सुरेश वाडकर

Search results

Tuesday, January 13, 2015

रविवार, 3 जून 2012

एक क्रूर हत्यारे का वध


आखिरकारक्रूरनरपशु ब्रह्मेश्वरमुखिया अपनेअंजाम तक पहुंचगया। एक जून कोसुबह अज्ञात लोगोंने मानवता के उसकलंक से धरती कोमुक्त करा दिया।वैसे किसी भी सभ्य समाज में सरेआम किसी की हत्या कोजायज नहीं ठहराया जा सकता। परंतुयहां भगत सिंह कीवो पंक्तियां याद आती हैंजो उन्होंने सैण्डर्स की हत्या केबाद चिपकाये गये पर्चे में लिखी थी। भगत सिंह ने मानवहत्या को सबसे बड़ा गुनाह बताते हुए लिखा था कि कभी-कभी इंसानियत की हिफाजत के लिए ऐसा करनाआवश्यक हो जाता है। यहां भी कुछ ऐसी ही स्थितियां बनगयीं थी। जब न्यायपालिका न्याय देने के बजाय सबूतऔर गवाह की कमी की मजबूरी का इजहार करना हीअपने कत्र्तव्य का इतिश्री मान लेवहां और क्या होसकता है। जहां मुखिया और उसके साथियों की सत्ताधारीदल के साथ गहरा याराना होवहां और क्या रास्ता बचताहै। ब्रह्मेश्वर मुखिया नाम के उस दुर्दांत हत्यारे पर 22मुकदमे थे। इनमें से 16 में हमारी सक्षम न्यायपालिका नेसबूत  गवाह के अभाव में उसे बरी कर दिया था। शेष मेंउसे जमानत मिल चुकी थी। जब उसकी हत्या हुई वहजमानत पर था। फिर भीउसे इतना विश्वास था किअदालत उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। लिहाजावहदूसरे नाम से संगठन बनाने में लगा हुआ था।
रणवीर सेना नामकगिरोह का गठनब्रह्मेश्वर ने 1994 केअंतिम दिनों में कीथी। उसके बाद सेउसने सुनियोजितढंग से सामूहिकनरसंहार करना शुरूकर दिया। ऐसा नहींथा कि वह आक्रोश में हत्या कर रहा था। उसने पहलेअपना गिरोह कायम किया। फिर 22 बार हमला करके 300लोगों को मौत के घाट उतारा।
मुखिया ने सबसे पहला कहर 29 अप्रैल 1995 को भोजपुरजिले के संदेश प्रखंड के खोपिरा में पहली बार बरपाया।वहां उसने पांच दलितों की हत्या की। इसके तीन महीनेबाद इसी जिला के उदवंतनगर प्रखंड के सरथुआं गांव में 25जुलाई 95 को छह लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।इसके दस दिन बाद 5 अगस्त 95 को भोजपुर के ही बड़हराप्रखंड के नूरपुर गांव में हमला कर छह लोगों की हत्या करदी और गांव से 4 महिलाओं को उसके साथी उठाकर लेगये। उन सभी के साथ बलात्कार कर उनकी हत्या कर दीगयी। पुलिस रिकाॅर्ड के अनुसार उन चार महिलाओं में एक13 साल की बच्ची भी थीजिसके साथ खुद ब्रह्मेश्वरमुखिया ने बलात्कार किया था और फिर उसके जननांग मेंगोली मार कर हत्या कर दी थी।
इस रक्त पिपासु शैतान की खूनी प्यास धीरे-धीरे बढ़तीगयी। 7 फरवरी 96 को भोजपुर के ही चरपोखरी प्रखंड केचांदी गांव में हमला कर 4 लोगों की हत्या कर दी। पिफरइसका निशाना बना सहार प्रखंड। 9 मार्च को सहार प्रखंडके पतलपुरा में तीन, 22 अप्रैल को नोनउर गांव में 5 लोगोंकी हत्या की गयी। सहार का तो मानो मुखिया ने पूरी तरहसंहार का मंसूबा बना लिया था। 5 मई को नाढ़ी गावं मेंतीन और 19 मई को उसके गिरोह ने उदवंत नगर के मोरथगांव में 3 लोगों की हत्या कर दी।
11 जुलाई 1996 कोइस राक्षस ने अपनाऔर विद्रूप रूपदिखाया। अपनेगिरोह के साथसहार प्रखंड केबथानी टोला नामकबस्ती पर हमला कर 21 लोगों की हत्या कर दी। मृतकों मेंतीन शिशु (एक तीन माह का), छह बच्चे और ग्यारहमहिलाएं थीं। इनमें गांव-गांव घुमकर चुड़ी बेचने वाले गरीबमुसलमान नइमुद्दीन के परिवार के लोग भी शामिल थे,जिनमें एक दुधमुंही बच्ची भी थी। उस बच्ची को रणवीरसेना के दरिंदों ने हवा में उछालकर तलवार से काट डालाथा। नइमुद्दीन के सात वर्षीय घायल बेटे सद्दाम की मौतपीएमसीएच में हुई थी। इस कांड के सभी अभियुक्तों कोपटना हाई कोर्ट ने 16 अप्रैल 12 को बरी कर दिया है। जबइसके खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में जाने कीबात की तो उसके सहयोगी पार्टी जो देश में सांप्रदायिक दंगेकराने के लिए कुख्यात रही हैके नेताओं ने कड़ा ऐतराजजताया। इससे पहले ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में तीनआरोपितों को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनायीथी।
