी : अरे बांध लो एक
रस्सी क्या पता तुम पत्थर से
गिर जाओ ।
गुप्ता जी रस्सी बांध लेते हैं और
शर्मा धक्का दे देते हैं । गुप्ता जी
डूबते हुए चिल्लाते हैं - शर्मा जी
बचाओ मैं डूब रहा हूँ । तुम तो कह रहे
थे पत्थर तैरेगा ।
शर्मा जी : चुप कर बे । तुझ जैसे
बेवकूफों को रास्ते से हटाने के
लिए ही तो धर्म और भगवान का
सहारा लिया जाता है । चल अब
डूब मूर्ख । पत्त्थर भी कहीं तैरते हैं
...........................
अरे भाईयों मेरा एक सवाल है कि ये बन्दर-भालुओं ने कौनसे कान्वेन्ट में पढ़े थे......सोचो?
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