राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
यह लेख भारत स्थित एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन आर एस एस के बारे में है। अन्य प्रयोग हेतु आर एस एस देखें।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (अंग्रेज़ी: Rashtriya Swayamsevak Sangh या R.S.S.) एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन है जिसके सिद्धान्त हिंदुत्व में निहित और आधारित हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसकी शुरुआत सन् १९२५ में विजयदशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। सबसे पहले ५० वर्ष बाद १९७५ में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। इमर्जेन्सी हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी। १९७५ के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल
के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता
है। संघ की स्थापना के ७५ वर्ष बाद सन् २००० में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन०डी०ए० की मिलीजुली सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।
संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो
पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा
होती है। प्रत्येक सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के
वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत
हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखा के माध्यम से ही होता है,
जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक घंटे के लिये
स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत
में संघ की लगभग पचास हजार से ज्यादा शाखा लगती हैं। वस्तुत: शाखा ही तो
संघ की बुनियाद है जिसके ऊपर आज यह इतना विशाल संगठन खड़ा हुआ है। शाखा की
सामान्य गतिविधियों में खेल, योग, वंदना और भारत एवं विश्व के सांस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
संघ की रचनात्मक व्यवस्था इस प्रकार है:
शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता है।
महात्मा गान्धी ने १९३४ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर की यात्रा के दौरान वहाँ पूर्ण अनुशासन देखा और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पूछताछ की और जाना कि वहाँ लोग एक साथ रह रहे हैं तथा एक साथ भोजन कर रहे हैं।[5]
संघ से जुडी सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान ५७ अनाथ बच्चों को गोद लिया हे जिनमे ३८ मुस्लिम और १९ हिंदू है।
संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज-यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की सरकारी नीति इसके प्रमाण हैं।
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात् जहाँ उसके पूर्वज रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात् जहां उसके देवी देवताओं का वास है); हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मसजिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है।
वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उपराष्ट्रपति पद पर भैरोंसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।
लड़कियों/स्त्रियों की शाखा राष्ट्र सेविका समिति और विदेशों में लगने वाली हिन्दू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना अलग है। संघ की शाखा या अन्य कार्यक्रमों में इस प्रार्थना को अनिवार्यत: गाया जाता है और ध्वज के सम्मुख नमन किया जाता है।
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।।
।। भारत माता की जय।।
हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।
भारत माता की जय।
हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके, सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो, स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण ह्र्दय में जगे ध्येय, निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये, ऐसा उपजे मन में विचार।।
१. सुरुचि प्रकाशन
देशबन्धु गुप्ता मार्ग
झण्डेवाला, नई दिल्ली-५५
२. लोकहित प्रकाशन संस्कृति भवन ; राजेन्द्र नगर, लखनऊ-४
३. राष्ट्रोत्थान साहित्य केशव शिल्प ; केम्पगौड़ा नगर, बंगलौर-१९
४. भारतीय विचार साधना
(क) डॉ॰ हेडगेवार भवन महाल, नागपुर-४४०००२
(ख) मोती बाग ; ३०९, शनिवार पेठ, पुणे-४११०३०
(ग) मंगलदास बाड़ी, डॉ॰ भडकम्कर मार्ग नाज सिनेमा परिसर, मुम्बई-४०००४
५. ज्ञान गंगा प्रकाशन
भारती भवन, बी-१५, न्यू कालोनी, जयपुर-३०२००१
६. अर्चना प्रकाशन
एच.आई.जी.-१८, शिवाजी नगर, भोपाल-४६२०१६
७. साधना पुस्तक प्रकाशन
राम निवास ; बलिया काका मार्ग,
जूनाढोर बाजार के सामने, कांकरिया, अमदाबाद -३८००२८
८. सातवलेकर स्वाध्याय
पो - किलापारडी
मण्डल जिला-वलसाड, गुजरात-३९६१२५
९. साहित्य निकेतन
३-४/८५२, बरकतपुरा, हैदराबाद-५०००२७
१०. स्वस्तिश्री प्रकाशन
४४/९, नवसहयाद्री सोसाइटी
नवसहयाद्री पोस्टास मोर पुणे-४११०५२
११. जागृति प्रकाशन
एफ. १०९, सेक्टर-२७
नोएडा (गौतम बुद्ध नगर) उ.प्र.२०१३०१
१२. सूर्य भारती प्रकाशन
२५९६, नई सड़क, दिल्ली-११०००६
एंडरसन, वाल्टर के॰; श्रीधर डी॰ दामले (1987) (अंग्रेज़ी में). The Brotherhood in Saffron: The Rashtriya Swayamsevak Sangh and Hindu Revivalism. बोल्डर: वेस्टव्यू प्रेस. प॰ 111. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8133-7358-1.
