सुरेश वाडकर

Search results

Wednesday, December 24, 2014

वन्दे मातरम् VS जन – गण – मन

वन्दे मातरम् VS जन – गण – मन

वन्दे मातरम की कहानी
येवन्दे मातरम नाम का जो गान है जिसे हम राष्ट्रगीत के रूप में जानते हैंउसे बंकिम चन्द्र चटर्जीने 7 नवम्बर 1875 को लिखा था | बंकिम चन्द्रचटर्जी बहुत ही क्रन्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे | देश के साथ-साथ पुरेबंगाल में उस समय अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आन्दोलन चल रहा था और एक बारऐसे ही विरोध आन्दोलन में भाग लेते समय इन्हें बहुत चोट लगी और बहुत सेउनके दोस्तों की मृत्यु भी
हो गयी | इस एक घटना ने उनके मन में ऐसा गहराघाव किया कि उन्होंने आजीवन अंग्रेजों के
खिलाफ लड़ने का संकल्प ले लियाउन्होंने | बाद में उन्होंने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था “आनंदमठ”, जिसमेउन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बहुत कुछ लिखा, उन्होंने बताया कि अंग्रेजदेश को कैसे लुट रहे हैं, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से कितना पैसा ले के जारही है, भारत के लोगों को वो कैसे मुर्ख बना रहे हैं, ये सब बातें उन्होंनेउस किताब में लिखी | वो उपन्यास उन्होंने जब लिखा तब अंग्रेजी सरकार नेउसे प्रतिबंधित कर दिया | जिस प्रेस में छपने के लिए वो गया वहां अंग्रेजोंने ताला लगवा दिया | तो बंकिम दा ने उस उपन्यास को कई टुकड़ों में बांटाऔर अलग-अलग जगह उसे छपवाया औए फिर सब को जोड़ के प्रकाशित करवाया | अंग्रेजों ने उन सभी प्रतियों को जलवा दिया फिर छपा और फिर जला दिया गया, ऐसे करते करते सात वर्ष के बाद 1882 में वो ठीक से छ्प के बाजार में आया औरउसमे उन्होंने जो कुछ भी लिखा उसने पुरे देश में एक लहर पैदा किया | शुरूमें तो ये बंगला में लिखा गया था, उसके बाद ये हिंदी में अनुवादित हुआ औरउसके बाद, मराठी, गुजराती और अन्य भारतीय भाषाओँ में ये छपी और वो भारत कीऐसी पुस्तक बन गया जिसे रखना हर क्रन्तिकारी के लिए गौरव की बात हो गयी थी | इसी पुस्तक में उन्होंने जगह जगह वन्दे मातरम का घोष किया है और ये उनकीभावना थी कि लोग भी ऐसा करेंगे | बंकिम बाबु की एक बेटी थी जो ये कहती थीकि आपने इसमें बहुत कठिन शब्द डाले है और ये लोगों को पसंद नहीं आयेगी तोबंकिम बाबु कहते थे कि अभी तुमको शायद समझ में नहीं आ रहा है लेकिन ये गानकुछ दिन में देश के हर जबान पर होगा, लोगों में जज्बा पैदा करेगा और ये एकदिन इस देश का राष्ट्रगान बनेगा | ये गान देश का राष्ट्रगान बना लेकिन येदेखने के लिए बंकिम बाबु जिन्दा नहीं थे लेकिन जो उनकी सोच थी वो बिलकुलसही साबित हुई
1905 में क्या हुआ था कि अंग्रेजों की सरकार ने बंगाल का बटवारा कर दिया था | अंग्रेजों का एक अधिकारी था कर्जन जिसने बंगाल को दो हिस्सों में बाटदिया था, एक पूर्वी बंगाल और एक पश्चिमी बंगाल | इस बटवारे का सबसे बड़ादुर्भाग्य ये था कि ये धर्म के नाम पर हुआ था, पूर्वी बंगाल मुसलमानों केलिए था और पश्चिमी बंगाल हिन्दुओं के लिए, इसी को हमारे देश में बंग-भंग केनाम से जाना जाता है | ये देश में धर्म के नाम पर पहला बटवारा था उसकेपहले कभी भी इस देश में ऐसा नहीं हुआ था, मुसलमान शासकों के समय भी ऐसानहीं हुआ था | खैर ……………इस बंगाल बटवारे का पुरे देश में जम केविरोध हुआ था , उस समय देश के तीन बड़े क्रांतिकारियों लोकमान्य बाल गंगाधरतिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पल ने इसका जम के विरोध किया और इसविरोध के लिए उन्होंने वन्दे मातरम को आधार बनाया | और 1905 से हर सभा में, हर कार्यक्रम में ये वन्देमातरम गाया जाने लगा | कार्यक्रम के शुरू में भीऔर अंत में भी | धीरे धीरे ये इतना प्रचलित हुआ कि अंग्रेज सरकार इस वन्देमातरम से चिढने लगी | अंग्रेज जहाँ इस गीत को सुनते, बंद करा देते थे औरऔर गाने वालों को जेल में डाल देते थे, इससे भारत के क्रांतिकारियों को औरज्यादा जोश आता था और वो इसे और जोश से गाते थे | एक क्रन्तिकारी थे इस देशमें जिनका नाम था खुदीराम बोस, ये पहले क्रन्तिकारी थे जिन्हें सबसे कमउम्र में फाँसी की सजा दी गयी थी | मात्र 14 साल की उम्र में उसे फाँसी केफंदे पर लटकाया गया था और हुआ ये कि जब खुदीराम बोस को फाँसी के फंदे परलटकाया जा रहा था तो उन्होंने फाँसी के फंदे को अपने गले में वन्दे मातरमकहते हुए पहना था | इस एक घटना ने इस गीत को और लोकप्रिय कर दिया था और इसघटना के बाद जितने भी क्रन्तिकारी हुए उन सब ने जहाँ मौका मिला वहीं ये घोषकरना शुरू किया चाहे वो भगत सिंह हों, राजगुरु हों, अशफाकुल्लाह हों, चंद्रशेखर हों सब के जबान पर मंत्र हुआ करता था | ये वन्दे मातरम इतना आगेबढ़ा कि आज इसे देश का बच्चा बच्चा जानता है |
जन-गण-मन की कहानी
सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था | सन 1905 में जब बंगाल विभाजनको लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठखड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकरराजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया | पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपनेइंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये | इंग्लैंडका राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया | रविंद्रनाथ टैगोर पर दबावबनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा | उससमय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार केबहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाईअवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन केनिदेशक (Director) रहे | उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी मेंलगा हुआ था | और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों केलिए | रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जनगण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता” | इस गीत के सारे के सारे शब्दोंमें अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगाकि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था | इसराष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है  भारतके नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती हैऔर मानती है | हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो |  तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो !  तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्तपंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभीहर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है औरतुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है | तुम्हारी ही हम गाथा गाते है | हेभारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो

