सुरेश वाडकर

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Thursday, March 5, 2015

भारत के मुलनिवासी ब्राह्मण धर्म के वर्ण व्यवस्था एवं

भारत के मुलनिवासी ब्राह्मण धर्म के वर्ण व्यवस्था एवं
जाति व्यवस्था द्वारा हैं गुलाम
सन् 1848 से राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने आन्दोलन चलाया था, उसी आन्दोलन को छत्रपति शाहूजी महाराज ने चलाया था और बाद में उसी आन्दोलन का परचम सारे देश में लहराने का काम डा.बाबासाहब अम्बेडकर के द्वारा किया गया था, अर्थात बाबासाहब डा.अम्बेडकर ने उस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया था। उसी आन्दोलनों की बदौलत मूलनिवासी समाज के लोगों को संवैधानिक अधिकार मिले। संवैधानिक अधिकार मिलने की वजह से इस समाज में एक पढ़ा-लिखा वर्ग तैयार हुआ, और आरक्षण की वजह से उन्हें नौकरी मिली।
भारत सरकार की दो करोड़ नौकरियां हैं, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित लोगों को करीब तीस लाख नौकरियां मिलीं हैं और इनको सालाना करीब साठ हजार करोड़ रूपये वेतन के रूप में प्राप्त होता है। वर्ष 2012-13 का भारत सरकार का एक साल का बजट चैदह करोड़ नब्बे हजार नौ सौ पचीस करोड़ रूपये का है, और सन् 1948 में पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक साल का बजट केवल 240 करोड़ रूपये का था। जबकि मौजूदा समय में इन्दिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी द्वारा चलायी जा रही सरकार का एक साल का बजट लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का है। आप अंदाजा लगा सकते हो कि 1948 और 2012 के बजट में कितना अंतर है? वर्ष 2012 के 15 लाख करोड़ रूपये के बजट में से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित हुए लोगों से जो कर्मचारी और अधिकारी हो गये है उनके घरों में 60 हजार करोड़ रूपये सालाना वेतन के रूप में जाता है।
90 जिलों के जिलाधिकारी अनुसूचित जाति, जनजाति तथा ओबीसी के लोग हैं। जबकि पूरे देश में कुल 644 जिले हैं। जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म यानि वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के अनुसार समस्त अधिकारों से वंचित कर दिया गया था, वर्ण-व्यवस्था में गुलाम बनाये गये लोगों को अधिकार वंचित करके शूद्र घोषित कर दिया गया था, वे ही लोग आज की संवैधानिक भाषा में अन्य पिछड़ी जाति के लोग है । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और नोमेडिक ट्राईब, सेमी नोमेडिक ट्राईब के लोग तो वर्ण-व्यवस्था के बाहर के लोग हैं। परन्तु हमारे पुरखों के आन्दोलनों से जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म के तहत किसी तरह का कोई अधिकार नहीं था उन्हें संवैधानिक अधिकार मिले तथा उनके बीच पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी वर्ग निर्माण हुआ, उन बुद्धिजीवि लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे लोग अपने पीछे छूट गये हुए जो लोग हैं, यानि 85 प्रतिशत समाज में से केवल 30 लाख लोगों को ही नौकरियां मिलीं और बाकी सारा-का-सारा समाज तो अभी पीछे ही छूट गया है, उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
पश्चिम बंगाल के ही अर्जुनसेन गुप्ता जो विश्व बैंक के अर्थशास्त्री थे, उन्होंने भारत सरकार के योजना आयोग के साथ मिलकर सर्वे किया और यह आँकड़े बताये कि 29 करोड़ लोगों की प्रतिव्यक्ति प्रति दिन की आय मात्र 6 रूपया है, 26 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आय मात्र 11 रूपये हैं और 28 करोड़ लोगों की प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की आय मात्र 20 रूपया है। अर्थात कुल 83 करोड़लोगों की प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय कम-से-कम 6 रूपये और अधिकतम 20 रूपये है। ये सारे लोग हमारे ही मूलनिवासी समाज के लोग हैं। देश को आजादी मिले 66वां साल चल रहा है लेकिन देश की कुल 121 करोड़ की आबादी में से इतनी बड़ी संख्या के लोगों को कुछ भी नहीं मिला। क्योंकि आज भी भारत का शासक वर्ग केवल ब्राह्मण है।
