सुरेश वाडकर

Search results

Monday, November 3, 2014

दिवाली नहीं दिप्दानोत्सव



दिवाली नहीं दिप्दानोत्सव
bheemsangh.wordpress.com
दिवाली का त्यौहार आ रहा है और भारत के हर घर में दिवाली बनाने की तैयारियां शुरू हो चुकी है। लेकिन क्या मूलनिवासियों (SC, ST, OBC और आदिवासियों) को यह त्यौहार बनाना चाहिए या नहीं? आज पुरे भारत के लोग दिवाली जैसे झूठी कहानियों पर आधारित त्योहारों को बहुत धूमधाम से मनाते है। क्योकि अधिकांश मूलनिवासी यह नहीं जानते कि यह ब्राह्मणों का त्यौहार दिवाली आखिर मनाया क्यों जाता है। इस त्यौहार के पीछे सचाई क्या है? सीधे शब्दों में कहा जाये तो दिवाली ब्राह्मणों अर्थात विदेशियों की मूलनिवासियों पर विजय का पर्व है। रामायण महज एक काल्पनिक कहानी है जिसको सची घटना साबित करने के लिए आज ब्राह्मण हजारों तरह के ढोंग और पाखंड कर रहा है। कहानी के साथ कहानियां जोड़ कर देश के मूलनिवासियों को बेबकुफ़ बना कर जबरदस्ती ब्राहमण धर्म को मानने पर मजबूर कर रहा है। वाल्मीकि (पुष्यमित्र शुंग के दरबार का एक कवि) ने रामायण नाम की एक काल्पनिक कहानी लिखी और ब्राह्मणों ने उस कहानी का प्रचार प्रसार किया। इसी कहानी के दम पर आज भी ब्राह्मण देश पर राज कर रहा है और ब्राह्मणों के जाल में फंसे सभी मूलनिवासी आज भी ब्राह्मण धर्म को निभा रहे है। आज रामायण के साथ हजारों कहानियां जोड़ी जा चुकी है और लगातार जुडती जा रही है। काल्पनिक तथ्यों के आधार पर रामायण को देश के इतिहास तक से जोड़ा जा चूका है। लेकिन तार्किंक दृष्टि से देखा जाये तो आसानी से समझ आ जाता है कि रामायण महज एक कहनी है। सभी मूलनिवासियों को देश पर विदेशियों की विजय के इस पर्व के बारे सही और सची विस्तृत जानकारी देते है ताकि सभी मूलनिवासियों को समझ आ सके कि आखिर सचाई क्या है। आज से बहुत समय पहले लगभग 800 और 900 इसवी में भारत एक समृद्ध बौद्ध राज्य था। उस समय भारत पर बौद्धों राजाओं का राज था। देश की राजधानी का नाम पाटलिपुत्र था। भारत में बौद्ध राज्य की स्थापना का श्रेय चक्रवर्ती सम्राट अशोक को जाता है जो महान राजा थे। पुरे विश्व में बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार का श्रेय भी सम्राट अशोक और उनके वंशज राजाओं को जाता है। सम्राट अशोक के वंश में कुल दस राजा हुए जिनमें अंतिम राजा का नाम सम्राट बृहदत्त था। 900 इसवी में भारत पर सम्राट बृहदत्त का राज था, लोग जातिवाद की समस्या से मुक्त थे। देश में समता, समानता, बंधुत्व और न्याय पर आधारित का शासन था। यहाँ तक भारत की शासन व्यवस्था की कीर्ति पुरे विश्व में फ़ैल चुकी थी। सामाजिक और शहरी व्यवस्था भी उच्च स्तर की थी, जिसे आज सभी विकसित देशों ने अपनाया हुआ है। यह व्यवस्था बौद्ध राजाओं के समय भारत में विद्यामान थी और बौद्ध शासन काल में विकसित हुई थी। शहरों का निर्माण आधुनिक शैली में किया गया था। देश में धर्म के नाम पर होने वाले आडम्बर, पाखंड और अन्धविश्वास समाप्त हो गए थे, पूरी दुनिया सम्राट अशोक के भारत को विश्व गुरु मान चुकी थी। पश्चिम देशों के लोग भारत में आकर यहाँ की व्यवस्था का अध्ययन करके अपने देशों में वही व्यवस्था स्थापित कर रहे थे। सही में कहा जाये तो बौद्ध राजाओं का समय ही वो समय था जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। महाराज अशोक ने देश में बौद्ध धर्म