सुरेश वाडकर

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Monday, November 3, 2014

"ब्राह्मण-आर्यों का षड़यंत्र" !!




हिन्दुस्तान सदा से भाईचारे वाला देश रहा है, हिन्दुस्तान के मूलनिवासियो ने समय-समय पर विदेशो से आने वाले विभिन्न धर्मो के लोगो को भी गले से लगाया है लेकिन उन्ही विदेशियों की परम्पराओं और मान्यताओं ने कितनी ही बार इन्ही मूल निवासियों के सम्मान को ठेस पहुचाई है,
उन परम्पराओं और मान्यताओं में से एक है असप्रस्य्ता यानि छुवा-छूत
ये बात सब जानते है की सनातन-आर्यों ने सदा से दलितों को अछूत बताकर उनका तिरस्कार और उनका शोषण किया ,
सनातन-आर्यों ने ही इस देश में छुवा-छूत जैसा कोढ़ फैलाया ,
सनातन-आर्यों ने ही ऊच-नीच युक्त समाज की रचना की , लेकिन इसका इल्जाम सदा दूसरी कौमो पर लगाया ,
जब इनका ये इल्जाम कही से कही तक साबित ही ना हो सका तब सनातन-आर्यों ने खुद को इस कलंक से बचाने के लिए किसी एक ऐसी चीज की तलाश शुरू करदी जिसपर ये सारा इल्जाम थोप कर खुदको सीधा-सच्चा साबित कर सके ,
 इनकी तलाश वर्ण व्यवस्था पर जाकर ख़तम हुई , हलाकि वर्ण व्यवस्था प्राचीन काल में इन्ही सनातन-आर्यों द्वारा बनाई गई थी ,
सनातन-आर्यों की ही बनाई गयी वर्ण व्यवस्था को दोष देने में सनातन-आर्यों कोई षड़यंत्र है या सचमुच वर्ण व्यवस्था ही छुवा-छूत फ़ैलाने के लिए जिम्मेदार है?
आइये इस गुत्थी को सुलझाने के लिए पहले वर्ण व्यवस्था को समझते है ,
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भारत में समाज को व्यवस्थित करने और कार्य विभाजन के लिए वर्ण व्यवस्था लागू की गयी जिसका आरंभिक विवरण मनुस्मृति में तथा बाद में विष्णु गुप्त चाणक्य द्वारा अपने ग्रन्थ 'अर्थशास्त्र' में प्रकाशित किया गया. चाणक्य महोदय के शब्दों में :-
स्वधर्मो ब्राह्मनस्याध्ययनमध्यापनं यजनं याजनं दानं प्रतिग्रहश्चेती. क्षत्रियस्याध्ययनं यजनं दानं शस्त्राजीवो भूतरक्षणं च. वैश्यस्याध्ययनं यजनं दानं कृषिपाशुपाल्ये वनिज्या च. शूद्रस्य द्विजाति शुश्रूषा वार्ता कारूकुशीलवकर्म च.
इस ग्रन्थ का प्रचलित हिंदी अनुवाद (श्री वाचस्पति गैरोला, चौखम्बा विद्याभवन) इस प्रकार है -
ब्राह्मण का धर्म अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ-याजन, और दान देना तथा दान लेना है. क्षत्रिय का है पढ़ना, यज्ञ करना, दान देना, शस्त्रों के उपयोग से जीविकोपार्जन करना और प्राणियों की रक्षा करना. वैश्य का धर्म पढ़ना, यज्ञ करना, दान देना, कृषि कार्य एवं पशुपालन और व्यापार करना है. इसी प्रकार शूद्र का अपना धर्म है कि वह ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य की सेवा करे; पशु-पालन तथा व्यापार करे; और शिल्प (कारीगरी), गायन, वादन एवं चारण, भात आदि का कार्य करे.
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इसतरह हम कह सकते है की उस समय समाज चार भागो में बटा था, पहला भाग ब्राह्मण समाज, दूसरा भाग क्षत्रिय समाज , तीसरा भाग वैश्य समाज, और इस समाज का चौथा भाग शूद्र समाज था ,
लेकिन अब देखने वाली बात यह है की यहाँ समाज को चार भागो में जातिगत आधार पर नहीं बल्कि उनके कार्य के आधार बाटा गया था जो इस प्रकार है ,
1 ,ब्राह्मण समाज:-ब्राह्मण का कार्य है धर्म का अध्ययन-अध्यापन करना, यज्ञ करना, और दान देना तथा दान लेना ,
2 ,क्षत्रिय समाज:-क्षत्रिय का कार्य है पढ़ना, यज्ञ करना, दान देना, शस्त्रों के उपयोग से जीविकोपार्जन करना और प्राणियों की रक्षा करना ,
3 ,वैश्य समाज:-वैश्य का कार्य है धर्म पढ़ना, यज्ञ करना, दान देना, कृषि कार्य एवं पशुपालन और व्यापार करना ,
4 ,शूद्र समाज:-शूद्र का कार्य है कि वह ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य की सेवा करे; पशु-पालन और शिल्प (कारीगरी), गायन, वादन एवं चारण ,_________________________________________________________