सन् 1848 से राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने आन्दोलन चलाया था, उसी आन्दोलन को छत्रपति शाहूजी महाराज ने चलाया था और बाद में उसी आन्दोलन का परचम सारे देश में लहराने का काम डा.बाबासाहब अम्बेडकर के द्वारा किया गया था, अर्थात बाबासाहब डा.अम्बेडकर ने उस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया था। उसी आन्दोलनों की बदौलत मूलनिवासी समाज के लोगों को संवैधानिक अधिकार मिले। संवैधानिक अधिकार मिलने की वजह से इस समाज में एक पढ़ा-लिखा वर्ग तैयार हुआ, और आरक्षण की वजह से उन्हें नौकरी मिली।
भारत सरकार की दो करोड़ नौकरियां हैं, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित लोगों को करीब तीस लाख नौकरियां मिलीं हैं और इनको सालाना करीब साठ हजार करोड़ रूपये वेतन के रूप में प्राप्त होता है। वर्ष 2012-13 का भारत सरकार का एक साल का बजट चैदह करोड़ नब्बे हजार नौ सौ पचीस करोड़ रूपये का है, और सन् 1948 में पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक साल का बजट केवल 240 करोड़ रूपये का था। जबकि मौजूदा समय में इन्दिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी द्वारा चलायी जा रही सरकार का एक साल का बजट लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का है। आप अंदाजा लगा सकते हो कि 1948 और 2012 के बजट में कितना अंतर है? वर्ष 2012 के 15 लाख करोड़ रूपये के बजट में से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित हुए लोगों से जो कर्मचारी और अधिकारी हो गये है उनके घरों में 60 हजार करोड़ रूपये सालाना वेतन के रूप में जाता है।
90 जिलों के जिलाधिकारी अनुसूचित जाति, जनजाति तथा ओबीसी के लोग हैं। जबकि पूरे देश में कुल 644 जिले हैं। जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म यानि वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के अनुसार समस्त अधिकारों से वंचित कर दिया गया था, वर्ण-व्यवस्था में गुलाम बनाये गये लोगों को अधिकार वंचित करके शूद्र घोषित कर दिया गया था, वे ही लोग आज की संवैधानिक भाषा में अन्य पिछड़ी जाति के लोग है । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और नोमेडिक ट्राईब, सेमी नोमेडिक ट्राईब के लोग तो वर्ण-व्यवस्था के बाहर के लोग हैं। परन्तु हमारे पुरखों के आन्दोलनों से जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म के तहत किसी तरह का कोई अधिकार नहीं था उन्हें संवैधानिक अधिकार मिले तथा उनके बीच पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी वर्ग निर्माण हुआ, उन बुद्धिजीवि लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे लोग अपने पीछे छूट गये हुए जो लोग हैं, यानि 85 प्रतिशत समाज में से केवल 30 लाख लोगों को ही नौकरियां मिलीं और बाकी सारा-का-सारा समाज तो अभी पीछे ही छूट गया है, उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
पश्चिम बंगाल के ही अर्जुनसेन गुप्ता जो विश्व बैंक के अर्थशास्त्री थे, उन्होंने भारत सरकार के योजना आयोग के साथ मिलकर सर्वे किया और यह आँकड़े बताये कि 29 करोड़ लोगों की प्रतिव्यक्ति प्रति दिन की आय मात्र 6 रूपया है, 26 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आय मात्र 11 रूपये हैं और 28 करोड़ लोगों की प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की आय मात्र 20 रूपया है। अर्थात कुल 83 करोड़लोगों की प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय कम-से-कम 6 रूपये और अधिकतम 20 रूपये है। ये सारे लोग हमारे ही मूलनिवासी समाज के लोग हैं। देश को आजादी मिले 66वां साल चल रहा है लेकिन देश की कुल 121 करोड़ की आबादी में से इतनी बड़ी संख्या के लोगों को कुछ भी नहीं मिला। क्योंकि आज भी भारत का शासक वर्ग केवल ब्राह्मण है।
