बोको हरम की करतूत पर मुस्लिम दुनिया खामोश क्यों है? |
‘‘बोको हरम के कब्जे में पांच सौ से अधिक स्कूली बच्चियां हैं जिनकी उम्र 8 से 14 साल के बीच में हैं। इन छोटी-छोटी बच्चियों को बेचकर बोको हरम के आतंकवादी जेहाद के लिए पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। लोकतांत्रिक और नैतिक दुनिया का कर्तव्य है कि नाइजीरिया की स्कूली बच्चियों के जीवन की रक्षा करे और बोको हरम के कब्जे से इन बच्चियों को मुक्त कराये।’’
‘‘बोको हरम’’ के आतंकवादियों की करतूत ने मानवता को भी शर्मसार कर दिया है। इस्लाम के नाम पर छोटी-छोटी सैकड़ों बच्चियों को बन्दूक के नोक पर अपहरण करने, उन्हें हिंसा/हवस का शिकार बनाने, उन्हें कुछ पैसों के लालच में दूसरे देश के रईसजादों और शेखों के हाथों बेच देने जैसी करतूत ने दुनिया को झकझौर कर रख दिया है। छोटी स्कूली बच्चियां बोको हरम के रास्ते में न तो बाधा थीं और न ही उन्हें यह मालूम होगा कि इस्लामिक राज व्यवस्था क्या होती है जो बोको हरम जैसे आतंकवादी संगठन मांग कर रहे हैं फिर भी छोटी-छोटी स्कूली बच्चियों को बोको हरम के आतंकवादियों ने हवस और जेहाद का शिकार बनाया है। कोई एक नहीं बल्कि बच्चियों के अपहरण की दर्जनों घटनाएं हुई हैं। नाइजीरियाई मीडिया का कहना है कि बोको हराम के कब्जे में पांच सौ से अधिक स्कूली बच्चियां है जिनकी उम्र आठ साल से लेकर 15 साल के बीच में हैं।
कुछ वर्ष पूर्व रूस के चैचन्या में इस्लामिक आतंकवादियों ने एक छोटी-छोटी बच्चियों के स्कूल पर कब्जा कर कैसे सैकड़ों बच्चियों को मौत का घाट उतार दिया था, यह भी दुनिया के इस्लामिक आतंकवाद के इतिहास में दर्ज है। आज भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के अंदर में छोटी-छोटी बच्चियों की शिक्षा पर किस प्रकार से आतंकवादी हिंसा ग्रासी बनती है, यह भी उल्लेखनीय है। पाकिस्तान में मलाला नामक बच्ची को इस्लामिक आतंकवादियों ने किस प्रकार से गोलियों का शिकार बनाया था, यह भी जगजाहिर है। मलाला ने बोका हरम की आतंकवादियों की करतूत की आलोचना की है और बोका हरम के आतंकवादियों से अपहरित सैकड़ों बच्चियों को सकुशल छोड़ने की मांग की है। पर बोको हरम के आतंकवादी अपने कब्जे से बच्चियों को मुक्त करेंगे? इसकी उम्मीद भी नहीं बनती है। उनका मकसद बच्चियों को बेचकर जेहाद के लिए पैसा इकट्ठा करना है, अपनी हवस की पूर्ति करना है। अगर वे नैतिक होते, उनमें इंसानियत होती तो निश्चित तौर पर कहा जा सकता था कि वे छोटी-छोटी बच्चियों को अपहरण करने और उन्हें जेहाद के लिए हथकंडे के तौर पर प्रयोग करने की कार्रवाई करते ही नहीं। पूरी दुनिया को आतंकवादी संगठनों से नैतिकता, ईमानदारी, इंसानियत व सत्य-अहिंसा की कल्पना करने की उम्मीद छोड़ देनी चाहिए। ये सिर्फ हिंसा और ग्रासी शक्ति की भाषा ही सुनते और समझते हैं।
बोको हरम के आतंकवादियों की करतूत के खिलाफ दुनिया भर में सशक्त आवाज गूंजनी चाहिए थी। पूरी दुनिया भर में बोको हरम के आतंकवादियों के खिलाफ सशक्त और सबककारी सैनिक-असैनिक कार्रवाई की मांग होनी चाहिए थी। दुर्भाग्य यह है कि बोको हरम के आतंकवादियों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया न तो तेज है और न ही गंभीर है। अपहरित छात्राओं का भविष्य भी अंधकारमय है, पूरे नाइजीरिया में डर और भय का वातावरण कायम है, छोटी-छोटी स्कूली बच्चियों के अभिभावक अपनी बच्चियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित और भयभीत हैं। भूख, बेकारी और आतंकवादी हिंसा से ग्रसित नाइजीरिया की आम जनता खुद अपनी बच्चियों की सुरक्षा कर नहीं सकती हैं, सŸााधारी सरकार के पास इतनी शक्ति और संसाधन भी नहीं है कि वह बोको हरम के आतंकवादियों के विरुद्ध कोई प्रहारक कार्यवाई को सुनिश्चित कर सके। अपहरित बच्चियों के अभिभावकों ने अमेरिका से अपनी बच्चियों की सुरक्षा की गुहार लगायी है। अमेरिका आर्थिक कारणों से अफगानिस्तान और इराक की तरह नाइजीरिया में सैनिक हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है, यूरोप भी कोई खास भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में बोको हरम के आतंकवादियों की करतूत दिन दुगनी-रात चैगुनी होनी तय है। इस्लाम के नाम पर इस तरह की करतूत तो लोकतांत्रिक दुनिया को अमान्य है पर मुस्लिम दुनिया खामोश क्यों हैं? बोको हरम हो या फिर हमास, अलकायदा इन सभी को किसी न किसी रूप में मुस्लिम दुनिया से समर्थन और सहयोग हासिल होता है जिसके कारण इन सभी आतंकवादी संगठनों का नेटवर्क बड़ी-बड़ी कार्रवाइयों के बाद भी ध्वस्त नहीं होता है। जहां तक अफ्रीकी भूभाग का सवाल है तो दो-तिहाई अफ्रीकी देश इस्लामिक आतंकवाद से ग्रसित हैं, पीड़ित हैं और खतरनाक तौर पर ग्रासी भी हैं।