मैकलियोड, जॉन (2002) (अंग्रेज़ी में). The history of India [भारत का इतिहास]. ग्रीनवुड पब्लिशिंग ग्रुप. pp. 209–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-313-31459-9. अभिगमन तिथि: 10 अगस्त 2010.
भट्ट, चेतन (2001) (अंग्रेज़ी में). Hindu Nationalism: Origins, Ideologies and Modern Myths [हिन्दू राष्ट्रवाद: उद्भव, विचारधाराएँ और आधुनिक मिथक]. न्यूयॉर्क: बर्ग पब्लिशर्स. प॰ 113. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-85973-348-4.
http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2007-01-03/india/27884065_1_jagannath-temple-upper-caste-dalits
K S Bharati, Encyclopedia of Eminent Thinkers, Volume 7, 1998
http://www.hindu.com/2001/02/18/stories/13180012.htm
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्वज |
|
संस्थापक | डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार |
---|---|
प्रकार | स्वैच्छिक,[1] अर्द्धसैनिक[2] |
स्थापना वर्ष | विजयदशमी 1925 |
कार्यालय | नागपुर |
अक्षांश-रेखांश | 21.04°N 79.16°E |
मुख्य लोग | सरसंघचालक: मोहन भागवत |
सेवाक्षेत्र | भारत |
विशेष ध्येय | हिन्दू राष्ट्रवाद के सहायक और हिन्दू परम्पराओं को कायम रखना |
लक्ष्य | "मातृभूमि के लिए नि:स्वार्थ सेवा" |
तरीक़ा | समूह चर्चा, बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण |
सदस्य | 5-6 मिलियन[3] |
वेबसाइट | rssonnet.org |
अनुक्रम
संघ परिवार की संरचनात्मक व्यवस्था
संघ की रचनात्मक व्यवस्था इस प्रकार है:
- केंद्र
- क्षेत्र
- प्रान्त
- विभाग
- जिला
- तालुका
- नगर
- मण्डल
- शाखा
संघ की शाखा
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर एक घंटे की लगती है। शाखा में खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है। सामान्यतः शाखा प्रतिदिन एक घंटे की ही लगती है। शाखाएँ निम्न प्रकार की होती हैं:- प्रभात शाखा: सुबह लगने वाली शाखा को "प्रभात शाखा" कहते है।
- सायं शाखा: शाम को लगने वाली शाखा को "सायं शाखा" कहते है।
- रात्रि शाखा: रात्रि को लगने वाली शाखा को "रात्रि शाखा" कहते है।
- मिलन: सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "मिलन" कहते है।
- संघ-मण्डली: महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को "संघ-मण्डली" कहते है।
शाखा में "कार्यवाह" का पद सबसे बड़ा होता है। उसके बाद शाखाओं का दैनिक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए "मुख्य शिक्षक" का पद होता है। शाखा में बौद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयंसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है।
जो भी सदस्य शाखा में स्वयं की इच्छा से आता है, वह "स्वयंसेवक" कहलाता है।
संघ वर्ग
ये वर्ग बौद्धिक और शारीरिक रूप से स्वयंसेवकों को संघ की जानकारी तो देते ही हैं साथ-साथ समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा भी देते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं:- दीपावली वर्ग - ये वर्ग तीन दिनों का होता है। ये वर्ग तालुका या नगर स्तर पर आयोजित किया जाता है। ये हर साल दीपावली के आस पास आयोजित होता है।
- शीत शिविर या (हेमंत शिविर) - ये वर्ग तीन दिनों का होता है, जो जिला या विभाग स्तर पर आयोजित किया जाता है। ये हर साल दिसंबर में आयोजित होता है।
- निवासी वर्ग - ये वर्ग शाम से सुबह तक होता है। ये वर्ग हर महीने होता है। ये वर्ग शाखा, नगर या तालुका द्वारा आयोजित होता है।
- संघ शिक्षा वर्ग - प्राथमिक वर्ग, प्रथम वर्ष, द्वितीय वर्ष और तृतीय वर्ष - कुल चार प्रकार के संघ शिक्षा वर्ग होते हैं। "प्राथमिक वर्ग" एक सप्ताह का होता है, "प्रथम" और "द्वितीय वर्ग" २०-२० दिन के होते हैं, जबकि "तृतीय वर्ग" 25 दिनों का होता है। "प्राथमिक वर्ग" का आयोजन सामान्यतः जिला करता है, "प्रथम संघ शिक्षा वर्ग" का आयोजन सामान्यत: प्रान्त करता है, "द्वितीय संघ शिक्षा वर्ग" का आयोजन सामान्यत: क्षेत्र करता है। परन्तु "तृतीय संघ शिक्षा वर्ग" हर साल नागपुर में ही होता है।
- बौद्धिक वर्ग - ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
- शारीरिक वर्ग - ये वर्ग हर महीने, दो महीने या तीन महीने में एक बार होता है। ये वर्ग सामान्यत: नगर या तालुका आयोजित करता है।
सामाजिक सुधार में योगदान
