सुरेश वाडकर

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Monday, November 3, 2014

चरित्रहीन सीता



चरित्रहीन सीता
संपूर्ण रामायण में मुश्किल से एक शब्द सीता की प्रशंसा में लिखा गया है। 1)वह राम (असली नाम-पुष्यमित्र शुंग=जात ब्राम्हण) की अपेक्षा आयु में बड़ी है। उसका जन्म संदेह जनक और आपत्ति युक्त था।(अयोध्या कांड,६६ अध्याय ) 2) वह कहती है की “मैं धुल में पाई गयी,इसीलिए मेरे माता –पिता के न होने के charitrheen seeta
वजह से बहुत दिनों तक कोई मुझसे प्रेम करने को तैयार न होने के कारन मेरी अवस्था बड़ी हो गयी।3) विवाह हो जाने के पश्चात कुछ समय बाद वह भरत द्वारा अलग कर दी गयी।4) राम ने सीता को बताया की “तुम भारत द्वारा प्रशंसा की पात्र नहीं हो। (अयोध्या कांड, अध्याय) 5) सीता ने राम को स्वयं बताया की “मैं उस भरत के साथ नहीं रहना चाहती ,जो मुझसे घृणा करता है।” 6) वह अपने पति राम को सिडिं तथा मुर्ख कहा करती थी। ७) वह राम से कहती थी की “तुम मानवीय-गुणों से रहित हो। ” 8) ”तुम आकर्षण-शक्ति तथा हाव-भाव से रहित मनुष्य हो।” 9)”तुम उस स्त्री व्यापारी से अच्छे नहीं हो ,जो अपनी स्त्री को किराये पर उठा कर जीविका चलाता हो, तुम मुझसे लाभ उठाना चाहते हो। ” 10) सीता ने यह जानकर की राम हमेशा मेरे चरित्र के विषय में संदेह किया करता है। सीता ने कहा “राम ! तुम मुझे बचाने वाले हो, मैं केवल तुम्हारे प्रेम के अतिरिक्त किसी के प्रेम पर विश्वास नहीं करती हूँ, मैंने इस बात को कई बार तुम्हारी शपथ खाकर कहा, तथापि तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते।” 11) राम ने कहा “मैं तुम्हारी परीक्षा कर चूका हूँ। (अ.घां.6 से 11 अ.) 12) राम ने सीता को ठाठ-बाट और नीचता का स्मरण कर सीता से कहा,की “तुम्हें अपने आभूषण उतार देने चाहिये,यदि तुम मेरे साथ वनवास चलना चाहती हो।” (अयोध्या कांड,30 अध्याय ) 13) सीता ने राम के कथनानुसार ही किया,किन्तु अन्य आभूषण पहने रही। (अयोध्या कांड,39 अध्याय) 14) कौशल्या जो की सीता के चरित्र को जानती थी ,सीता से एक सज्जन तथा सुचरित्रवती महिला की भांति आचरण करने को कहा,”कभी अपने पति का अपमान न करना।” सीता ने अपनी सास को असभ्यतापूर्ण उत्तर देते हुये कहा की “मैं यह सब जानती हूँ “ और उसने अपने आभूषण नहीं उतारे। (अयोध्या कांड,39 अध्याय ) 15) जब राम और लक्ष्मण वल्कल,वस्त्र (पेड़ों की छाल के कपडे) धारण किये हुये थे,तब सीता ने ऐसे वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया। (अयोध्या कांड,37 अध्याय ) 16) दूसरी स्त्रियों ने जो सीता के वन जाने की अनिच्छा से अवगत थी ,सीता के प्रति दयालुता प्रकट की और उसे अपने साथ न ले जाकर यहीं (अयोध्या में) छोड़ देने की राम से प्रार्थना की तो भी राम ने सीता को छाल के कपडे पहनने के लिए बाध्य किया और उसे वन में साथ ले गए ,जैसा की कैकई दूसरी स्त्रियों के विचारों से सहमत न थी। (अयोध्या कांड,37,38 अध्याय )17)तथापि सीता ने दिए गए संपूर्ण परामर्श की और ध्यान न दिया। उसने सुंदर वस्त्र और आभूषण पहने। इससे स्पष्ट है की भरत सीता से घृणा करता था और यह की कैकई यह न चाहती थी ,की सीता अयोध्या में रहे। सीता को वन ले जाने के यही उपरोक्त कारण हैं।