सुरेश वाडकर

Search results

Tuesday, December 13, 2016

शर्मा जी और गुप्ता जी गंगा नहाने गए । अचानक नहाते नहाते शर्मा जी की नजर गंगा के दूसरे छोर पर बुई पलेज पर पड़ी । शर्मा जी बोले गुप्ता जी देखो दूसरी तरफ कितने अच्छे तरबूज, खरबूज और ककड़ी लगे हुए हैं । चलो उधर चलकर खाते हैं कुछ खरबूज तरबूज । गुप्ता जी बोले - लेकिन मुझको तो तैरना भी नही आता । शर्मा जी : मुझको ही कौन सा तैरना आता है । गुप्ता जी : फिर उधर जायेंगे कैसे ? शर्मा जी : पत्थर पर बैठकर । गुप्ता जी : पत्थर तो खुद पानी में डूब जाता है । वो हमको क्या पार करवाएगा । शर्मा जी : अरे तुमने रामायण नही देखी ? पत्थर पर राम नाम लिखने से पत्थर पानी पर तैर जाते हैं । गुप्ता जी : बात तो तुम्हारी सही है लेकिन वो भगवान थे । शर्मा जी : रहे तो निरे बुद्धू ही । राम ही तो भगवान थे लेकिन पत्थर पर राम राम लिखने वाले तो सही से इंसान भी नही थे । बन्दर भालू थे । हम तो फिर भी इंसान हैं । गुप्ता जी : चलो ठीक है पत्थर पर राम राम लिखो और गंगा में फेंककर देखो । अगर डूबेगा तो कोई बात नही है। अगर नही डूबा तो फिर उस पर बैठकर दूसरी तरफ चलेंगे । शर्मा जी : अरे अगर हम पत्थर पर राम राम लिखकर उसको पानी में डाल देंगे तो वो तैरकर आगे नही चला जायेगा ? गुप्ता जी : हाँ ये तो है । शर्मा जी : चलो तो इस पत्थर पर राम राम लिख दिया है । अब तुम इस पर बैठ जाओ । मैं धक्का देकर तुमको दूसरी तरफ पहुंचा दूंगा । गुप्ता जी : ठीक मैं बैठ जाता हूँ । तुम धक्का दे दो । शर्मा जी : पहले सीट बेल्ट बांध लो । गुप्ता जी : अरे ये कोई बस या कार थोड़े ही है जिस पर सीट बेल्ट बांधी जाये । शर्मा जी : अरे बांध लो एक रस्सी क्या पता तुम पत्थर से गिर जाओ । गुप्ता जी रस्सी बांध लेते हैं और शर्मा धक्का दे देते हैं । गुप्ता जी डूबते हुए चिल्लाते हैं - शर्मा जी बचाओ मैं डूब रहा हूँ । तुम तो कह रहे थे पत्थर तैरेगा । शर्मा जी : चुप कर बे । तुझ जैसे बेवकूफों को रास्ते से हटाने के लिए ही तो धर्म और भगवान का सहारा लिया जाता है । चल अब डूब मूर्ख । पत्त्थर भी कहीं तैरते हैं ........................... अरे भाईयों मेरा एक सवाल है कि ये बन्दर-भालुओं ने कौनसे कान्वेन्ट में पढ़े थे......सोचो?

ब्राम्हणवाद भगाओ, देश को बचाओ........जय मूलनिवासी!!

No comments:

Post a Comment