इस प्रकार यह साबित होजाता है कि वर्ण व्यवस्था में समाज को कर्म के आधार पर बाटा गया था ना कि जाती के आधार पर , या यू कहे कि वर्ण व्यवस्था लोगो के कार्य पर आधारित थी,

इसके विपरीत छुवा-छूत का आधार जातिगत था, छुवा-छूत जाति पर आधारित थी , इससे ये साबित हो जाता है कि छुवा-छूत फैलाने में वर्ण व्यवस्था का दोष कम और सनातन-आर्यों का दोष अधिक है, लेकिन सनातन-आर्य वर्ण व्यवस्था को दोष देते है,
ये हकीकत में सनातन-आर्यों का एक फरेब है, ये सनातन-आर्यों का एक षड़यंत्र है ,
और ये भी सनातन-आर्यों के उसी षड़यंत्र का एक हिस्सा है जिसका मकसद तमाम देशवासियों को अपने सामने तुच्छ बनाकर अपने अधीन रखना है ,
सनातन-आर्यों ने सदा दलितों का तिरस्कार किया अपमान किया और दलितों को सदा समाज से प्रथक ही बनाये रख्खा,
लेकिन जब बाबा साहब जैसे विद्वान् उनके विरोध में खड़े हो गए तो सनातन-आर्यों ने सारा इल्जाम वर्ण व्यस्था पर थोप दिया  और अपने राजनैतिक हित के लिए, तमाम दलितों को वर्ण व्यवस्था का झासा देकर अपने समाज का एक हिस्सा बताने लगे , बाबा साहब जी के बौध धर्म अपनाने के बाद उनकी मंशा पूर्ण हो गई , इस तरह सनातन-आर्यों की मान्यता के अनुसार उनका धरम भी भ्रष्ट होने से बच्च गया और इनके राजनैतिक लाभ के लिए दलित अलग होकर भी इनके धरम और मान्यताओं का अनुकरण करने वाले बनगये,,, सचमुच बहुत बड़ा षड़यंत्र है ये.........
इस षड़यंत्र को जगजाहिर करने के लिए इन तत्थ्यो  को जगजाहिर करने की आवश्यकता है कि,
1 ,किया सचमुच वर्ण व्यवस्था छुवा-छूत फ़ैलाने के लिये जिम्मेदार थी,
2 ,किया शुद्र वर्ण में अछूत कहे जाने वाले दलित भी शामिल थे,
  ऊपर कि व्याख्या से ये तो साबित होजाता है कि छुवा-छूत फ़ैलाने के लिये वर्ण व्यवस्था नहीं बल्कि सनातन-आर्यों कि खोखली मानसिकता ही जिम्मेदार थी, ,
शूद्र वर्ण ब्राह्मणों, क्षत्रिर्यों और वैश्यों की सेवा का कार्य करता था, इससे ये तो जाहिर है की शूद्र वर्ण अछूत नहीं था,
क्योकि सनातन-आर्य अछूतों के पास जाना या उन्हें अपने पास बुलाना भी पसंद नहीं करते थे इससे उनका धरम भ्रष्ट हो जाता था तो अछूतों से सेवा करवाने का तो सवाल ही नहीं उठता,
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     शूद्र वर्ण में धोबी,लौहार,गडरये,जुलाहे,कुम्हार, जैसी अनैक जातिया थी जो ये सेवा कार्य सम्पादित करती थी और इन जातियों में से एक जाती भी अछूत नहीं कहलाती थी,
   या ये कहा जा सकता है की हरिजन दलितों को छोड़ कर आजतक इनमे से किसी भी जाती को अछूत कहकर प्रताड़ित नहीं किया गया , अब यहाँ ये साबित हो जाता है की वर्ण व्यवस्था में शुद्र वर्ण को अछूत नहीं समझा जाता था ,,,,,,,,,,,
अब सवाल ये उठता है कि
   अगर शुद्र वर्ण अछूत नहीं था तो अछूत कहे जाने वाले हरिजन दलित शुद्र वर्ण हा हिस्सा कैसे हो सकते है?????
बस यही वो सवाल है जिसका जवाब सनातन-आर्यों के इस षड़यंत्र का पर्दा-फाश कर देता है,
यानि जिस समय इन विदेशियों ने इस देश पर प्रभुत्वा स्थापित किया, अपनी वर्ण व्यवस्था स्थापित की, उस समय भी इन सनातन-आर्यों ने अपनी खोखली मानसिकता के चलते हरिजन दलितों को अछूत बताकर इस समाज से प्रथक कर रख्खा था, और हरिजन दलितों को वर्ण व्यवस्था में शामिल ही नहीं किया गया था,,,,
बस ये तो एक राजनैतिक षड़यंत्र है जिसके चलते आज सनातन-आर्य हरिजन दलितों को शुद्र वर्ण का एक अंग बताते है और हरिजन दलितों को वर्ण व्यवस्था से जोड़कर सारा दोस वर्ण व्यवस्था पर लगा देते है, और भ्रम फैलाकर खुद इसका राजनैतिक लाभ उठाते है,
फिर हिन्दू लफ्ज़ का फरेब देकर इस देश की जनता को गुमराह करके अपना स्वार्थ सिद्ध करते है,
देश की भोली-भाली जनता को गुमराह करने वाली इसी स्वार्थ पूर्ण राजनीति का सर्वनाश करना ही मेरा एक मात्र लक्ष्य है,
नसीम निगार हिंद 

