यज्ञों की सच्चाई
भारत
में हिंदू धर्म के संरक्षकों का मानना है कि लोग यज्ञ नहीं करवाते इस लिए
उन पर प्राकृतिक आपदा, बीमारियाँ, आर्थिक संकट आदि आते है. अगर लोग यज्ञ
करवाते रहेंगे तो उन पर इस तरह की कोई परेशानी नहीं आएगी. अब यज्ञ किस को
कब क्या फायदा पहुंचा ये आज तक कोई भी धर्म का संरक्षक साबित नहीं कर पाया.
यहाँ तक वैज्ञानिक भी यज्ञ के नाम पर अनाज या अन्य खाद्य वस्तुओं को जलने
के पक्ष में नहीं है, मानवता के नाते भी खाने की वस्तुओं को जला कर नष्ट
करने के स्थान पर अगर उन वस्तुओं को किसी जरुरतमंद को दे देना ज्यादा उचित
होगा. लेकिन फिर भी लोगों को यज्ञ करवाने के लिए देवताओं और देवियों का डर
और काल्पनिक कहानियां सुना कर मजबूर किया जाता है. आइये आपको इन धर्म के
संरक्षकों द्वारा यज्ञ के नाम पर किये जाने वाले ढोंग, पाखंड और आडम्बरों
के बारे बताते है.
सबसे
पहले बात करते है कि इन हिंदू धर्म के संरक्षकों के मुताबिक किसी आम आदमी
को अपनी जिंदगी में कब कब यज्ञ करवाने चाहिए. जन्म हुआ तो यज्ञ, बच्चे का
नाम रखना है तो यज्ञ, पहली बार बाल कटवाओ तो यज्ञ, हर साल जन्मदिन यज्ञ,
शिक्षा प्रारम्भ करवाओ तो यज्ञ, व्यवसाय शुरू करो तो यज्ञ, नौकरी लगी तो
यज्ञ, विवाह करना हो तो यज्ञ, गृह प्रवेश करना हो तो यज्ञ, नौकरी या
व्यवसाय में कोई परेशानी हो जाये तो यज्ञ, बच्चा पैदा हो गया तो यज्ञ, कोई
भी संकट आया तो यज्ञ, कोई भी परेशानी आई तो यज्ञ, कोई खुशी का कार्य किया
तो यज्ञ. आदमी के जीते जी तो छोडो मरने के बाद भी आदमी की आत्मा कि शांति
के लिए बहुत सारे यज्ञों का प्रावधान है. मरने के बाद शमशान भूमि में यज्ञ,
फिर नौ दिनों तक कथा पाठ और दसवे दिन गृह शुधि यज्ञ, तेरहवे दिन गृह शांति
यज्ञ, चौदहवे दिन ईष्ट देव शांति यज्ञ, हरिद्वार गए तो पितृ शांति यज्ञ.
यज्ञ कब करवाए:
अगर हिंदू
धर्म के पुराणों और शास्त्रों को पढ़ा जाए तो आदमी के जन्म से पहले भी
दो-तीन यज्ञों का प्रावधान है. अगर इन धर्म के प्रकांड पंडितों का बस चले
तो आदमी के सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक हर घटना के साथ यज्ञ करने के
लिए कह दे. लेकिन किस लिए? क्योकि धर्म, आस्था, अंधविश्वासों के नाम पर आम
आदमी का शोषण जो करना है. कहते है यज्ञ करवाओगे तो भगवान हमेशा आपके साथ
रहेंगे. तुम कही भी रहो भगवान हमेशा तुम्हारा ध्यान रखेंगे. कितनी भी कठिन
परिस्थितियां क्यों ना हो जाये देवी-देवता और भगवान आपको हारने नहीं देंगे.