18) वनवास जाते समय नदी (गंगा) पार करते हुये सीता ने गंगा नदी से प्रार्थना की थी ,की “हे नदी गंगा ! यदि मैं सकुशल अयोध्या लौट आऊंगी,तो मैं तुम्हें हजारों गाय और मदिरा (शराब) से परिपूर्ण बर्तन चढ़ाऊँगी। (अयोध्या कांड,52 अध्याय ) 19) वनवास में जब कभी सीता निकट भविष्य के खतरे से भयभीत होती ,तो वह मन में कहा करती थी की मेरे दुखों से कैकई प्रसन्न और संतुष्ट होती होगी। इस प्रकार वह कैकई से अपनी शत्रुता प्रकट करती थी।20) जब कभी राम सीता को न देखकर उदास होता,तो लक्ष्मण कहा करता की “तुम एक साधारण स्त्री के लिए क्यों परेशान होते हो ?”(अयोध्या कांड,66 अध्याय ) 21) लक्ष्मण कहा करता था ,की सीता का चरित्र आपत्ति जनक है। (आरण्य कांड,18 अध्याय ) 22) राम हिरण की खोज में बाहर गया था। सीता राम की सहायता के लिए लक्ष्मण को तैयार कर रही थी। सीता ने देखा की मुझे अकेला छोड़कर जाने में हिचकिचाता है। तब सीता ने लक्ष्मंपर बुरा प्रभाव डालते हुये कहा की “राम के जीवन को बचाने में लापरवाही करके मुझे फुसलाने के लिए तुम यहाँ देर कर रहे हो। क्या तुम राम के सच्चे भक्त होकर वन में आये हो (अर्थात नहीं) तुम लुच्चे तथा दगाबांज हो। तुम मेरे साथ भोग विलास करने के उद्देश से राम को मार डालने के लिए आये हो। क्या भरत ने इसी उद्देश से तुम्हें हमलोगों के साथ भेजा है? मैं तुम्हारी तथा भरत की इच्छा को कभी पूरा न होने दूंगी।” 23) जब लक्ष्मण ने सीता के प्रति मातृवत सन्मान प्रदर्शित करते हुये ,सीता से कहा की “तुम्हें ऐसी निर्लज्जता प्रकट शोभा नहीं देता है।” तब उसने लक्ष्मण से कहा , “तुम स्वावलंबी हो ,तुम मेरे साथ आनंद करने के लिए मेरे साथ विश्वास-घात करते हो और इस प्रकार तुम मेरे सतीत्व नष्ट करने के लिए अवसर ढूंड रहे हो।” (उपरोक्त दोनों संकेत अयोध्या कांड के 45वे अध्याय में देखे जा सकते हैं।) 24) रावण ने सीता को ले जाने के उद्देश से उसकी मनोस्थिति को बड़े ध्यान से देखा। उसकी सुंदरता को देख वह उसके ऊपर मोहित हो गया और उसकी और बढ़ा। वह उसके स्तनों और जादूभरी जाँघों की प्रशंसा करने लगा। इन सब बातों से सीता की क्या प्रतिक्रिया हुई होगी ? क्या सीता ने रावण से घृणा की ? क्या उसे अस्वीकार किया ? क्या उसने उसे फटकारा ? नहीं ,बिलकुल नहीं। रावण की इस समय सन्मान पूर्ण आगवानी की (स्वागत किया) बिना अपनी अवस्था अधिक प्रकट किये ,उसने रावण के समक्ष अपने सुंदर यौवन की प्रशंसा की। (अयोध्या कांड,46 ,47 अध्याय ) 25 ) जब रावण ने सीता को बताया की “मैं राक्षसों का प्रधान रावण हूँ ,तब सीता ने उससे घृणा की।” 26) जब रावण उसे अपनी गोड में लिए जा रहा था ,तब वह अर्धनग्न थी। तब वह स्वयं अपने स्तन खोले हुये थी। (अयोध्या कांड,58 अध्याय )
27) जैसे ही उसने अपने पैर रावण के महल में रखे। सीता का रावण के प्रति आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ता गया। (अयोध्या कांड,45 अध्याय ) 28) रावण ने अपने यहाँ सीता से कहा की “आओ हम दोनों मिलकर आनंद (संभोग) करें।” तब सीता अद्धोन्मिलित आँखों –युक्त सिसती भरती रही। (अयोध्या कांड,55 अध्याय )
29) रावण ने कहा “हे सीते ! हमारा तुम्हारा मिलन ईश्वरकृत है। यह ह्रुषियों की भी माया है।” (अयोध्या कांड,55 अध्याय)