हिन्दू धर्म में सामाजिक समानता के लिये संघ ने दलितों व पिछड़े वर्गों को मन्दिर में पुजारी पद के प्रशिक्षण का पक्ष लिया है। उनके अनुसार सामाजिक वर्गीकरण ही हिन्दू मूल्यों के हनन का कारण है।[4]महात्मा गान्धी ने १९३४ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविर की यात्रा के दौरान वहाँ पूर्ण अनुशासन देखा और छुआछूत की अनुपस्थिति पायी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से पूछताछ की और जाना कि वहाँ लोग एक साथ रह रहे हैं तथा एक साथ भोजन कर रहे हैं।[5]
राहत और पुनर्वास
राहत और पुर्नवास संघ कि पुरानी परंपरा रही है। संघ ने १९७१ के उड़ीसा चक्रवात और १९७७ के आंध्र प्रदेश चक्रवात में रहत कार्यों में महती भूमिका निभाई है।[6]संघ से जुडी सेवा भारती ने जम्मू कश्मीर से आतंकवाद से परेशान ५७ अनाथ बच्चों को गोद लिया हे जिनमे ३८ मुस्लिम और १९ हिंदू है।
आलोचनाएँ
महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर १९४८ में नाथूराम गोडसे ने उनका वध कर दिया था जिसके बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की रिपोर्ट आ जाने के बाद संघ को इस आरोप से बरी किया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।संघ के आलोचकों द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना भी की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का यह कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज-यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की सरकारी नीति इसके प्रमाण हैं।
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में हमेशा से ही उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और वह सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की ही बात करता है जबकि उसके विपरीत उसके आलोचकों का यह आरोप है कि ऐसे विचारों के प्रचार से भारत की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होती है। संघ की इस बारे में मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है, किसी विशेष पूजा पद्धति को मानने वालों को हिन्दू कहते हों ऐसा नहीं है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात् जहाँ उसके पूर्वज रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात् जहां उसके देवी देवताओं का वास है); हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक बाबरी मसजिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है।
उपलब्धियाँ
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत सन १९२५ से होती है। उदाहरण के तौर पर सन १९६२ के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को सन १९६३ के गणतंत्र दिवस की परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उपराष्ट्रपति पद पर भैरोंसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।
संघ के सरसंघचालक
- डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टरजी (१९२५ - १९४०)
- माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (१९४० - १९७३)
- मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस (१९७३ - १९९३)
- प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (१९९३ - २०००)
- कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी (२००० - २००९)
- डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत (२००९ -)
संघ की प्रार्थना
मुख्य लेख : नमस्ते सदा वत्सले
संघ की प्रार्थना संस्कृत में है। प्रार्थना की आखरी पंक्ति हिंदी में है।लड़कियों/स्त्रियों की शाखा राष्ट्र सेविका समिति और विदेशों में लगने वाली हिन्दू स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना अलग है। संघ की शाखा या अन्य कार्यक्रमों में इस प्रार्थना को अनिवार्यत: गाया जाता है और ध्वज के सम्मुख नमन किया जाता है।
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।।
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिं
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।।
समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।।
।। भारत माता की जय।।
प्रार्थना का हिन्दी में अर्थ
हे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयँ स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।
ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ट साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदेव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।