इसके बाद 25 नवंबर को 96 को सहार के पुरहारा में 4, 12दिसंबर 96 को संदेश प्रखंड के खनेउ में पांच, 24 दिसंबर 96को सहार के एकवारी में छह और 10 जनवरी 97 को तरारीप्रखंड के बागर गांव में तीन लोगों की हत्या की।
मुखिया और उसके गिरोह ने अबतक केवल भोजपुर में 77 लोगों कीनिर्मम हत्या की थी। सरकार कीओर से लापरवाही और कुछराजनीतिक दलों के प्रोत्साहन केकारण इसका हौसला बढ़ा और वहभोजपुर के बाहर भी अपनी शक्तिआजमाइश करने लगा।
भोजपुर से बाहर इसकी शुरुआतहुई 31 जनवरी 97 को जहानाबाद केमखदूमपुर प्रखंड के माछिल गांव मेंदलितों की हत्या के साथ। इसके बाद 26 मार्च 97 कोपटना जिले के बिक्रम प्रखंड अंतर्गत हैबसपुर में 10 लोगोंकी हत्या की गयी। फिर तो इसका शैतानी रंग गहराते हीचला गया। 28 मार्च 97 को तब के जहानाबाद और अब केअरवल जिले के आकोपुर में तीनभोजपुर के सहार प्रखंडके एकवारी में 10 अप्रैल 97 को नौ और भोजपुर के हीचरपोखरी प्रखंड के नगरी गांव में 11 मई को 10 लोगों कीहत्या मुखिया के गिरोह ने की।
ब्रह्मेश्वर मुखिया ने मानो हत्या को अपना जीवन उद्देश्यबना लिया था। इस दरिंदे ने 2 सितंबर 97 को जहानाबाद केकरपी प्रखंड के खड़ासिन गांव में आठ और 23 नवंबर 97को इसी प्रखंड के कटेसर नाला गांव में छह लोगों कीनिर्मम हत्या कर दी।
वर्ष 97 की विदाई में जब पूरा विश्व नये साल 1998 केआगमन का जश्न मना रहा थाइस हत्यारे ने अपनेसंगठन के साथ मिलकर अरवल जिले में मातमी सन्नाटापसरा दिया। उसने अब तक के सबसे बड़े नरसंहार कोअंजाम दिया लक्ष्मणपुर-बाथे में। वहां 59 लोगों को एक रातमें बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। कहा जाता है कि सारेकत्ल मुखिया ने अपनी आंखों के सामने करवाये थे। इसेआज तक बिहार का सबसे बड़ा नरसंहार माना जाता है।गौरतलब है कि न्यायालय ने इस मामले में मुखिया कोबरी कर दिया था। इसी घटना के बाद अरवल को पुलिसजिला बनाया गयाजो अब जिले के रूप में है।
25 जुलाई 98 को जहानाबाद के करपी प्रखंड के रामपुर गांवमें तीन लोगों की हत्या की। फिर बड़ा कांड किया 25जनवरी 99 को अरवल के शंकर बिगहा गांव में। वहां इसने23 लोगों की हत्या कर दी। 10 फरवरी 99 को जहानाबाद केनारायणपुर में 12 और 21 अप्रैल 99 को गया जिले केबेलागंज प्रखंड के सिंदानी गांव में 12 लोगों को मार दिया।28 मार्च 2000 को भोजपुर के सोनबरसा में तीननोखाप्रखंड के पंचपोखरी में तीन लोगों की बलि ली। 16 जून2000 को रणवीर सेना ने औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड केमियांपुर में 33 लोगों की हत्या कर दी।
इसके बाद इसका संगठन आपसी विवाद में उलझने लगाऔर गुटबाजी का शिकार हो गया। मुखिया फिर से अपनेगुट को ताकतवर और खुंखार बनाने का प्रयास कर रहाथा। परंतु उसके कई साथी उसकी वहशीपन से तंग  चुकेथे। वह कुछ और करताइससे पहले ही वह रहस्यमय ढंगसे 2002 में पटना के एक्जीबिशन रोड की एक इमारत सेगिरफ्तार कर लिया गया। नौ साल जेल में रहने के बादकानून ने उसे जेल से बाहर रहने की अनुमति दे दी। अबचूंकि उस पर सैकड़ों निगाहें हमेशा लगी रहती थीलिहाजावह नेताओं की तरह लच्छेदार बातें करने लगा। यह भीदिलचस्प है कि इतनी हत्याओं के लिए जिम्मेदार शख्स केखिलाफ अदालत को सबूत नहीं मिले।
ब्रह्मेश्वर मुखिया ने हमेशा ही अपनी विकृत मानसिकताकी तुष्टि के लिए शातिर चालें चलीं। उसने दलितों औरपिछड़ों के प्रति अपनी घृणा को माओवादियों के विरूद्धलड़ाई बना दी। अगर वह सच्चे अर्थों में माओवादियों सेलड़ रहा होता तो वह सिर्फ दलितों और पिछड़ों की हत्यानहीं करता। सबको पता है कि माओवादी संगठनों के ढेरोंशीर्ष नेता सवर्ण हैं। मुखिया ने उनमें से किसी एक कोखरोंच भी नहीं पहुंचाई।
बहरहालइस क्रूर हत्यारे का जो अंजाम आज से 15 सालपहले हो जाना चाहिए थावह अब हुआ। कामना की जासकती है कि उसके गिरोह के सदस्यों और समर्थकों कोसद्बुद्धि आये और वे एक शांतउन्नतसौहार्द्रपूर्ण औरमानवीय गरिमा से संपन्न समाज के निर्माण में लगें।इसके लिए यह भी कामना करनी होगी कि ऐसा कोई दूसरारक्त पिपासु राक्षस समाज में पैदा  हो।

No comments:

Post a Comment