सन् 1848 से राष्ट्रपिता जोतिराव फुले ने आन्दोलन चलाया था, उसी आन्दोलन को छत्रपति शाहूजी महाराज ने चलाया था और बाद में उसी आन्दोलन का परचम सारे देश में लहराने का काम डा.बाबासाहब अम्बेडकर के द्वारा किया गया था, अर्थात बाबासाहब डा.अम्बेडकर ने उस आन्दोलन को राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया था। उसी आन्दोलनों की बदौलत मूलनिवासी समाज के लोगों को संवैधानिक अधिकार मिले। संवैधानिक अधिकार मिलने की वजह से इस समाज में एक पढ़ा-लिखा वर्ग तैयार हुआ, और आरक्षण की वजह से उन्हें नौकरी मिली।
भारत सरकार की दो करोड़ नौकरियां हैं, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित लोगों को करीब तीस लाख नौकरियां मिलीं हैं और इनको सालाना करीब साठ हजार करोड़ रूपये वेतन के रूप में प्राप्त होता है। वर्ष 2012-13 का भारत सरकार का एक साल का बजट चैदह करोड़ नब्बे हजार नौ सौ पचीस करोड़ रूपये का है, और सन् 1948 में पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक साल का बजट केवल 240 करोड़ रूपये का था। जबकि मौजूदा समय में इन्दिरा गांधी की बहू सोनिया गांधी द्वारा चलायी जा रही सरकार का एक साल का बजट लगभग 15 लाख करोड़ रूपये का है। आप अंदाजा लगा सकते हो कि 1948 और 2012 के बजट में कितना अंतर है? वर्ष 2012 के 15 लाख करोड़ रूपये के बजट में से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और इनसे धर्म-परिवर्तित हुए लोगों से जो कर्मचारी और अधिकारी हो गये है उनके घरों में 60 हजार करोड़ रूपये सालाना वेतन के रूप में जाता है।
90 जिलों के जिलाधिकारी अनुसूचित जाति, जनजाति तथा ओबीसी के लोग हैं। जबकि पूरे देश में कुल 644 जिले हैं। जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म यानि वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यवस्था के अनुसार समस्त अधिकारों से वंचित कर दिया गया था, वर्ण-व्यवस्था में गुलाम बनाये गये लोगों को अधिकार वंचित करके शूद्र घोषित कर दिया गया था, वे ही लोग आज की संवैधानिक भाषा में अन्य पिछड़ी जाति के लोग है । अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और नोमेडिक ट्राईब, सेमी नोमेडिक ट्राईब के लोग तो वर्ण-व्यवस्था के बाहर के लोग हैं। परन्तु हमारे पुरखों के आन्दोलनों से जिन लोगों को ब्राह्मण धर्म के तहत किसी तरह का कोई अधिकार नहीं था उन्हें संवैधानिक अधिकार मिले तथा उनके बीच पढ़ा-लिखा और बुद्धिजीवी वर्ग निर्माण हुआ, उन बुद्धिजीवि लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे लोग अपने पीछे छूट गये हुए जो लोग हैं, यानि 85 प्रतिशत समाज में से केवल 30 लाख लोगों को ही नौकरियां मिलीं और बाकी सारा-का-सारा समाज तो अभी पीछे ही छूट गया है, उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है।
पश्चिम बंगाल के ही अर्जुनसेन गुप्ता जो विश्व बैंक के अर्थशास्त्री थे, उन्होंने भारत सरकार के योजना आयोग के साथ मिलकर सर्वे किया और यह आँकड़े बताये कि 29 करोड़ लोगों की प्रतिव्यक्ति प्रति दिन की आय मात्र 6 रूपया है, 26 करोड़ लोगों की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आय मात्र 11 रूपये हैं और 28 करोड़ लोगों की प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की आय मात्र 20 रूपया है। अर्थात कुल 83 करोड़लोगों की प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आय कम-से-कम 6 रूपये और अधिकतम 20 रूपये है। ये सारे लोग हमारे ही मूलनिवासी समाज के लोग हैं। देश को आजादी मिले 66वां साल चल रहा है लेकिन देश की कुल 121 करोड़ की आबादी में से इतनी बड़ी संख्या के लोगों को कुछ भी नहीं मिला। क्योंकि आज भी भारत का शासक वर्ग केवल ब्राह्मण है।
- waman meshram

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