30) सीता ने कहा “तुम मेरे अंगो का आलिंगन करने के लिए स्वतंत्र हो। मुझे उसकी रक्षा करने की आवश्यकता नहीं। मुझे इस बात का पश्चाताप नहीं की मैंने भूल की है।” (अयोध्या कांड,56 अध्याय) इससे इस परिणाम पर पहुंचा जा सकता है ,की सीता ने रावण को अपने साथ दुर्व्यवहार करने की अपनी (स्पष्ट)अनुमति नहीं दी।31) राम ने सीता से कहा की रावण ने तुम्हें बिना तुम्हारा सतीत्व नष्ट किये कैसे छोड़ा होगा। राम द्वारा इस दोषारोपित सीता ने निम्नांकित उत्तर दिया ,जो की उपरोक्त कथन की पुष्टि करते हैं।32) सीता ने उत्तर दिया की “तुम सत्य कहते हो ,किन्तु तुम्ही बताओ,की मैं क्या कर सकती थी ? मैं केवल अबला हूँ। मेरा शरीर उसके अधिकार में था। मैंने स्वेच्छा से कोई भूल नहीं की है- तथापि मैं मन से तुम्हारे निकट रही हूँ। ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी ।” सीता ने केवल इतना ही कहा –किन्तु सीता ने दृढ़तापूर्वक यह नहीं कहा ,की रावण ने मेरा सतीत्व नहीं भंग किया। (युद्ध कांड,118 अध्याय ) 33) सीता का गर्भ देखकर राम का संदेह और पुष्ट हो गया। उसने प्रजा द्वारा सीता के प्रति लगाये गए आरोपों की शरण ली और उसे जंगल में छोड़ देने की लक्ष्मण को आज्ञा दी, तब सीता ने लक्ष्मण को अपना पेट दिखाते हुये कहा ,की देखो में गर्भवती हूँ। (उत्तर कांड,48 अध्याय ) 34) जंगल में उसने दो पुत्रों को जन्म दिया। (उत्तर कांड,66 अध्याय ) 35) अंत में जब राम ने इस सम्बन्ध में सीता से शपथ खाने को कहा तो अस्वीकार करते हुये वह मर गयी। (उत्तर कांड,97 अध्याय )
36) रावण ने सीता को सिर झुकाकर बड़े सन्मानपूर्वक अपनी और आकर्षित होने को कहा, इसका तात्पर्य तह है कि रावण ने सीता के प्रति अपनी किसी शक्ति का प्रयोग नहीं किया बल्कि सीता स्वयं उस पर मोहित हो गयी थी। सीता ने रावण की विषयेच्छा का स्वयं अनुसरण किया था, रावण पर मोहित न होने की दशा में वह सीता को छु तक नहीं सकता था, क्योंकि रावण को श्राप दिया गया था कि यदि वह किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरूद्ध छुएगा, तो वह भस्म हो जायेगा। अंत: रावण ने किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध न तो छुआ न कभी छु सकता था।37) रावण से सीता को वापिस प्राप्त करके तथा उसे अपनी स्त्री के रूप में पुनः स्वीकार करके राम अयोध्या में राज्य कर रहा था। उसकी साली “कुकवावती” ने राम के पास जाकर कहा,की “श्रेष्ठ ! तुम अपने की अपेक्षा सीता को कैसे अधिक प्यार करते हो ?मेरे साथ आओ और अपनी प्यारी सीता के ह्रदय की वास्तविकता को देखो वह अब भी रावण को नहीं भूल सकी है, वह रावण के ऐश्वर्य पर गर्व करती हुई, उसका चित्र अपने विजन (पंख)पर बनाये हुये, उसे अपनी छाती पर चिपकाये हुये,अद्धोन्मिलित नेत्र-युक्त अपनी चारपाई पर लेटी हुई है।” इसी समय राम के “दुर्मुहा” नामक एक गुप्तचर ने राम के निकट आकर उसे बताया की,”रावण के यहाँ से सीता को लाकर पुनः अपनी स्त्री बना लेना प्रजा में तुम्हारी निंदा और उपहास का विषय बना हुआ है।” यह सुनते ही राम तिलमिला गया और उसे क्रोध आ गया। उस समय राम को मन ही मन अपने अपमान और दुःख का अनुभव हुआ, जो की उसके चेहरे से प्रकट होता था। उसने आहे भरी और अपनी साली के साथ सीता के कमरे में गया। राम ने सीता को अपने विजन पर रावण का चित्र बनाये हुये, उसे अपनी छाती पर चिपकाये हुये सोती हुई पाया। (यह बात “श्रीमती चंद्रावती “द्वारा लिखित बंगाली रामायण”के पृष्ठ 199 और 200 में पाई जाती है।) घटनाओं के गंभीर अध्ययन से प्रकट होता है ,की राम ने सीता में उसके गर्भवती होने में दोष पाया, राम ने रावण के यहाँ से सीता को वापिस लाकर पुनः उसे अपनी स्त्री के रूप में स्वीकार करके अयोध्या वापस आने के ठीक एक महीने के अंदर, राम द्वारा सीता के गर्भवती होने का समय हो सकता है।
