सुरेश वाडकर

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Tuesday, March 10, 2015

विदेशी न सही, स्वदेशी कालाधन तो निकालिए

विदेशी न सही, स्वदेशी कालाधन तो निकालिए

अभी तक कालेधन के विषय में यही अवधारणा रही है कि वह धन जो चोरी-छिपे विदेशी बैंकों में जमा किया गया हो।taujiसुप्रीमकोर्ट ने पिछली यूपीए सरकार को आदेश भी दिया था कि ऐसे लोगों की सूची पेश करें, जिनका पैसा अवैधानिक तरीके से विदेशों में जमा है। उन्होंने तो सूची जमा नहीं किया परन्तु मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए एसआईटी का गठन किया और 600 से अधिक ऐसे खाताधारकों के नाम भी अदालत में पेश किए। विदेशों से काला धन लाने में अनेक और जटिल समस्याएं हैं।
विदेशों से धन लाने की देरी से काफी थुक्का फजीहत हो रही है क्योंकि कुछ नेताओं ने अति उत्साह में कह दिया था कि यदि काला धन वापस आ जाए तो प्रत्येक भारतीय के खाते में कई-कई लाख रुपया जमा हो जाएगा। अब विरोधियों को ताना सुनाने का सुनहरा मौका मिल गया था। मोदी सरकार ने विदेशी काले धन के साथ ही स्वदेशी कालेधन पर भी प्रहार करने का निर्णय लिया है। स्वदेशी हो अथवा विदेशी, रुपए-पैसों का रंग एक ही होता है परन्तु वह धन काला कैसे हो जाता है?
वह धन जिस पर सरकार को टैक्स न दिया गया हो कालाधन कहलाता है। इस प्रकार का धन तो देश में भी भारी मात्रा भरा पड़ा है,जिसे कई बार समानान्तर अर्थव्यवस्था कहा जाता है। विदेशी कालाधन वहां की बैंकों में जमा कर दिया गया है लेकिन स्वदेशी कालाधन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग जगहों पर दुबक कर बैठा है। पुराने जमाने में सोना-चांदी के रूप में जमीन के अन्दर बिठा दिया जाता था क्योंकि कहते थे ”वित्ते नृपालात् भयम” यानी धन है तो राजा का डर है । अब जमीन के अन्दर गड़े धन को राजा का डर तो नहीं है परन्तु डकैतों और चोरों का डर है ।
हजारों मन्दिरों, मस्जिदों और गिरिजाघरों में अकूत सम्पदा मौजूद है वह भी काले धन की श्रेणी में आएगी। कहते हैं अंग्रेजों के डर से वहां के राजाओं ने अरबो-खरबों रुपया पद्मनाभ मन्दिर में जमा कर दिया था जो आज भी विद्यमान है। यह भगवान का पैसा नहीं है बल्कि जनता का पैसा है भगवान के संरक्षण में है। क्या इसका उपयोग जन-कल्याण के लिए नहीं किया जाना चाहिए? यही बात दूसरे धर्मस्थानों की सम्पदा पर भी लागू होगा।
आजकल सर्वाधिक काला धन जमीन जायदाद के रूप में रहता है। कई बार बेनामी सम्पत्ति के रूप में। यही कारण है कि पिछले 40 साल में गांवों की जमीन के दाम 400 गुना बढ़ गए हैं जब कि सोने के दाम केवल 150 गुना ही बढ़े हैं। जहां कालेधन का प्रवेश नहीं है वहां महंगाई भी नहीं है जैसे मजदूरी इसी अवधि में करीब 70 गुना और गेहूं करीब 30 गुना बढ़ा है। स्पष्ट है जहां काले धन की पैठ थी वहां महंगाई अधिक बढ़ी।
गांवों में काले धन नहीं है क्योंकि खेती की आमदनी पर टैक्स नहीं बनता और अधिकतर किसान आयकर सीमा से अधिक कमाते भी नहीं। परन्तु राजनेता और अधिकारी रिश्वत के रूप में जो धन लेते हैं उस पर टैक्स नहीं देते इसलिए वह काला है। कभी-कभी इन्कम टैक्स विभाग कालेधन वालों से पूछा जाता है कि ज्ञात स्रोतों से अधिक धन आया कहां से, परन्तु जांच पड़ताल की चुस्त प्रक्रिया नहीं है। जब पहली बार खुलासा होता है तो मीडिया में खूब धूम-धड़ाका होता है परन्तु जब प्रकरण का निस्तारण होता है तो पता नहीं चलता कैसे हुआ ।
अब शायद मोदी सरकार इसे गम्भीर अपराध मान रही है और 10 साल तक की सजा की बात हो रही है। अभी तक टैक्स चोरी पर आर्थिक दंड भरने से काम चल जामा था। वैसे कुछ लोगों को सजाएं भी हुई हैं। एक केन्द्रीय मंत्री थे, हिमाचल के रहने वाले सुखराम जिन्होंने अपने रजाई गद्दों और तकियों में नोटें भर रक्खी थीं। कार्यपालिका और न्यायपालिका के अनेक लोग काले धन के लालच में पड़ चुके हैं और दंड झेला है। अब शायद कुछ अंकुश लग सके ।
कालाधन रोकने के लिए पहले भ्रष्टाचार रोकना होगा। इसके दो ही उपाय हैं पहला तो नीचे से क्रान्ति जो व्यवस्था को उखाड़ फेंकेगी और प्रजातंत्र समाप्त हो सकता है। दूसरा उपाय है शासन प्रशासन द्वारा आदर्श स्थापित करना जिससे नीचे के लोग प्रेरित हों। नरेन्द्र मोदी ने कहा तो था ”ना खाएंगे और ना खाने देंगे” पता नहीं कितना कामयाब होंगे हमारे प्रधान मंत्री इस अभियान में। हम उन्हें शुभकामनाएं ही दे सकते हैं।

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