छुटकारा पाये नक्सलवाद से
नक्सलवाद एक भटका हुआ आंदोलन
है। गरीब आदिवासियों किसानो की भलाई के नाम से शुरू हुआ नक्सलवाद आंदोलन आज भयानक रूप
ले चुका है। जब भी कोई जवान इस समस्या के बारे में सोचता है तो या तो उसका खून खैल
उठता है या अंदर से सिहर जाता है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री इस समस्या
की रणनीति बनाते है और जब भी कोई दुर्धटना होती है तो जनता के सामने सफाई देते दिखते
है। विपक्ष इस पर राजनीतीक रोटियां सेकते दिखता है। हमने विभिन्न लोगों से चर्चा की
तो उन्होंने अपनी अजग-अलग राय तथा सुझाव दिये। जिसे हम सीधे सरकार और संदर्भित विभाग
को भेजेंगे। आप से अपील है कि आप अपनी राय/सुझाव हमें भेजें। हो सकता है वह सुझाव सरकार
के अगले कदम के लिए राह दिखाये। कुछ सुझाव -
- सरकार नक्सलियों के खिलाप
बयानबाजी से बचे। जब भी कोई बड़े मंत्री ऐसा बयान देता है तो नक्सली कोई वारदात को
अंजाम दे देते है। इससे सरकार की विश्वसनीयता कम होती है और जवानों एवं जनता का भी
मनोबल खराब होता है।
- रणनीति में विमान का इस्तेमाल
होगा कि नही ? कौन सी बटालियन आयेगी? कब से किस क्षेत्र में आपरेशन चालू होगा इत्यादि
बातें को गोपनिय रखा जाये। मीडीया भी इस मामले में संयम रखें, सरकार मीडीया को प्रोत्साहित
करे कि वे भी उनकी संयुक्त रणनीजी का हिस्सा बने।
- कुछ माह पूर्व साऊथ की एक
मैग्जींन में आया था कि नक्सलियों के सबसे बड़े नेता ज्यादातर बड़े शहरों एवं राजधानियों
में रहते हैं। कुछ ने माँल बना रखें है तो कुछ के बच्चे विदेशॉ में पढ़ रहे हैं। ऐसे
लोगो को चिन्हित कर उन पर कड़ी कार्यवाही कि जाये। उनके सोचने वाले नेतृत्व (थिंक टैंक)
को खोजा जाये। अमेरिकन सी. आई.ए. की तरह कुछ चुनौतीपूर्ण गुप्त आपरेशन तैयार किये जाये,
जिनका टारगेट नक्सली नेतृत्व को खत्म करना हो।
- दिखने में नक्सली सेना के
जवानों की संख्या लगभग 1 लाख के आसपास है (कुछ मैग्जींन में दिखाये ऑकड़ो के अनुसार)
यह भी बताया जाता है कि उनमे से केवल पांच छ: हजार हार्ड कोर नक्सली है बांकी पैसो
के भुगतान से, दबाव से अथवा किसी अन्य कारण से उनके साथ है। सरकार ने ऐसे लोगों को
नक्सलियों का साथ छुड़ाकर मुख्य धारा में जोड़ने के लिए कई स्कीमें निकाली है परंतु
हार्डकारे नक्सलियों के डर से यह स्कीमें कारगार नही हो पा रही है। उनके परिवारों की
सुरक्षा तथा नक्सलियों के पहुंच से दूर व्यवस्थापन की योजना प्रचारित करना आवश्यक है।
नक्सलियों में अंतर्कलह से उनकी ताकत बहुत ही कम हो जायेगी।
- नक्सली 2000 से 3000 करोड़
रूपये प्रतिवर्ष उगाही करते है। यह पैसा किसी प्रदेश के पूरे पुलिस विभाग के बजट से
दो से तीन गुना होता है। यह पैसा सम्भवत: बैक, प्रापर्टी, गहने, शेयर या किसी अन्य
जगह सुरक्षित रखते होंगे। सरकार उनके आर्थिक क्षेत्र को भी तोड़ने के लिए एक अलग स्कीम
बनाये। पैसों के बढ़ने से उनकी शक्ति बड़ गयी है जिससे वे हथियार, फौज, संसाधन जुटाने
में सक्षम हुए है।
- नक्सली बड़ी संख्या में काफी
दिनों तक जंगलों में रहते है। इस हेतु खाना-रसद की भारी मात्राएं इक्कट्ठे करके रखते
होंगे। यदि इस फूड सप्लाई लाईन को तोड़ दिया जाये तो उनकी हिम्मत टूटने लगेली।
- नक्सलियों की अधिक गतिविधी
वाले क्षेत्र चारो तरफ से घेर लिया जाये और फिर इस घेरे को छोटा करते-करते उनको मार/धड़-पकड़
किया जाये।
- आश्चर्य होता कि इतने हाइटेक
जमाने में (जिसमें सेटेलाईट के माध्यम से छोटी-सी छोटी चीजों को देखी जा सकती है।)
सरकार बड़ी संख्या में हो रही नक्सली गतिविधियां नही देख पा रही है। सेटे लाईट का उपयोग
किया जाये। सुरक्षा बलो के चारो तरफ और आगे बढ़ने वाली जगह को नाईट टेलीस्कोप, दूरबीन,
हिडन कैमरा, सेटेलाईट, रोबोटिक प्लेन इत्यादि के माध्यम से नजर में रखा जाये ताकि सुरक्षा
कर्मियों का कम से कम नुकसान व नक्सलियों को अधिकतम डैमेज पहुंचे।
- पकड़ाये गये नक्सलियों के
अंदर एक चिप डाल दिया जाये। जिससे वह कहां है पता लगे। नक्यलियों को इस बारे में जानकारियां
होने पर वे भी उन व्यक्तियों को मुख्य धारा से दूर करने का प्रयास करें यह सरकार की
कूटनीतिक सफल योजना होगी।
- नक्सलियों का प्रभाव व कार्यक्षेत्र
घने जंगलो में आदिवासी इलाकों पर ज्यादा है। वहां की आम जनता भय अथवा अन्य कारणों से
नक्सलियों का विरोध नही कर पाती। कई जगह तो उन्हॅ नक्सलियों का साथ देना पड़ता है।
उन जगहों पर मुहिम चलाकर उन्हें नक्सलियों के भय से मुक्त कर मुख्य धारा से जोड़ने
पर कार्य करना होगा। उन क्षेत्रों के स्थानीय लोगों को सरकार के साथ चलने हेतु मदद
करनी चाहिए।
- राज्य सरकार को आबकारी विभाग
के तर्ज पर एक नया विभाग 'आतंकवाद तथा नक्सलवाद उन्मूलन नाम से बनाना चाहिए। जिसका
पूरी विभागीय टीम अधिकारी और जवान बिल्कुल अलग हो। जिनका केवल एक उद्देश्य हो| यही
विभाग कहीं से भी आने वाली सैन्य बल, हथियार, कूटनीतिक योजना या कार्य योजना की समन्वयक
रहे।
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