38) श्री.सी.आर.श्रीनिवास आयंगर की “रामायण”पर टिप्पणी “ नामक पुस्तक के अनुसार राम ने सीता को रंगे हाथ पकड़ लिया था। क्योंकि उसने रावण का चित्र खिंचा था। 39)सीता ने रावण अपनी वास्तविक अवस्था से कम अवस्था बताई थी। वो जब खाना परोसते समय रावण से बाते कर रही थी तब वह 13 वर्ष की थी। उसने पुनः बताया की मेरा विवाह हो जाने के बाद मैं 12 वर्ष तक अयोध्या में रही, उसने पुनः कहा की जब मैं वनवास में आई, तब में 18 वर्ष की थी, यह कैसी अनुकूलता????? 40) रामायण के अनुसार हम कह सकते हैं, कि राम एक अयोग्य व्यक्ति था और सीता एक व्यभिचारिणी स्त्री थी। राम ने सीता को अकेले जंगल में छुड्वाया इसके प्रमाणस्वरूप बहुत से दृष्टांत है। जहाँ तक सीता का सम्बन्ध है, रावण के साथ अनुचित-संसर्ग करने के कारण धर्म-निति के अनुसार पवित्र नहीं थी। यदि राम कृत्य उचित मान लिया जाये, तो यह सभी को स्वीकार कर लेना चाहिए, की सीता रावण द्वारा गर्भवती हुई थी। यदि यह मानकर,की सीता ने कोई नैतिक अपराध नहीं किया था, वह राम के द्वारा गर्भवती हुई थी, सीता की रक्षा की जाये –तो यह सभी को स्वीकार कर लेना चाहिए की राम द्वारा अबोध गर्भवती को जंगल में अकेले छुडवाने का कार्य मानवोचित नहीं है। राम ने सीता के गर्भ के विषय में अन्वेषण किया था, तब ही उसने दुसरे दिन प्रातःकाल उसे जंगल में छुडवा दिया था। ऐसी दशा में यह सिद्ध करना की ना तो सीता भ्रष्ट थी और न राम गुंडा तथा विश्वास-घाती प्रकट करता है, कि यह भ्रष्टता और नीचता क्षम्य नहीं है। तब यह कथन कैसे सत्य कहा जा सकता है कि राम ने आर्य (ब्राम्हण) धर्म नित्यानुसार मानव-मात्र को उपदेश देने के हेतु तथा सीता ने स्त्री-मात्र को सदाचरण तथा सतीत्व की शिक्षा देने के निमित्त अवतार लिए।यदि ब्राम्हणों के इस उपदेश का प्रतिपादन करने वाले दृष्टिकोण को अपनाया जाये की राम और सीता ने जो कुछ भी किया था ,वह उचित ही है, तो क्या यह बेचारे अबोध व बुद्धिहीन मानव-मात्र को पथ-भ्रष्ट करना नहीं है ?? सुधारक इस मुर्खता-पूर्व हास्यास्पद मत को कैसे सहन कर सकते हैं?? इन कारणों से हम अधिकार-पूर्वक कह सकते हैं,की “राम और सीता चरित्र -हिन् थे ”सच्ची रामायण लेखक = सर पैरियर ई .व्ही रामास्वामी नायकर “सच्ची रामायण ” इस पुस्तक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस हुई थी। मुकदमा नंबर 412 सन 1970 ई क्रिमिनल मिसलेनियस एप्लीकेशन अंडर सेक्शन 19वी क्रिमिनल प्रोसिडर कोड में वि 19/1/71 ई को पूरी बहस सुनने के बाद बहुमत का निर्णय दिया गया। जप्ती हटा दी गयी और खर्च के पैसे दिलाये गये। इस पुस्तक पर केस इसलिए की गयी के “इस पुस्तक से भारत के कुछ नागरिक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को जानबुझ कर चोट पहुचाने तथा उनके धर्मं एवं धार्मिक मान्यताओं का अपमान करने के लक्ष्य से लिखी गई है ।”लेकिन ब्राम्हण पिछले हजार सालो से जो यहाँ के मूल निवासियों के बारे में उनके तमाम धर्मं ग्रंथो (ब्राम्हणों के ग्रंथ जो हिन्दू धर्मं के ग्रंथ लोग समझते हैं, जो उनके है ही नहीं ) में सारी की सारी झूटी और बेबुनियाद बातें ब्राम्हणों ने लिखी। तमाम मूल ग्रंथो को मिटाकर इतने सालो से सच्चाई को छुपा के रखा और साम, दाम, दंड और भेद से ये सारे ग्रंथ हमपर लादे गये उसका क्या?

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