गांधीजी की हत्या के बाद इसी कमरे में रखा गया था गोडसे को
Publish Date:Thu, 30 Jan 2014 10:52 AM
(IST) | Updated Date:Thu, 30 Jan 2014 10:53 AM (IST)
गांधीजी की हत्या के
बाद इसी कमरे में रखा गया था गोडसे को
मुंबई। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा
गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसके बाद गोडसे को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया
था लेकिन अदालती कार्रवाई से पहले उसे कहां रखा गया था। इस बात की जानकारी शायद ही
किसी को हो। दरअसल गोडसे को जनाक्रोश से बचाने के लिए मुंबई में छिपाकर रखा गया था।
मुंबई में सीएसटी के पास स्पेशल ब्रांच की इमारत के एक कमरे
में नाथूराम गोडसे को दो हफ्ते तक रखा गया था। इतिहासकार दीपक राव के अनुसार क्राइम
ब्रांच ने जानबूझकर गोडसे को सामान्य लॉकअप में नही रखा था। पुलिस को शक था कि गांधी
जी की हत्या से आक्रोशित भीड़ गोडसे को तलाश कर रही थी। इसलिए उसे स्पेशल ब्रांच के
रिकॉर्ड रूम में रखा गया था, ताकि किसी को शक भी न हो।
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मुंबई शहर के बीचों बीच बनी स्पेशल ब्रांच की इमारत में स्थित
एक हजार वर्गफीट का यह कमरा कई वषरें तक इतिहास के पन्नों से गुम था। दरअसल महात्मा
गांधी की हत्या की जांच कर रही टीम यह नहीं चाहती थी कि किसी भी प्रकार का जनाक्रोश
भड़के। इसलिए नाथूराम गोडसे को सजा मिलने के बाद भी इस कमरे को रहस्य में ही रहने दिया
गया।
कहां हैं स्पेशल ब्रांच का यह कमरा
स्पेशल ब्रांच का रिकॉर्ड रूम मुंबई में सीएसटी के नजदीक म्यूनिसिपल
स्ट्रीट नंबर 12, बदरुद्दीन तयबजी मार्ग, जिसे जिम्नेसियम रोड भी कहते हैं, पर स्थित
है। यहां एक बड़ा हॉल है, जिसमें स्पेशल ब्रांच द्वारा एकत्रित दस्तावेजों को रखा जाता
है।
वर्तमान में यहां बैठने वाले अधिकारियों में से किसी को भी इसके
इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यहां तक कि उन्हे यह भी नहीं पता है कि जिस
इमारत में वो आज काम कर रहे हैं, वहां किसी समय नाथूराम गोडसे को कैद करके रखा गया
था।
इतिहासकार दीपक राव के अनुसार ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि नाथूराम
गोडसे से संबंधित अधिकांश दस्तावेजों को गोपनीय श्रेणी में रखा गया है और उसकी जानकारी
किसी को नहीं है।
महात्मा को भूले, गांधी ही याद
राव के अनुसार गांधीजी की हत्या की जांच कर रहे नागरवाला ने
जानबूझकर गोडसे को क्राइम ब्रांच के सामान्य लॉकअप में नहीं रखा था बल्कि उसके बगल
में स्थित रिकॉर्ड रूम में रखा था, ताकि गांधी जी की हत्या से आक्रोशित लोगों को शक
न हो कि गोडसे मुंबई में है। यहां तक कि उसे पूछताछ और जांच के लिए यहीं से पुणे और
ठाणे भी ले जाया जाता था।
इतिहासकार दीपक राव और नागरवाला अच्छे दोस्त होने के साथ ही
साथ पड़ोसी भी थे। राव के अनुसार, नागरवाला ने उन्हें बताया था कि 17 फरवरी 1948 की
सुबह उन्हें दिल्ली से फोन आया था और उन्हें बताया गया था कि वो गांधी जी की हत्या
की जांच करेंगे। बाद में 1 मई 1960 को नागरवाला गुजरात के पहले आईजी नियुक्त किए गए
थे और उन्होंने 13 वर्ष तक इस पद पर सेवाएं दी थीं।
अपने रिटायरमेंट के बाद नागरवाला ने दीपक राव को बताया था कि
गोडसे को मुंबई लाने का फैसला उन्होंने ही लिया था। जांच पूरी होने और गोडसे की सजा
मुकर्रर होने के बाद नागरवाला को मुंबई लाए जाने संबंधी सभी सबूतों को मिटा दिया गया
था।
मिली जो देखने को हमको शक्ल गांधी की.
मुंबई पुलिस के एक पूर्व एडिशनल कमिश्नवर के मुताबिक उन्हें
अपनी पोस्टिंग के दौरान इस बात का पता चला था कि गोडसे को मुंबई स्पेशल ब्रांच में
रखा गया था। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि गांधीजी की हत्या के बाद देश की जनता में
आक्रोश था और कई शहरों में दंगे भी हो रहे थे। ऐसे में अगर किसी को यह पता चल जाता
कि गोडसे मुंबई में है तो यहां भी स्थिति बिगड़ सकती थी। इसलिए नागरवाला ने सारे सबूतों
को हटवा दिया था। इस केस से संबंधित सभी दस्तावेज और केस डायरियों को भी भारत सरकार
के आदेश के तहत क्लासीफाइड घोषित करते हुए सुरक्षित कर दिया गया था।
इस संबंध में जब पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लै से बात की गई तो
उन्हों ने कहा 'अधिकांश गोपनीय फाइलें नेशनल आर्काइव में रखी गई हैं। इसमें गांधीजी
और सुभाष चंद्र बोस से संबंधित दस्तावेज भी हैं और इनकी संख्या लाखों में हैं।'
पिल्लै ने यह बताया कि केवल वही दस्तावेज गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड
में रखे गए हैं, जो संवेदनशील हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकांश दस्तावेजों को गोपनीय
रखने की अवधि 30 वर्ष है। लेकिन गांधीजी की हत्या से संबंधित दस्तावेजों के लिए भारत
सरकार ने विशेष आदेश जारी किए थे।
27500 दस्तावेज
नेशनल आर्काइव से मिली जानकारी के अनुसार उनके पास सन 1880 से
लेकर 1948 तक के गांधी जी से संबंधित 27500 दस्तावेज हैं। इसमें उनकी हत्या के ट्रायल
से संबंधित कागजात भी शामिल हैं।
क्या हुआ था गोडसे का
22 जून 1948 को लाल किले में बनाई गई विशेष अदालत में गोडसे
और गांधी जी की हत्या की साजिश में शामिल बाकी लोगों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई। ट्रायल
आठ महीने चला और 10 फरवरी 1949 को जस्टिस आत्म चरण ने अपना फैसला सुनाया था। आठ लोगों
को हत्या की साजिश का दोषी माना गया था। बाकियों को विस्फोटक सामग्रियां रखने का दोषी
पाया गया था। गोडसे और आप्टे को मौत की सजा दी गई थी, जबकि बाकी छह को उम्रकैद की सजा
सुनाई गई थी। (मिड डे)
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