सुरेश वाडकर

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Monday, November 3, 2014

कौन कहता है कि ब्राह्मण उच्च कोटि के होते है?



कौन कहता है कि ब्राह्मण उच्च कोटि के होते है? आज हर जगह बताया जाता है कि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य ऊँची जात के प्राणी होते है। लेकिन कैसे? ये किसी को पता नहीं है। हर तरफ ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को उच्च कुल की संताने कहा जाता है। अगर इतिहास देखा जाये तो सच्चाई कुछ और ही ब्यान करती नज़र आती है। ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य जो की असल में मोगल जाति के लोग है और यूरेशिया से भारत में आये है। आज ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को यूरेशियन भी कहा जाता है, वास्तव में एक क्रूर और अत्याचारी मानव जाति है। यूरेशिया के लोगों ने भी मोगलों से तंग आ कर पूरी मोगल जाति को मरने के लिए समुद्र में छोड़ दिया था। ये भारत देश का दुर्भाग्य था कि मोगल जाति के लोग समुद्र में भटकते हुए भारत पहुंचे। हजारों मूल निवासी राजाओं को मार कर मोगलों ने भारत की सत्ता हासिल की। आज भी मोगल भारत के उन महान राजाओं को मारने की ख़ुशी में सेकड़ों त्यौहार बनाते है। मूल निवासी भी अपने पूर्वजों के मृत्यु दिवस पुरे हर्षो उल्लास से मानते है। दशहरा, दिवाली, होली आदि ऐसे त्यौहार है जिनको ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य मूल निवासियों के ऊपर जीत हासिल करने ख़ुशी में बनाते है। मुझे तो हंसी आती है भारत के मूल निवासियों और उनकी सोच पर, सिर्फ दूसरों की नक़ल करने की आदत पड़ गई है सभी मूल निवासियों को। कोई भी मूल निवासी अपना दिमाग प्रयोग नहीं करता, सब के सब ब्राह्मणों की वाणी के जाल में फंसे हुए है और हजारों बर्षों से मोगलों अर्थात युरेशियनों अर्थात आर्यों अर्थात ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों की गुलामी करने में लगे हुए है।
अब बात करते है ब्राह्मणों की उच्च जाति की। कौन कहता है कि ब्राह्मण उच्च जाति के लोग है? ब्राह्मण यूरेशिया से देश निकला दिए हुए लोग है। अगर ब्राह्मण उच्च जाति के होते तो यूरेशिया से इन को देश निकला क्यों दिया जाता? यूरेशिया के शासक ब्राह्मणों को समुद्र में मरने के लिए क्यों छोड़ जाते? असल में ब्राह्मण एक नीच और निकृष्ट जाति है। ब्राह्मणों ने भी गौ मांस खाया है। ऋग्वेद में इस बात के प्रमाण है। जिस में कहा गया है कि पूजा के बाद गाये, बैल या सांड की बलि दी जानी जरुरी है और ब्राह्मण द्वारा बलि दिए गए जानवर का मांस खाना जरुरी है। अगर कोई ब्राह्मण बलि के लिए काटे जानवरों अर्थात गाये, बैल या सांड का मांस खाने से माना कर देता ई तो उसकी 20 पीढियां नरक में जाती है। ऋग्वेद में इंद्र जो की एक आर्य था और बाद में ब्राह्मणों ने जिसको अपना भगवान् बना दिया कहता है “हे इन्द्राणी! जब बधिक लोग यज्ञ और पूजा के बाद गाये, बैल और सांडों को काटकर उनकी बलि देते है, और ब्राह्मण उस मांस को खाता है तो उस मांस से मैं मोटा होता हूँ। महाभारत का अध्ययन किया जाये तो महाभारत के युद्ध के विवरण वाले अध्याय में लिखा हुआ है कि महाभारत के युद्ध के दौरान ब्राह्मणों की प्रसन्नता के लिए हर रोज 2000 गाये कटी और ब्राह्मणों को खिलाई जाती थी। अब आप पाठकगण खुद सोचो इतना घटिया काम करने वाले ब्राह्मण उच्च कोटि के कैसे हो सकते है? मनु स्मृति की बात करते है जिसको एक ब्राह्मण मनु ने लिखा था। मनु जितना नीच इंसान भी इस दुनिया में दूसरा कोई नहीं हुआ। जिसने उसे पैदा करने वाली नारी को ही नीच लिख दिया। मनु के अनुसार नारी स्वतंत्रता की अधिकारी है है(अध्याय-९ श्लोक-४५), नारी पत्नी, पुत्री, माता सभी रूपों में सिर्फ एक दासी है(अध्याय-९ श्लोक-४१६), नारी हर रूप में अपवित्र है, उसको पढने, लिखने या ज्ञान प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है(अध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८), नारी नरक का द्वार