भारत में ब्राहमणवाद
हजारों
सालों से भारत में ब्राह्मणवादी राज करते आ रहे है। इस के पीछे कौन कौन से
मुख्य कारण है ये सोचने और समझने का विषय है। जैसाकि बहुत से शोधों से
साबित हो चूका है कि आज के ब्राह्मणवादी आर्य लोग यूरेशिया से भारत में आये
और उस समय उनके पास वापिस जाने का कोई साधन ना होने के कारण आर्य लोग भारत
में ही रहने पर मजबूर हो गए। यह बात भी कई शोधों से साबित हो चुकी है कि
या तो आर्य लोग भारत पर आक्रमण करने के मनसूबे से भारत में आये थे या उनको
यूरेशिया से देश निकाला दे कर समुन्द्र में मरने छोड़ दिया गया था और यह
भारत के मूलनिवासियों की बदकिस्मती थी कि आर्य लोग दक्षिण भारत में आ
पहुंचे। आर्यों के विदेशी होने के दो सबूत; एक सबूत आर्यों की भाषा, आज भी
आर्यों की भाषा संस्कृत उनके यूरेशियन होने का प्रमाण है। बहुत से
वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हो चूका है कि आर्यों की भाषा संस्कृत में ऐसे
बहुत से शब्द है जो यूरेशिया की भाषा से मिलते है। दूसरा सबसे पुख्ता सबूत
2001 में किया गया डीएनए परिक्षण जिसे से साफ़ साफ़ साबित हो जाता है कि
ब्राह्मण का 99.99%, क्षत्रिय(राजपूत) का 99.88% और वैश्य का 99.86% डीएनए
यूरेशिया के लोगों से मिलता है।
लेकिन भारत में रहने वाली किसी भी नारी/औरत
का डीएनए दुनिया के किसी भी देश की नारी से नहीं मिलता। इस से साबित होता
है कि भारत की सभी औरते चाहे वो ब्राह्मणों के घर की औरते हो या
मूलनिवासियों के घर की, सभी भारत की मूलनिवासी है। यह डीएनए रिपोर्ट 21 मई,
2001 के टाइम ऑफ इंडिया अखबार में भी छपी थी और भारतीय उच्चतम न्यायलय ने
भी इस रिपोर्ट को मान्यता दी थी। इतने पुख्ता सबूत होने पर भी बहुत से
मूलनिवासी इस बात को मानने और समझने के लिए तैयार नहीं है कि ब्राह्मणवादी
आर्य विदेशी है।
आर्यों ने भारत में आकर बहुत समय तक यहाँ
के लोगों के रहन सहन, परम्पराओं और मूलनिवासियों की मानसिकता को समझा।
मूलनिवासी निहायत ही भोले भाले लोग थे। किसी भी बात को आसानी से सच मान
लेते थे। ऐसा भी नहीं है कि आर्यों ने अपनी सता स्थापित करने के कुछ ना
किया हो। आर्यों ने सबसे पहले अपने आप को देवता और भगवान का दूत स्थापित
किया। उस समय के आर्य देवता को आज ब्राह्मण कहा जाता है। आर्यों ने अपनी
सता स्थापित करने के लिए बहुत से मूलनिवासी राजाओं को छल कपट से मारा। आज
के हिंदू धर्म शास्त्र आर्यों के मूलनिवासियों पर किये अत्याचारों की
कहानियों से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अवतारवाद हमेशा ब्राह्मणों का अचूक
हथियार रहा जिसका आज भी ब्राह्मण किसी ना किसी रूप में प्रचार करते रहते है
और मूलनिवासियों का शोषण करते है। विष्णु के अवतार, शिव के अवतार, काली के
अवतार, दुर्गा के अवतार और अन्य देवताओं के अवतारों की कहानियों को
ब्राह्मणों का अवतारवाद कहा जाता है। आर्यों ने भारत के बहुत से हिस्सों पर
कब्ज़ा करके मूलनिवासियों पर मनमाने अत्याचार किये। लाखों करोड़ों
मूलनिवासियों को मौत के घाट उतार दिया। मूलनिवासियों के पुरे पुरे राज्यों
को उजाड दिया। मूलनिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को पूरी तरह समाप्त कर
दिया। राज्य स्थापित करने के बाद आर्यों ने मूलनिवासियों के लिए मनमाने