भारत माता की जय।
हिन्दी काव्यानुवाद[7]
हे परम वत्सला मातृभूमि! तुझको प्रणाम शत कोटि बार।
हे महा मंगला पुण्यभूमि ! तुझ पर न्योछावर तन हजार।।
हे हिन्दुभूमि भारत! तूने, सब सुख दे मुझको बड़ा किया;
तेरा ऋण इतना है कि चुका, सकता न जन्म ले एक बार।
हे सर्व शक्तिमय परमेश्वर! हम हिंदुराष्ट्र के सभी घटक,
तुझको सादर श्रद्धा समेत, कर रहे कोटिशः नमस्कार।।
तेरा ही है यह कार्य हम सभी, जिस निमित्त कटिबद्ध हुए;
वह पूर्ण हो सके ऐसा दे, हम सबको शुभ आशीर्वाद।
सम्पूर्ण विश्व के लिये जिसे, जीतना न सम्भव हो पाये;
ऐसी अजेय दे शक्ति कि जिससे, हम समर्थ हों सब प्रकार।।
दे ऐसा उत्तम शील कि जिसके, सम्मुख हो यह जग विनम्र;
दे ज्ञान जो कि कर सके सुगम, स्वीकृत कन्टक पथ दुर्निवार।
कल्याण और अभ्युदय का, एक ही उग्र साधन है जो;
वह मेरे इस अन्तर में हो, स्फुरित वीरव्रत एक बार।।
जो कभी न होवे क्षीण निरन्तर और तीव्रतर हो ऐसी;
सम्पूर्ण ह्र्दय में जगे ध्येय, निष्ठा स्वराष्ट्र से बढे प्यार।
निज राष्ट्र-धर्म रक्षार्थ निरन्तर, बढ़े संगठित कार्य-शक्ति;
यह राष्ट्र परम वैभव पाये, ऐसा उपजे मन में विचार।।
सहयोगी सँस्थाएँ
- सेवा भारती
- विद्या-भारती
- स्वदेशी जागरण मंच
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद
- हिंदू स्वयंसेवक संघ
- विश्व हिंदू परिषद
- भारतीय मजदूर संघ
- भारतीय किसान संघ
संघ साहित्य के प्रकाशक
निम्नलिखित प्रकाशन संघ की योजना द्वारा संचालित नहीं है, निजी हैं। इन प्रकाशनों ने भी उच्च कोटि का संघ साहित्य बड़ी संख्या में प्रकाशित किया है।१. सुरुचि प्रकाशन
देशबन्धु गुप्ता मार्ग
झण्डेवाला, नई दिल्ली-५५
२. लोकहित प्रकाशन संस्कृति भवन ; राजेन्द्र नगर, लखनऊ-४
३. राष्ट्रोत्थान साहित्य केशव शिल्प ; केम्पगौड़ा नगर, बंगलौर-१९
४. भारतीय विचार साधना
(क) डॉ॰ हेडगेवार भवन महाल, नागपुर-४४०००२
(ख) मोती बाग ; ३०९, शनिवार पेठ, पुणे-४११०३०
(ग) मंगलदास बाड़ी, डॉ॰ भडकम्कर मार्ग नाज सिनेमा परिसर, मुम्बई-४०००४
५. ज्ञान गंगा प्रकाशन
भारती भवन, बी-१५, न्यू कालोनी, जयपुर-३०२००१
६. अर्चना प्रकाशन
एच.आई.जी.-१८, शिवाजी नगर, भोपाल-४६२०१६
७. साधना पुस्तक प्रकाशन
राम निवास ; बलिया काका मार्ग,
जूनाढोर बाजार के सामने, कांकरिया, अमदाबाद -३८००२८
८. सातवलेकर स्वाध्याय
पो - किलापारडी
मण्डल जिला-वलसाड, गुजरात-३९६१२५
९. साहित्य निकेतन
३-४/८५२, बरकतपुरा, हैदराबाद-५०००२७
१०. स्वस्तिश्री प्रकाशन
४४/९, नवसहयाद्री सोसाइटी
नवसहयाद्री पोस्टास मोर पुणे-४११०५२
११. जागृति प्रकाशन
एफ. १०९, सेक्टर-२७
नोएडा (गौतम बुद्ध नगर) उ.प्र.२०१३०१
१२. सूर्य भारती प्रकाशन
२५९६, नई सड़क, दिल्ली-११०००६
चित्र दीर्घा
सन्दर्भ
- 'क्रांत' अर्चना १९९२ किंवा प्रकाशन नोएडा २०१३०१ पृष्ठ १७
यह भी देखें
- हिंदुत्व
- विश्व हिंदू परिषद
- बजरंग दल**
- भारतीय जनता पार्टी
- राष्ट्रवाद
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालकों की सूची
बाहरी कड़ियाँ
- संघ का आधिकारिक जालस्थल (अँग्रेजी में)
- Archieves of RSS
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इतिहास
- पाञ्चजन्य - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुखपत्र (हिन्दी साप्ताहिक)
- Organiser (आर्गनाइजर) - आर एस एस का मुखपत्र (अंग्रेजी साप्ताहिक)
- साधना (राष्ट्रीय विचारों का गुजराती साप्ताहिक)
- हिन्दू स्वयंसेवकसंघ, यूएसए की पत्रिका " तत्त्व " (अंग्रेजी में)
- श्री गोलवलकर गुरुजी - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिव गोलवलकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समर्पित हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी जालघर
- राष्ट्र का संगठन : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ - संघ का परिचय देता हुआ लेख
- गीत गंगा - दस से भी अधिक भारतीय भाषाओं में सैकडों राष्ट्रभक्ति गीत एवं एम् पी-३
- सामाजिक कार्यों की फसल उगा रहा है संघ
- संघ की प्रेरणा से भारतवर्ष में चल रहे हैं सेवा-कार्य
- दीप जो जलता रहा " श्री श्री गुरूजी जन्मशताब्दी वर्ष पर विशेष "
- संघ दृष्टि और राष्ट्रीय सुरक्षा (स्वदेश)
- समाज बदलने का बीड़ा
- राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ तब और अब : भाग-1, भाग-२, भाग-३
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