अपहरित सैकड़ों बच्चियों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। बोको हरम ने खुद कहा है कि नाइजीरिया की सŸाा उन्हें सौंपो और उनका इस्लामिक राज स्वीकार करो, नहीं तो फिर अपहरित बच्चियों का भविष्य नर्क में तब्दील कर देंगे। खबरें तो यह भी आ रही हैं कि अपहरित सैकड़ों बच्चियों में से दर्जनों बच्चियों को अरब के शेखों और अफ्रीका के अन्य देशों के रईसजादों के हाथों बेच दिया गया है। अरब के शेख पहले से ही छोटी-छोटी बच्चियों को पैसे के बल पर और मजहब की विसंगतियों का लाभ उठा कर अपने हवस का शिकार बनाने के लिए कुख्यात रहे हैं। अरब के शेखों के पास अपार धन-दौलत है। वे दुनिया भर से छोटी-छोटी बच्चियों को खरीद कर हवस-मनोरंजन का खेल-खेलते हैं। बोको हरम के आतंकवादियों को जेहाद के लिए पैसे की जरूरत है। नाइजीरिया पहले से ही इस्लामिक देश होने के बाद भी इस्लामिक आतंकवाद और इस्लामिक हिंसा से ग्रसित है। बोको हरम यह कहता है कि जब तक उनके द्वारा घोषित इस्लामिक शासन को नहीं माना गया तब तक उनका हिंसा का खेल जारी रहेगा। नाइजीरिया एक मुस्लिम बहुलता वाला देश जरूर है पर वहां पर ईसाई आबादी भी भारी संख्या में रहती है। ईसाई आबादी इस्लामिक आतंकवादियों के निशाने पर हमेशा रहती है और उन पर बार-बार आतंकवादी हिंसा कहर बन कर टूटती है। ऐसा इसलिए होता है कि ईसाई आबादी हमेशा से इस्लामिक शासन व्यवस्था के विरूद्ध खड़ी रहती है और वह उदारवादी सोच रखने वाली इस्लामिक राजनीतिक पार्टियों को समर्थन देती है। ईसाई आबादी की इस राजनीतिक लाइन को आतंकवादी संगठन अपने विरुद्ध मानते हैं और ईसाई आबादी को वे अपनी आतंकवादी हिंसा का शिकार भी बनाते हैं।
इस्लाम के नाम पर इतनी बड़ी करतूत की घटना होती है पर अभी तक किसी इस्लामिक धर्म गुरू ने मुंह तक नहीं खोला है। किसी मुस्लिम देश ने अभी तक इस प्रसंग में कोई बयान तक जारी नहीं किया है। छोटी-छोटी बात पर विद्रोह का बिगुल बजाने वाले दुनिया भर के मुस्लिम संगठन भी चुप हैं? अगर थोड़ी देर के लिए इस कसौटी पर देखें कि इस तरह की करतूत कोई ईसाई, यहूदी, बौद्ध और हिन्दू संवर्ग से जुड़ा हुआ कोई संगठन किया होता तो मुस्लिम दुनिया पूरी दुनिया में गदर मचा देती। ईरान, मलेशिया जैसे देश जो मुस्लिम एकता की बात करते हैं वह भी इस करतूत पर चुप हैं। मुस्लिम देशों के संगठन वल्र्ड मुस्लिम ओर्गेनाइजेशन ने भी कोई बयान तक नहीं दिया है। क्या मुस्लिम दुनिया, मुस्लिम संगठन, मुस्लिम धर्म गुरू और मुस्लिम देश इस तरह के करतूत को मजहब की कसौटी पर उचित मानते हैं? अगर नहीं तो फिर ये सभी अपने मुंह पर पट्टी क्यों बांध रखे हैं। अगर विरोध मुस्लिम संगठनों से होता तो निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता था कि बोको हरम के आतंकवादियों पर दबाव बनता।
हम सिर्फ बोको हरम की ही बात क्यों करें। हमास, अलकायदा, तालिबान सहित दुनिया भर में जितने भी आतंकवादी संगठन हैं उन्हें समर्थन और सहयोग कहां से मिलता है, उनकी आतंकवादी हिंसक मानसिकता का पोषण कहां से होता है? इसका जवाब यह है कि आतंकवादी संगठनों को समर्थन-सहयोग मुस्लिम देशों और मुस्लिम आबादी के बीच से ही मिलता है, मुस्लिम आतंकवादी संगठनों की आतंकवादी हिंसक मानसिकता का पोषण भी मुस्लिम आबादी और मुस्लिम देश करते हैं। यही कारण है कि बड़े प्रहारों और बड़ी-बड़ी सैनिक-असैनिक कार्यवाहियों और दबावों के बाद भी मुस्लिम आतंकवादियों के नेटवर्क घ्वस्त नहीं होते हैं। लोकतांत्रिक और नैतिक दुनिया का कर्तव्य है कि नाइजीरिया के स्कूली बच्चियों के जीवन की रक्षा करे और बोको हरम के कब्जे से छोटी-छोटी बच्चियों को मुक्त कराये।
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