है(अध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७), पढने लिखने वाली नारी अपवित्र है, पढ़ी लिखी नारी के हाथ का भोजन नहीं करना चाहिए(अध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६), नारी निष्ठा रहित, चंचल, पथभ्रष्ट करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान इर्षाखोर, दुराचारी है और पता नहीं क्या क्या है। क्या ये विचार किसी उच्च कोटि के विद्वान या उच्च कोटि के जाति के पुरुष के हो सकते है? जो अपनी जननी को ही नरक का द्वार कहता हो, वो पुरुष उच्च कोटि का कैसे हो सकता है? फिर कहते है ब्राह्मण की हम उच्च कोटि के है, बाकि सभी नीच है। तुलसीदास नाम के एक ब्राह्मण के विचार भी देखे: ढोल, शुद्र, पशु, नारी सर्व ताडन के अधिकारी।। ये ब्राह्मणों की सोच है, क्या ऐसे ब्राह्मण उच्च कोटि के होते है? अगर ऐसे ब्राह्मण उच्च कोटि के होते है तो ये भारत जैसे महान देश के लिए इ बहुत बड़ा अभिशाप है, एक कलंक है। जिसको समय रहते मिटाना जरुरी है। असल में कोई भी भारतीय नारी यूरेशियन नहीं है। भारत की सभी नारियों का DNA भारत के मूल निवासियों से मिलाता है और सभी जाति की औरते और लड़कियाँ भारत की मूल निवासी है। अगर ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों की औरते भी यूरेशियन होती तो ब्राह्मण नारियों के बारे ऐसा कभी नहीं लिखते। DNA रिपोर्ट 2001 जो माइकल बामसाद नाम एक अमेरिकी नागरिक ने भारत सरकार मानववंश संस्थान के साथ मिल कर और सभी जातियों के DNA परिक्षण के बाद बनाई थी को सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने भी मान्यता दी थी के आधार पर यह साबित हो चूका है कि भारत की सभी नारियों का DNA शूद्रों अर्थात मूल निवासियों से 100% मिलाता है।
अब ब्राह्मणों के कुल के बारे बात हो जाये। आज भारत के ब्राह्मणों को यह भी नहीं पता कि वो कौन से वंश की संताने है। क्योकि प्राचीन भारत में “नियोग” नाम की एक विधि युरेशियनों अर्थात ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों में प्रचलित थी। जिस में अगर कोई ब्राह्मण, राजपूत या वैश्य बच्चे पैदा करने में असमर्थ होता था तो वो अपनी पत्नी किसी दुसरे ब्राह्मण को कुछ दिनों के लिए दे देता था। पत्नी दुसरे ब्राह्मण के साथ शारीरिक सम्बन्ध बना कर बच्चे पैदा करती थी। राम और पांच पांडव इसी विधि से पैदा किये गए थे। जब दशरथ के बच्चे पैदा नहीं हुए तो उसने पुत्र-प्राप्ति यज्ञ नाम से एक समारोह आयोजित किया। जिस में बहुत से ब्राह्मणों को बुलाया गया और बाद में तीन ब्राह्मण चुन कर दशरथ ने अपनी तीनों रानियाँ उन ब्राह्मणों को दे दी। रानियों ने तीनों ब्राह्मणों के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाये और राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न नाम के बच्चे पैदा किये। महाभारत में भी कुंती ने “नियोग विधि” से ही कर्ण और बाकि तीन पांड्वो को पैदा किया। खुद तो कुंती एक चरित्रहीन स्त्री थी, लेकिन कल को उसकी सौतन माद्री कल को उसको कुलटा या चरित्रहीन ना बोले इस लिए कुंती ने माद्री को भी चरित्रहीन बनाने के लिए दुसरे मर्दों के साथ बच्चे पैदा करने की सलाह दी और माद्री की पूरी मदद भी की।
ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के बारे और पुराणों का अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि ब्राह्मणों के वैदिक काल मैं पिता-पुत्री और माँ-पुत्र के सम्बन्ध भी उचित माने जाते थे। वशिष्ठ नाम के आर्य ने अपनी पुत्री शतरूपा से विवाह किया था, मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया था, जहानु ने अपनी बेटी जाहनवी से विवाह किया था, सूर्य ने अपनी बेटी उषा से विवाह किया था, ध्ह्प्रचेतनी और उसके पुत्र सोम ने सोम की पुत्री मारिषा से सम्भोग किया था, दक्ष ने अपनी बेटी अपने पिता ब्रह्मा को दी थी और दोहित्र ने अपनी 27 पुत्रियाँ अपने पिता सोम को संतान उत्पति के लिए दी थी। आर्य खुले में सारे आम मैथुन करते थे। “वामदेव-विरत” प्रथा के नाम पर सभी ऋषि यज्ञ भूमि में सब के