ये बात सरासर गलत की बाबा साहब जी को मुसलमानों और इसाई दोनों ने अपने धर्म में लेने की कोशिस की, हां ये बात जरूर कही जा सकती है की बाबा साहब जी खुद एक नये धर्म की तलाश में थे क्योकि उस वक़्त तक समस्त दलित समाज धार्मिक मामलो में ब्राह्मण-आर्यों का ही अनुसरण करता था
लेकिन ब्राह्मण-आर्य इन्हें तुच्छ,नीच, और अछूत कह कर इनका त्रस्कार करते थे,
शायद बाबा साहब जी को भी अब लगने लगा था की इन खुदगर्ज़ ब्राह्मण-आर्यों का अनुसरण करते रहने से कभी भी दलितों का उत्थान नहीं हो सकता बस यही कारण था जिसकी वजह से बाबा साहब जी एक नये धर्म की तलाश में लग गए,
बाबा साहब जी के समक्ष अनेक धर्म और अनेक विकल्प थे, जिनमे इस्लाम और इसाई धर्म प्रमुख थे,
और सचमुच बाबा साहब जी इन्ही धर्मो में से एक धर्म को अपनाने वाले थे, लेकिन बाबा साहब जी की एक अच्छी आदत ये भी थी कि वे सदा ही अपने सहयोगियों के परामर्श से ही समस्त कार्य संपादित करते थे, 
और इस मामले पर भी बाबा साहब जी ने अपने सहयोगियों जो की ब्राह्मण-आर्य थे उनसे परामर्श किया, और फिर किया था बाबा साहब जी के सहयोगियों ## + ## + ## जोकि ब्राह्मण-आर्य थे उन्होंने अपनी राजनैतिक चाल चली,
और वो चाल कुछ इस तरह थी कि वे दलितों को सनातन या आर्य धर्म में लाकर उन्हें अपने समकक्ष सम्मान तो नहीं देना चाहते थे लेकिन इसाई या मुसलमान बनाकर अपना विरोधी भी नहीं बनाना चाहते थे, 
अब जरूरत थी एक ऐसे धर्म की जिसको अपनाने की सलाह देकर ये धर्मांध पाखंडी लोग अपने धर्म को भी दलितों से अलग रख सके और मुसलमानों पर जुल्मो-सितम करने के लिए दलितों को अपने साथ भी रख सके इस लिए इन्होने बाबा  साहब जी को बौद्ध  धर्म अपनाने की सलाह दी,
और इस तरह चालाक पाखंडीयो ने अपने धर्म को भी अपवित्र होने से बचा लिया और मुसलमानों और इसाइयों को भी मजबूत नहीं होने दिया,
इनकी चाल सफल हो गई अपने धर्म परिवर्तन के बाद भी या यु कहे कि बौध धर्म को अपनाने के बाद आज भी इस देश के दलित , दलित ही कहलाते है,
इसके विपरीत अगर दलित इसाई या मुसलमान बन जाते तो वे इसाई या मुसलमान कहलाते, लेकिन दलितों के इसाई या मुसलमान बन्ने से इसाई या मुसलमानों कि ताकत बढ़ सकती थी और इन्हें भविष्य में राजनैतिक हानि उठानी पड़ सकती थी इस लिए इन्होने ये चाल चली,
और फिर बस एक उधार के लफ्ज़ हिन्दू का फरेब देकर सबको मुसलमानों के खिलाफ एकता के सूत्र में बाँधने लगे, ये चाल बड़ी ही सफाई से चली गयी ठीक उसी तरह जिसतरह फ़िरोज़ खान को फिरोज गाँधी में परिवर्तित करने के लिए चाल चली गयी थी और ये चाल भी उन्ही तमाम चालो में से एक है जिन चालो ने तमाम हिन्दुस्तान को आजतक भ्रमित कर रख्खा है
लेकिन षड़यंत्र चाहे कितना भी विशाल हो भ्रम चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो ये एक दिन जरूर टूट जायेगा हकीकत की सुबह अब जल्द आयेगी
इन सभी चालो और भ्रमो को तोडना ही मेरा द्रढ़ संकल्प है,"नसीम निगार हिंद"

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