यज्ञकुंड में डाली गई एक के आहुति तुम्हारे जीवन रुपी अग्नि को और विस्तार
देगी, उसे और ऊँचा उठाएगी. यज्ञ कुंड में तुम्हारी जिंदगी के सब पाप नष्ट
हो जायेंगे और सत्कर्मों की सुगंध सब दिशाओं में फैलेगी. तुम्हारी हार और
विफलता के सारे बीज इस यज्ञकुंड में जल कर भस्म हो जायेंगे. ये बात दूसरी
है कि लोग इन यज्ञ और हवन के चक्कर में पड़ कर दिन पर दिन गरीब होते चले
जाते है और अंत में भुखमरी का शिकार हो कर मृत्यु को प्राप्त हो जाते है.
इसी को ये हिंदू धर्म के लोग मुक्ति अर्थात मोक्ष प्राप्ति कहते है.
यज्ञ सामग्री के बारे:
यहाँ धर्म
के संरक्षक पहले यज्ञ करने के लिए आम आदमी को बाध्य करेंगे. फिर यज्ञ
सामग्री के नाम पर भी लोगों कोबेबकुफ़ बनाते है. यज्ञ से होने वाले काल्पनिक
फायदे बता बताते है. वो भी साइंटिफिक फायदे होते है जैसे इन धर्म के
ठेक्केदारों ने बहुत बड़े विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की हो. जो शोध कभी
हुए ही नहीं उन काल्पनिक शोधों की बात करेंगे. यज्ञ में डाली जाने वाली
सामग्री को औषधीय गुणों से भरपूर बताएँगे. यज्ञ में जलाई गई औषधियों से
उत्पन धुएं से वातावरण में फैले हुए हानिकारक विषाणु मर जाते है और लोगों
को बीमारियाँ नहीं होंगी. लेकिन उस की परिधि भी सीमित है सिर्फ यज्ञ करने
वाले के घर से ही विषाणु समाप्त होंगे. दूसरे किसी को उसका लाभ नहीं
मिलेगा. अब आप लोग जरा खुद तार्किक बूढी का प्रयोग करके सोचे क्या ये सब
संभव है? क्या अनाज, घी, तिल, आदि चीजों को जलने से वातावरण विषाणु मुक्त
हो सकत है? अगर ऐसा होता तो वैज्ञानिक छिडकाव करने वाली दवाइयों का
आविष्कार क्यों करते? और ये धर्म के ठेक्केदारों वाला यज्ञ से विषाणु नाशक
शोध कब, कहा और किस वैज्ञानिक ने किया, इसके भी कोई प्रमाण नहीं है. दूसरे
जब ये धर्म के ठेक्केदार खुद बीमार हो तो डॉक्टर के पास जाते है लेकिन
लोगों को यज्ञ करवाने की सलाह देते है. यज्ञ में जलाई जाने वाली उन औषधियों
का इंतजाम भी ये धर्म के ठेक्केदार खुद ही करते है ताकि वो यज्ञ करवाने
वाले से बदले में मोती रकम वसूल सके. अगर कोई आदमी खुद यज्ञ सामग्री लाने
कीको बोलेगा तो उसको ऐसे ऐसे नाम बताये जायेंगे जो उसने तो क्या उसकी सात
पीढ़ियों ने भी कभी नहीं सुने होंगे और कहा जायेगा ये यज्ञ सामग्री हिमालय
पर मिलाती है. तो मजबूरन ओस आदमी को यज्ञ सामग्री इन धर्म के ठेक्केदारों
से ही ऊँची कीमत पर खरीदनी पड़ेगी. गौमूत्र को यज्ञों में चरणामृत के नाम पर
पिलाया जाता है. जबकि शोधों से प्रमाणित हो चूका है कि गौ मूत्र में ऐसे
टोक्सिन और वैक्सीन होते है जो आपकी आने वाली कई पीढ़ियों को दिमागी तौर पर
कमजोर और सही से सोचने समझने की क्षमता से वंचित कर सकते है.
