सुरेश वाडकर

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Monday, January 26, 2015

भगवान और मोक्ष

भगवान और मोक्ष

 
 
 
 
 
 
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   भारत के मूढ़ और मंद बुद्धि विद्वानों ने भगवान की परिकल्पना का सत्यानाश कर दिया है.. भारत में और कुछ मिले, कुछ हो या ना हो लेकिन भगवान बहुत ज्यादा मिलते है… पिछले दिनों भारत की प्रसिद्ध पत्रिका “मातृवन्दना“ का एक संस्करण पढ़ने को मिला, जिसमें पृष्ठ न. 20 पर इस पत्रिका के संपादक डॉ दयानंद शर्मा जी लिखते है..
“भारत में जन्म लेना सौभाग्य की बात
यदि कोई ऐसा देश है जहाँ मनुष्य भगवान की पूजा के माध्यम से भगवान से सुसंवाद स्थापित कर सकता है, तो वह केवल भारत है.. हमारे पूर्वजन्मों के पुण्यों के कारण ही हमे इस पावन भूमि पर जन्म मिला है.. वस्तुत मोक्ष पाने के हेतु भारतवर्ष में जन्म लेना ही भाग्य की बात है.. मनुष्य को अन्य भू-भाग में भोग अथवा उपभोग मिल सकता है, वैज्ञानिक उपलब्धियां भी संभवतः मिल सकती है, चन्द्रमा पर पहुँच सकता है.. किन्तु भगवान तक नहीं पहुँच सकता.. उसके लिए भारत में ही जन्म लेना होगा.”
Bhagwaan aur Mokshaमैं डॉ दयानंद शर्मा से पूछता हूँ; आज तक आपने कितने लोगों को भगवान से मिलाया? आज तक कितने लोगों को मोक्ष मिला? आपके पास क्या प्रमाण है? या तो एक सवाल का जबाब दे; आखिर कब तक मोक्ष के नाम पर आम लोगों को बेबकुफ़ बना कर ऐशो आराम की जिंदगी जीते रहोगे? अगर आपके पास कोई प्रमाण हो तो कृपया मुझे प्रेषित करे. ताकि मेरा जैसा नास्तिक एक आस्तिक बन सके..
    नरपिशाचों(Vampires) की परिकल्पना जिस किसी ने भी की है.. वो शत प्रतिशत भारत के धर्म के ठेक्केदारों से स्वाभाव से मेल खाती है.. जैसे नरपिशाच प्यार का नाटक कर के भोली भाली लडकियों का खून पीते है.. बिलकुल वैसे ही भारत में धर्म के ठेक्केदार भगवान के नाम पर बहला फुसला कर आम जनता का खून पीते है.. आम लोगों को डराने के लिए उनके कुछ प्रसिद्ध वाक्य होते है “आप पर शनि की छाया है.. चुडेलों की नज़र है.. भूतों ने आपको जकड रखा है.. योगनियों और शमशान के प्रेत आपके काम में प्रगति नहीं करने दे रहे… देवताओं का प्रकोप है.. देवियों का गुस्सा है..” और लोग इन धर्म के ठेक्केदारों की मूर्खतापूर्ण बातों में आकर पूजा-पाठ करवा कर आम आदमी अपनी पूरी जिंदगी तबाह कर देते है… शनि के लिए शनि दान, मंगल के लिए मगल दान, काली के लिए बलि, शमशान के प्रेतों के लिए मुर्गा और ना जाने क्या क्या.. हर रोज भारत में लाखों मासूम जानवर इन्ही धर्म के ठेक्केदारों के पेट की भूख शांत करने के लिए भगवानों के नाम पर काटे जाते है.. हजारों लडकियों और औरतों का धर्म के नाम पर शोषण होता है.. आसाराम के धर्म आश्रमों की हकीकत आपने कुछ महीने पहले देखी ही होगी.. डॉ दयानंद शर्मा जैसेमूढ़ मगज विद्धवान लोग इस प्रकार के अंधविश्वासों, अंधश्रधा और अंधभक्ति को बढ़ावा देते है.. मैं सिर्फ हिंदू धर्म की बात नहीं कर रहा.. ये हाल भारत के हर धर्म का है.. मुस्लिमों की हालत तो इस से भी बदतर है… उनके पीर पैगम्बर ही खत्म नहीं होते.. सिखों के गुरद्वारों में भी यही सब होता है.. बुद्ध धर्म में पहले ये सब नहीं था.. लेकिन आज वो भी रोज सुबह घंटा हिलाते है और पूजा करते है… हमारी सेकडों पीढियां उसी घंटे को बजाते बजाते गुजर गई लेकिन किसी को आज तक ना किसी देवी-देवता के दर्शन हुए और ना ही कोई ऐसा प्राणी मिला जिसको ये मूढ़ मगज विद्धवान भगवान कहते है.. आखिर जब आज तक किसी ने भगवान नाम के किसी प्राणी को देखा ही नहीं, किसी को भगवान नाम का प्राणी मिला ही नहीं तो उस भगवान के नाम पर इतना आडम्बर, पाखंड और ढकोसला क्यों?
डॉ दयानंद शर्मा जैसे मूढ़ मगज लेखकों के कारण ही देश में भिखारियों की जनसख्या दिन पर दिन बढती जा रही है. हट्टे कट्टे नौजवान मोक्ष प्राप्त करने के नाम पर साधू या भिखारी बनते जा रहे है. जो लोग श्रम करकेया पढाई करके देश का भविष्य उज्जवल बना सकते है वो लोग दयानंद शर्मा जैसे लेखकों के कारण भुखमरी, गरीब और जहालत को बढ़ावा दे रहे है. दयानंद शर्मा मुर्ख लेखकों के कारण देश में गरीबी दिन पर दिन बढती जा रही है. बेचारे नौजवानों को मोक्ष के नाम पर बेबकुफ़ बनाया जा रहा है. और मोक्ष को प्रामाणिक साबित करने के लिए 33 करोड देवी देवताओं की कलपना की गई. फिर उनके कार्य, वो भी ऐसे जो इस ब्रह्माण्ड में कोई भी किसी भी हाल में नहीं कर सकता. ना ही उन देवी देवता को किसी ने देखा और नाही उनको प्रमाणित करने के लिए कोई सबूत मौजूद है. लेकिन फिर भी ये मूढ़ मगज लेखक पता नहीं कौन कौन सी जहालत की किताबों और घटनाओं का ब्यौरा दे कर अपनी बातों को सच साबित करने की कोशिश करते रहते है. भगवान और मोक्ष को सच साबित करने के लिए कथाएं सुनायेंगे और उन कथाओं में भी कथाये छुपी होती है ये बोल कर उन कथाओं को भी प्रामाणिक साबित करने की कोशिश करते है. “भगवान के नाम पर तर्क नहीं करते.” जब कोई बस ना चले तो यह वाक्य इन धर्म के ठेक्केदारों और लेखकों का अंतिम वाक्य होता है. ये तो कबूतरवाद हो गया कि आँखे बंद कर लो और मान लो कि शिकारी को भी दिखाई नहीं दे रहा है. आखिर कब तक देश की भोली भाली जनता (कबूतर) इन धर्म संरक्षक लेखकों(शिकारियों) की बातों में आकर भगवान और मोक्ष के नाम पर अपने प्राण गंवाती रहेगी.
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