जोर्जपंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया | जब वोइंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया | क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहींआया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है | जब अंग्रेजीअनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तकइंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की | वह बहुत खुश हुआ | उसने आदेश दिया किजिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलायाजाये | रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए | जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कारसमिति का अध्यक्ष भी था |  उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार सेसम्मानित करने का फैसला किया | टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देनाही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दोलेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेलपुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है | जोर्जपंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में  गीतांजलि नामक रचना केऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया |
रविन्द्र नाथ टैगोर की अंग्रेजों केप्रति ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जीने उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत कापर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे होगए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथटैगोर से मिलने गए और कहा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबेहुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली | इस काण्ड का टैगोर नेविरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया | सन 1919 सेपहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्षमें था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे | रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे | अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये  1919 के बादकी घटनाहै)  | इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत जन गण मनअंग्रेजो केद्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है | इसके शब्दों का अर्थ अच्छानहीं है | इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है | लेकिन अंत में उन्होंनेलिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तकसीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे |  7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र कोसुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहाक़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये |
1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ीउभर चुकी थी | लेकिन वह दो खेमो में बट गई | जिसमे एक खेमे में बाल गंगाधरतिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे | मतभेदथा सरकार बनाने को लेकर | मोती लाल नेहरु वाला गुट चाहता था कि स्वतंत्रभारत की क्या जरूरत है, अंग्रेज तो कोई ख़राब काम कर नहीं रहे है, अगर बहुतजरूरी हुआ तो यहाँ के कुछ लोगों को साथ लेकर अंग्रेज साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने |  जबकि बालगंगाधर तिलक गुट वाले कहते थे किअंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है | इसमतभेद के कारण कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए | एक नरम दल और दूसरा गरम दल | गरम दल के नेता हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे |  (यहाँ मैं स्पष्ट करदूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुकेथे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थेक्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे) | लेकिन नरम दल वाले ज्यादातरअंग्रेजो के साथ रहते थे, उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों मेंशामिल होना, हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे | वन्देमातरम सेअंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी |  नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल वाले “वन्दे मातरम” |  नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं थातो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी किमुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती  (मूर्ति पूजा) है | उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मदअली जिन्ना थे, उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया | जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो संविधान सभा की बहस चली | संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम कोराष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई | बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव कोनहीं माना | और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु | अब इस झगडेका फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास | गाँधी जी ने कहा कि जन गनमन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्षमें नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये |  तो महात्मा गाँधी नेतीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया  “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडाऊँचा रहे हमारा” | लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए | नेहरु जी कातर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन-गण-मन ओर्केस्ट्रापर बज सकता है | उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जीकी मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन-गण-मन कोराष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकिइसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्षनाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गायानहीं गया | नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों केदिल को चोट पहुंचे | जन-गण-मन को इसलिए प्राथमिकता दी गयी क्योंकि वोअंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गयाक्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था |
तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का | अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?
इतनेलम्बे पत्र को आपने धैर्यपूर्वक पढ़ा इसके लिए आपका धन्यवाद् | और अच्छालगा हो तो इसे फॉरवर्ड कीजिये, धन्यवाद्|
जय हिंद वन्दे मातरम्
राजीव दीक्षित

No comments:

Post a Comment