को स्थापित करने के बाद बुद्ध वचनों के प्रतिक रूप में चौरासी हज़ार विहार, स्तूपों और चैत्यों का निर्माण करवाया। यहाँ तक पाटलिपुत्र के अशोकाराम उन्होंने अपने निर्देशन में बनवाया था। सभी निर्माण पूर्ण हो जाने के बाद अशोक महान ने कार्तिक अमावश्या को एक भब्य उद्घाटन महोत्सव का आयोजन किया। इस महोत्सव के दिन सारे नगर, द्वार, महल तथा विहारों एवं स्तूपों को दीप माला एवं पुष्प माला से अलंकृत किया गया तथा सम्राज्य के सारे वासियों ने इसे एक त्यौहार के रूप में हर्सोल्लास के साथ मनाया। सम्राट अशोक ने इस त्यौहार को “दिप्दानोत्सव” नाम दिया, जिसका अर्थ था आडम्बर, पाखंड और झूठ के धर्म पर समता, समानता, बंधुत्व और न्याय की विजय। दीपक का प्रकाश अन्धकार से ज्ञान की ओर जाने का प्रतीक है। यह उत्सव कार्तिक माह में बर्ष ऋतू के समाप्त होने के बाद मनाया गया था। बरसात के समाप्त होने पर घरों में और घर के बाहर जो गन्दगी, दाग धब्बे, फंफूदी पानी के रिसाव के कारण बन जाते थे उनकी सफाई करके लोगों को एक ताजगी का अनुभव होता है। यही कारण था महाराज अशोक ने यही महीना “दिप्दानोत्सव” के लिए चुना। कृष्ण पक्ष की अमावश्य की रात्रि घनघोर अँधेरे वाली होती है जोकि ब्राह्मण के धर्म के अज्ञान, पाखण्ड, आडम्बर, झूठ, शोषण और अन्धकारयुक्त धर्म युग का प्रतिक है। इसी दिन सभी स्तूपों का उद्घाटन करके, नगरों में दीप जला कर उजाला किया गया और देश भर में दिप्दानौत्सव मनाया गया था। भारत के आम लोगों ने भी अपने अपने घरों में दीप जलाये और महाराज अशोक द्वारा शुरू किये इस त्यौहार को मनाया। महाराज अशोक के आदेश पर यह त्यौहार शुरू हुआ और आज तक देश में मनाया जाता है। महाराज बृहदत्त के समय भी यह त्यौहार पुरे उत्साह और खुशियों के साथ पुरे देश में मनाया जाता था। देश में धर्म के नाम पर आडम्बर और पाखंड समाप्त होने से ब्राह्मण धर्म खतरे में आ गया था। ब्राह्मणों का मुफ्त में धर्म के नाम पर खाने, धर्म के नाम पर व्यभिचार, लोगों को लुटने और अपनी सर्वोपरिता को स्थापित रखने का धर्म समाप्त हो रहा था। लोग ब्राह्मणों के धर्म को मानना छोड़ कर मानवता पर आधारित बुद्ध धर्म की ओर जा रहे थे। कारण साफ़ था, ब्राह्मण धर्म के आधार पर लोगों का शोषण करते थे। अपने आपको सबसे सर्वोपरि और विश्व का मालिक बताते थे। धर्म, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर व्यभिचार, बलात्कार और अत्याचार करते थे (ज्यादा जानकारी के लिए ऋग्वेद का अध्ययन करे)। लोगों में तर्क और विज्ञान पर आधारित सोच का विकास होता जा रहा था। ब्राह्मण विदेशी है यह बात भी भारत के मूलनिवासियों (SC. ST, OBC और आदिवासी) को पता थी। भारत के मूलनिवासी विदेशियों के धर्म को क्यों माने? इस प्रश्न के कारण भी मूलनिवासी ब्राह्मण धर्म से कटते जा रहे थे। लोग पाखंड, आडम्बर और झूठी कहानियों पर आधारित ब्राह्मण धर्म को मानना छोड़ रहे थे। बौद्ध राजाओं के राज में और बौद्ध धर्म के अनुसार सभी लोग समानता, समता, बंधुत्व और न्याय के शासन के अंतर्गत शासित थे तो जो मानवता के आधार पर भी न्यायोचित था। ऐसे में ब्राह्मणों को चिंता हुई कि अगर यही हाल रहा तो ब्राह्मण धर्म समाप्त हो जायेगा। लोग ब्राह्मणों की सर्वोपरिता को नहीं मानेंगे और ब्राह्मणों को भी मेहनत करनी पड़ेगी। भारत के लोग झूठ, आडम्बर और पाखंड पर आधारित ब्राह्मण धर्म के