कानून बनाये। जैसे मूलनिवासियों के लिए पढ़ना निषेध कर दिया गया,
मूलनिवासियों के घर में पैदा होने वाली लडकी को जवान होने पर आर्यों के लिए
पेश करना, सम्पति का अधिकार छीन लिया गया, हर प्रकार की सम्पति का स्वामी
सिर्फ और सिर्फ आर्य ब्राह्मण ही होते थे, एक समय ऐसा भी आया जब
मूलनिवासियों के दिन में बाहर निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई। मूलनिवासी
सिर्फ रात को या दिन में कड़ी धुप में ही घर से बाहर निकल सकते थे,
मूलनिवासी कही थूक भी नहीं सकते थे, थूकने के लिए मूलनिवासियों को गले में
हांडी लटका के रखनी पड़ती थी, मूलनिवासी हमेशा अपने पीछे झाड़ू बांधे रखते थे
ताकि कही रास्ते पर मूलनिवासियों के पैरों के निशान ना रह जाये। जब भी कोई
आर्य रास्ते पर जा रहा होता था तो मूलनिवासी उस आर्य से इक्कीस कदम दूर
अपने जुत्ते सिर पर उठाये खड़ा रहता था। ब्राह्मणवादी आर्यों ने ऐसा कोई
अवसर नहीं छोड़ा जब मूलनिवासियों को प्रताड़ित ना किया हो।
मूलनिवासियों की इस हालत को सबसे पहले
महात्मा बुद्ध ने समझा और बौद्ध धर्म की स्थापना की। ताकि सभी लोग जाति
पाति को छोड़कर समता, समानता, बंधुत्व और न्याय के शासन में शांति और प्रेम
से रह सके। बहुत से लोगों ने महात्मा बुद्ध की बात को समझा और इसीलिए 500
ईसवी से 800 ईसवी तक भारत में बहुत से लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।
लोगों का जीवन स्तर सुधरने लगा। ब्राह्मणवाद देश के हर कोने से समाप्त होने
लगा। सम्राट अशोक ने इस कार्य में विशेष योगदान दिया और बुद्ध धर्म को देश
के कोने कोने में पहुँचाया। यहाँ तक बुद्ध धर्म का प्रचार और प्रसार देश
से बाहर बहुत से देशों में किया। ब्राह्मणवादी आर्यों को लोगों को ठगने और
मुफ्त में ऐश करने की आदत पड़ चुकी थी। देश का कोई भी मूलनिवासी ब्राह्मण
व्यवस्था को मानने को तैयार नहीं था और ब्राह्मणों को दान देना भी लोगों ने
बंद कर दिया था। ब्राह्मणवादी आर्यों के भूखे मरने के दिन आने लगे थे तो
आर्यों ने फिर से एक बार मंत्रणा की और अपने आपको फिर से स्थापित करने के
लिए प्रयास शुरू कर दिए। 900 ईसवी में अशोक के पौत्र बृहदत के दरबार में
पुष्यमित्र शुंग नामक एक आर्य सेनापति था। ब्राह्मणवादी आर्यों ने
पुष्यमित्र शुंग को अपनी ओर मिला लिया। ब्राह्मणवादी आर्यों ने एक षड्यंत्र
रचा और उस षड्यंत्र के तहत पुष्यमित्र शुंग के हाथों भरे दरबार में बृहदत
की हत्या करवा दी। हत्या के बाद पुष्यमित्र शुंग ने स्वयं को पाटलिपुत्र का
राजा घोषित कर दिया। पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म को समाप्त करने में
कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। बहुत से बौद्ध भिक्षुयों को मार दिया गया। बौद्ध
धर्म के मंदिरों और स्तूपों को नष्ट कर दिया गया। बहुत से बौद्ध भिक्षु
भारत छोड़ कर भाग गए। इस षड्यंत्र से फिर से भारत में ब्राह्मणवादी आर्यों
का शासन फिर से स्थापित हो गया। यही वो पुष्यमित्र शुंग है जिसको आज के सभी
ब्राह्मणवादी आर्य राम भगवान के नाम से याद करते है। पुष्यमित्र शुंग को
भगवान बनाने का श्रेय वाल्मीकि को जाता है, जो पुष्यमित्र शुंग के दरबार
में राजकवि हुआ करता था। इस बात के वैज्ञानिक सबूत मौजूद है कि वाल्मीकि ने
