सुरेश वाडकर

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Sunday, December 7, 2014

बामसेफ की कोख से बहुजन समाज पार्टी का जन्म

बामसेफ की कोख से बहुजन समाज पार्टी का जन्म

पलाश विश्वास
 बामसेफ मौजूदा संदर्भ में भारत के विरुद्ध जारी अबाध पूंजी, कालाधन, कारपोरेटजायनवादी धर्मोन्मादी नस्लवादी वर्णवर्चस्वी सत्यानाशी दसों दिसाओं के हो रहे बायोमेट्रिक डिजिटल मिसाईली एफडीआई विनिवेश मुक्त बाजारी हमलों के विरुद्ध निनानब्वे फीसद जनता को गोलबंद करने का सबसे बड़ा माध्यम है।हम बाबा साहेब अंबेडकर,कांसीरामजी,बहन मायावती से लेकर बहुजन समाज के सभी नेताओं कार्यकर्ताओं और यहां तक कि माननीय खापर्डे साहेब के बाद बामसेफ धड़ों के तमाम नेताओं वामन मेश्राम,झल्लीजी,बीडी बोरकर और ताराराम मेहना की सकार्तमक भूमिकाओं का शुक्रगुजार है।
 समय इतना संवेदनशील है,खतरे इतने संगीन है कि देश,संविधान,लोकतंत्र,कानून का राज,न्यायप्रणाली अभिव्यक्ति के सारे माध्यम,नागरिकता,आजीविका, प्रकृति,पर्यावरण, नागरिक और मानव अधिकार खत्म होते जा रहे हैं एक के बाद एक।
 अथक संघर्ष से बाबासाहेब डा. अंबेडकर ने जो कुछ हासिल किया,मान्यवर कांसीराम जी ने सामाजिक बदलाव की जो जमीन तैयार की है,उन्हें हम आपसी विवादों में खत्म कर रहे हैं। सवाल यह है कि मुद्दों पर दुनियाभर के दोस्त दुश्मन एक साथ बैठकर लोकतांत्रिक ढंग से विचार विमर्स कर सकते हैं,लेकिन जब हमारी तरफ से कोई किसी मुद्दे को उटाता है तो विमर्श के बदले गालियों की फूलझड़ियां बरसने लगती हैं।
 हम लोग बामसेफ के एकीकरण का प्रयास इसलिए कर रहे हैं कि भारतीयजनता कि गोलबंदी हो,लेकिन जो रोजाना देश विदेश से लाखों करोड़ों का बेहिसाब धन वसूल करके निजी चल अचल संपत्ति बनाकर तरह तरह के वित्तीय अपराधों के संज्ञेयअपराधी हैं,वे लोग ही अनर्गल दुष्परचार करके बहस और विमर्श का माहौल बनने से रोक रहे हैं।मुद्दों को भटका रहे हैं।
 बीएसपी या बीएमपी लोग बना ही सकते हैं।हमें तकलीफ नहीं है।बाबासाहेब की बनायी रिपब्लिकन पार्टी आज हजार धड़ों में बंटी है।बहुजनों के नेतृत्व में समाज वादी पार्टी,द्रमुक अन्नाद्रमुक, लोक जनशक्ति पार्टी और राष्ट्रीयजनता दल के अलावा शरद यादव और नीतीश कुमार की अगुवाई वाली पार्टी और तमाम दूसरे दल हैं।
 लेकिन सच यह है कि बामसेफ की कोख से बहुजन समाज पार्टी का जन्म हुआ था।यह भी सच है कि तब मान्यवर कांशीराम जी ने पार्टी बनते ही बामसेफ को समाप्त करने का फैसला किया था और असहमत लोगों ने बामसेफ को जारी रखने का फैसला किया था। जिन लोगों ने बामसेफ को जारी रखने का फैसला किया,देस भर के बहुजन समाज के आम लोग और सक्रिय कार्यकर्ता उनके साथ थे।लेकिन यह भी सच है कि वोट डालते वक्त इनमें सा भारी स्ख्या में लोग बसपा को ही वोट डालते थे।
 जिन्होंने अब बहुजन मुक्ति पार्टी बनायी,वे भी बामसेफ के लोग हैं।उनका बामसेप चल रहा है।लेकिन पूना करार को सबसे बड़ा विश्वासघात कहने वाले वे लोग अब पूना करार के दायरे में चले आये हैं और उन्हें अब कानूनी तौर पर कारपोरेट चंदे का लाभ भी होगा।
 अब सवाल यह है कि बहुजन समाज के लोग,खासकर बामसेफ के लोग अपना वोट किसको देंगे।वोटों का बंटवारा तो हो गया है।इससे निश्चय ही मनुवादी पार्टियों का बहुजन वोटों के बंटवारा का एजंडा पूरा होता है।
 हम जो लोग पूना करार को अब भी भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा विश्वासघात मानते हैं,हमें कोई तकलीफ नहीं है कौन किसे वोट दे रहा है।
