'कोरियाई रानी जो अयोध्या से थीं'
- 1 घंटा पहले
राजकुमार राम और अयोध्या से उनके 14 साल के वनवास की कथा हज़ारों साल से भारतीय किंवदंतियों का हिस्सा रही है.
लेकिन बीते डेढ़ दशकों में इस पवित्र शहर से एक और शाही व्यक्ति के बाहरी दुनिया में जाने की बात लोगों की जुबान पर चढ़ रही है.कोरिया के इतिहास में कहा गया है कि अयोध्या से दो हज़ार साल पहले अयोध्या की राजकुमारी सुरीरत्ना नी हु ह्वांग ओक अयुता (अयोध्या) से दक्षिण कोरिया के ग्योंगसांग प्रांत के किमहये शहर आई थीं.
लेकिन राजकुमार राम की तरह ये राजकुमारी कभी अयोध्या नहीं लौटीं.
चीनी भाषा में दर्ज दस्तावेज़ सामगुक युसा में कहा गया है कि ईश्वर ने अयोध्या की राजकुमारी के पिता को स्वप्न में आकर ये निर्देश दिया था कि वह अपनी बेटी को उनके भाई के साथ राजा सुरो से विवाह करने के लिए किमहये शहर भेजें.
कारक वंश
पूर्व राष्ट्रपति किम डेई जंग और पूर्व प्रधानमंत्री हियो जियोंग और जोंग पिल किम इस वंश से आते थे.
इस वंश के लोगों ने उन पत्थरों को संभाल कर रखा है जिनके बारे में माना जाता है कि अयोध्या की राजकुमारी अपनी समुद्र यात्रा के दौरान नाव को संतुलित रखने के लिए साथ लाई थीं. किमहये शहर में इस राजकुमारी की प्रतिमा भी है.
अयोध्या और किमहये शहर का बहनापा साल 2001 से ही शुरू हुआ है. कारक वंश के लोगों का एक समूह हर साल फ़रवरी मार्च के दौरान इस राजकुमारी की मातृभूमि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने अयोध्या आता है.
कोरिया के मेहमान
अयोध्या के पूर्व राजपरिवार के सदस्य बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र यहां आने वाले कारक वंश के लोगों की मेहमाननवाज़ी करते रहे हैं और वे पिछले कुछ सालों में कई बार दक्षिण कोरिया भी जाते रहे हैं. ये और बात है कि उनके परिवार का इतिहास कुछ सौ साल पुराना ही है.
बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र 1999-2000 के दौरान कोरिया सरकार के मेहमान रह चुके हैं.
तब बिमलेंद्र ने कुछ कोरियाई विद्वानों से इस कहानी के बारे में पहली पहली बार सुना ही था और इसके कुछ महीने बाद ही उन्हें राजकुमारी की कोरिया यात्रा से जुड़े एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम के सिलसिले में कोरिया आने का न्यौता मिला.
अयोध्या में उम्मीदें
दोनों शहरों के बहनापे वाले रिश्ते से अयोध्या में उम्मीदें जगी हैं. लेकिन राजकुमारी की याद में एक स्मारक बनवाने के बाद कोरियाई लोगों के पीछे हट जाने से वे उम्मीदें धूमिल पड़ गई हैं.
बसपा के टिकट पर चुनाव हार चुके मिश्र आरोप लगाते हैं, "अयोध्या को इस सहयोग से कोई फ़ायदा नहीं हुआ है. कोरियाई लोगों की बड़ी योजनाएं थी लेकिन भारत के शासकों ने बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं ली."
राजकुमारी में दिलचस्पी
वे कहते हैं, "कोरियाई लोगों ने कुछ नहीं किया. और अब इस मुद्दे को उठाने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है."
अयोध्या में धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखने का दावा भी लल्लू सिंह करते हैं.
बिमलेंद्र मिश्र के बेटे अफ़सोस जताते हुए कहते हैं, "अयोध्या की राजकुमारी में ख़ासी दिलचस्पी होने के बावजूद इस पवित्र शहर में कोरिया से कोई सैलानी नहीं आया. बस कुछ लोग रस्मी तौर पर अपनी श्रद्धांजलि देने आते रहे."
इतिहास की ख़ामोशी
हालांकि भारत में इस बात पर कई लोगों को हैरत है कि यहां के इतिहास में अयोध्या की किसी राजकुमारी के कोरिया जाने की बात पर ख़ामोशी है.
हालांकि उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक ब्रोशर में कोरिया की रानी का जिक्र है.
इस बात के कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं कि राजकुमारी राम के पिता राजा दशरथ की वंशज थीं.
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