900 या 1000 ईसवी में रामायण लिखी थी। विज्ञान के अनुसार आज से 2000 या
2500 साल पहले कोई भी ऐसी भाषा नहीं थी जिसको लिखा जाता था या जिसकी लिपि
थी। उस समय सांकेतिक लिपि होती थी और कुछ संकेत अंकित करके सन्देश भेजे या
मंगवाए जाते थे। विज्ञान के अनुसार एक भाषा 2000 सालों में पैदा होती है और
इसी समय में समाप्त भी हो जाती है। एक भाषा की लिपि को बनने में लगभग 1000
साल का समय लगता है। ब्राह्मणवादी आर्य अपने साथ संस्कृत की लिपि अपने साथ
नहीं लाये थे क्योकि आज भी यूरेशिया की भाषा और भारत में लिखी जाने वाली
संस्कृत की लिपि अलग अलग है, यह बात यहाँ प्रमाणित होती है। यह बात यहाँ
वाल्मीकि रामायण और दूसरे आर्यों के धर्म ग्रंथों पर भी लागू होती है। अगर
मान लिया जाये, आर्य संस्कृत भाषा को साथ लेके आये थे तो संस्कृत भाषा की
लिपि को बनने में 1000 साल लगे होंगे। विज्ञान भी इस बात का समर्थन करता
है। तो यह कहा जा सकता है कि ब्राह्मणवादी आर्यों के सभी धर्म ग्रन्थ 1000
ईसवी के बाद ही लिखे गए होंगे। जहा तक महाभारत की बात है, अगर “मेकाले का
इतिहास” पढ़ा जाये। तो एक जगह मेकाले ने लिखा है कि “जब अंग्रेज 1857 ईसवी
में भारत पहुंचे तो ब्राह्मणों ने एक घर के सभी कमरों को भोज पत्र पर कोई
किताब लिख के भर रखा था। जब अंग्रेजों ने ब्राह्मणों से पूछा कि यह क्या
है? तो ब्राह्मणों ने बताया कि यह महाभारत नामक किताब की रचना की जा रही
है। अंग्रेजों ने जब ब्राह्मणों से लिखे हुए साहित्य को सुना तो तत्काल
हुकुम दिया कि यह जहालत लिखना बंद करो।” “मेकाले के इतिहास” से यह बात
साबित हो जाती है कि ब्राह्मण आर्यों के धर्म ग्रन्थ हजारों साल पहले नहीं
महज कुछ सौ साल पहले 1600 से 1800 ईसवी में लिखे गए है। अब इन धर्म
शास्त्रों में कितनी सचाई है यह तो कोई भी मूलनिवासी समझ सकता है।
इस बात के भी बहुत से प्रमाण मौजूद है,
जिनसे साबित होता है कि पुष्यमित्र शुंग ही आज का राम है। जैसे कि पुष्य
मित्र की राजधानी का असली नाम पाटलिपुत्र था जो बृहदत की राजधानी थी। उसी
पाटलिपुत्र का नाम पुष्यमित्र शुंग ने अयोध्या रखा और आज भी उस स्थान को
अयोध्या कहा जाता है। पुराने समय में राजाओं में प्रथा थी कि कोई भी राजा
दूसरे राजा को हरा कर अपनी राजधानी को स्थापित करता था। इसके विपरीत
पुष्यमित्र शुंग ने पाटलिपुत्र को धोखे से और बिना किसी युद्ध के जीता था
तो पुष्यमित्र शुंग की राजधानी का नाम अयोध्या=अ+योध्या था अर्थात बिना
युद्ध के जीती गई राजधानी।
भारत में राज्य स्थापित करने और बुद्ध धर्म
का पूरी तरह दमन करने के बाद ब्राह्मण आर्यों के सामने यह प्रश्न था कि अब
ऐसा क्या किया जाये ताकि भारत के मूलनिवासी भविष्य में कभी सिर ना उठा
सके। ब्राह्मण आर्यों ने अपने उस समय के सबसे बड़े हितैषी और तथाकथित भगवान
मनु से इस पर मंत्रणा की। तो मनु ने ब्राह्मण आर्यों को आश्वासन दिया कि
में ऐसे कठोर कानूनों और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करूँगा, जिसके सामने
मूलनिवासी हमेशा के लिए विवश और लाचार हो जायेंगे। मनु महाराज ने उस समय
मनुस्मृति की रचना की और आदेश दिया कि भविष्य में राजा मनु स्मृति के
अनुसार शासन करेगा. ब्राह्मण आर्यों ने देश में जाति व्यवस्था की स्थापना