सामने कई कई स्त्रियों के साथ सरे-आम सम्भोग करते थे। उदाहरण के लिए; पराशर ऋषि ने सत्यवती और धिर्धत्मा के साथ यज्ञ भूमि में सब के सामने संभोग किया था। प्राचीन काल में योनी का अर्थ घर और अयोनि का अर्थ घर से बाहर होता था। जो गर्भ घर में ठहरता था उसे योनी बोला जाता था, और जो गर्भ घर से बाहर ठहरता था उसे अयोनि कहा जाता था। सीता और द्रोपती का जन्म इसी “योनी–अयोनि” प्रथा से हुआ था। पुराने समय में नारी को किराये पर देने की प्रथा भी ब्राह्मणों में प्रचलित थी। उदाहरण के लिए; राजा ययाति ने अपनी बेटी माधवी को अपने पुत्र गालब को दिया, गालब ने माधवी को किराये पर तीन राजाओं को दिया, उसके बाद गालब ने माधवी अर्थात अपनी बहन का विवाह विश्वामित्र के कर दिया, विश्वामित्र के साथ माधवी ने एक पुत्र को जन्म दिया, उसके बाद गालव अपनी बहन माधवी को वापिस अपने पिता ययाति को दे देता है।
कन्या शब्द का वैदिक अर्थ भी वह नहीं होता जो आज प्रचलित है। कन्या शब्द का वैदिक अर्थ एक ऐसी स्त्री से है जो सम्भोग के लिए स्वतंत्र हो। कुंती और मत्स्यगंधा इस के प्रमाण है। कुंती पांडू से विवाह करने से पहले ही बहुत से बच्चे पैदा कर चुकी थी। मत्स्यगंधा ने भीष्म के पिता शांतनु से विवाह करने से पूर्व पराशर ऋषि के साथ सम्भोग किया था। यूरेशियन आर्य बढ़िया संतान प्राप्त करने के लिए अपनी औरतों को देव नामक आर्य वर्ग के लोगों को दे देते थे। यूरेशियन अर्थात आर्य जानवरों से भी सम्भोग करते थे। दाम नामक आर्य ने हिरनी के साथ और सूर्य नामक आर्य ने घोड़ी के साथ सम्भोग किया था। अश्वमेघ यज्ञ में मनोरंजन के लिए औरतों से जबरदस्ती घोड़ों से सम्भोग करवाया जाता था। इस के प्रमाण यजुर्वेद और अन्य पुराणों में भी मिलते है: अश्विम्याँ छागेन सरस्वत्यै मेशेगेन्द्रय ऋषमें (यजुर्वेद २१/६०) अर्थात: प्राण और अपान के लिए दु:ख विनाश करने वाले छेरी आदि पशु से, वाणी के लिए मेढ़ा से, परम ऐश्वर्य के लिए बैल से-भोग करें. ऋग्वेद से प्रमाण; इन्द्राणी कहती है: न सेशे ……………..उत्तर: (ऋगवेद १०.८६.१६)  अर्थ :- हे इन्द्र, वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसका पुरुषांग (लिंग) दोनों जंघाओं के बीच लम्बायमान है, वही समर्थ हो सकता है, जिस के बैठने पर रोमयुक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है अर्थात इन्द्र सब से श्रेष्ठ है। इस पर इन्द्र कहता है: न सेशे………..उत्तर. (ऋग्वेद १०-८६-१७)अर्थ :- वह मनुष्य सम्भोग करने में समर्थ नहीं हो सकता, जिसके बैठने पर रोम-युक्त पुरुषांग बल का प्रकाश करता है. वही समर्थ हो सकता है, जिसका पुरुषांग दोनों जंघाओं के बीच लंबायमान है। फिर इन्द्राणी कहती है: न मत्स्त्री………………………..उत्तर:(ऋग्वेद १०-८६-६)अर्थ :- मुझ से बढ़कर कोई स्त्री सौभाग्यवती नहीं है. मुझ से बढ़कर कोई भी स्त्री पुरुष के पास शरीर को प्रफुल्लित नहीं कर सकती और न मेरे समान कोई दूसरी स्त्री सम्भोग के दौरान दोनों जाँघों को उठा सकती है. ताम…………………….शेमम. (ऋग्वेद १०-८५-३७) अर्थ :- हे पूषा देवता, जिस नारी के गर्भ में पुरुष बीज बोता है, उसे तुम कल्याणी बनाकर भेजो, काम के वश में होकर वह अपनी दोनों जंघाओं को फैलाएगी और हम कामवश उसमें अपने लिंग से प्रहार करेंगे.
इन सभी विधियों से ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों के घरों में हजारों सालों से बच्चे पैदा होते रहे। और ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों के खानदान चलते रहे। अब कोई बताएगा की ब्राह्मण उच्च कोटि के कैसे हुए? जिनको अपने खानदान का ही पता नहीं है। जिनको ये नहीं पता की वो पैदा किसने किये, वो उच्च कोटि के कैसे हो गए? अब यहाँ कई ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य गालियाँ देंगे। लेकिन सच को कोई नहीं मानेगा। ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों ये सच है। इसको मानो, तुम लोग उच्च कोटि के नहीं हो। तुम लोग दुनिया की सबसे निकृष्ट जाति के लोग हो।
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