वेदों, पुराणों को नहीं मानेंगे और उनके पूर्वजों के द्वारा स्थापित वर्णव्यवस्था भी समाप्त हो जायेगी। ब्राह्मण देश में वर्ण व्यवस्था को किसी भी हाल में समाप्त नहीं होने देना चाहते थे। क्योकि जब तक वर्ण व्यवस्था है तभी तक ब्राह्मण सर्वोपरि है। अपना धर्म बचने के लिए ब्राह्मणों ने एक योजना बनाई, जिसमें देश के कोने कोने से विद्धवान ब्राह्मण शामिल हुए। ब्राह्मणों ने बौद्ध राजा बृहदत्त को मारने की योजना तैयार की। ब्राह्मणों ने बृहदत्त को मारने का कार्य पुष्यमित्र शुंग नाम के सेनापति को दिया, जो बृहदत्त की सेना में कार्य करता था। ब्राह्मणों की योजना अनुसार पुष्यमित्र शुंग ने महल में सारे सैनिक वो तैनात किये जो ब्राह्मणवादी थे, अर्थात पुष्यमित्र शुंग का साथ देने वाले थे। ताकि महाराज का क़त्ल करने पर कोई विद्रोह ना हो सके। योजना अनुसार दिप्दानोत्सव वाले दिन पुष्यमित्र शुंग ने महाराज वृहदत्त को भरे दरवार में पेट पर तलवार से वार करके मार डाला और पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा करके स्वयं को देश का राजा घोषित कर दिया। ब्राह्मणों का यह षड्यंत्र सफल रहा और देश पर एक बार फिर से ब्राह्मणों का राज स्थापित हो गया। उसके बाद बौद्ध लोगों पर ब्राह्मणों के अत्याचार शुरू हुए। लाखों बौद्ध भिक्षुओं को जबरदस्ती ब्राह्मण धर्म मानने पर मजबूर किया गया। जिन्होंने ब्राह्मण धर्म को मानने से इनकार किया उन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। बहुत से बौद्ध भिक्षु देश छोड़ कर भागने पर मजबूर हो गए। जो लोग भारत में ही रह गए उन लोगों पर ब्राह्मण धर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था को लागू किया गया। देश के मूलनिवासियों को कई टुकड़ों में बाँट दिया गया। बौद्ध धर्म से जुडी किताबों को जला दिया गया। ब्राह्मण को डर था कि कही फिर से मूलनिवासी एक ना हो जाये और ब्राह्मणों के खिलाफ आवाज ना उठा दे, इसीलिए देश के मूलनिवासियों को लगभग 6743 जातियों और उपजातियों में बाँट दिया। बौद्ध धर्म के अनुयायियों और बौद्ध लोगों के पूरी तरह दमन के बाद पुष्यमित्र शुंग ने अपने राज कवि वाल्मीकि को आदेश दिया कि एक ऐसी कहानी लिखी जाये, जिससे पुष्यमित्र शुंग सदा के लिए अमर हो जाये। वाल्मीकि ने पुष्यमित्र शुंग को राम नाम से स्थापित किया और रामायण नाम की एक काल्पनिक कहानी की रचना की। रामायण कोई सच्ची घटना नहीं है यह बात सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने भी अपने एतिहासिक फैसले “सची रामायण बनाम रामायण” नामक केस में मानी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाबजूद आज भी ब्राह्मण कहानियां बना बना कर रामायण को सची घटना साबित करने की कोशिश करते है। दोस्तों अब सोचना आपको है कि दिवाली बनाये या ना बनाये। अगर बनाये तो कैसे बनाये। महँ सम्राट अशोक द्वारा शुरू किया गया दिप्दानोत्सव बनाया जाये या ब्राह्मण धर्म की दिवाली। आज भी दिवाली के नाम पर दीपको के लिए हर घर के आँगन में बनाया जाने वाला घरोंदा या किला बौद्ध स्तूप का ही दूसरा रूप है जहाँ आज भी लोग दीपक जलाते है। आज की दिवाली ब्राह्मणों का त्यौहार है जिनको ब्राह्मण अपने राजा पुष्यमित्र शुंग के विजय दिवस के रूप में मानते है। इसलिए मूलनिवासियों को दिवाली नहीं दिप्दानोत्सव बनाना चाहिए।

No comments:

Post a Comment