सुरेश वाडकर

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Saturday, November 22, 2014

महंगाई, बेरोज़गारी, सेवानिवृत्ति और बुढ़ापा

महंगाई, बेरोज़गारी, सेवानिवृत्ति और बुढ़ापा

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एक निवेश सलाहकार के तौर पर मैं तमाम विषयों पर सवालों के जवाब देता हूं। लेकिन जिन सवालों से मुझे सर्वाधिक चिंता होती है वे सेवानिवृत्ति के बाद की योजना, खासकर रिटायर होने के बाद आय व व्यय के प्रबंधन से संबंधित हैं। इसकी वजह यह गहरा विश्वास है कि किसी भी व्यक्ति को अपने रिटायरमेंट के बाद के लिए बचत करते समय शत-प्रतिशत सुरक्षा वाली संपत्तियों में ही निवेश करना चाहिए। ऐसी परिसंपत्तियां मुख्यत: किसी न किसी प्रकार की फिक्स्ड आय जमा निधियां होती हैं। सच से अधिक कुछ नहीं हो सकता। जिनके पास पर्याप्त मात्रा में बचत उपलब्ध भी है, भारत में वैसे लोगों को रिटायरमेंट के बाद की योजना बनाते समय इसकी समस्या होती है कि मुद्रास्फीति की भरपाई कैसे की जाए। भारत अगर बेहतर प्रबंधित अर्थव्यवस्था होता, जिसमें मुद्रास्फीति दर का स्तर दो से तीन प्रतिशत के बीच रहता तो ऐसी कोई बात नहीं होती। लेकिन हकीकत तो यह है कि लगातार गिरता रुपये का मूल्य हमारी बचत को घुन की तरह खा रहा है। औसतन 25 साल की अवधि में जिस दौरान एक रिटायर व्यक्ति को आय की जरूरत होती है, कीमतें आठ गुना बढ़ सकती हैं।
आज अगर आपको महीने का गुजारा करने के लिए 30,000 रुपये की जरूरत पड़ती है तो 10 साल बाद आपको अपना गुजारा करने के लिए 77,000 रुपये की जरूरत होगी। इसी तरह 15 साल बाद आपको 1.3 लाख रुपये व बीस साल बाद 2.2 लाख रुपये महीने की जरूरत होगी।
रिटायरमेंट के बाद न सिर्फ आपकी जमा धनराशि से निकासी बढ़नी चाहिए, बल्कि बची हुई पूंजी भी बढ़नी चाहिए, ताकि उससे अधिक निकासी हो सके। इस समस्या को आसानी से हल नहीं किया जा सकता है।
हालांकि आपके रिटायरमेंट के बाद के खर्चो का आकलन करने का बेहद आसान तरीका है। आपको महंगाई का मुकाबला करने के लिए अपनी बचत पर मिलने वाले कुल रिटर्न में से सिर्फ उतनी ही धनराशि निकालनी चाहिए जितनी की मुद्रास्फीति में वृद्धि से अधिक है। उदाहरण के लिए अगर आपकी बचत पर 11 प्रतिशत रिटर्न प्राप्त होता है और महंगाई दर आठ फीसद की दर से बढ़ रही है तो आपको सिर्फ तीन प्रतिशत धनराशि ही खाते से निकालनी चाहिए। इससे आपकी बचत महंगाई के अनुपात में बढ़ेगी और यह सुनिश्चित होगा कि आप बुढ़ापे में जाकर गरीब न रहें।
उपरोक्त उदाहरण इसकी पुष्टि करता है कि फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) व अन्य विकल्प जो निम्न दर पर रिटर्न देते हैं, किस तरह गलत विचार हैं। ये विकल्प शायद ही कभी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से अधिक दर पर रिटर्न दे पाते हैं।
इस तरह अगर आप उपरोक्त सिद्धांत का अनुसरण करते हैं तो बैंक में जमा अपनी धनराशि से एक पाई भी नहीं निकाल सकते।
फंड का फंडा

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