 लेकिन सवाल यह है कि पूना करार का सवाल उठाकर जिन लोगों ने मान्यवर कांशीराम जी का साथ छोड़ा, वे लोग उनकी ही बनायी पार्टी बहुजनसमाज पार्टी के खिलाफ मोर्चा जमाकर मैदान में हैं और फिर कांशीराम जी का नाम लेकर ही बामसेफ का दखल छोड़ नहीं रहे हैं।
 बहुजनसमाज पार्टी राजनीति करती है लेकिन अभीतक बामसेफ के कामकाज में या बामसेफ के कार्यकर्ताओं की गतिविधियों पर अड़ंगा उन्होंने नहीं डाला है।वे विशुद्ध राजनीति कर रहे हैं।
 इस लिहाज में उल्लेखनीय है कि मायावती भी पुरातन बहुजनी भाषा के दायरे से बाहर निकल आयी हैं और जनता को सर्वजनहिताय के तहत संबोधित कर रहीं हैं,जो मूल क्रांतिकारी गौतम बुद्ध के मतानुसार ही है।
 अब अगर बामसेफ के पुरातन नेता और कार्यकर्ता भी यह समझते हैं कि जनांदोलन की जरुरत नहीं हैं और अब तक राष्ट्रव्यापी जनांदोलन के मार्फत बहुजन मूलनिवासियों को आजादी दिलाने की जो बात कर रहे थे, वह अतीत है।जितने संसाधन जोड़े जा चुके हैं,वे पर्याप्त हैं और उससे बहुजन मूलनिवासी इस देश की सत्ता पर कब्जा कर सकते हैं,तो हमें कोई तकलीफ न करें।लेकिन वे एक साथ राजनीति और जनांदोलन की बात न करें।
 जिन्हें राजनीति करनी हैं,वे बशौक राजनीति करें।लेकिन बामसेफ के कंधे पर वेताल की तरह लटकना कृपया छोड़ दें। जिन्हें जनांदोलन चलाना है,उन्हींको अराजनीतिक बामसेफ को चलाने दें।आप राजनीति करेंगे कारपोरेट और अराजनीतिक बामसेफ का कब्जा भी न छोड़ेंगे,बामसेफ की चल अचल संपत्ति पर कुंडली मारकर बैठे समर्पित ईमानदार कार्यकर्ताओं के खिलाफ फन काढ़ेंगे और विचारधारा व मिशन के नाम विष वमन करेंगे,ऐसा लंबे समय तक नहीं चल सकता।
 बामसेफ अराजनीतिक है तो बुनियादी तौर पर राजनीति करने वालों की इसमें जगह है ही नहीं है।उलटे हो यह रहा है कि राजनीति करने वाले लोग अराजनीतिक जनांदोलन करने वालों को धकिया कर निकालने से काम नहीं चल रहा है तो हर तरह की तिड़कम भिड़ा रहे हैं कि कैसे तमाम कार्यकर्ताओं का क्रिया कर्म कर दिया जाये।
 बामसेफ की प्रासंगिकता पर गंभीर बहस चलनी चाहिए।जिस स्वरुप में यह आंदोलन जारी है,उस स्वरुप में बामसेफ आंदोलन चल नहीं सकता। बामसेफ को भारतीय जन गण की गोलबंदी का माध्यम बनाकर ही इसे जारी रखने की प्रासिंगता है।
 अगर बहुसंख्य भारतीयों को किसी तरह का रक्षाकवच देने में बामसेफ आंदोलन समर्थ नहीं है,तो उसके जारी रहने का औचित्य भी नहीं है।
 इसलिए जो अब भी बामसेफ आंदोलन में हैं,उन्हें पूरा हक है कि बामसेफ की मोजूदा और भावी भूमिकाओं पर वे गहन विचार मंथन करें और लोकतांत्रिक तरीके से तय करें कि बामसेफ चलाना है या नहीं चलाना है,चलाना है तो कैसे चलाना है।
 बामसेफ को जारी रखना है तो संगठन को सीधे जनता के प्रति जवाबदेह बनायें।इसे संस्थागत लोकतांत्रिक ढांचे के तहत चलायें।
 इसमें उन लोगों को तो बोलने या हस्तक्षेप करने का कोई हक ही नहीं बनता जो सीधे कारपोरेट राजनीति में कूद चुके हैं।
 कृपया वे बामसेफ और बामसेफ कार्यकर्ताओं को बख्श दें।राजनीति में बहुजन जनता ही तय करेगी कि वे किसको वोट दें।हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करने जा रहे हैं।
 अब राजनीति करने वालों से निवेदन है कि इतने बरसों में दिनरात मिशन में लगकर जो भी आपने कमाया है,वह भी आपको मुबारक।कृपया आंदोलन की बात न करें।क्योंकि आंदोलन और राजनीति एक साथ हो नहीं सकते।भारत के संसदीय वामपंथी पहले यह साबित कर ही चुके हैं।
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