की। अभी तक तो ब्राह्मणों ने सिर्फ चार वर्गों का निर्माण किया था। लेकिन
अब ब्राह्मणों ने मूलनिवासियों को भी वर्गीकृत कर दिया। जिन मूलनिवासियों
ने सीधे सीधे ब्राह्मणवाद को स्वीकार कर लिया गया, उनको उच्च शुद्र, और
जिन्होंने लड़ाई के बाद आत्म समर्पण किया उनको निम्न दर्जे का अतिशूद्र
घोषित कर दिया। जो मूलनिवासी गॉंव को छोड़ कर जंगलों में रहने चले गए उनको
सिर्फ शुद्र घोषित किया गया। आज ओबीसी उच्च जाति के शुद्र है, एसटी मध्यम
वर्ग के शुद्र है और एससी निम्न वर्ग के शुद्र है। आज भी मूलनिवासी चाहे
किसी भी जाति या वर्ग का हो ब्राह्मणवादी आर्यों के लिए सिर्फ शुद्र है।
लेकिन मूलनिवासी समाज के लोग यह बात समझने और मानने को तैयार नहीं है।
ब्राह्मणवादी आर्यों ने जाति व्यवस्था और धर्म को इस प्रकार मूलनिवासियों
के डीएनए में घुसा दिया है कि आज कोई भी मूलनिवासी सचाई सुनाने को तैयार
नहीं होता। उदहारण के लिए; वाल्मीकि समाज के लोगों को कहे कि वाल्मीकि एक
ब्राह्मण आर्य था क्योकि वाल्मीकि को संस्कृत आती थी। उसका पहनावा भी
ब्राह्मण आर्यों जैसा था। वाल्मीकि पुष्यमित्र शुंग के दरबार का राजकवि था।
अगर कुछ सवाल पूछे जाये जैसे कि उस समय ब्राह्मणों के सिवा किसी को पढने
लिखने का अधिकार नहीं था तो वाल्मीकि को संस्कृत कैसे आती थी? तो वाल्मीकि
समाज के लोग सचाई को मानने के जगह लड़ाई झगडा करने पर उतारू हो जाते है। यही
हाल यादवों का है अगर किसी यादव को यह कहा जाये कि कृष्ण नाम का कोई अवतार
कभी नहीं हुआ। यह ब्राह्मणों की कोरी कल्पना है और अगर कृष्ण रहा भी होगा
तो वह एक नंबर का व्यभिचारी था। यहाँ तक कृष्ण के अपनी मामी राधा के साथ
शारीरिक संबंध थे। तो यादव मरने मारने के लिए उतारू हो जायेंगे। तरह तरह के
बेतुके तर्क देंगे और खुद को बाकि मूलनिवासियों से श्रेष्ठ साबित करने की
कोशिश करेंगे। यही हाल आज सभी मूलनिवासी समुदायों का है। हर समुदाय सचाई को
नहीं समझना चाहता और अपने आपको दूसरे से श्रेष्ठ मानता है। ब्राह्मणवादी
आर्य जो चाहते थे आज बिलकुल वही हो रहा है। मूलनिवासी ही मूलनिवासी से
ब्राह्मणों की बनाई व्यवस्था को कायम रखने के लिए लड़ रहा है। ब्राह्मण कुछ
नहीं कर रहा लेकिन फिर भी सब हो रहा है। मूलनिवासी खुद ही ब्राह्मणों का
गुलाम बन रह है।
सच का सामना करने से हर मूलनिवासी डरता है।
अपने धर्म और जाति के मोह में हर मूलनिवासी इतना डूब चूका है कि उसे
ब्राह्मणी भगवानों के और अपनी जाति के आगे कुछ नज़र नहीं आता। जबकि सचाई यह
है कि ब्राह्मणों का 800 से 1000 ईसवी के बीच जाति व्यवस्था नाम का ऐसा
षड्यंत्र था जिससे मूलनिवासी आज तक मुक्त नहीं हो पाया है। ब्राह्मणों ने
मूलनिवासियों को आपस में वर्गीकृत करके हमेशा के लिए गुलाम बना लिया और वह
गुलामी आज भी हर मूलनिवासी ढो रहे है।
(क्रमश:)
जाति व्यवस्था को कब कब और कैसे बचाया गया,
कैसे कैसे उपाय ब्राह्मणवादी आर्यों ने जाति व्यवस्था को कायम रकने के लिए
किये? सभी प्रकार की जानकारी के लिए हमारे अगले लेख का इंतज़ार करे।
मूलनिवासी समाज के सभी लोगों के साथ हमारी इस वेबसाइट को शेयर करे और
ज्यादा से ज्यादा लोगों तक भीम संघ का सन्देश पहुंचाए। – जय भीम !!
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