दान दक्षिणा:
पुरे यज्ञ
कर्म के बीच में आपको इन धर्म के ठेक्केदारों या यज्ञ के मर्मज्ञ लोगों को
दान करते रहना पड़ेगा. 100-50रुपये जो भी हो समय समय पर यज्ञ विधि के अनुसार
आपको दान करने ही पड़ेंगे. जिस से एक यज्ञ कर्ता को एक ही यज्ञ से 10 से 12
हज़ार रुपये की आमदानी हो जाती है. अगर यज्ञ लोक कल्याण के नाम पर या किसी
मंदिर में करवाया जा रहा हो तो इस तरह की दान दक्षिणा एक से दो लाख से भी
ज्यादा यज्ञ कर्ताओं को प्राप्त हो जाते है. दान के बारे ये यज्ञकर्ता बार
बार शास्त्रों की बात कर कर के लोगों को डरते रहते है. “इस धर्म शास्त्र
में लिखा है यज्ञ कर्ता को दान ना देने से यजमानों को कभी शांति प्राप्त
नहीं होगी. उस शास्त्र में लिखा है यज्ञकर्ता से मुफ्त में कोई यज्ञ नहीं
करवाना चाहिए. अगर यज्ञ कर्ता खुश नहीं है तो यज्ञ करवाने वाले पर घोर
विपदा आ जायेगी.” और भी पता नहीं क्या क्या तर्क कुतर्क दे कर लोगों को डरा
डरा कर उनसे धन वसूल करते है. अब आपको बताते है यज्ञ में दिए जाने वाले
प्रमुख दानों के बारे:
- सोना दान: इस में यज्ञ कर्ता को कोई खालिस सोने की वास्तु दान करनी पड़ती है. उस वास्तु का वजन कितना होगा ये भी यज्ञ कर्ता धर्म का ठेक्केदार ही निश्चित करता है
- अन्न दान: हर यज्ञ कर्ता को अन्न दान भी देना पडता है और यह अन्न कौन कौन से होंगे और कितने कितने वजन में दान करने है ये भी यज्ञ कर्ता धर्म का ठेक्केदार ही निश्चित कर्ता है
- पशु दान: इस में भी अलग लगा यज्ञों के हिसाब से पशुओं के दान निश्चित है लेकिन अंतिम फैसला यज्ञ कर्ता ही लेगा अर्थात उसकी इच्छा से ही उसको पशु दान मिलेगा.
- देव दान: भारत में कुल मिला कर तेंतीस करोड देवता है. और हर देवता किसी न किसी वास्तु से जुदा हुआ है. उन में से दस बीस देवताओं के नाम बता कर आपको दान करने के लिए बाध्य किया जायगा. जैसे अग्नि ने यज्ञ सामग्री को जलाया तो अग्नि देवता को दान, यग्य का कोई देवता होगा उसके लिए दान, यज्ञ में सहायक देवता के लिए दान, जल देवता के लिए दान और पता नहीं क्या क्या दान होंगे जो आपको करने ही पड़ेंगे. आप दान इन देवताओं को देंगे. लेकिन उन दान की गई वस्तुओं, अनाजों और रुपये पैसे पर अधिकार केवल यज्ञ कर्ता धर्म के ठेक्केदार का ही होगा. और वो आपके दिए दान पर कई महीने मौज मस्ती करेगा.
- रोकड दान: यज्ञ के अंत में आपको यज्ञ कर्ता को नकद दान करना पड़ेगा. जो साधारण यज्ञ में एक हज़ार एक और सार्वजनिक यज्ञों में कम से कम 11.111 रुपये होता है. अगर कोई इतना पैसा नहीं देना चाहता तो उसको शास्त्रों लिखे गए दान के नियमों के नाम पर डराया जाता है. यज्ञ कर्ता के रुष्ट होने ऐ आने वाली विपतियों के नाम पर धमकाया जाता है. और मन माने पैसे वसूल कर लिए जाते है.
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